Thursday, June 21, 2018

नेकी के साथी

यह भारत ही है जहां एक तरफ समृद्धि के अनंत उजाले हैं तो दूसरी तरफ गरीबी और बदहाली का घना अंधेरा है। जिन धनपशुओं की आंखों पर पट्टी बंधी है वे कल्पना नहीं कर सकते कि देश के कुछ प्रदेश ऐसे हैं जहां भूख के कारण मौतें होती रहती हैं। लाखों बच्चों को कई दिनों तक अन्न का दाना तक नसीब नहीं होता। कुपोषण के चलते कितने बच्चों को असमय इस दुनिया से विदायी लेनी पडती है इसका सटीक आंकडा सरकारों के पास भी नहीं है। जो लोग खबरों से करीबी रिश्ता रखते हैं उन्हें २०१७ के उस सितंबर महीने की याद होगी जब झारखंड की एक दस-ग्यारह साल की बच्ची अपनी बेबस मां से भात की मांग करते-करते चल बसी थी। ऐसी खबरें मीडिया में कम ही सुर्खियां पाती हैं। लेकिन यह खबर किसी तरह से सजग भारतवासियों तक पहुंच गयी थी। लोग स्तब्ध रह गये थे। संतोषी नाम की इस बच्ची की भूख से हुई मौत को लेकर सरकार और प्रशासन को कई दिनों तक कोसा गया था। नेताओं के लिए ऐसी मौतें चुनावों में वोट बटोरने का साधन बनती हैं। हिन्दुस्तान के अधिकांश नेता किस मिट्टी के बने हैं इससे कौन वाकिफ नहीं है। यही नेता ही तो प्रदेश और देश चलाते हैं। इनके कभी भी न पूरे होने वाले वादों और छल-कपट के दंश से करोडों भारतवासी वर्षों से लहुलूहान होते चले आ रहे हैं। यह अपना चेहरा बदल-बदल कर आते हैं और वोट झटक कर ले जाते हैं। पता नहीं यह सिलसिला कब तक चलने वाला है। ऐसे अनिश्चित दौर में भी कई इंसानियत के रखवाले हैं जो भारतीय संस्कारों को जिन्दा रखे हुए हैं। दीन-दुखियों के प्रति इनका समर्पण देखकर जी चाहता है कि काश- ऐसा वक्त आ जाए जब देश की सत्ता सौदागर किस्म के राजनेताओं के हाथों से छिनकर मानवता के रक्षकों के हाथों में चली जाए। अगर सभी देशवासी ठान लें तो इस सपने को साकार करना नामुमकिन नहीं है। हां, अफसोस इस बात का भी है कि ईमानदार, चरित्रवान, परोपकारी और संवेदनशील लोग राजनीति में आना ही नहीं चाहते। बहुत से लोगों को पता ही नहीं होगा कि लगभग २० करोड गरीब भारतीयों को रोज भूखे पेट सोना पडता है। गरीबी हटाने के नारे उछालकर कितने नेता विधायक, सांसद, मंत्री बन गए लेकिन गरीब वहीं के वहीं हैं। बस धनवानों का ही धन सतत बढता चला जा रहा है। इनका धन इन्हीं के घर-परिवार के काम आता है। अधिकांश धनपतियों के मन में जनहित का विचार कभी भी नहीं आता। कुछ लोग हैं जो यह मानते हैं कि ईश्वर ने उन्हें दीन-दुखियों की सेवा करने के लिए इस धरती पर भेजा है।
हरियाणा के दामोदा खुर्द गांव निवासी बलविन्द्र सिंह नैन एक ऐसे इन्सान है जिन्हें दूसरों की सेवा करने में अपार सुख की अनुभूति होती। अनाज मंडी में आढत के साथ-साथ पेट्रोल पम्प चलाने वाले बलविन्द्र अपने दोस्तों के सहयोग से वर्ष २००५ से सालासर और वैष्णोदेवी पैदल जाने वाले श्रद्धालुओं के लिए निशुल्क भोजन की व्यवस्था करते चले आ रहे हैं। धार्मिक यात्रा पर निकलने वाले धर्म प्रेमियों को भोजन मुहैय्या करवाते-करवाते एक दिन उनके मन में विचार आया कि जो लोग घर से बेघर हैं, अपंग हैं, कुछ कमा नहीं सकते, सडकों, रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड आदि स्थानों पर भूखे-प्यासे भटकते रहते हैं उनके लिए कुछ-न-कुछ जरूर किया जाना चाहिए। ऊपर वाले की मेहरबानी से उनके पास किसी सुख-सुविधा की कमी नहीं है। चारों तरफ से धन बरस रहा है तो फिर ऐसे में जरूरतमंदों की सेवा कर जीवन को सार्थक क्यों न बनाया जाए। बलविन्द्र ने भूखे-प्यासों को दो समय का भोजन नि:शुल्क उपलब्ध कराने के लिए २०१६ में हिसार प्रशासन की मदद से सबसे पहला 'रोटी बैंक' खोला। धीरे-धीरे और यह सिलसिला आगे बढता चला गया। हरियाणा के पानीपत, सिरसा, जींद, कैथल, रोहतक और पीरागढी (दिल्ली) में एक-एक जगह फतेहाबाद (हरियाणा) में दो 'रोटी बैंक' खुल चुके हैं। जहां पर प्रतिदिन औसतन छह हजार, माह में करीब दो लाख और साल में २२ लाख भूखों को दो वक्त का खाना खिलाया जाता है। इन रोटी बैंकों को सुचारू रूप से चलाने के लिए प्रतिवर्ष पांच करोड की जरूरत पडती है। रोटी बैंक चैरिटेबल ट्रस्ट के चेयरमैन बलविन्द्र बताते हैं कि "जहां-जहां भी रोटी बैंक खुले हुए हैं, वहां ७०-८० संपन्न लोग ट्रस्ट के साथ जुडे हैं।" दानदाताओं की यह संख्या ८०० तक पहुंच चुकी है। इनमें सक्षम किसान, व्यापारी और कुछ अधिकारी भी शामिल हैं। ये लोग खाद्य सामग्री और दान में रकम देकर 'रोटी बैंक' के संचालन में मदद करते हैं। 'रोटी बैंक' के पास से गुजरने वाले लोग भी दान पात्र में इच्छानुसार रुपये डालते हैं। रिक्शा चालक और दिहाडी मजदूर, जिनके पास किसी छोटे ढाबे पर भोजन करने लायक पैसे नहीं होते, वे भी रोटी बैंक में दोनों समय का खाना खाते हैं और इच्छानुसार योगदान करते हैं। इसके अलावा भी राशि कम पडती है तो ट्रस्ट के २३ सदस्य अपनी हैसियत के अनुसार भागीदारी करते हैं। इस सच को अच्छी तरह से जान लें कि अपने देश में अच्छे कामों में साथ देने वाले लोगों की कमी नहीं है। बस उन्हें इंतजार रहता है ईमानदार, कर्तव्यपरायण और विश्वासपात्र नायकों का जिनका अतीत और वर्तमान पाक-साफ हो, उसूलों के पक्के हों और जनहित के कार्यों को अंजाम देने की अथाह इच्छाशक्ति हो। जब उन्हें किसी भी व्यक्ति में यह खूबियां नजर आती हैं तो वे उनका हर तरह से साथ देने और अनुसरण करने में देरी नहीं लगाते। इस सच से लगभग हर कोई अवगत है कि अन्न की बर्बादी के मामले में हम भारतवासी अव्वल हैं। विभिन्न समारोहों के सम्पन्न होने के बाद बचने वाले भोजन को बडी बेदर्दी के साथ कचरे के ढेर के हवाले कर दिया जाता है। धनवान और उच्च मध्यमवर्ग के लोग भी बचे हुए अन्न को इधर-उधर फेंक देते हैं। उनके मन में कभी यह विचार ही नहीं आता कि इस भोजन से कई भूखे व्यक्तियों का पेट भरा जा सकता है। इस तरह से होने वाली भोजन की बर्बादी संवेदनशील इंसानों को बुरी तरह से व्यथित कर देती है। ऐसे ही एक शख्स हैं द्वारिका प्रसाद अग्रवाल जो व्यापारी होने के साथ-साथ एक सिद्धहस्त कहानीकार और उपन्यासकार भी हैं। अग्रवाल जी बिलासपुर के सदर बाजार स्थित एक होटल के संचालक हैं, जिसका नाम है, 'श्री जगदीश लॉज।' इस लॉज के प्रवेश द्वार पर उन्होंने एक फ्रिज रखवाया है तथा एक बैनर लगाया है जिसपर लिखा है कि- "क्या आपके घर में खाना या नाश्ता बच जाता है। उस खाने को यहां रखे फ्रिज पर रख जाइए ताकि किसी भूखे की भूख मिट सके। कृपया वही सामान रखें जो शुद्ध और खाने योग्य हो।" श्री अग्रवाल सोशल मीडिया पर भी काफी सक्रिय रहते हैं। मेरे पाठक मित्रों को यह जानकर ताज्जुब होगा कि श्री अग्रवाल का यह अभूतपूर्व प्रयास खूब रंग ला रहा है। कई लोग शादी-ब्याह और घरों में बचने वाला भोजन फ्रिज पर रख देते हैं जो भूखे पेट भरने के काम आता है और हां ऐसे लोगों की भी अच्छी खासी तादाद है जो ताजा गर्मागर्म भोजन और फल आदि भी फ्रिज में रखकर सच्ची मानवता का धर्म निभाते हैं।

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