Thursday, November 2, 2017

अतिथि देवो भव:?

यह कोई नई बात नहीं है। मायानगरी मुंबई को कुछ नेता अपनी जागीर समझते हैं। उन्हें बाहर से लोगों का यहां आना कतई नहीं सुहाता। यही वजह है कि कभी टैक्सी वाले तो कभी फेरी वाले उनका निशाना बनते रहते हैं। सरकारी नौकरी की आस में इस नगरी में मेहमान बन आने वाले पढे-लिखे युवाओं पर भी लाठी-डंडे बरसाने से परहेज नहीं किया जाता। यह 'पुण्य' कभी शिवसेना वाले कमाते हैं तो कभी महाराष्ट्र निर्माण सेना वाले। उग्र नेताओं को लगता है कि देश के अन्य प्रदेशों से मुंबई में कमाने-खाने के लिए आने वाले भारतीयों को सबक सिखाये बिना प्रदेश का उद्धार और विकास नहीं हो सकता। उन्होंने यह भी मान लिया है कि कानून सही समय पर अपना काम नहीं करता इसलिए उसे अपने हाथ में लेने में कोई बुराई नहीं है। चुनावी हार और विरोधियों के दांवपेचों से पराजित होने वाले नेताओं की बौखलाहट बार-बार सामने आती है। पिछले दिनों मनसे के सुप्रीमों राज ठाकरे ने मुंबई के फेरीवालों के खिलाफ फिर से हिंसक अभियान छेड दिया। उनकी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने परप्रांतीय लोगों को चुन-चुनकर निशाना बनाया और जमकर मारपीट की। मारपीट करने वाले इस सच को भूल गए कि फेरीवालों में मराठी मानुष भी शामिल हैं। मनसे वाले बेखौफ होकर फेरीवालों पर आतंकी जुल्म ढाते रहे और पुलिस लगभग मूकदर्शक बनी रही। विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं ने मनसे के खिलाफ रोष जताते हुए उसे कानून को अपने हाथ में नहीं लेने की नसीहत दी तो भी उसे कोई फर्क नहीं पडा।
मुंबई कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष संजय निरुपम ने खुद को उत्तर भारतीयों का मसीहा साबित करने और अपनी ठंडी पडी दुकान को चर्चा में लाने के लिए फेरीवालों के हौसले बुलंद करने के लिए कहा कि खुद की जान बचाने के लिए अगर कानून हाथ में लेना पडे तो किंचित भी देरी मत करो। गुंडों की मार खाने से बेहतर है उनसे भिडना और लडना। संजय के भडकाऊ भाषण का असर होने में देरी नहीं हुई। संजय की सभा खत्म होने के बाद जब फिर मनसे के कार्यकर्ता फेरीवालों को खदेडने के लिए पहुंचे तो उन्होंने भी उनका जमकर प्रतिरोध किया और जमकर मारपीट हुई। कइयों को गंभीर चोटें आयीं। कुछ को अस्पताल में भी भर्ती करना पडा। इस बार पुलिस ने भी खासी फुर्ती दिखाई। दंगा भडकाने के आरोप में निरुपम के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया गया। गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश और बिहार के लाखों लोग मुंबई एवं आसपास मेहनत मजदूरी करने के लिए आते हैं। कई लोग यहां स्थायी तौर बस चुके हैं। मेहनतकश लोग बरसात, धूप, आंधी-तूफान की परवाह किये बिना फुटपाथ पर अपनी अस्थायी दुकानें लगाकर किसी तरह से अपने घर चलाते हैं। नियम तो यह कहता है कि यदि फेरीवालों के पास लाइसेंस नहीं है तो महानगरपालिका को ही उनके खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए। लेकिन वर्षों से यही देखा जा रहा है कि कभी शिवसेना तो कभी मनसे के बहादुर कार्यकर्ता कानून को अपने हाथ में लेकर उनके साथ मारपीट करते हैं। ठेलों में विक्रय के लिए रखे गए सामानों को नुकसान पहुंचाते हैं। कांग्रेसी संजय निरुपम के भडकाऊ सुझाव को किसी भी हालत में जायज नहीं ठहराया जा सकता। यह भी हकीकत है कि संजय निरुपम की राजनीति की शुरुआत शिवसेना से हुई थी। जब वे शिवसेना के मंच पर छाती तानकर भाषणबाजी किया करते थे तब भी उत्तर भारतीय शिवसैनिकों के हाथों प्रताडित होते थे। तब उनका कभी मुंह खुलते नहीं देखा गया। उन्हें राजनीति में अपने पैर जमाने थे इसलिए चुप्पी साधे रहे। दरअसल मतलबपरस्ती ऐसे नेताओं के खून में समायी है। आज वे कांग्रेस में हैं, लेकिन उनकी सुनी नहीं जा रही। इसलिए उन्होंने हिंसक तेवर दिखाकर यह दर्शाने की कोशिश की है कि अकेले वे ही ऐसे कांग्रेसी हैं जो परप्रांतीयों के लिए ढाल बनने का दम रखते हैं। इस चक्कर में उन्हें यह भी याद नहीं रहा कि देश में सक्षम कानून है जो गुंडे बदमाशों के होश ठिकाने लगाने में सक्षम है। फेरीवालों को कानून को अपने हाथ में लेने की उनकी सीख से कहीं न कहीं यह भी लगता है कि वे भी उसी गुंडागर्दी में प्रबल यकीन रखते हैं जिसमें दूसरे नेता पारांगत हैं और वर्षों से आतंक मचाते चले आ रहे हैं। यह कैसी विडंबना है कि एक ओर जहां देश में आपसी सद्भाव के नारे लगाये जाते हैं वहीं दूसरी तरफ अपनों के हाथों अपनों का अपमान होता है, खून बहाया जाता है। यकीनन यह देश के अच्छे भविष्य के संकेत नहीं हैं। पिछले दिनों विदेशी पर्यटकों के साथ जो बदसलूकी हुई उसने भी देश को कलंकित किया है। मेहमान देशी हों या विदेशी... उनके साथ दुर्व्यवहार का होना बेहद दु:खद, शर्मनाक और निंदनीय है। देश के विभिन्न पर्यटन स्थलों पर देशी और विदेशी सैलानियों के साथ होने वाली बदसलूकी हमारी सभ्यता और संस्कृति को कटघरे में खडा करती है। लगता है कि 'अतिथि देवो भव:' कहना अब मात्र दिखावा रह गया है। इसकी मूल भावना की हत्या का अनवरत सिलसिला जारी है। उत्तर प्रदेश के फतेहपुर सीकरी में जिन दो विदेशी पर्यटकों को मारा-पीटा गया वे तो भारतवर्ष को मेहमान नवाजी के मामले में एक आदर्श देश मानकर पर्यटन के लिए आए थे। इस विदेशी दंपति को देखते ही कुछ लोगों ने उन पर अभद्र टिप्पणियां करने के साथ-साथ लाठियों और पत्थरों से भी हमला किया। अगर ऐसी घटनाएं नहीं थमीं तो सोचिए कि विदेशी पर्यटक हिन्दुस्तान के बारे में क्या सोचेंगे और क्यों आएंगे? यह भी काबिले गौर है कि देश में आने वाले विदेशी प्रयटकों की संख्या में धीरे-धीरे कमी आती जा रही है...।

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