Thursday, December 7, 2017

जगाने और होश में लाने का जुनून

दिशा की उम्र महज तेरह साल है। वह सातवीं कक्षा में पढती है। आपको यह जानकर घोर ताज्जुब होगा कि वह पांच हजार लोगों को सिगरेट पीने की लत से मुक्ति दिलवा चुकी है। जिस उम्र में बच्चे पढाई और खेल कूद में मस्त रहते हैं, उस उम्र में दिशा का 'मिशन नो स्मोकिंग' के प्रति जबर्दस्त जिद्दी रूझान वाकई स्तब्ध करके रख देता है। दिशा जब मात्र पांच साल की थी तब उसके दादा की मौत हो गई थी। दिशा को अपने प्यारे दादा से बहुत लगाव था। वे भी उस पर सारा अपनत्व और प्यार उडेल दिया करते थे। दादा का एकाएक दुनिया को छोडकर चले जाना दिशा के लिए किसी दु:खदायी स्वप्न और पहेली से कम नहीं था। उसकी मां ने बताया कि वो सिगरेट बहुत पीते थे इसलिए उन्हें कैंसर हो गया था। छोटी-सी बच्ची को उसी दिन से सिगरेट से नफरत हो गई। वह जिस किसी को भी सिगरेट फूंकते देखती तो उसे उसकी मौत की कल्पना जकड लेती। उसने तभी ठान लिया कि वह लोगों की सिगरेट की लत को छुडाएगी और उन्हें मौत के मुंह से जाने से बचाएगी। दिशा अपने अभियान की शुरुआत में लोगों के मुंह से सिगरेट छीनकर फेंक देती। लोग गुस्से से तिलमिला उठते और दिशा के गाल पर तमाचे भी जड देते। जिद की पक्की दिशा तमाचे खाकर भी मुस्कराती रहती और धीरे से कहती कि अंकल यह सिगरेट बहुत बुरी चीज है। इसको पीने से मेरे दादाजी मर गए, कृपया आप इसे फेंक दो वर्ना आपका भी मेरे दादा जैसा हाल होगा। मासूम दिशा के अनुरोध का अधिकांश लोगों पर असर होना स्वाभाविक था। कुछ लोग जल्दी मानते तो कुछ लोग देरी से। छोटी सी बच्ची के मुख से धुम्रपान से होने वाले जानलेवा नुकसान के बारे में सुनना लोगों की आंखें खोलने के लिए काफी था। दिशा बताती है कि मैंने एक डायरी बनाई है। उसमें स्मोकिंग करने वाले लोगों से वादा कराती हूं कि वो आज से सिगरेट नहीं पियेंगे। उन्हें अपने वादे की याद रहे इसलिए उनके हस्ताक्षर भी करवाती हूं। उनके नंबर नोट करती हूं और फिर उन्हें मैसेज और फोन करके फॉलोअप लेती हूं। अभी तक मेरी तीन डायरी भर चुकी हैं और पांच हजार से ज्यादा लोग सिगरेट से तौबा कर चुके हैं। अपने इस मिशन के प्रति पूर्णतया समर्पित दिशा पढाई-लिखाई से भी समझौता नहीं करती। वह कक्षा में हमेशा अव्वल आती है। जिस दिन स्कूल की छुट्टी रहती है उस दिन वह पान-सिगरेट की दुकानों पर अपने दोस्तों के साथ पहुंच जाती है और लोगों को धूम्रपान छोडने के लिए प्रेरित करती है। कई लोगों की जिन्दगी में बदलाव लाने वाली दिशा जब भीड को धूम्रपान से होने वाली बीमारियों और तकलीफों के बारे में अवगत कराने के लिए बोलती है तो लोग मंत्रमुग्ध सुनते रह जाते हैं।
अपने वतन में नशे के सामानों की खपत बढती चली जा रही है। युवा पीढी को विभिन्न नशों ने अपनी गिरफ्त में ले लिया है। सरकार एक तरफ शराब, सिगरेट आदि की बिक्री की छूट देती है तो दूसरी तरफ इनसे होने वाली जानलेवा बीमारियों से अवगत कराने के लिए करोडों-अरबों रुपये विज्ञापनबाजी में भी खर्च करती है। सरकार के इस सतही प्रयासों का लोगों पर कोई खास फर्क नहीं पडता। ड्रग्स के प्रति युवाओं के बढते रूझान और शराब की दूकानों पर लगने वाली लंबी-लंबी कतारें बता देती हैं कि लोग किस राह पर जा रहे हैं। राजधानी दिल्ली में एक युवक रहते हैं प्रभदीप सिंह जो गलियों में घूमते हुए युवाओं को नशे की लत से बचाने के लिए गीत गाते दिखायी देते हैं। नशे के खिलाफ चेतना के गीतों के स्वर बिखरने वाले प्रभदीप चाहते हैं कि उनका संदेश ड्रग्स के शिकार हर युवा तक कुछ इस तरह से पहुंचे कि वह नशे से तौबा कर ले। यह पूछने पर कि उनके मन में गीतों के जरिए युवाओं में चेतना जगाने का विचार कैसे आया तो उन्होंने बताया कि मेरे आस-पडोस में निम्न और मध्यमवर्गीय परिवारों के बच्चें हैं और यहां लोगों ने नशे के लिए अपने घर भी बेच दिए हैं। इनकी जिन्दगी नशे के कारण पूरी तरह से तबाह हो गई है। मुझसे यह भयावह मंजर देखा नहीं गया। मेरी गीत लिखने की तो बचपन से रूचि थी। ऐसे में मन में विचार आया कि अपने गीतों के जरिए नशेडियों को नशा छोडने का आग्रह कर मानवता के धर्म को निभाऊं और अपने होने को सार्थकता प्रदान करूं। प्रभदीप का यह प्रयास व्यर्थ नहीं गया। उनके गीत और संगीत को सुनकर कई युवाओं ने ड्रग्स को हाथ नहीं लगाने की कसम खा ली है। २३ वर्षीय प्रभदीप का जन्म दिल्ली में स्थित तिलकनगर में हुआ। यह वही जगह है जहां १९८४ के दंगों ने सिखों को सबसे ज्यादा जख्म दिए थे, जो अभी तक नहीं भर पाये हैं। उनके पिता ने भी १९८४ की विभीषका के दर्द को गहरे तक भोगा है। इस इलाके में नशीले पदार्थों का सेवन करने वाले युवाओं की अच्छी-खासी तादाद रही है। वे अपने गीतों के जरिए और भी कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर अपनी बात कर लोगों को जगाने का काम कर रहे हैं।
हिन्दुस्तानी बालिका अगर चाहे तो अपने गांव का कायाकल्प करते हुए किसानों के लिए मसीहा साबित हो सकती है इसे सच साबित कर दिखाया है महाराष्ट्र के अकोला जिले की नासरी ने। जिला मुख्यालय से करीब ८० किलोमीटर दूर स्थित आदिवासी बहुल गांव भिलाला में आधी आबादी छोटे किसानों की है और आधी मजदूरों की। नासरी को बचपन से ही खेती में पिता का हाथ बंटाते-बंटाते यह हकीकत समझ आ गई कि खेती का काम पूरी तरह से घाटे का सौदा है। जितनी लागत लगायी जाती है, उतनी भी नहीं निकल पाती। यदि थोडा मुनाफा होता भी है तो वह कर्ज चुकता करने में खर्च हो जाता है। किसान के हाथ में कुछ भी नहीं आता। आदिवासी बालिका नासरी को एक ऐसी संस्था के बारे में पता चला जो जैविक खेती (ऑर्गेनिक फार्मिंग) को प्रोत्साहित करने में लगी थी। इस विधि से खेती करने पर खेती की लागत रासायनिक विधि की तुलना में एक चौथाई हो जाती है। नासरी ने तुरंत जैविक खेती का निर्णय ले लिया। प्रारंभ में उसके पिता ने आना-कानी की, लेकिन नासरी ने उन्हें मना कर ही दम लिया और खुद ही कंपोस्ट खाद आदि तैयार कर विशेषज्ञों द्वारा बतायी गई विधि से खेती प्रारंभ की। पहली बार में ही जैविक खेती से वाकई लागत एक चौथाई रह गई और पैदावार भी उतनी हुई जितनी पहले होती थी। अपने खेत में सफल प्रयोग करने के बाद नासरी ने गांव वालों को जैविक खेती के लिए प्रेरित करने का अभियान चलाया। शुरू-शुरू में तो अविश्वास जताते हुए उसका मजाक भी उडाया गया। इस तरह का बर्ताव भारतीय परंपरा का अंग है। नासरी किसानों को मरता नहीं देख सकती थी इसलिए उसने गांव वालों को आश्वस्त किया कि वह उनका घाटा कदापि नहीं होने देगी। अगर हुआ भी तो वह खुद झेलेगी। उसने किसानों के लिए खाद आदि स्वयं तैयार कर उपलब्ध करायी। सफलता तो मिलनी ही थी। उसकी सूझबूझ ने गांव की सूरत ही बदल दी। २०११ के आसपास हुए इस चमत्कार का अनवरत सिलसिला जारी है। उसके गांव की चर्चा दूर-दूर तक होने लगी है। किसान खुश है। खेती से उन्हें फायदा होने लगा है। देश एवं विदेश के कृषि विशेषज्ञ नासरी के गांव में आते रहते हैं और एक परी के जुनून की सफलता को देखकर यह मानने को विवश हो जाते हैं कि भारतीय बेटियां अगर ठान लें तो कुछ भी कर सकती हैं। जैविक खेती के माध्यम से अपने गांव की तस्वीर बदलने वाली नासरी को महाराष्ट्र सरकार ने कृषि भूषण पुरस्कार से नवाजा है तो डॉ. पंजाब राव कृषि विद्यापीठ अकोला ने अपना 'ब्रांड अंबेसेडर' बनाया है। इसके साथ ही वह ३० से ज्यादा विभिन्न संस्थाओं के द्वारा पुरस्कृत की जा चुकी है।

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