Thursday, January 3, 2019

अपराधी बनाते मोबाइल ने उडायी नींद

मोबाइल की लत बडों को ही नहीं बच्चों को भी अपराधी बना रही है। मोबाइल के प्रति बच्चों का लगाव और जिद्दीपन सभी सीमाएं लांघता चला जा रहा है। माता-पिता की रोक-टोक उन्हें बर्दाश्त ही नहीं होती। मोबाइल की जुदायी में तो किशोर और युवक आत्महत्या करने से भी नहीं हिचक रहे हैं। नागपुर के महल इलाके में एक मां ने अपने पंद्रह वर्षीय बेटे को घंटों मोबाइल से चिपके रहने के कारण डांटा-फटकारा और जब जिद्दी बेटा नहीं माना तो उसने उससे मोबाइल छीनकर अपने पास रख लिया। बेटे ने मां का जबरदस्त विरोध किया। रोया-गि‹डगि‹डाया, लेकिन मां नहीं मानी तो बेटे ने घर में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। नागपुर के ही छठवीं और नौवीं कक्षा में पढने वाले दोनों भाई प्रतिदिन स्कूल से आते ही अपने पिता के मोबाइल पर कब्जा कर वीडियोज देखने में तल्लीन हो जाते। घंटों यह सिलसिला चलता रहता। एक दिन दोनों की किसी निहायत ही अश्लील वीडियो पर नज़र पड गयी। फिर तो उन्हें ऐसे वीडियो देखने का चस्का ही लग गया। स्कूल से आते और घंटों ब्लू फिल्में देखते रहते। किताबों की जगह स्त्री-पुरुष की नग्न तस्वीरें उनके मन-मस्तिष्क में घूमती रहतीं। किसी लडकी को देखते ही गंदे-गंदे विचार घेर लेते। एक दिन दोनों ने स्कूल के वॉशरूम में आठवीं में पढने वाली लडकी को दबोचा और बलात्कार कर खिसक गये। नागपुर की ही एक आठवीं कक्षा की छात्रा का अपने फेसबुक फ्रेंड से ऐसा कुछ चक्कर चला कि वह एक दिन ट्यूशन के बहाने घर से भाग गई। कुछ दिनों के बाद घर वालों को खबर मिली कि वह पंजाब के शहर पटियाला में है। उसे नागपुर लाया गया तो पता चला कि नाबालिग ल‹डकी ने उस दोस्त से विवाह कर लिया हैं।
नागपुर के निकट स्थित गोंदिया में भी 'मोबाइल रोग' बुरी तरह से फैल चुका है। पढाई-लिखायी भूलकर जब देखो तब मोबाइल पर गेम खेलने और फेसबुक में खोये रहने वाले एक युवक को माता-पिता ने लताड लगायी तो वह आत्महत्या करने को उतारू हो गया। माता-पिता भयभीत हो गए। उन्हें लगा कि उन्होंने पुत्र को समय का सदुपयोग करने की सीख देकर कोई भारी भूल कर दी है। उत्तराखंड में एक स्कूल के चार नाबालिग छात्रों को स्कूली छात्रा के रेप में पक‹डा गया। पूछताछ में चारों ल‹डकों ने कहा कि उन्होंने कई दिनों तक पॉर्न साइट्स देखीं और उसके बाद वे अनियंत्रित हो गये। जैसे ही मौका मिला उन्होंने अपनी इच्छा पूरी कर ली। सच तो यह है कि पॉर्न वीडियो की इंटरनेट पर सहज उपलब्धता के कारण बच्चे, किशोर और युवक अपराध के रास्तों की ओर तेजी से अग्रसर हो रहे हैं। मार्केट में २० लाख से ज्यादा पॉर्न वीडियो उपलब्ध हैं और लाखों साइट्स हैं, जहां से इन्हें डाउनलोड किया जा सकता है। महिलाओं के प्रति बढते अपराधों में पॉर्न साइटस का बहुत बडा योगदान है।
मुंबई के लीलावती अस्पताल के डॉक्टरों ने गहन अध्ययन के बाद यह निष्कर्ष निकाला है कि मोबाइल फोन की लत बच्चों के हार्मोन सिस्टम को बर्बाद कर रही है। वासना की सोच उनपर इस कदर हावी हो रही है कि वे हिंसक होते चले जा रहे हैं। अधिकांश बच्चे स्कूल से आने के बाद घंटों मोबाइल में गेम खेलते हैं, तो माता-पिता इस तरफ ध्यान ही नहीं देते, रोकना-टोकना तो दूर की बात है। मोबाइल का अत्याधिक प्रयोग बच्चों की रीढ की हड्डी के अलावा शारीरिक गतिविधियों को भी प्रभावित कर रहा है। सात से दस वर्ष के बीच के लाखों बच्चे मोबाइल के लती हो गये हैं। दो से पांच साल तक के बच्चों के लिए भी मोबाइल फोन एक सहज खिलौना बन गया है, जिससे चिपके रहने में उन्हें भरपूर खुशी मिलती है। मां-बाप अगर उनसे मोबाइल से दूरी बनाने को कहते भी हैं तो उन्हें गुस्सा आ जाता है। हल्की-सी डांट-फटकार पर घर छोडने और आत्मघाती कदम उठाने को तत्पर हो जाते हैं। इस तरह की खबरों में निरंतर होता इजाफा यही बताता है कि बात बहुत आगे बढ चुकी है। यह पंक्तियां लिखते समय मुझे ब्लू व्हेल गेम जैसे हत्यारे खेल की याद आ रही है जो देश और दुनिया के सैकडों बच्चों, किशोरों और युवाओं की जान ले चुका है। एक जमाना था जब बच्चे मस्त रहा करते थे। गर्मी की छुट्टियों में अपने नाना-नानी, बुआ, मौसी और अन्य रिश्तेदारों के यहां जाकर तरह-तरह के खेल खेला करते थे। खेतों, बाग-बगीचों में लगे कच्चे-पक्के फलों का लुत्फ उठाया करते थे। नयी-नयी जानकारियों से वाकिफ होने का अवसर मिलता था। रिश्तों की अहमियत भी पता चलती थी, लेकिन अब तस्वीर बदल चुकी है। बच्चे प्रकृति से दूर होते जा रहे हैं। एक जाने-माने समाजशास्त्री कहते हैं कि पहले संयुक्त परिवार हुआ करते थे, जहां बडे-बुजुर्ग बच्चों पर हर समय नजर रखा करते थे, उन्हें अच्छे संस्कार देते थे, लेकिन आज बस धन कमाने और अपने में सिमट कर रहने के दौर में तस्वीर काफी हद तक बदल चुकी है। रिश्तेदारों और आसपास के लोगों से जुडाव नहीं होने के कारण बच्चे खुद को बहुत अकेला समझने लगे हैं। इस आधुनिक युग ने तो उनका मोबाइल से ऐसा नाता जोड दिया है कि वे इससे दूर ही नहीं होना चाहते। 
सभी माता-पिता यही चाहते हैं कि चाहे कुछ भी हो जाए, उनके बच्चे पढाई में अव्वल रहें। इसलिए उन्होंने अपने बच्चों को कडी प्रतिस्पर्धा में झोंक दिया है। पांचवीं-छठवीं क्लास के बच्चे अपनी पीठ पर वजनी बस्ता लादे ट्यूशन की भागमभाग में देखे जा रहे हैं। न उन्हें खेलने का वक्त मिलता है और ना ही उन शैतानियां को करने का जो कभी बचपन की पहचान हुआ करती थीं। यह कहना भी गलत नहीं होगा कि कम्प्यूटर के इस युग ने बच्चों को अपनी उम्र से भी बडा बना दिया है। अधिकांश माता-पिता खुद तो बच्चों की पढाई-लिखायी पर ध्यान देने के लिए समय नहीं निकालते या निकाल नहीं पाते, लेकिन यह जरूर चाहते हैं कि स्कूल के शिक्षक यानी मास्साब बच्चे की हर कमी को दूर कर दें। अधिकांश शिक्षक भी शिक्षा को धंधा मानने लगे हैं। उनके लिए छात्र ग्राहक हैं। जो थोडे-बहुत शिक्षक गंभीरता से अपने छात्रों को पढाते हैं और उन्हें सुधारने के लिए डंडा चलाते हैं उनपर अब पालकों की गाज गिरने में भी देरी नहीं लगती। नागपुर में एक स्कूल के शिक्षक ने सातवीं के एक छात्र को उसकी किसी कमी को दूर करने के लिए दंडित किया तो इसके विरोध में उसके परिजन छलांगे लगाते हुए स्कूल जा पहुंचे और शिक्षक की ही पिटाई कर डाली। स्कूल की महिला शिक्षकों को भी नहीं बख्शा गया। आखिरकार मामला पुलिस थाने तक पहुंच गया और अखबारों की सुर्खियां भी बना।

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