Friday, March 1, 2019

सेना का मुंहतोड जवाब

शहीद मेजर विभूति शंकर ढौंढियाल को अंतिम विदायी देने के लिए पूरा शहर उमड पडा था। हरिद्वार में भारत के इस सपूत का अंतिम संस्कार किया गया। इससे पूर्व शहीद के पार्थिव शरीर को उनके देहरादून स्थित आवास पर रखा गया था। शहीद मेजर की पत्नी निकिता ने ताबूत में पति के चेहरे को एकटक निहारते हुए जब यह शब्द कहे तो वहां पर उपस्थित हर किसी की आंखों से झर-झर कर आंसू बहने लगे, "आई लव यू। मिस यू विभूति। फिर मिलेंगे, ऐसी दुनिया में जहां आतंक का साया न हो।" महज दस महीने पूर्व मेजर विभूति शंकर ढौढियाल के साथ ब्याही गई निकिता ने इस मुश्किल घडी में स्वयं को संभाला और फिर मिलने का वादा कर पति को विदायी दी। यह भावुक मंजर देख पत्थर से पत्थर दिल इंसान की आंखें भीग गर्इं। घर की दीवारों पर हल्दी के हाथों के निशान अभी फीके भी नहीं पडे थे और उस वीरांगना के पति तिरंगे में लिपटकर अंतिम यात्रा पर जा रहे थे। वीर वधु ने अपने पति को सलामी देते-देते सभी को शहादत से सीख लेने का संदेश देते हुए कहा कि, "जो चले गए, उनसे कुछ सीखें। मैं सबसे प्रार्थना करती हूं कि वीर की शहादत पर सहानुभूति न जताएं। इस नौजवान की कुर्बानी, जिम्मेदारी, देश के प्रति अहसास को समझें। देश के लिए काम करने के बहुत सारे फील्ड हैं। ईमानदारी से काम करें। जय हिन्द।" इस वीरवधु के परिवार को कभी आतंकवाद के कारण कश्मीर छोडना पडा था और अब अपने जांबाज पति को खोना पडा। आठ माह की गर्भवती होने के बावजूद इस वीरांगना ने जो गजब की हिम्मत दिखाई उसे पूरा देश हमेशा याद रखेगा। उनकी आंखों से आंसू गायब थे। चेहरे पर पति के शहीद होने का गर्व था। गोरखा राइफल के जवानों ने जैसे ही मातमी धुन बजायी वीरवधु घर की देहरी पर आ गर्इं। खडे होकर पति को अंतिम सेल्यूट करती रहीं। अंतिम विदाई देते समय पिता जब फफक-फफक कर रोने लगे तो उन्होंने उन्हें रोका और बोलीं, "पापा, जाने दो उन्हें, वे देश के हीरो हैं।" अंतिम यात्रा में करीब एक किलोमीटर तक पैदल चलीं। रास्ते में जब एक महिला ने सहानुभूति जताते हुए उन्हें बेचारी कहा तो वे फौरन बोल पडीं, बेचारी नहीं हूं मैं।
पुलवामा में आतंकी हमले के बाद देश के विभिन्न हिस्सों में कश्मीरी युवकों को पीटा गया। उन्हें धमकाया गया कि यह शहर छोड दो वर्ना मार डालेंगे। कश्मीर में आतंकी हमलों के लिए कश्मीर की आम जनता जिम्मेदार नहीं है। हां, यह सच है कि कुछ युवा, पाकिस्तान के प्रलोभन और बहकावे में आकर आतंक की राह पर चल पडे हैं, लेकिन उनसे कहीं बहुत ज्यादा युवा कश्मीर पुलिस, अर्ध सैनिक बलों और सेना में शामिल होकर देश के लिए लडते चले आ रहे हैं। भारत माता के लिए शहीद होने वाले कश्मीरी युवाओं की अच्छी-खासी तादाद है। पाकिस्तान की तो हमेशा यही मंशा रही है कि भारत में एकजुटता का खात्मा हो, अमन-चैन और भाईचारे की जगह हर तरफ वैमनस्य का साम्राज्य स्थापित होता चला जाए। हिन्दुस्तान पर कई आतंकी हमले करवा चुके पाकिस्तान के हुक्मरानों का सच से कभी वास्ता ही नहीं रहा। वे छल-कपट के आदी हो चुके हैं। खिलाडी इमरान खान के पाकिस्तान की सत्ता पर काबिज होने के बाद यह कयास लगाये जा रहे थे कि दोनों देशों के रिश्ते में मधुरता आएगी। पाकिस्तान भारत में आतंक का निर्यात करना बंद कर देगा, लेकिन इमरान खान भी अल्लाह का नाम लेकर झूठ पर झूठ बोलने वाला शातिर इन्सान निकला। जब इमरान पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने थे तब भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें फोन पर बधाई देने के बाद कहा था, "आइए, गरीबी, आतंक और अशिक्षा के खिलाफ मिलजुलकर लडाई लडें।" इमरान ने मोदी जी से बडे शरीफाना और दोस्ताना अंदाज में कहा था कि मैं पठान का बच्चा हूं। आपसे वायदा करता हूं कि मेरे रहते हुए ऐसा कुछ नहीं होगा, जिससे उन्हें शिकायत करने का मौका मिले।
यह दुर्भाग्य ही है कि हिन्दुस्तान को स्वतंत्रता के साथ-साथ पाकिस्तान जैसा दुष्ट पडोसी मिला है जो आतंकियों की पनाहगाह है। यह आतंकी भारत में खून-खराबा कर जश्न मनाते हैं और पाकिस्तान के शासक भी उनकी खुशी में शामिल होते हैं। आज भले ही इमरान इनकार करें, लेकिन वे और पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ स्वीकार कर चुके हैं कि मुंबई हमले में लश्कर आतंकी शामिल थे। इन्होंने स्वीकारा था कि पाकिस्तान सरकार की मदद से ही आतंकी भारत में घुसे थे। २६ नवंबर २००८ की रात मुंबई में समंदर के रास्ते से दाखिल होकर पाकिस्तान के दस आतंकियों ने अंधाधुंध फायरिंग कर १६६ लोगों के साथ १८ सुरक्षा कर्मियों की हत्या कर दी थी। उसके ६०० पन्नों के अहम सुबूत भारत ने पाकिस्तान को सौंपे थे। १२ मार्च १९९३ में किये गए सीरियल ब्लास्ट का असली सूत्रधार आतंकी सरगना दाऊद इब्राहिम वर्षों से पाकिस्तान में पनाह लिए हुए है, लेकिन यहां के हुक्मरान बस यही कहते हैं कि उन्होंने कभी भी किसी आतंकी को अपने देश में पनाह नहीं दी। पाकिस्तान की आम जनता गरीबी, बदहाली, महंगाई, बेरोजगारी और आतंकवाद से त्रस्त है। उसका वहां के नेताओं और सत्ताधीशों पर से विश्वास उठ चुका है। फौज की हद से ज्यादा की जाने वाली दखलअंदाजी से भी लोग निराश और हताश हो चुके हैं। पाकिस्तान की खस्ता हालत को सुधारने में इमरान खुद को असमर्थ पा रहे हैं। उनका दिमाग ही काम नहीं कर रहा है। इसलिए वे भी पूर्व शासकों की तरह भारतवर्ष के अमन-चैन और भाईचारे के खात्मे के सपने देख रहे हैं। वह भारतीयों की एकजुटता और ताकत को आंक नहीं पाए हैं। उन्होंने भी हमारे सब्र और सहनशीलता को हमारी कमजोरी मानने की भूल की है। जम्मू कश्मीर के पुलवामा में सीआरपीएफ के जवानों पर हुए हमलों के बाद भारत ने जब सख्ती दिखायी तो इमरान खान पहले तो अकड दिखाते हुए सुबूत मांगने पर अड गये। फिर बाद में शांति लाने का एक मौका देने के लिए गिडगिडाने लगे। १४ फरवरी को पुलवामा में जवानों पर हमला होने के बाद प्रधानमंत्री ने जवानों के खून की एक-एक बूंद का बदला लेने के लिए सेना को खुली छूट दे दी। देशभर से आतंकियों को क‹डा सबक सिखाने की मांग उठने लगी। भारतीय सेना अपने कर्तव्य को प्राथमिकता देती है। वह चुपचाप अपना काम करती है, ढोल नहीं पीटती। चार युद्धों में पाकिस्तान को धूल चटा चुकी सेना ने हमेशा जनता की भावनाओं को समझते हुए उनका आदर किया है। भारतीय वायुसेना ने जवानों की शहादत के ठीक १३वें दिन पाकिस्तान की सरहद लांघकर आतंकी अड्डे तबाह कर दिए, जिसकी गूंज पूरी दुनिया ने सुनी। मिराज लडाकू विमानों की दो मिनट की बमबारी में जिस तरह से लगभग ३५० आतंकी और पच्चीस ट्रेनर मौत के मुंह में सुला दिये गये उससे पाकिस्तान के होश उड गये हैं। अपने ही घर में पिटने की शर्मिन्दगी से वह शायद ही कभी उबर पाये।

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