Thursday, June 7, 2018

अभी टूटी नहीं आशा की डोर

मुझे २०१४ की याद आ रही है। देश में कितना उत्साह भरा माहौल था। हर कोई खुश था आशान्वित था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण और दावे दमदार लगते थे। ऐसा प्रतीत होता था कि अब देश का पूरी तरह से कायाकल्प होना तय है। वो दिन दूर नहीं जब देश से गरीबी, महंगाई, बेरोजगारी, अशिक्षा, असमानता और किसानों की समस्याओं का नामोनिशान मिट जाएगा। हर चेहरे पर चमक होगी। चारों तरफ खुशहाली ही खुशहाली नज़र आएगी। देश आर्थिक सुधारों के मार्ग पर सरपट दौडने लगेगा। नरेंद्र मोदी नाम के इस प्रभावी परिश्रमी और ईमानदार नेता ने जो वादे किए हैं वे जल्द पूरे हो जाएंगे। नरेंद्र मोदी को सत्ता पर काबिज हुए चार साल बीत चुके हैं। किसी प्रधानमंत्री के कार्यों के मूल्यांकन के लिए इतनी अवधि कम नहीं होती। आज चारों तरफ सवाल गूंज रहे हैं। बस यही कहा जा रहा है कि मोदी जनता की उम्मीदों पर पूरी तरह से खरे नहीं उतरे। उनकी सरकार किसानों, मजदूरों, बेरोजगारों, दलितों-शोषितों के लिए कुछ नहीं कर पायी। २०१४ में जो भीड यह नारे लगाती थी कि २०१९ में भी भाजपा का परचम लहरायेगा, नरेंद्र मोदी के सामने कोई नहीं टिक पायेगा, वह आज असमंजस में है। वो युवा बेहद निराश हैं जिन्होंने मोदी पर भरोसा कर उन्हें विजयी बनाने में अपनी पूरी ताकत लगा दी थी। आम जनता का भी यही हाल है। फिर भी विपक्ष भी केंद्र की सत्ता पाने के लिए एकजुट होने लगा है। भले ही भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह आज भी यह कहते नहीं थकते हों कि भाजपा आने वाले पचास साल तक देश पर राज करेगी, लेकिन सच तो यह है कि वे भी देशवासियों के बदलते मूड से अनभिज्ञ नहीं हैं। चतुर नेताओं की यही फितरत होती है कि वे हवा का रुख पहचानने के बाद भी अपनी जीत के दावे करते रहते हैं। इसी का नाम राजनीति है। अभी हाल ही में हुए उपचुनावों में भाजपा को जिस तरह की पराजय का मुंह देखना पडा उससे भाजपा के अच्छे भविष्य की तस्वीर तो नहीं उभरी। कर्नाटक में सरकार बनाने में मिली विफलता के बाद कैराना, गोंदिया-भंडारा लोकसभा सीटों तथा नुरपुर विधानसभा उपचुनाव में हुई करारी हार ने भाजपा के दिग्गजों को अंदर से तो हिलाकर रख ही दिया है। यही वजह है कि अमित शाह को अपने 'शुभचिंतकों' के यहां चक्कर काटने शुरू कर दिये हैं। पिछले दिनों वे अपने पुराने प्रचारक बाबा रामदेव से मिले और उन्हें २०१९ में भी साथ देने का अनुरोध किया। रोज़-रोज़ भाजपा को दुत्कारने वाले शिवसेना सुप्रीमो उद्धव ठाकरे के समक्ष नतमस्तक होने में भी अमित शाह ने अपनी भलाई समझी है। विख्यात उद्योगपति रतन टाटा के यहां हाजिरी लगाकर अपनी बेचैनी दर्शा दी है। भाजपा ने एकाएक अखबारों और न्यूज चैनलों पर विज्ञापनों की झडी लगा दी है जिनमें अपनी उपलब्धियां गिनायी जा रही हैं। कहा जा रहा है कि चार साल में देश एशिया की तीसरी सबसे बडी अर्थव्यवस्था बनने में सफल हुआ है। सरकार ने आर्थिक क्षेत्र में कई ऐतिहासिक व साहसिक निर्णय लिए हैं। यह मोदी के नेतृत्व का ही कमाल है कि अंतरराष्ट्रीय राजनयिक व कूटनीतिक पहल के क्षेत्र में भारत ने विश्व स्तर पर अपनी छाप छोडी है। डिजिटल इंडिया, स्किल इंडिया, मेक इन इंडिया, स्टार्टअप, स्वच्छ भारत मिशन, प्रधानमंत्री जन-धन योजना, प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना, नमामि गंगे आदि कई परियोजनाओं को प्रभावी ढंग से कार्यान्वित करने के साथ-साथ सरकार का पूरे देश में सीमेंट की सडकें बनाने का काम तेजी से चल रहा है। मेट्रो रेल के काम  की प्रगति किसी से छिपी नहीं है। रोजगार भी पैदा किये जा रहे हैं। लाखों बेरोजगारों को नौकरियां दी जा चुकी हैं।
यह सरकार के वो दावे हैं जिनसे कुछ लोग सहमत हैं और अधिकांश असहमत। अपने देश में तो आज भी रोटी, कपडा और मकान करोडों लोगों की प्रमुख जरूरत है। जनता की समस्याओं का समाधान प्राथमिकता के आधार पर किया जाना चाहिए था, जो नहीं हो पाया। जब तक मूल समस्याएं रहेंगी तब तक सत्ताधीशों को कटघरे में खडा किया जाता रहेगा। जिस देश में अव्यवस्था के कारण रेलगाडियां घंटों लेट चलती हों, दुर्घटनाओं का सदा खतरा बना रहता हो, रेलपटरियों की हालत जर्जर हो चुकी हो, यात्रा के दौरान मूलभूत सुविधाओं का घोर अभाव हो और रिश्वतखोरी उफान पर हो वहां पर बुलेट ट्रेन के 'ऊंचे सपने' लोगों को राहत नहीं दे सकते। जब नोटबंदी की गई थी तब जोर-शोर के साथ यह कहा गया था कि इससे काला धन और काला कारोबार करने वालो को चोट पहुंचेगी। सच तो यह है कि नोटबंदी के दौरान सिर्फ आम आदमी को ही तकलीफें झेलनी पडीं। जीएसटी के चलते छोटे कारोबारियों के लिए मुश्किलों का पहाड खडा हो गया। काला धन आज भी बाजार की शान बना हुआ है। भ्रष्टाचार से भी मुक्ति नहीं मिली है। दलितों और महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों पर पूरी तरह से लगाम नहीं लग सकी। आर्थिक संकट से जूझते किसान आत्महत्या करने को विवश हैं। कानून के डंडे का भय अपराधियों को न उस सरकार के कार्यकाल में सताता था और न ही आज।
हां इस सच को कोई नकार नहीं सकता कि देशवासियों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जैसा परिश्रमी और ईमानदार नेता नहीं देखा। ऐसे में अगर उनके कार्यकाल में सकारात्मक परिणाम नहीं निकले तो लोगों का राजनीति और राजनेताओं से भरोसा ही उठ जाएगा। इसलिए अभी भी वक्त है। आस की डोर अभी पूरी तरह से नहीं टूटी है। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार को प्राथमिकता के आधार पर लोगों की मूलभूत समस्याओं का समाधान करने के लिए अपनी पूरी ताकत लगानी ही होगी।

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