Friday, January 11, 2019

लिखना और मिटाना

लगभग सभी अखबारों में यह खबर छपी 'दिल्ली के द्वारका में स्थित एक निजी शेल्टर होम में बच्चियों को जबरन मिर्ची खाने को दी जाती थीं। जो बच्चियां मिर्ची खाने से इंकार करतीं उनके निजी अंगों में मिर्च डाल दी जाती थी। यह दरिंदगी अपना आदेश और अपनी बात मनवाने के लिए की जाती थी। संचालकों का यह भी कहना है कि बच्चियों को अनुशासन का पाठ पढाने के लिए इसके सिवा और कोई रास्ता नहीं बचा था। यह खबर पढते ही मुझे बिहार के मुजफ्फरपुर में स्थित उस आश्रय गृह की याद हो आयी जहां पर बेसहारा बच्चियों और युवतियों को आसरा देने के नाम पर यौन शोषण का शिकार बनाया जाता था। अपना काम निकलवाने के लिए उन्हें सरकारी अफसरों और नेताओं की ऐशगाहों में भेजा जाता था। जो लडकियां इंकार करने की जुर्रत करतीं उन्हें अमानवीय यातनाएं दी जाती थीं। कई-कई दिन तक खाना नहीं दिया जाता था। गंदी-गंदी गालियां दी जाती थीं।
विभिन्न न्यूज चैनलों और अखबारों के माध्यम से यह शर्मनाक सच्चाई जब देश और दुनिया के समक्ष आयी तो जबरदस्त हंगामा मचा था। नारियों को सुरक्षा देने की आड में उनकी अस्मत से खिलवाड करने वाले सफेदपोश व्याभिचारियों को भरे चौराहे पर नंगा कर फांसी के फंदे पर लटकाने की पुरजोर मांग उठी थी। बच्चियों के साथ होने वाले यौन दुव्र्यवहार के विरोध में देश के कई शहरों में जुलूस निकाले गये थे।  वैसे ऐसी प्रतिक्रियाएं हर बलात्कार की घटना के बाद आती हैं। मोमबत्तियां जलायी जाती हैं। बलात्कारियों को नपुंसक बनाये जाने तक की मांग उठती है। कानून में भी बदलाव किया जा चुका है, लेकिन फिर भी यौन हिंसा के मामलों में कमी नहीं आ रही है। किसी भी दिन का अखबार हो उसमें बलात्कार की खबर जरूर होती है। पिछले हफ्ते दिल्ली में एक युवती जब रात को अपने घर लौट रही थी तो चार गुंडे उस पर हिंसक जानवर की तरह झपट पडे। युवती गिडगिडाती रही, लेकिन घंटों उनकी मनमानी चलती रही। युवती जब पुलिस स्टेशन पहुंची तो उस पर गोली की तरह यह सवाल दागा गया कि रात के वक्त वह उस सुनसान सडक पर क्यों घूम रही थी? उसके पहनावे पर भी कटाक्ष किया गया। युवती समझ गई कि उसने यहां आकर भारी भूल की है। वह चुपचाप ऑटो कर अपने घर चल दी। दूसरे दिन एक न्यूज चैनल के संवाददाता से मिली, जिसे उसने अपने साथ हुई हैवानियत और पुलिस वालों के शर्मनाक बर्ताव का सच बताया। तीसरे दिन यह खबर कुछेक अखबारों में छपी। सच तो यह है कि ऐसी न जाने कितनी खबरें होती हैं जो सामने आने से पहले ही दम तोड देती हैं।
बरेली में एक शिक्षिका ने आत्महत्या कर ली। वजह थी असहनीय बदनामी। बदनाम करने वाला था उसका पूर्व प्रेमी। वह भी शिक्षक था। यानी दोनों पढे-लिखे। तीनेक साल पहले दोनों के नैन मिले और प्यार हो गया। दोनों मिलते-मिलाते रहे। शारीरिक मिलन भी हो गया। इसी दौरान युवा शिक्षिका को कहीं से जानकारी मिली कि उसके प्रेमी  का किसी दूसरी के साथ भी चक्कर चल रहा है। वह सतर्क हो गई। मिलना-जुलना बंद कर दिया। मोबाइल आता तो वह काट देती। युवती को अपनी जागीर समझने वाला धोखेबाज प्रेमी बौखला गया। पहले तो उसने उसे सबक सिखाने के लिए तेजाब से नहलाने की सोची। फिर उसका इरादा बदल गया। एक रात उसने अपने पांच-सात खास चेलों को बुलाया और रात के समय शहर भर की कई साफ-सुथरी दीवारों पर युवती के मोबाइल नंबर के साथ बडे-बडे अक्षरों में यह लिखवा दिया कि अपनी रातें रंगीन करने के लिए फौरन इस नंबर पर संपर्क करें। फिर तो वही हुआ जो होना था। सुबह शिक्षिका के स्कूल पहुंचते-पहुंचते अनजान लोगों के फोन आने शुरू हो गए। कोई उससे एक-दो घण्टे तो कोई पूरी रात का रेट जानना चाह रहा था। उसने अश्लील फोन करने वालों को फटकारा लेकिन उनकी बेशर्मी पर किंचित भी विराम नहीं लग पाया। शाम होते-होते तक उसे अपनी साथी शिक्षिकाओं और सहेलियों के माध्यम से शहर की दीवारों पर लिखी अश्लील इबारत की जानकारी मिली तो वह फूट-फूट कर रोयी। उसे यह जानने में जरा भी देरी नहीं लगी कि यह घटिया शरारत किसने की है। सभी ने उसे तसल्ली दी। बहुतेरा समझाया कि चिन्ता मत करो। घटिया लोग ऐसी हरकतें करते रहते हैं। हम सब मिलकर उसे सजा दिलवा कर रहेंगी। इस देश में कानून नाम की भी कोई चीज़ है। लेकिन वह शर्मिन्दगी से उबर नहीं पायी। रात को खबर आई कि शाम को स्कूल से घर पहुंचते ही उसने जहर खा कर आत्महत्या कर ली है।
 यह हमारा ही समाज है जहां पर अपना स्वार्थ पूरा नहीं होने पर महिला को चरित्रहीन घोषित कर दिया जाता है। इससे होता यह है कि किसी भी पुरुष को उसके साथ उसकी मर्जी के बिना संबंध बनाने का लाइसेंस मिल जाता है। बदनाम करना तो साधारण-सी बात है। पुरुष ही महिला के चरित्र के मानक तय करते हैं। महिला जब सुरक्षा की मांग करती है तो उसे नसीहत देने वाले खडे हो जाते हैं। उसे कहा जाता है कि फलां वक्त घर से बाहर न निकले। निकले तो घर के पुरुष सदस्यों के साथ। बोलने, चलने और कपडे पहनने में भी खास सावधानी बरतने के उपदेश दिये जाते हैं।
धनबाद के गांधीनगर में रहते हैं उत्तम सिन्हा। कप‹डे का अच्छा-खासा व्यापार है। इसी कारोबार के सिलसिले में सिन्हा अकसर पटना, छपरा, कोलकाता, रायपुर, लखनऊ, कानपुर, लुधियाना जैसे शहरों में जाते रहते हैं। रेल गाडियों के शौचालयों में अश्लील टिप्पणियां लिखी दिखती है तो वे तत्काल उन्हें मिटा देते हैं। इतना ही नहीं शहर के बाग-बगीचों सरकारी कार्यालयों, बस अड्डों और होटलों के शौचालय में लिखी अश्लील बातों को मिटाने में भी देरी नहीं लगाते। एक साल पहले सिन्हा अपनी पत्नी और आठ साल की बेटी के साथ कोलफील्ड एक्सप्रेस से हावडा से धनबाद आ रहे थे। रेलगाडी कुछ ही दूर चली थी कि बेटी ने टायलेट जाने की इच्छा व्यक्त की। सिन्हा बेटी को शौचालय तक ले गए। बाहर आने पर उसने शौचालय के अंदर लिखी गंदी इबारत के बारे में ऐसे प्रश्न पूछे कि वे स्तब्ध रह गए। बेटी के प्रश्नों ने उन्हें झकझोर दिया। वे फौरन शौचालय के अंदर गए और दीवार में लिखे अश्लील वाक्यों को तुरंत मिटा दिया। तब से लेकर अब तक सिन्हा २५० से अधिक शौचालयों की दीवारों पर लिखे अपशब्द मिटा चुके हैं। अश्लील कमेंट मिटाने के बाद सिन्हा शौचालय की दीवार पर पोस्टरनुमा कागज चिपकाते हैं,जिस पर लिखा होता है स्टॉप राइटिंग। इस शौचालय का प्रयोग आपकी मां-बहन भी करेंगी। उन पर क्या बीतेगी, सोच कर देखिए। आत्मा तक शर्मसार होगी।

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