Thursday, December 13, 2018

क्यों भयभीत हैं देशवासी?

नेता ही नहीं गुंडे-बदमाश हत्यारे भी अब भीड का सहारा लेकर अपनी ताकत दिखाने लगे हैं। उस दिन सरे बाज़ार तीन लोगों की हत्या करने वाले कुख्यात बदमाश को पुलिस पेशी के लिए अदालत में लायी तो वहां पर उसके उत्साहवर्धन के लिए अच्छी-खासी भीड जुटी थी, जो नारे लगा रही थी- "दादा मत घबराना हम तुम्हारे साथ हैं। कोई तुम्हारा बाल भी बांका नहीं कर सकता।" भीड में शामिल हट्टे-कट्टे बदमाशों के सामने पुलिसवाले दबे-दबे लग रहे थे। ऐसा लग रहा था कि अगर उन्होंने हत्यारे के समर्थकों को रोकने-टोकने की कोशिश की तो वे उन्हीं पर टूट पडेंगे। उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में बेकाबू भीड के द्वारा एक पुलिस इंस्पेक्टर की हत्या कर दिये जाने के बाद कुछ खाकी वर्दीधारियों का मनोबल टूटा है और वे भीड से खौफ खाने लगे हैं। यह भी सच है कि जो पुलिस वाले अपने कर्तव्य के पालन के लिए कोई भी कुर्बानी देने को तैयार रहते हैं उन्हें भले ही इंस्पेक्टर की हत्या ने चिन्ता और दहशत में न डाला हो, लेकिन जिन्होंने खाकी वर्दी महज नौकरी बजाने के लिए पहनी है उन्हें कहीं न कहीं असुरक्षा की भावना ने अपनी गिरफ्त में ले लिया है। वे ऐसा कोई भी जोखिम लेने से बचना चाहेंगे, जिससे उनकी जान को खतरा हो। हालांकि भीड के हाथों पुलिसकर्मी को मौत के घाट उतार देने का यह कोई पहला मामला नहीं है। आए दिन वर्दीधारियों के पिटने और अपमानित किये जाने के वीडियो और तस्वीरें सामने आती रहती हैं, जिनमें किसी वर्दीधारी पर कोई नेता थप्पडबाजी करते तो भीड उनकी वर्दी फाडती दिखायी देती है। यहां तक छुटभैय्ये नेता भी उन्हें धमकाते और गाली-गलोच करते नजर आते हैं।
यह हकीकत यही दर्शाती है कि लोगों का कानून के प्रति भय और सम्मान कम होता चला जा रहा है। प्रश्न यह भी है कि जब पुलिस वाले ही असुरक्षित हैं तो वे जनता की सुरक्षा कैसे कर पाएंगे? यह बहुत ही चिन्तनीय सच्चाई है कि भारतवर्ष में ऐसे लोग लोकतंत्र को लगातार आहत कर रहे हैं, जो कानून के रास्ते पर चलना पसंद नहीं करते। उन्हें थाने में जाकर शिकायत दर्ज करवाना समय की बर्बादी लगता है। दरअसल उन्होंने मान लिया है कि कानून की कमजोरी और वर्दीवालों की ढिलायी चरमसीमा पर है। भरे बाजार जब कोई मासूम बच्चा छोटी-मोटी चोरी करता पकडा जाता है तो उसे दंडित करने के लिए फौरन लोग एकत्रित हो जाते हैं और उसे पीट-पीटकर लहुलूहान कर देते हैं। इसी तरह से किसी सडकछाप मजनूं को सबक सिखाने के लिए आजकल महिलाएं उसकी ऐसे चप्पलों और थप्पडों से धुनायी करने लगती हैं जैसे इस देश में कानून-कायदों का खात्मा हो चुका हो। हम और आप वर्षों से देखते चले आ रहे हैं कि अपनी मांगें मनवाने के लिए जब लोग भीड बनकर सडक पर उतरते हैं तो सरकारी सम्पत्ति को नुकसान पहुंचाने में जरा भी देरी नहीं लगाते। यहां तक कि आम नागरिकों की कारें और दूकानें तक फूंक दी जाती हैं। भीड जानती है कि वह कितनी भी हिंसा कर ले, उसका कुछ नहीं बिगडने वाला। भीड को सज़ा मिलने के बहुत ही कम उदाहरण हैं। बडे-बडे अपराधों को अंजाम देकर भी भीड में शामिल लोग बच जाते हैं। उनकी शिनाख्त ही नहीं हो पाती। अगर होती भी है तो उनके 'आका' उन्हें बचा ले जाते हैं। यही वजह है कि ऐसे अराजक किस्म के लोगों को न तो कानून का भय बचा है और न ही पुलिस-प्रशासन का। उत्तर प्रदेश में जब योगी ने सत्ता संभाली थी तब उन्होंने बडे आत्मविश्वास के साथ कहा था कि अब जनता बेखौफ हो जाए। सूबे के गुंडे-बदमाश अगर खुद में सुधार नहीं लाएंगे तो उन्हें खदेडने में किंचित भी देरी नहीं लगायी जाएगी। कानून का पालन करने वालो का सम्मान होगा। उन्हें पूरी सुरक्षा प्रदान की जाएगी और कानून तोडने वालों की हड्डी-पसलियां तोडकर रख दी जाएंगी। आज लोग पूछ रहे हैं कि योगी जी आखिर आपका वादा पूरा क्यों नहीं हो पाया? प्रदेश में गो-भक्ति के नाम पर बेकाबू भीड हत्याएं और मारपीट करने में जरा भी नहीं सकुचाती! अमन चैन के आकांक्षी नागरिकों के चेहरे उतरे हुए हैं। उन्हें हर पल यही डर सताता रहता है कि कहीं वे भीडतंत्र का शिकार न हो जाएं। क्या यही है असली रामराज्य जिसके आपने सपने दिखाये थे? आपको तो प्रदेश की जनता की मूलभूत जरूरतों को पूरा करने, उन्हें सुरक्षा प्रदान करने की बजाय 'राम मंदिर' और गाय की ज्यादा चिन्ता है। इस बात से भी कोई इनकार नहीं कि गोवध निषेध होने के बावजूद भी गोवंश के काटे जाने के मामले सामने आते रहते हैं। कुछ पेशेवर लोग गोवंश की हत्या करने से बाज नहीं आ रहे। ऐसा होना यकीनन सरकार तथा पुलिस प्रशासन की विफलता को दर्शाता है। यह भी जान लें कि गाय को अगर करोडों लोग माता मानते हैं, पूजते हैं तो अन्य वर्गों के लोगों को भी उनकी भावनाओं का सम्मान करना चाहिए। आखिर देश को किस रास्ते पर चलाया जा रहा है? गाय के नाम पर इन्सानों का दानव बनने के चित्र अच्छे भविष्य के संकेत नहीं दे रहे। भारत के प्रधानमंत्री तक कह चुके हैं कि "गोरक्षा के नाम पर अस्सी प्रतिशत लोग गोरखधंधा करते हैं। ऐसे संगठनो की शिनाख्त कर सरकार को सख्त कार्रवाई करनी चाहिए।"  प्रधानमंत्री ने तो सच कहने में देरी नहीं लगायी। फिर भी गोरक्षा के नाम पर हिंसा होती रही। गोरक्षकों ने कानून को अपने हाथ में लेना नहीं छोडा।

No comments:

Post a Comment