Thursday, August 9, 2018

आज़ादी का मज़ाक

कैसी-कैसी तस्वीरें। कैसे-कैसे लोग। कैसी-कैसी चाहतें। कैसे-कैसे बोलवचन। खुद का नाम चमकाने और तारीफ पाने के पागलपन ने लोगों को कहां तक पहुंचा दिया है। पिछले दिनों गुरुग्राम के एक युवक ने अपनी आत्महत्या को फेसबुक पर लाइव डालते हुए लिखा कि इस पर 'लाइक' और कमेंट अवश्य देवें। इसी तरह से एक माडर्न पति ने बडी तन्मयता के साथ अपनी पत्नी की आत्महत्या का वीडियो बनाकर फेसबुक और वॉटसएप के हवाले कर दिया। अभी हाल ही में बिहार के मुजफ्फरपुर में बालिकागृह की आड में बालिकाओं से वेश्यावृति करवाने वाले एक नराधम के हाथों में पुलिस ने जब हथकडियां पहनायीं तो उसके चेहरे पर ऐसी कुटिल हंसी थी जो बता रही थी कि दुर्जनों को अपने किये का पछतावा नहीं होता। तीस से ज्यादा बच्चियों पर बलात्कार और प्रताडना का कहर ढाने वाले इस अमानुष के हाथों में हथकडी और चेहरे पर हंसी वाली तस्वीर अखबारों में छपी और सोशल मीडिया पर वायरल हुई तो फिर से यह सवाल उठा कि शैतानों में इतना साहस कहां से आता है? किसी बडी हस्ती का इन पर हाथ तो होता ही होगा जिनके आशीर्वाद और प्रेरणा से यह इंसान से हैवान बन जाते हैं। वैसे तो ब्रजेश ठाकुर के कई धंधे हैं, लेकिन उसका सबसे बडा धंधा अखबार और एनजीओ चलाने का रहा है। आज के समय में अपना रूतबा जमाने के लिए अखबार निकालकर संपादक कहलाने का एक अलग ही मज़ा और फायदा है। बडे-बडे उद्योगपति, नेता, बिल्डर और यहां तक कि गुंडे बदमाश भी देश के कई शहरों में अखबारों के संपादक, प्रकाशक और मालिक बन अपना रूतबा और आर्थिक साम्राज्य बढाने में लगे हैं। ब्रजेश ठाकुर के एक नहीं, तीन-तीन अखबार निकलते हैं। यह अखबार पाठकों तक तो नहीं पहुंचते, लेकिन इन्हें प्रतिवर्ष करोडों के सरकारी विज्ञापन जरूर मिल जाते हैं। यह सारा खेल सरकारी अफसरों, नेताओं के साथ और सांठगांठ से चल रहा था। यह भी जान लें कि ऐसे खिलाडी देशभर में भरे पडे हैं। कोई भी नगर, महानगर नहीं होगा जहां से ऐसे दिखावटी अखबार न निकलते हों। इनका काम सिर्फ और सिर्फ मिलीभगत से सरकारी विज्ञापन पाना और अखबार की आड में काले कारोबारों को बढाना है। अखबारों और जमीन जायदाद से अंधाधुंध कमाई करनेवाले ब्रजेश ठाकुर के मन में नेता बनने की अटूट चाहत थी। इसके लिए उसने एनजीओ की स्थापना कर लडकियों और महिलाओं के 'कल्याण' के लिए एक-एक कर पांच आश्रम गृह चलाने शुरू कर दिए। इस महान सेवा के लिए सरकार की तरफ से उसे प्रतिवर्ष करोडों रुपये मिलने लगे। समाजसेवक के रूप में ख्याति भी फैलने लगी। राजनीतिक गलियारे में गहरी पैठ बनने पर दो बार विधानसभा का चुनाव लडा, लेकिन असफलता हाथ लगी। जनसेवा के नाम पर खोले गये बालिका गृह बनाम आश्रय गृह में चलने वाले व्याभिचार की भी धीरे-धीरे सच्चाई बाहर आने लगी। अपने रसूख के दम पर ब्रजेश ने मामले को दबाने की काफी कोशिशें कीं। सत्ता में बैठे उसके खैरख्वाहों ने भी इसमें उसका पूरा साथ दिया। लेकिन कहावत है कि, "जब पाप का घडा भर जाता है तो फूट कर ही रहता है।" आश्रम की आड में बेसहारा लडकियों का यौन शोषण करने, गर्भवती बनाने, गायब करवाने तथा दफनाने वाले संपादक, समाज सेवक और नेता का नकाब तार-तार हो गया। आम जनता में जनसेवक और शोषित लडकियों में हंटर वाले अंकल की पहचान बनाने वाले ब्रजेश से लडकियां कितनी नफरत करती थीं इसका पता शोषित लडकियों से बातचीत में चल जाता है। एक लडकी ने तो उसकी तस्वीर पर थूक कर तो कुछ लडकियों ने उसे कुत्ता कहकर अपना गुस्सा जाहिर किया। एक लडकी ने अदालत में अपना दुखडा इन शब्दों में बयान किया, "मेरे साथ इतनी नृशंसता के साथ बलात्कार किया गया कि मेरे लिए ठीक से चलना-फिरना भी मुश्किल हो गया है।" ३४ अनाथ लडकियों से साथ बलात्कार की पुष्टि से स्पष्ट हो गया है कि एक सफेदपोश वर्षों तक यातना गृह चलाता रहा और शासन और प्रशासन स्वार्थवश अंधा बना रहा।
ब्रजेश जैसे और भी कई कपटी और ढोंगी लोग बेसहारा लडकियों के जीवन के साथ खिलवाड करने में लगे हैं। इस दुराचारी, व्याभिचारी का सच सामने आने के चंद दिन बाद जब देश स्वतंत्रता दिवस की ७१वीं वर्षगांठ मनाने जा रहा है तब उत्तरप्रदेश के देवरिया जिले में बालिका संरक्षणगृह के संचालकों के द्वारा लडकियों को वेश्यावृति के कीचड में धकेले जाने की शर्मनाक हकीकत ने देशवासियों को स्तब्ध कर दिया है। रात को लडकियों को अय्याशों के बिस्तर गर्म करने के लिए कार से बाहर भेजा जाता था। सुबह लुटी-पिटी लडकियां जब संरक्षणगृह में वापस आती थीं तो फूट-फूट कर रोती थीं। यह रोज का सिलसिला बन गया था। बेसहारा, मजबूर लडकियों को आसरा देने की आड में वेश्यावृति करवाने का यह गंदा धंधा एक महिला के मार्गदर्शन में किया जा रहा था जिसमें उसका पति और कुछ अन्य सफेदपोश शामिल थे।
यह सफेदपोश अपनी पहुंच का पूरा फायदा उठाते हैं। ब्रजेश ठाकुर ने जब देखा कि वह अब जेल जाने से नहीं बच सकता तो उसने बीमार होने का नाटक कर अस्पताल में भर्ती होने की सुविधा प्राप्त कर ली। शातिर धनवान अपराधी जानते हैं कि अपने अच्छे दिनों में वे जिनकी सेवा करते रहे हैं, कोई भी संकट आने पर वे उनका साथ जरूर देंगे। इन अपराधियों के ऊपर से लेकर नीचे तक रिश्ते रहते हैं। अब तो वो दिन आ गये हैं जब अपराधी भी शर्तें रखने लगे हैं। भारतीय बैंकों को नौ हजार करोड का चूना लगाकर विदेश फरार हुआ शराब कारोबारी जेल में फाइव स्टार सुविधाएं चाहता है। उसका कहना है कि अभी तक वह हर तरह के ऐशो-आराम के साथ रहता आया है और वह चाहता है कि उसका आने वाला हर दिन मौजमस्ती के साथ बीते। भारतीय जेलें इस लायक नहीं हैं कि वह उनमें एक दिन भी रह सके। इन जेलों में तो किसी का भी दम घुट सकता है। सरकार जब तक उसके लिए उसकी पसंद की जेल नहीं बनाती तब तक वह भारत नहीं आने वाला।

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