Thursday, November 9, 2017

मौत के फंदे

यह हमारा देश है हिन्दुस्तान जहां पर सबसे ज्यादा गरीब हैं किसान जो खून-पसीना बहाकर १२५ करोड देशवासियों के लिए अन्न उगाते हैं और खुद भूखे पेट सोते हैं। अपने यहां किसानों की अनदेखी की ऐसी भयावह परिपाटी है जो वर्षों से चली आ रही है। सभी सरकारें किसानों की भरपूर सहायता का ढोल पीटती हैं फिर भी किसानों की आत्महत्याओं का आंकडा कम होने का नाम नहीं लेता। सत्ताधीश ही नहीं हम और आप भी किसानों की उपज का सही दाम देने में हैरतअंगेज तरीके से आनाकानी करते हैं। भारतीय किसानों के जीवन में खुशहाली और बदलाव लाने के लिए नेता, बुद्धिजीवी और तमाम किस्म के विद्वान आपस में बैठकर चिन्तन-मनन तो ऐसे करते हैं कि किसानों का उनसे ब‹डा और कोई हितकारी न हो। सबका हित करने वाला किसान व्यापारियों, धनलोभियों, नेताओं के लालच का शिकार हो जाता है और लोगों के चेहरे पर कोई शिकन नहीं आती। जिन दवाओं से फसलों पर लगने वाले कीडों का खात्मा होना चाहिए वही कीटनाशक दवाएं किसानों की जान ले लेती हैं। किसानों के मरने की खबर मीडिया में कुछ दिन तक नजर आती है, लेकिन होता-जाता कुछ नहीं। बलशाली धंधेबाज शातिर हत्यारे कहीं दूर सुरक्षित बैठे मुस्कराते रहते हैं। शासन और प्रशासन भी उनकी चौखट पर नतमस्तक नज़र आता है। पिछले दिनों विदर्भ के यवतमाल, अकोला, बुलढाना, वर्धा, गोंदिया और भंडारा जिलों में लगभग ४५ किसानों-श्रमिकों की मौत विषैले कीटनाशकों के छिडकाव के कारण हो गई। पांच सौ से ज्यादा किसानों को अस्पताल में भर्ती होना पडा और लगभग २५ किसान अपनी नेत्रज्योति खो बैठे। गौरतलब है कि यवतमाल एक ऐसा बदनसीब जिला है जहां पर सर्वाधिक किसान कर्ज से त्रस्त होकर आत्महत्या कर चुके हैं। विगत वर्ष भी विदर्भ के इन क्षेत्रों में १५० से अधिक किसानों, श्रमिकों को विषैले कीटनाशकों ने मौत के आगोश में सुला दिया था। अगर सरकार जागृत होती तो इस वर्ष जहरीले कीटनाशकों के चलते किसानों का नरसंहार नहीं होने पाता। विदर्भ में कई कृषि केन्द्र ऐसे हैं जो बिना लायसेंस के कीटनाशक दवाएं बेचकर किसानों से धोखाधडी कर अपनी तिजोरियां भरते हैं। जिन कीटनाशकों के छिडकाव से विदर्भ के किसानों की दर्दनाक मौतें हुई उन्हें गुजरात और मुंबई की कंपनियों से बुलाया गया था। शेतकरी स्वावलंबी मिशन के अध्यक्ष ने इन मौतों को 'किसान हत्या काण्ड' और 'नरसंहार' का नाम देते हुए स्पष्ट कहा कि इस हत्याकाण्ड के लिए जितने दोषी कृषि विभाग के अधिकारी और बहुराष्ट्रीय कंपनियां हैं उतनी ही सरकार भी है।
यह हैरतनाक जानकारी भी सामने आयी कि खरीफ सीजन में विदर्भ में कम से कम २०० करोड से अधिक की कीटनाशकों की बिक्री हुई। इनमें से अकेले यवतमाल जिले के विभिन्न कृषि केन्द्रों से पूरे ४० करोड रुपये मूल्य के कीटनाशकों की बिक्री की गई। दुर्भाग्यपूर्ण यह कि इनमें से ज्यादातर कीटनाशक अनाधिकृत (अवैध) थे। यवतमाल जिले में सरकार के अनुसार खरीफ फसल का क्षेत्र साढे नौ लाख हेक्टर है। इसमें से ४ लाख ७० हजार हेक्टर क्षेत्र में कपास की फसल लगाई गई है। इनमें से लगभग तीन लाख हेक्टर क्षेत्र में जहरीले कीटनाशकों का छिडकाव किया जा चुका है। विदर्भ में ३५ कंपनियों के २० प्रकार के कीटनाशक और २५-३० प्रकार के बीज बेचे जाते हैं। इनमें से कई अवैध भी होते हैं। इस प्रकार विदर्भ में कीटनाशकों का काला बाजार भी सरकार के कृषि विभाग के नाक के नीचे चल रहा है। इनकी मिलीभगत के कारण ही इतनी मौतें हो रही हैं और सरकार कुंभकर्णी नींद से जागने का नाम ही नहीं लेती। सवाल यह भी है कि कृषि अधिकारियों की जानकारी के बिना ऐसे जहरीले कीटनाशक कृषि सेवा केन्द्रों तक पहुंचते कैसे हैं? सवाल यह भी है कि विदर्भ में हुई किसानों की इन मौतोें के लिए अब जिम्मेदार किसे माना-समझा या ठहराया जाए! क्योंकि सब के सब हाथ खडे कर रहे हैं।
नागपुर से लगभग एक घण्टे के सफर की दूरी पर स्थित है रामटेक नगर। यहां पर आत्महत्या करने वाले किसानों की याद में एक यात्रा निकाली गई। इस यात्रा में एक युवक किसानों की बेबसी और पीडा का प्रदर्शन करने के लिए ट्रेक्टर पर सवार होकर फांसी के फंदे पर झूलने का अभिनय कर रहा था। ट्रेक्टर चलता चला जा रहा था और युवक के फांसी पर झूलने के अभिनय को देखकर लोग तालियां पीट रहे थे। सभी अपनी मस्ती में थे। अचानक रस्सी गले में कस गई और युवक तडपने लगा। उसकी तडपन को भी लोगों ने अभिनय समझा। कुछ देर बाद जब ट्रेक्टर रूका तो लोगों ने युवक को बेसुध पाया। ट्रेक्टर के ऊबड-खाबड कच्ची सडक पर दौडने के कारण हुई डगमगाहट के चलते फांसी का फंदा उसके गले में कस गया और उसकी मौत हो गयी। ऐसी ही एक मौत २०१५ में देश की राजधानी में हुई थी जिसकी गूंज दूर-दूर तक सुनाई दी थी। विभिन्न रैलियों और अनशनों के लिए विख्यात जंतर-मंतर में आम आदमी पार्टी ने किसानों की बदहाली पर सत्ताधीशों का ध्यान आकर्षित करने के लिए विशाल रैली का आयोजन किया था। राजस्थान के दौसर से चलकर गजेंद्र सिंह नामक एक किसान भी यहां पहुंचा था। मंच पर केंद्र सरकार को कोसा जा रहा था तभी एकाएक राजस्थानी वेशभूषा में भीड का ध्यान आकर्षित करता गजेंद्र सिंह मंच के निकट के नीम के पेड पर चढ गया। उसके हाथ में झाडू और गमछा था। जंतर-मंतर में जुटे न्यूज चैनल वाले जैसे गजेंद्र की ही राह देख रहे थे। देखते ही देखते दो मंच बन गये। एक पर थे अरविंद केजरीवाल और उसके साथी और दूसरे पर आम आदमी के चुनाव चिन्ह झाडू को लहराता किसान। न्यूज चैनल वालों के चमकते कैमरों को देखकर किसान के लहू में करंट दौडने लगा था। उसने अचानक गमछे को अपनी गर्दन में फंदे की तरह डाल लिया था और फांसी लगाने का अभिनय करने लगा था। सभी चैनलवालों ने किसान के फांसी के अभिनय को लाइव दिखाना शुरू कर दिया था। भीड का ध्यान भी मंच से हट गया था। इसी बीच किसान ने फंदे की तरह डाले गमछे को थोडा जोर से कसा और तब वह हो गया जिसकी किसी ने कल्पना नहीं की थी। संतुलन बिगड जाने के कारण गमछा वास्तव में फांसी का फंदा बन गया और किसान के प्राण पखेरू उड गये। एक हंसता-खेलता किसान इस दुनिया से विदा हो गया। आरोप-प्रत्यारोप और सहानुभूति का सैलाब उमडता रहा। नेताओं ने किसान को शहीद का दर्जा देकर तालियां भरपूर बटोरीं थीं। इस घटना को घटे दो साल से ज्यादा हो चुके हैं। लेकिन उस शहीद की किसी भी नेता और न्यूज चैनल वालों को याद नहीं आयी!

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