Thursday, December 6, 2018

राजनीति के छोटे-बडे सफेदपोश गुंडे


उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री राजनीति के पुराने खिलाडी हैं। मुख्यमंत्री बनने से पहले भी विवादास्पद बयानबाजी करते रहे हैं। वे जानते-समझते हैं कि उनके कटु बोल कैसा कहर ढा सकते हैं। जिस विरोधी पर निशाना साधा जा रहा है उसकी कैसी प्रतिक्रिया होगी। वह किस आक्रामक अंदाज के साथ पलटवार करेगा। तेलंगाना विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान एक रैली को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने पुराने अंदाज में यह कहकर अच्छी-खासी तालियां बटोर खुद की पीठ थपथपा ली - "अगर भारतीय जनता पार्टी सत्ता में आती है तो ओवैसी को ठीक उसी तरह तेलंगाना से भागना होगा, जैसे निजामों को हैदराबाद से बाहर भागना पडा था।" जैसा होता आया है वैसा ही हुआ। योगी के इन चुनावी उकसाऊ बोलवचनों ने ओवैसी बंधुओं को बेकाबू और आग बबूला कर दिया। उनके पलटवार करने का वही पुराना तरीका था, जिसके लिए वे जाने और पहचाने जाते हैं। ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के अध्यक्ष व हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने ललकारते और दहाडते हुए जवाब भी दिया और सवाल भी दागा कि - "सुनो उत्तरप्रदेश के सीएम, ये हिंदुस्तान मेरे बाप का मुल्क है... जब पिता का मुल्क है तो बेटा कैसे निकलेगा यहां से। आप तारीख तो जानते नहीं, हिस्ट्री में जीरो हैं। अगर पढना नहीं आता तो पढने वालों से पूछो, अरे पढते तो मालूम होता कि निजाम हैदराबाद छोडकर नहीं गए, उनको राज प्रमुख बनाया गया था। चीन से जब जंग हुई तो देश के लिए इन्हीं निजाम ने अपना सोना दिया था।
सांसद असदुद्दीन के छोटे भाई अकबरुद्दीन तो पूरी तरह से गुंडों की मुद्रा में आकर ताल ठोकने लगे कि हमारी १०० पीढ़ियां हैदराबाद में छाती तानकर रहेंगी। हम आपसे लडेंगे और पराजित करेंगे। योगी में दम नहीं कि वह हमें पाकिस्तान भेज सके। यह वही अकबरुद्दीन है, जो देश के प्रधानमंत्री को 'हमें मत छेडो चायवाले' कहकर उनकी खिल्ली उडाता रहा है। यह बदजुबान यह धमकी भी देता रहा है कि अगर भारत की पुलिस कुछ घंटों के लिए अपनी आंखें और कान बंद कर ले तो वह और उसके साथी हिंदुओं के होश ठिकाने लगाने का दम रखते हैं। दरअसल ओवैसी बंधुओं के बदमाशों वाले तेवरों के प्रशंसकों की भी अच्छी-खासी तादाद है, जो भारत वर्ष को बारूद के ढेर पर बैठाना चाहते हैं और मौका देखकर तबाही और हाहाकार मचाना चाहते हैं। यह हमेशा योगी जैसे बेलगाम सत्ताधीशों और नेताओं के मुंह खुलने की राह ताकते रहते हैं। ओवैसी बंधुओं की तरह ही समाजवादी पार्टी के नेता आजम खां भी अपनी मर्यादाहीन विषैली जुबान के लिए कुख्यात हैं। यही कुख्याति उन्हें चुनाव में जितवाती है। आजम खां के भी ढेरों प्रशंसक और अनुयायी हैं, जिनका मकसद ही भडकाऊ भाषण देकर देश का माहौल बिगाडना है। मर्यादाहीन और भडकाऊ भाषा का इस्तेमाल करने में संकोच नहीं करने में जहां योगी का नाम प्रमुखता से लिया जाता है, वहीं कुछ साध्वियां भी समय-समय पर ज़हर उगलती रहती हैं। केंद्रीय मंत्री निरंजन ज्योति ने राजधानी दिल्ली में आयोजित एक चुनावी आमसभा में यह कहकर मर्यादा की सभी सीमाएं लांघ दी थीं कि "आप रामजादों को चुनेंगे अथवा हरामजादों को।" हरामजादे शब्द का इस्तेमाल गाली के रूप में होता है, लेकिन साध्वी मंत्री ने मतदाताओं के सामने इसका उच्चारण ऐसे किया जैसे यह उनके लिए सहज बात हो। ऐसी गालियां उनके रोजमर्रा जीवन का अंग हों। अभद्र भाषा के जरिए अपने विरोधियों को नीचा दिखाने वाले नेता हर पार्टी में हैं। इनकी चमडी इतनी मोटी है कि इन्हें कितना भी लताडो, लेकिन कोई फर्क नहीं पडता। एक तरह से देखें तो यह सरासर गुंडागर्दी है। धमकाने-चमकाने और डराने का काम तो गुंडे करते हैं। ऐसे में यह कहना गलत नहीं कि यह भी अपने किस्म के सफेदपोश ताकतवर गुंडे ही हैं। इनमें कोई छोटा गुंडा है तो कोई बडा।
अपशब्द बोलने वाले नेताओं और मंत्रियों को तालियों की गडगडाहट सुनकर लगता है कि जनता को गालियां सुनने में बडा मज़ा आता है। उनके अपशब्द सुनकर मतदाता उनकी पार्टी के प्रत्याशी को वोट देने को तत्पर हो जाते हैं। इसलिए कुछ नेताओं ने मर्यादाहीन भाषा और गाली-गलौच को वोट बटोरने का हथियार बना लिया है। गालीबाज भले ही कुछ तमाशबीनों द्वारा पीटी गई तालियों की गडगडाहट को सुनकर गद्गद् हो जाते हों, लेकिन सच तो ये भी है कि अधिकांश देशवासी शालीनता और सज्जनता के आकांक्षी हैं। वे उन नेताओं को कतई पसंद नहीं करते, जो अपना आपा खोने में देरी नहीं लगाते। इस सच को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। हम एक ऐसे देश के वासी हैं, जहां पर साधु-साध्वियों को बेहद सम्मान दिया जाता है। उनके सामने नत-मस्तक होने में गर्व महसूस किया जाता है। जिन्हें खास दर्जा देकर अपना प्रेरणा स्त्रोत माना जाता है अगर वही नेता का लिबास धारण करते ही शातिर नेताओं की तरह सत्ता की भूख में पागल और मर्यादाहीन होकर नफरत के बीज बोने लगें तो चिंता  और पीडा के साथ-साथ भगवा प्रेमी होने की शर्मिंदगी तो होगी ही। अक्सर यह देखा गया है कि हर दंगे के पीछे नेताओं का भी कहीं न कहीं हाथ होता है। यह नेता ही होते हैं, जो अपने कार्यकर्ताओं को भडकाते और उकसाते हैं और यह कार्यकर्ता 'भीड' बन जाते हैं। इस भीड में कई असामाजिक तत्व भी शामिल हो जाते हैं। इसी तरह की भीड कभी गौमाता की रक्षक होने का झंडा लहराते हुए 'अखलाक' को मौत के घाट उतार देती है। तो कभी किसी को पीट-पीटकर अधमरा कर देती है। इनकी सुरक्षा के लिए यदि कोई वर्दी वाला सामने आता है तो वह भी नहीं बच पाता। यहां तक कि ऐसी नृशंस हत्याओं की जांच करने वाले पुलिस अधिकारी को भी गोलियों से भून कर जश्न मनाया जाता है।

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