Thursday, July 12, 2018

सत्ता और राजनीति के कारोबारी

आखिरकार नेताजी को जमानत मिल ही गई। उनके वकील अर्जियां लगा-लगा कर थक गये थे, लेकिन जमानत मिल ही नहीं रही थी। उनके भक्तों की तो नींद ही उड गयी थी। फकीर से खरबपति बने नेताजी का असली गुनाह अदालत को तो नजर आ रहा था, लेकिन उनके अंध भक्त उन्हें कसूरवार मानने को तैयार ही नहीं थे। उनका मानना था कि इस देश में नब्बे प्रतिशत नेता भ्रष्टाचार कर धनवान बनते हैं। रातों-रात धनपती बने ऐसे नेताओं की तकदीर बदलने का सच सभी को पता होता है, लेकिन कुछ पर ही क्यों आंच आती है? यह तो सरासर अन्याय है। जेल भेजना है तो सभी को भेजो। भेदभाव क्यों? लगभग हर नेता के पास ऐसी सोच रखने वाले समर्थकों का खजाना होता है। यह खजाना समय के अनुसार घटता-बढता रहता है। नेताजी ने जिस रफ्तार में दौलत कमायी उसी रफ्तार से उनके इर्द-गिर्द चापलूसों का घेरा भी बनता चला गया।
इन चापलूसों में से कुछ तो इतने मालामाल हो चुके हैं कि एक के यहां कुछ वर्ष पहले आयकर का छापा पडा था तो कई किलो सोना, करोडों की नगदी और अरबों की खेती, फार्महाऊस, बंगलों के कागजात बरामद हुए थे। नेता भक्त का सितारा तभी चमका जब नेताजी प्रदेश के गृहमंत्री और उपमुख्यमंत्री थे। तब उन्होंने अपने चहेतों को धडाधड कौडी के दामों पर सरकारी जमीनें और ऐसे-ऐसे सरकारी ठेके दिलवाये जिनसे उन्होंने देखते ही देखते अपनी आने वाली पांच पीढ़ियों की सुख-सुविधाओं के लिए धन जुटा लिया। आज से लगभग छत्तीस साल पहले वे सब्जी और फल बेचा करते थे। तब उनके यहां छोटे-मोटे नेताओं का आना-जाना होता रहता था। गल्ली-मोहल्ले के नेताओं के ठाठ-बाट देखकर उनके मन में भी नेता बनने का विचार आया। उन्होंने महानगर के एक बडे नेता का दामन थाम लिया जो एक राजनीति पार्टी के सर्वेसर्वा भी थे। दिखने और बोलने में प्रभावशाली सब्जी वाले की किस्मत चमकने में ज्यादा वक्त नहीं लगा। कुछ साल तक वे उसी नेता की पार्टी का दामन थामे रहे और धन कमाने के लिए वो सब करते रहे जिसके लिए देश के अधिकांश भ्रष्टाचारी नेता जाने जाते हैं। धन के साथ पद और प्रतिष्ठा के मिलने का सिलसिला बना रहा। जब लगा कि अब इस पार्टी में रहकर अपनी दाल गलाना आसान नहीं, उनकी तरक्की से शत्रु बढते चले जा रहे हैं तो दूसरी पार्टी के पाले में जा पहुंचे। यहां भी नेताजी ने जनसेवा की आड में ऐसे-ऐसे भ्रष्टाचारों के कीर्तिमान रचे कि लोग देखते रह गए। आखिर वो दिन भी आ गया, जब हजारों करोड के मालिक बन चुके इस भ्रष्ट नेता को जेल की सींखचों के पीछे जाना पडा। लगभग दो साल बाद जब नेताजी जेल से छूटे तो उनकी छाती कुख्यात भ्रष्टाचारी लालू प्रसाद यादव, मधु कोडा और जयललिता की तरह तनी हुई थी। उनके समर्थक भी सीना ताने थे।
नेताजी कुछ दिन तक आराम करने के पश्चात फिर से राजनीति के मैदान में कूद चुके हैं। अंदर से भले ही वे टूट चुके हैं, लेकिन भीड के समक्ष बडी दक्षता के साथ एक 'अपराजित योद्धा' का नाटक कर रहे हैं। उन्होंने ऐलान कर दिया है कि सरकार उन्हें कितनी भी यातनाएं देती रहे, लेकिन वे पिछडों और दलितों के हित की लडाई लडना नहीं छोडेंगे। भ्रष्टाचारियों को भी चुन-चुन कर बेनकाब करेंगे। यह हमारे देश के अधिकांश नेताओं का असली चेहरा है जिससे वो मतदाता भी वाकिफ हैं जो बार-बार इन्हें विधानसभा और संसद में पहुंचाते रहते हैं।
अभी हाल ही में एक केंद्रीय मंत्री  नवादा जेल में बिहार दंगे के आरोपियों का हालचाल जानने के लिए जा पहुंचे। यह आरोपी उनके कार्यकर्ता थे। कार्यकर्ता अगर खून भी कर दें तो नेता उनकी तरफदारी में खडे नजर आते हैं। यही हाल कार्यकर्ताओं का भी है, जो अपने नेता को हमेशा ही मसीहा मानते हैं भले ही वह डाकू, लुटेरा और बलात्कारी ही क्यों न हो। अधिकांश नेताओं को खुद पर कम अपने चम्मचों, समर्थकों पर अधिक भरोसा होता है। अपने चहेतों के प्रति ऐसी ही वफादारी मोदी सरकार के एक और मंत्री ने भी लोगों को पीट-पीटकर हत्या करने के दोषियों को मालाएं पहनाकर दिखायी। हालांकि इसके लिए उन्हें अपनी पिता की नाराजगी भी झेलनी पडी। मंत्री जी के पिता भी धाकड नेताओं में गिने जाते हैं। आजकल भाजपा में उनकी दाल नहीं गल रही है, इसलिए विरोध का झंडा उठाये घूम रहे हैं। उन्होंने अपने पुत्र की करतूत पर शर्मिंदगी और गुस्सा जाहिर करते हुए खुद को नालायक बेटे का बाप तक कह डाला। अपने देश के नेता खुद को बहुत अकलमंद समझते हैं। इन महा अकलमंदों का बडबोलापन इन्हें चर्चा में भी ला देता है। उत्तर प्रदेश के एक भाजपा विधायक ने बढते बलात्कारों पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए यह कहकर देशवासियों को शांत रहने का सुझाव दिया कि यदि भगवान राम भी धरती पर आ जाएं तो भी बलात्कार की घटनाएं नहीं रूकने वाली। यह तो एक आम अपराध है। अपने देश में एक से बढकर एक भोले और अंधविश्वासी नेता भरे पडे हैं। कोई ऐरा-गैरा भी उन्हें चुनाव में विजयश्री दिलवाने का मंत्र और झांसा दे दे तो वे उसके चरणों में दंडवत हो जाते हैं। छत्तीसगढ में विधानसभा के मानसून सत्र के दौरान एक तांत्रिक की विधायकों, मंत्रियों ने खूब मेहमान नवाजी की। भगवाधारी तांत्रिक बाबा सोने के जेवरों से लदा था और माथे पर सिंदूर व भभूत लगा रखा था। अंदर विधानसभा की कार्यवाही चल रही थी और बाहर बाबा पत्रकारों का मनोरंजन कर रहा था। उसने रमन सिंह की सरकार फिर से बनाने के लिए तंत्र-मंत्र का नाटक किया और यह कहा कि उसने भाजपा की सत्ता की वापसी के लिए विधानसभा को अपने संकल्प से बांध दिया है। उसे अब कोई बाधा नहीं छू सकती। अपने तंत्र-मंत्र और तथाकथित संकल्प की पूर्ति के लिए अमरनाथ की यात्रा पर निकलने का ऐलान करने वाले इस बाबा के हावभाव उसके कट्टर भाजपायी होने की गवाही दे रहे थे। भाजपा, सत्ता और सरकार प्रेमी इस तांत्रिक बाबा के साथ विधायकों, मंत्रियों ने धडाधड तस्वीरें खिंचवायीं और फिर से चुनाव जीतने का आशीर्वाद भी लिया।

No comments:

Post a Comment