Thursday, January 11, 2018

जीना और मरना

नये साल ने दस्तक दी ही थी कि इन उदास और निराश करने वाली खबरों ने स्तब्ध कर दिया। मन में कई तरह के विचार आते रहे। पहले आप इन्हें पढें और गहराई से सोचें।
नए साल की रात नई दिल्ली की २६ वर्षीय युवती जूही ने आत्महत्या कर ली। आत्महत्या की वजह बडी चौंकाने वाली थी। जूही ने अपने स्सूसाइड नोट में लिखा था कि- चेहरे पर काले दाग, धब्बे, मुहांसे के निशान से वह काफी परेशान है। इस वजह से वह खुदकुशी करने को विवश हो रही है। इसके लिए किसी को जिम्मेदार न ठहराया जाए। ३१ दिसंबर की रात अपनी सहेलियों के साथ जश्न मनाने के बाद आत्महत्या करने वाली जूही ने अपनी मर्जी से शादी की थी। माता-पिता उसके खिलाफ थे। वह पढने-लिखने में काफी सजग और होशियार थी। उसका मध्यप्रदेश पीसीसीएल में सिलेक्शन भी होने वाला था। नाराज़ मां-बाप ने उससे नाता तोड लिया था। यही वजह थी कि उन्होंने बेटी का शव लेने से भी इंकार कर दिया। पत्नी की मौत की खबर मिलते ही पति फौरन दिल्ली दौडते चले आए। सॉयकाट्रिस्ट कहते हैं कि सिर्फ मुहांसों की वजह से कोई जान नहीं दे सकता। यह एक अचंभित करने वाला मामला है। आत्महत्या करने के पीछे और कुछ दूसरे कारण हो सकते हैं। देश के जाने-माने डॉक्टरों का भी मानना है कि केवल दाग-धब्बों की वजह से कोई आत्महत्या कर ले यह बडे अचंभेवाली बात है। हां, उसे मुहांसों की वजह से तनाव हो सकता है। साथ में कई दूसरे फैक्टर हो सकते हैं जो उनके तनाव को बढा सकते हैं।
बेंगलुरु में २७ साल के सॉफ्टवेयर इंजीनियर आर.मिथुन राज ने भी नये साल की सुबह बालों के गिरने की समस्या से तंग आकर मौत को गले लगा लिया। उत्तरी दिल्ली के बुराडी में रहने वाले एक अन्य युवा ने घर की दूसरी मंजिल से कूदकर जान दे दी। इस पच्चीस वर्षीय युवा का नाम है नवदीप, जो स्वीडन से हायर एजुकेशन लेकर लौटा था। उसने मर्चेंट नैवी में नौकरी भी की थी, लेकिन पिछले कुछ दिनों से वह तनाव में जी रहा था। उसने जब से 'लाइफ आफ्टर डेथ' नामक किताब पढी थी तभी से उसके मन में आत्महत्या करने के विचार आने लगे थे। वह मोबाइल पर गूगल में खुदकुशी के तरीके और मौत के बाद जीवन के बारे में खोज करता रहता था। कितनी नींद की गोलियां खाकर मौत आ सकती है इसकी जानकारी ढूंढने के लिए रात-रात भर वह जागता रहता था। उसके मन में यह बात भी घर कर गयी थी कि मरने के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है। वह सतत आध्यात्मिक बातें भी करने लगा था। थर्टी फर्स्ट की रात भी मानसिक तनाव बढ जाने के कारण उसे नींद नहीं आ रही थी। आखिरकार उसने बालकनी पर जाकर नीचे छलांग लगाई और इस दुनिया से हमेशा-हमेशा के लिए विदा हो गया।
पूर्वी दिल्ली के मधु विहार की सबरीना ने भी नई साल की पहली तारीख को फंदे पर लटक कर इस दुनिया को अलविदा कह दिया। सत्ताईस वर्षीय सबरीना एक कुशल नर्स थी। मरीजों की देखरेख और सेवा करना उसका धर्म था और इस धर्म को वह अच्छी तरह से निभाती थी। ऐसी कर्तव्यपरायण नर्स अपने साथ अन्याय करने के लिए महज इसलिए विवश हो गई क्योंकि नये साल के मौके पर घर में जो पार्टी आयोजित की गई थी उसमें उसकी पति से कुछ अनबन और कहा-सुनी हो गई थी। दोस्तों के जाने के बाद बहस इतनी बढी कि पति नाराज होकर कोशंबी में रहने वाले अपने भाई के घर चला गया। रात भर वह वहीं रहा। सुबह होते-होते तक उसका गुस्सा ठंडा हो चुका था। वैसे भी ऐसी छोटी-मोटी लडाईयां कहां नहीं होती। यह भी तो जीवन का हिस्सा हैं। लगभग हर पति-पत्नी में तो मनमुटाव होता ही रहता है। सुबह आठ बजे पति जब घर लौटा तो उसने पत्नी व अपनी सवा साल की बेटी को फंदे पर लटका पाया। उसके तो होश ही फाख्ता हो गए। उसने कभी कल्पना ही नहीं की थी कि पत्नी इतना बडा कदम उठा सकती है। ऐसा झगडा तो पहले भी होता रहता था। अपनी अबोध मासूम बेटी के साथ आत्महत्या करने वाली सबरीना के पिता ने किसी बात पर पत्नी की हत्या कर दी थी। पिता तिहाड जेल में बंद हैं। यह घटना सबरीना के मन में बहुत बडा घाव छोड गयी। मां की असमय मौत के चलते सबरीना को तनाव ने भी जकड लिया था। फिर भी नर्सिंग का कोर्स करने के बाद उसने अपोलो अस्पताल में नौकरी शुरू कर दी थी। पिता के जेल जाने के बाद उसने कुमार नामक युवक से शादी की और चार साल बाद उनके यहां बेटी ने जन्म लिया।
ऊपर वाले ने इस सृष्टि का निर्माण कुछ इस तरह से किया है कि सभी इंसानों में कोई न कोई फर्क होता है। कोई भी परिपूर्ण नहीं होता। सभी खूबसूरत नहीं होते। फिर भी जीने और संघर्ष करने की लालसा बनी रहती है। जिन्दा इंसानों की यही पहचान है। यह क्या बात हुई कि आप छोटी-छोटी समस्याओं को ऐसा पहाड मान लें जिसे लांघा ही नहीं जा सके। यहां पर कितनों की नाक अच्छी नहीं है। कितनों को लगता है कि उनका चेहरा किसी को आकर्षित नहीं करता। लोग उन्हें नजरअंदाज कर देते हैं और भी कई तकलीफें होती हैं, लेकिन वे आत्महत्या तो नहीं कर लेते। ऐसी कोई समस्या नहीं है जिसका कोई हल न हो। कुछ लोग हल तलाशने की पहल ही नहीं करते। उन्हें सकारात्मक सोच के साथ संघर्ष की बजाय मौत को गले लगाना आसान लगता है। सच तो यह है कि तनाव, हताशा, चिंता हर किसी के हिस्से में आते हैं। इनसे छुटकारा पाने के अनेकों रास्ते हैं। इनसे घबराकर मौत का दामन थाम लेना कायरता है। ऊपर वाले की उपहार स्वरूप बख्शी जिन्दगी का घोर अपमान है। हर्षा और अंशु जैसे लोग ही जिन्दगी की कीमत समझते हैं।
खिचलीपुर की आशावादी हर्षा वर्षों तक केवल इस उम्मीद से जीती रही कि वो सुबह जरूर आएगी जब उसका लीवर ट्रांसप्लांट हो जाएगा और वह सामान्य जिंदगी जी पाएगी। हर सुबह नई उम्मीद लेकर आती थी। उसे उम्मीद थी कि सरकार या कोई उसकी मदद के लिए जरूर सामने आयेगा। इसी इंतजार में १५ साल बीत गये। उसका लीवर ट्रांसप्लांटेशन नहीं हो पाया, लेकिन फिर भी उसने उम्मीद का दामन नहीं छोडा। अंतत: वह इंतजार करते-करते चल बसी। हर्षा अपने पीछे छह साल का मासूम बेटा छोड गई है। वह अपने बेटे को पढा-लिखाकर बडा आदमी बनाना चाहती थी। उसे बेटे से बेहद लगाव था। उसी के लिए ही वह जीना चाहती थी। सरकार और प्रशासन ने उसकी नहीं सुनी। किसी ने भी मदद के लिए अपना हाथ आगे नहीं बढाया। लेकिन हर्षा ने भी आखिर तक अपना हौसला बरकरार रखा।
अंशु जब दसवीं में पढती थी तब एक मनचले एक तरफा प्यार करने वाले युवक ने तेजाब फेंककर उसके चेहरे की रंगत बिगाड दी थी। शुरू-शुरू में अंशु दर्पण में अपना चेहरा देखने से कतराती थी। उसने धीरे-धीरे खुद को संभाला और अपना भविष्य संवारने की कसम खा ली। लोग उसके चेहरे को नुमाइश की वस्तु समझ तमाशबीन की तरह घूरते रहते और वह बेपरवाह रहती। तरह-तरह की मुश्किलों का हिम्मत के साथ सामना करते हुए उसने अपनी पढाई जारी रखी और अपने सपने को भी साकार कर दिखाया। आज वह लखनऊ के एक नामी कैफे में काम कर पंद्रह हजार रुपये महीना कमाती है और अपने भाई-बहनों के भविष्य को संवारने में लगी है। उसके चेहरे पर हमेशा छायी रहने वाली मुस्कान कइयों को हौसला प्रदान करती है। अंशु का अभी बहुत दूर तक जाने और सफलता का परचम लहराने का इरादा है। किसी कवि की कविता की यह पंक्तियां यकीनन बहुत कुछ कह देती हैं :
"तेरे पास जो है उसकी कद्र कर
यहां आसमान के पास भी खुद की जमीं नहीं है...।"

No comments:

Post a Comment