Thursday, April 5, 2018

उनका क्या कसूर?

हां... कुछ लोग ऐसे हैं जिन्होंने हिन्दुस्तान के अमन-चैन, सद्भावना और आत्मीयता को जख्म पर जख्म देने की आदत पाल ली है। नफरतों की आंधियों का समर्थन करना और बम बारुद बिछाकर खून की नदियां बहाते हुए इंसानियत को शर्मिंदा करने की कारस्तानियां करते रहना उनकी फितरत है। उन्हें पता कि अधिकांश भारतवासी उनसे नफरत करते हैं। दूरियां बनाकर रहते हैं। उनका बस चले तो मानवता के इन शत्रुओं का गला ही घोंट दें। लेकिन कानून और भारतीय संस्कृति उन्हें इसकी इजाजत नहीं देते। हर सच्चा हिंदुस्तानी खून बहाने नहीं, एक-दूसरे को गले लगाने में यकीन रखता हैं। सर्वधर्म समभाव और भाईचारे के पोषकों के समक्ष नतमस्तक होता चला जाता है। हिंसा की फसले बोने वाले भी हमारे इर्द-गिर्द रहते हैं, जिनकी शिनाख्त करने में हम अक्सर चूक जाते हैं या फिर नजरअंदाज कर देते हैं। अधिकांश दंगई भी हमीं लोगों के बीच के लोग होते हैं जिन्हें सदैव मौके की तलाश रहती है। यही भूलें और चूकें अब बहुत भारी पडने लगी हैं। कभी जंगलों में रहकर खून खराबा करते हुए शासन प्रशासन को चुनौती देने वाले नक्सली शहरों को सुरक्षित मानने लगे हैं।
मैंने जब यह खबर पढी कि गुजरात के भावनगर में ऊंची जाति के लोगों ने एक दलित युवक की इसलिए निर्मम हत्या कर दी क्योंकि उसे घोडी रखने और उसकी सवारी का शौक था तो मुझे हत्यारों की घटिया सोच और अमानवीयता पर बेइंतहा गुस्सा आया। प्रदीप नाम के इस युवक की उम्र मात्र इक्कीस वर्ष थी। दो माह पहले ही उसने अपनी मेहनत की कमायी से एक घोडी खरीदी थी। सामंती सोच रखने वाले सवर्ण जाति के लोगों को उसका घोडी खरीदना और उस पर बैठना ही खंजर की तरह चुभ गया था। उन्होंने अपना ऐतराज जताते हुए प्रदीप को धमकाया था कि अपनी औकात मत भूलो। दलित हो... सिर झुका कर चलो। ऊंची जाति के लोगों की बराबरी करने के सपने देखना छोड दो। तुम जैसे हवा में उडने वालों को मिट्टी में मिला दिया जाता है। धमकियों पर धमकियां मिलने के बाद प्रदीप ने तो घोडी को बेचने का मन बना लिया था लेकिन उसके पिता ने उसे ऐसा न करने और अपने में मस्त रहने की सलाह दी थी। खेतीबाडी के काम में पिता के साथ कंधे से कंधा मिलाकर पसीना बहाने वाला बेटा गुरुवार की सुबह यह कहकर खेत गया था कि वापस आकर साथ में खाना खाएंगे। जब देर तक वह नहीं आया तो पिता को चिन्ता ने घेर लिया। वे उसे खोजने के लिए निकले। गांव के करीब दो-तीन किमी दूर एक सुनसान खेत की ओर जाने वाली सडक पर अपने जवान बेटे को मृत पडा देखकर पिता बेहोश हो गए। बेटे की प्रिय घोडी भी कुछ ही दूरी पर मरी हुई पायी गई। ऊंची जाति के होने का दंभ पालने वाले इस तरह के सवर्ण कैसे भूल जाते हैं कि दलित वर्ग हिंदू समाज का अभिन्न अंग है उन्हें भी सबके बराबर खडा होने का हक है। इस आधुनिक युग में छुआछूत और भेदभाव यकीनन अहंकार की निशानी है। दलित उत्पीडन की घटनाओं को देखकर सभ्य समाज का माथा शर्म से झुक जाता है फिर भी...।
आगरा में एक दलित की महज इसलिए पिटायी कर दी गई क्योंकि उसका हाथ गलती से ब्राह्मण के शरीर को छू गया था।  कन्नोज में एक दलित महिला के साथ बलात्कार के बाद उसे तेजाब से नहला दिया गया। चित्तौडगढ में बाइक चोरी के आरोप में दलित बच्चे को नंगा कर बेरहमी से पीटा गया। ऐसी कई खबरें लगभग रोज पढने और सुनने को मिल जाती हैं। एक सर्वेक्षण के आंकडे बताते हैं कि देश में हर दूसरे घंटे किसी न किसी दलित को निशाना बनाया जाता है। हर २४ घंटे में तीन दलित महिलाओं पर बलात्कार होता है। हर घंटे कोई न कोई दलित मारा जाता है। ऐसी तमाम वारदातें दुनिया के सबसे बडे लोकतंत्र देश पर कलंक से कम नहीं हैं।
पश्चिम बंगाल के आसनसोल में रामनवमी के दिन से भडकी सांप्रदायिक हिंसा की आग के चलते चार लोगों को अपनी जान गंवानी पडी। इन मृतकों में आसनमोल की मस्जिद के इमाम का सोलह वर्षीय बेटा भी सम्मिलित था। दंगाइयों ने उनके बेटे की पीट-पीटकर हत्या कर दी थी। कोई आम पिता होता तो गुस्से से तिलमिला जाता। दंगाइयों के होश ठिकाने लगाने के लिए भडकाऊ भाषणबाजी पर उतर आता। लेकिन इमाम ने जिस सहनशीलता और धैर्य का परिचय दिया उसे देखकर लोगों की आंखें भीग गयी और उन्हें यकीन हो गया कि दरिंदों की भीड में ऐसे फरिश्ते भी बसते हैं। गुस्सायी भीड हिंसक मुद्रा में थी। अपना आपा खोती भीड को संबोधित करते हुए इमाम ने कहा, 'मेरे पुत्र के लिए अल्लाह ने जितना समय मुकर्रर किया था, उतना वह जी लिया। अब किसी और बच्चे की जान न लें। इस्लाम शांति और सौहार्द का धर्म है। वह बदला लेने तथा हिंसा की  शिक्षा नहीं देता।' अपने दुलारे बेटे को हमेशा-हमेशा के लिए खो चुके इस शांतिदूत ने यहां तक कह डाला कि अगर किसी ने हिंसा और बदले की बात की तो मैं मस्जिद और शहर छोडकर चला जाऊंगा।
अभी तक हम यही पढते और सुनते थे कि नक्सली दुर्गम जंगली इलाकों में रहकर आतंक और लूटमारी की वारदातों को अंजाम देते हैं। लेकिन अब कई नक्सलियों ने नगरों और महानगरों को अपनी कर्मस्थली बना लिया है। अभी हाल ही में राजधानी दिल्ली के निकट स्थित नोएडा में बडे आराम से रह रहे नक्सली को पकडा गया। सुधीर भगत नामक यह व्यक्ति मूलरूप से बिहार का रहने वाला है। पुलिस ने नोएडा के एक मकान पर छापा मारकर उसे गिरफ्तार किया। फर्जी आधार कार्ड, कॉलेज के आईकार्ड और अन्य कागजात के साथ पकड में आए इस नक्सली पर बिहार में १४ हत्याएं और छह नरसंहार के मामले दर्ज हैं। यह नक्सली बिहार में बैठे अपने साथियों के जरिए हर माह लाखों की वसूली करता चला आ रहा था। वर्ष २०१४ में एक विधायक के प्रतिनिधि को पूरे गांव के सामने खुलेआम तडपा-तडपा कर मारने वाले इस दरिंदे की बिहार पुलिस के पास कोई फोटो नहीं थी। २००८ से वह नोएडा में रह रहा था। ताज्जुब है कि किसी को भी भनक नहीं लग पायी कि एक ईनामी खूंखार नक्सली उनके आसपास बडे मज़े से रह रहा है!

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