Thursday, January 17, 2019

जानलेवा बने क्रोध और हर्ष

यह कैसा समय है? कुछ समझ में नहीं आता। गुस्से में हत्याएं! खुशी में भी हत्याएं! कुछ लोग छोटी-छोटी बात पर किसी की जान लेने में ज़रा भी नहीं हिचकिचाते। वे भूल जाते हैं कि इंसान की जान से बढकर और कुछ भी नहीं होता। हर इंसान अपनी पूरी उम्र जीना चाहता है। मौत की कल्पना ही बडे से बडे जिगर वाले को भयभीत कर देती है। उसके हाथ-पांव फूल जाते हैं। दिल की धडकनें बढ जाती हैं। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जैसी सोच रखने वाले विरले ही इंसान होते हैं जो निर्भीकता और संतुष्टि की मूर्ति होते हैं और बडे साहस के साथ यह कहने की दिलेरी दिखाते हैं, 'मैं जी भर जिया, मैं मौत से क्यों डरूं?।' यहां तो अपनी उम्र के सौ वर्ष के आंकडे के करीब पहुंच चुके मरणासन्न वृद्धों में भी और जीने की लालसा बरकरार रहती है। सबकुछ पा लेने के बाद भी उन्हें अपनी झोली खाली लगती है। यह सच बहुत ही विचलितकारी है कि हिन्दुस्तान में हर वर्ष छोटी-छोटी बातों पर हजारों पुरुषों, स्त्रियों, बच्चों को मौत के घाट उतार दिया जाता है। उनके अपने जीवनपर्यंत आंसू बहाते रहते हैं।
देश की राजधानी दिल्ली में कुत्ते को टेम्पो की टक्कर लगने से नाराज उसके मालिक ने चालक की चाकू से गोदकर हत्या कर दी। दिल्ली में ही एक युवक को सिर्फ इसलिए गोलियों से भून दिया गया क्योंकि राहगीर ने उसके पालतू कुत्ते को पत्थर मारा था। हुआ यूं कि आफाक नामक युवक गली से गुजर रहा था। तभी एक घर के पास पालतू कुत्ता तेज आवाज में भौंकते हुए काटने के लिए उसपर झपटा। भयभीत आफाक ने बचने के लिए कुत्ते को पत्थर मार दिया। तब वहीं पर मौजूद कुत्ते के मालिक को इतना गुस्सा आया कि उसने उसे गोली मार दी। आफाक की मौत से उसके परिवार पर मुसीबतों का पहाड टूट पडा। घर में वही अकेला कमाने वाला था। हत्यारा कुत्ते को लेकर पहले भी कई लोगों से भिड चुका था।
दिल्ली के शकरपुर इलाके में मामूली से कहा-सुनी के बाद चार-पांच लडकों ने एक युवक की चाकू से गोदकर हत्या कर दी। यह हत्या इतने खौफनाक तरीके से की गयी कि शव को देखकर पुलिस वालों के भी रोंगटे खडे हो गए। हत्यारों ने युवक की दोनों आंखें फोड डालीं। उसके शरीर का ऐसा कोई भी हिस्सा नहीं बचा जहां पर उसे गोदा नहीं गया हो।
शाहदरा में अठारह वर्ष का एक युवक अपनी बहन के साथ घर से निकला था। रास्ते में तीन बदमाश बहन के साथ छेडछाड के साथ फब्तियां कसने लगे। भाई ने विरोध किया तो उन्होंने उसे चाकू मार कर बुरी तरह से घायल कर दिया। शालीमार बाग में प्रेमी-प्रेमिका में किसी बात पर बहस हो गई। प्रेमी को लगा कि प्रेमिका उसे नीचा दिखाना चाहती है। प्रेमी उस पर गंदी-गंदी गालियों की बौछार करने लगा तो नाराज प्रेमिका ने उसे थप्पड जड दिया जिससे प्रेमी का खून खौल गया और वह प्रेमिका को चाकू से तब तक गोदता रहा जब तक उसकी मौत नहीं हुई।
आज हम ऐसे दौर में हैं जहां पर कुछ लोगों के गुस्से तो कुछ लोगों की खुशी का अतिरेक निर्दोषों की जान ले रहा है। खुशियों को मातम में बदल रहा है। अपने देश में उत्सवों और खुशी के विभिन्न अवसरों पर जब नाते, रिश्तेदार, दोस्त, पडोसी और अन्य शुभचिंतक आपस में मिलते हैं तो वे खुशी से फूले नहीं समाते। ऐसे समारोहों में ढोल-नगाडे बजाये जाते हैं। आतिशबाजी भी की जाती है। थोडा-बहुत दिखावा भी किया जाता है। एक तरह से यह पुराना दस्तूर है। हर्षोल्लास के मौके बार-बार नहीं आते, लेकिन  पिछले कुछ दशकों में पिस्तोल और बंदूक से गोलियां दागने का चलन देखने में आ रहा है। अपनी शान दिखाने की इस सामंती प्रवृति को हर्ष फायरिंग का नाम दिया गया है।
नए साल के स्वागत का जश्न चल रहा था। सभी नाचते, गाते हुए एक-दूसरे को हैप्पी न्यू ईयर बोल रहे थे। रात के करीब सवा ग्यारह बजे नये वर्ष के आगमन की खुशी में नाचते-झूमते कुछ युवकों ने तमंचे से गोलियां चलायीं। इन्हीं में से एक गोली एक बच्चे के मुंह पर जा लगी। तत्काल उसे अस्पताल पहुंचाया गया, लेकिन उसकी मौत हो चुकी थी। इस बच्चे के पिता मीट का कारोबार करते हैं। बच्चा हमेशा कहता था कि वह पढ-लिखकर बडा आदमी बनेगा। बच्चे की असमय मौत के बाद मां का रो-रोकर बुरा हाल हो गया। पिता  के लिए भी इस सदमे से उबरना आसान नहीं होगा। इसी तरह से मांडी गांव में एक पूर्व विधायक के फार्म हाऊस में आयोजित की गई पार्टी में जब सभी मेहमान अपनी मस्ती में थे तभी कुछ लोगों ने कई राउंड हवाई फायरिंग कर अपनी-अपनी खुशी का जलवा दिखाया। एक गोली ४२ वर्षीय महिला के सिर में जा लगी जिसके चलते वह लहुलूहान होकर वहीं गिर पडीं। इन सभी खूनी घटनाओं को देश की राजधानी में अंजाम दिया गया। सवाल भी उठे कि दिल्ली वालों को इतना गुस्सा क्यों आता है, जिसके चलते वे अपना आपा खो देते हैं? जवाब यह आया कि दिल्ली ही क्यों, देश के सभी महानगरों के यही हालात हैं। तनाव के कारण लोगों में निराशा की भावना बढ रही है। निराशा हिंसा को उपजा और उकसा रही है। जाम, वाहनों का शोर और प्रदूषण भी लोगों को बेसब्र, हिंसक और चिढचिढा बना रहा है। दिल्ली ही नहीं, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, बिहार में सार्वजनिक स्थलों और निजी समारोहों में अपनी रईसी और दबंगई का प्रदर्शन करने के लिए की जाने वाली हर्ष फायरिंग आडंबर होने के साथ-साथ गैर कानूनी भी है। सिर्फ खुद को प्रफुल्लित करने के लिए किसी की जान ले लेने के खेल पर रोक लगाने के लिए प्रशासन को सख्ती बरतनी ही होगी। लोगों को आखिर बडी आसानी से बंदूकें, रिवॉल्वर और तमंचे कैसे हासिल हो जाते हैं? गोलियां दाग कर खुशियां मनाने वालों को भी होश में आना होगा। यह भी जान लें कि पिछले दस-बारह वर्षों के हर्ष फायरिंग से सोलह हजार लोगों की जानें जा चुकी हैं।

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