Thursday, April 12, 2018

शर्म क्यों नहीं आती?

बिना आगा-पीछा देखे यह तेजी से दौडने का ज़माना है। एक दूसरे को पछाडने के लिए तरह-तरह के साधन और साजो-सामान ईजाद कर लिये गये हैं। आधुनिकता के इस दौर में जब इंसान के जबरन लापरवाह और मंदबुद्धि होने की खबरें सामने आती हैं तो घबराहट-सी होने लगती है। असुरक्षा की भावना पनपने लगती है। मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में एक अजीबो-गरीब किस्म का मामला सामने आया जिसने दर्शा दिया कि पढे-लिखे होने के बावजूद कुछ लोगों को समय की रफ्तार ने बहुत पीछे छोड दिया है। एक सरकारी स्कूल की टीचर सुधा ने डेढ साल पहले उत्तराखंड स्थित मातृछाया से एक बच्चे को गोद लिया था। महिला का पति एक प्राइवेट अस्पताल में काम करता है। सुधा ने बच्चे को गोद ले तो लिया था, लेकिन बच्चे के काले रंग के कारण उसके उत्साह पर पानी फिर गया था। बच्चे को गोरा बनाने के लिए उसने उसका कई जगह इलाज कराया। करीब एक साल पहले किसी ने उसके कान में डाला कि बच्चे को काले रंग के पत्थर से घिसा जाए तो वह अंग्रेजों के बच्चों की तरह गोरा-चिट्टा हो सकता है। पढी-लिखी शिक्षिका सुधा को तो जैसे वेदमंत्र ही मिल गया। वह फौरन कहीं से काला पत्थर ले आई और दिन-रात मासूम बच्चे के शरीर पर जोर-जोर से घिसने लगी। इससे बच्चे की कलाई, कंधे, पीठ और पैरों में घाव होते चले गए, लेकिन शिक्षिका ने कोई परवाह नहीं की। उसके सिर पर बच्चे को गोरा करने का भूत सवार था। कडे खुरदरे पत्थर को घंटो शरीर पर रगडे जाने के कारण पांच वर्षीय बच्चे का रोना-चीखना भी स्वाभाविक था। बच्चे की पीडा को देखकर शिक्षिका की बहन की बेटी से रहा नहीं गया। उसने कई बार रोकने की कोशिश की, लेकिन फिर भी सुधा को सुध नहीं आई। वह बच्चे को प्रताडित करने से बाज नहीं आई। आखिरकार बहन की बेटी के द्वारा 'चाइल्ड लाइन' और पुलिस में शिकायत की गयी। बच्चे को मुक्त करवाकर अस्पताल ले जाया गया। बच्चे की बहुत बुरी हालत हो चुकी थी। उसके शरीर का कोई हिस्सा ऐसा नहीं था जहां पर घाव न हों।
सोमवार की रात को बाइक से जा रहे उभरते गायक आरुष को कार ने टक्कर मार दी। पुलिसवाले उन्हें नई दिल्ली के नामी बत्रा हॉस्पिटल ले गए। वहां इलाज शुरू करने से पहले ४० हजार रुपये जमा कराने को कहा गया। यह भी बताया कि रोज का ३५ हजार का खर्च आयेगा। पैसों का इंतजाम न होने पर आरुष को उसके परिजन दूसरे अस्पताल ऐम्स ट्रामा सेंटर में ले गए। वहां पर भी नोटों को भगवान मानने वाले डॉक्टरों ने इलाज करने से मना कर दिया। हैरान-परेशान परिवार वाले आरुष को सफदरगंज अस्पताल ले गए। दूसरे दिन सुबह दस बजे आरुष की मौत हो गई। यहां पर भी बडी शर्मनाक और आहत करने वाली ड्रामेबाजी हुई। आरुष की मौत की सूचना मिलने के बाद यार-दोस्त और घरवाले हास्पिटल की मार्चुरी के बाहर खडे होकर यह सोचते रहे कि अंदर पोस्टमार्टम किया जा रहा होगा इसलिए लाश को उनके सुपुर्द करने में देरी हो रही है। चार घण्टे के बाद एक डॉक्टर ने बताया कि शव का पोस्टमार्टम यहां नहीं बल्कि एम्स में होगा। डॉक्टरों से जब यह पूछा गया कि अगर पोस्टमार्टम करना ही नहीं था तो पहले क्यों नहीं बताया। चार घण्टे तक इंतजार करवाने की क्या जरूरत थी? डॉक्टर सवाल को अनसुना कर चलते बने। एम्स ने भी कई लटके-झटके दिखाये और दूसरे दिन सुबह अहसान जताते हुए शव का पोस्टमार्टम किया। देश की राजधानी के अस्पतालों की मृत हो चुकी इंसानियत का शर्मनाक चेहरा दिखा दिया। अगर बत्रा हास्पिटल ने थोडी-सी भी इंसानियत दिखाई होती तो आरुष आज जिन्दा होता। उसे देखने से यह कतई नहीं लग रहा था कि उसे बहुत अधिक चोट लगी होगी। उसके शरीर में बाहर से कहीं से भी बहुत अधिक खून नहीं बह रहा था। वह बेहोश जरूर था। आरुष के दोस्तों को भी इस बात का जीवनभर मलाल रहेगा कि अस्पतालों की अमानवीयता के कारण उनके चहेते मित्र को अपनी जान गंवानी पडी। वह अपने भाई-बहन का और मां का भी बहुत चहेता था। वह किसी को भी किसी काम के लिए मना नहीं करता था। किसी के भी पारिवारिक कार्यक्रम में वह गाना गाकर महफिल में जान डाल देता था। वह हरियाणवी स्टार बनना चाहता था। उसने अपने नाम से यू-ट्यूब चैनल भी शुरू किया था। पांच गाने उसने अपने चैनल पर डाले थे। और भी गानों की तैयारी में जुटा था। उसपर पूरे घर को चलाने की जिम्मेदारी थी। उस रात भी वह खाना डिलिवर करने जा रहा था। तभी अचानक एक तेज रफ्तार गाडी ने टक्कर मार दी। कुछ दिन पहले ही उसे एक नई अच्छी नौकरी मिली थी। वह खुश था कि अब अच्छे पैसे मिलेंगे। जिन्हें जोडकर वह बहन की शादी करेगा। शादियों की पार्टियों में बतौर डीजे का भी काम करने वाले आरुष के दुर्घटनाग्रस्त होने की खबर सुनकर जब परिजन मौके पर पहुंचे तब तक पुलिस उसे बत्रा हॉस्पिटल ले जा चुकी थी। गरीब माता-पिता, परिजनों को भी इस बात का मलाल है कि उनके पास बेटे की जान को बचाने के लिए पैसे नहीं थे। अगर होते तो बेटा आज जिन्दा होता। जहां देखो वहां धन के लालची जमा हो गए हैं। युवतियों को अकेला पाकर खाकी वर्दी वालों की नीयत डोल जाती है।
दिल्ली की वह युवती दो सहेलियों के साथ अपने दोस्त का जन्मदिन मनाने नोएडा के एक फार्महाऊस में गई थी। पार्टी के दौरान सभी मेहमान डीजे पर नाच-गा रहे थे। बेफिक्री और मस्ती का आलम था। ऐसे में अचानक २० लोग फार्महाऊस में पहुंचे और अंधाधुंध लाठी-डंडे बरसाने लगे। कुछ बदमाशों ने तीनों युवतियों को घेर कर छेडछाड शुरू कर दी। इसी दौरान किसी ने १०० नंबर पर पुलिस को कॉल कर दिया। थोडी देर बाद एक आम गाडी में वहां पर पहुंची। उसमें से एक सिपाही बाहर निकला जिसने सबसे पहले बदमाशों के मुखिया को झुककर नमस्कार किया। लडकियों को कॉन्स्टेबल ने अपनी गाडी में बिठाया और लडकों को दूसरी गाडी में डालकर थाने ले गया। स्कार्पियो में महिला पुलिस कर्मी नहीं थी। इसी का फायदा उठाते हुए रास्ते भर वह लडकियों से अश्लील हरकतें करता रहा। पुलिस स्टेशन पहुंचने पर तीनों युवतियों की शिकायत भी दर्ज नहीं की गई। उलटे उनसे घूस के रूप में बीस हजार रुपये वसूल लिए गये। पुलिस का यह अय्याश, लुटेरा और भक्षक चेहरा इन तीनों युवतियों को ताउम्र याद रहेगा। उनसे जब कोई कहेगा कि पुलिस तो विपदा में फंसे लोगों की रक्षक होती है तो जवाब में वे थूकने और गाली देने में देरी नहीं करेंगी। कुछ लोग हद दर्जे के मतलबी और असंवेदनशील हो गये हैं। दूसरों की पीडा में रोमांच और मनोरंजन तलाशते हैं। मरते हुए इंसानों की आखिरी सांसों को रिकॉर्ड करने वालों की करतूत ईश्वर के सच्चे बंदों के खून को खौला देती है। दिल्ली में ही एक तेज रफ्तार कार ओवरटेक करते हुए बाइक सवार को कुचलती हुई चली गई। टक्कर इतनी जबरदस्त थी कि बाइक सवार युवक करीब १० फुट उछलकर डिवाइडर पर जा गिरा। खून से लथपथ युवक तडप रहा था। लोग वहां से गुजरते रहे। गाडियां भी रूक गर्इं। काफी भीड जमा हो गई। किसी को भी उसे अस्पताल पहुंचाने की नहीं सूझी। हां कुछ तमाशबीन फोटो खींचने और वीडियो बनाने में जरूर लगे रहे। आरुष के साथ भी ऐसा ही हुआ था। वह तडप रहा था और तमाशबीन फोटो और वीडियो बनाकर दुर्घटना को यादगार बनाने में लगे थे।

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