Thursday, December 27, 2018

कैसे-कैसे सच

भारत के इतिहास में ऐसे कई महापुरुषों के नाम दर्ज हैं जिन्होंने देशवासियों को जागृत करने के अभियान में अपना सर्वस्व अर्पित कर दिया। किताब का पन्ना-पन्ना उनकी कर्मठता और त्याग की गाथा सुनाता है। उन्होंने लीक के फकीरों के हर विरोध और अपमान का हंसते-हंसते सामना कर जिन संदेशों के तराने गाए उनकी गूंज आज भी सुनायी देती है। अपनी उम्र के चालीस वर्ष भी पूरे न कर पाने वाले स्वामी विवेकानन्द की प्रेरक जीवनी दुर्बलों को सबल बनाती है। उनके प्रेरणादायक विचार सदियों तक जिन्दा रहेंगे। उनका मानना था कि "बिना संघर्ष के कुछ भी नहीं मिलता। जिन्दगी में हमें बने बनाए रास्ते नहीं मिलते। आगे बढने के लिए खुद ही अपने रास्ते बनाने पडते हैं। हर नये और बडे काम को पहले उपहास तथा विरोध का सामना करना पडता है और उसके बाद ही स्वीकृति मिलती है। लोग तुम्हारी प्रशंसा करें या आलोचना, तुम्हारे पास धन हो या नहीं हो, तुम्हारी मृत्यु आज हो या बडे समय बाद हो, तुम्हें पथभ्रष्ट कभी नहीं होना है।"
अपने कर्तव्य से मुंह चुराने वाले कामचोरों ने हर सदी में विचारवानों को चिंतित और परेशान किया है। आपसी रिश्तों में कडवाहट का होना भी कोई नयी समस्या नहीं है। आपसी कलह के कारण सदियों पहले भी परिवार टूट जाया करते थे। अगर ऐसा नहीं होता तो शांतिदूत श्री गुरुनानक देवजी को यह नहीं कहना पडता : "अपने घर में शांति से निवास करने वालों का यमदूत भी बाल बांका नहीं कर सकता।" ओशो भी यही तो कहते हैं,  "पारिवारिक मोर्चे पर हारा हुआ व्यक्ति कहीं भी सफल नहीं हो सकता। अगर कहीं हो भी गया तो भयावह अधूरापन उसका कभी पीछा नहीं छोडता। अधिकांश लोग दूसरों की कमियों और बुराइयों की गिनती करने में ही अपना बहुत सारा कीमती समय बर्बाद कर देते हैं। अपने दुगुर्ण छिपाते हुए खुद को जीवन पर्यंत धोखा देते रहते हैं।
कबीर दास ने लिखा है :
"बुरा जो देखन मैं चला,
बुरा न मिलिया कोय।
जो दिल खोजा आपना
मुझसे बुरा न कोय।।"
ऐसे बहुतेरे लोग हैं जो एक ही झटके में बहुत कुछ पा लेना चाहते हैं। सब्र करना तो उन्हें आता ही नहीं। ऐसा लगता है कि इस रोग की जडें भी बडी पुरानी हैं। तभी तो सदियों पहले संत कबीर को यह संदेश देना पडा :
"धीरे-धीरे रे मना
धीरे-धीरे सब कुछ होय
माली सींचे सौ घडा,
ऋतु आए फल होय।"
यानी... धैर्य रखना बहुत जरूरी है। हर काम अपने तय समय पर ही होता है। पेड को सैकडों घडे पानी से सींचने पर कुछ नहीं होगा। पेड पर फल तो ऋतु आने पर ही लगेगा। इतिहास गवाह है सपने उन्हीं के पूरे होते हैं जो उन्हें साकार करने में कोई कसर नहीं छोडते। भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपति ए.पी.जे.अब्दुल कलाम हमेशा युवाओं को प्रेरित करने के उद्देश्य में कहा करते थे : सपने वो नहीं होते जो आपको नींद में आते हैं बल्कि वो होते हैं जो आपको सोने नहीं देते। आदरणीय अब्दुल कलाम सिर्फ उपदेश ही नहीं देते थे। जैसा कहते थे, वैसा करते ही थे। उनका मानना था कि पिता, माता और शिक्षक ही देश को भ्रष्टाचार से मुक्त कर सकते हैं। वे छात्र-छात्राओं को प्रेरित करने के लिए ऐसे-ऐसे उदाहरण देते थे। जिन्हें नजरअंदाज कर पाना आसान नहीं होता था। वे टालमटोल और समय को बरबाद करने वालें लोगों को कतई पसंद नहीं करते थे। उनके इस कथन में कितनी बडी सीख छिपी है : "इंतजार करने वालों को केवल उतना ही मिलता है जितना कोशिश करने वाले छोड देते हैं। पिछले कुछ वर्षों से लोगों का उत्साह जगाने वाले प्रेरणा गुरुओं की बन आई है। हताशा और निराशा के शिकार लोगों का मनोबल बढाने वाले इन ज्ञानियों को परामर्शदाता तथा 'मोटिवेशन स्पीकर' भी कहा जाता है। कुछ मोटिवेशन गुरु अच्छी खासी भीड जुटाने में कामयाब हो रहे हैं। यह अपने बोलने के अंदाज और भव्यता के कारण भी जाने जाते हैं। इनको सुनने वालों कीं भीड में युवाओं की संख्या ज्यादा देखी जा रही है। दूसरों का मनोबल बढाने का दावा करने वाले इन 'गुरूओं' में कितने असली हैं, कितने नकली इसका पता लगा पाना बेहद मुश्किल है। फिर भी लगभग सभी की चांदी है। यह धुरंधर स्वामी विवेकानन्द, महात्मा गांधी, गुरुनानक देवजी, कबीरदास, लाल बहादूर शास्त्री, ए.पी.जे. अब्दुल कलाम तथा कुछ अन्य नामी-गिरामी हस्तियों की संघर्ष गाथा और उनके संदेशों और उपदेशों के उदाहरण देकर लाखों-करोडों की कमायी कर रहे हैं। कुछ का तो सोशल मीडिया पर भी अच्छा-खासा डंका बज रहा है। बीते वर्ष ऐसे ही एक भीड जुटाऊ युवा 'मोटिवेशन स्पीकर' की किताब 'हिम्मत से करें मुश्किलों का सामना' बाजार में आई तो खरीददारों की लाइन लग गई। इस चमत्कार ने प्रकाशक को भी हैरान कर दिया। इस किताब की देशभर में चर्चा होती रही। इसी बीच किसी जोरदार धमाके की तरह देश और दुनिया को विस्मित कर देने वाली यह खबर आई कि इस युवा 'मोटिवेशन स्पीकर' ने खुद पर गोली चला कर आत्महत्या कर ली है। उनकी आत्महत्या को लेकर तरह-तरह के कयास लगाये जाते रहे। अभी तक यह पता नहीं चल पाया है कि ऐसी कौन सी मुश्किले थीं जिन्होंने तेजी से उभरते परामर्शदाता, लेखक, प्रवचनकार को आत्महत्या करने को विवश कर दिया। इस विस्मयकारी आत्महत्या को लेकर कई दिनों तक मेरे मन-मस्तिष्क में हलचल मची रही और तरह-तरह के सवाल नींद उडाते रहे। इसी दौरान मुझे कई बीमारियों, तकलीफों और चलने-फिरने में असमर्थ होने के बावजूद प्रसन्नता, जीवंतता का मंत्र फूंकने वाले स्पर्श शाह से रूबरू होने का अवसर मिला। मूलरूप से गुजरात के सूरत के निवासी माता-पिता की संतान स्पर्श ने जब जन्म लिया तो उनके शरीर में चालीस फ्रैक्चर थे। डॉक्टरों ने कह दिया था कि यह बच्चा दो दिन से ज्यादा जिंदा नहीं रहेगा। लेकिन आज वे न केवल जिन्दा हैं बल्कि दूसरों के लिए प्रेरणास्त्रोत भी हैं। स्पर्श के शरीर में अबतक १३५ फ्रेक्चर हो चुके हैं और कई बार सर्जरी हो चुकी है। उनके शरीर में आठ रॉड और बाईस स्कू्र लगे हैं। फिर भी वे खुद ठहाके लगाते हैं और दूसरों को भी हंसाते और जगाते हैं। हमेशा बिस्तर और व्हीलचेयर पर रहने वाले स्पर्श बहुत अच्छे गायक होने के साथ-साथ ऐसे गजब के मोटिवेशन स्पीकर हैं जिन्हें देखते ही लोगों में ऊर्जा का संचार हो जाता है। उन्हें कम से कम शब्दों का सहारा लेना पडता है। उनका शरीर ही बहुत कुछ कह देता है। यही वजह है कि उन्हें देखने और उनकी स्पीच सुनने के लिए आम और खास लोग उमड पडते हैं। वर्तमान में न्यूयार्क में रह रहे स्पर्श को दुनिया भर के देशों से स्पीच देने के लिए निमंत्रण मिलता रहता है। अभी तक वे ६ देशों में अपनी उपस्थिति दर्ज करवा चुके है। मोटिवेशन स्पीच और गायन से होने वाली सारी की सारी कमायी को स्पर्श विभिन्न जनसेवी संस्थाओं को दान कर देते हैं।

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