Thursday, March 14, 2019

मामा का भात

उस दिन मैं राजधानी में था। एक कवि मित्र ने बताया कि हमारा वर्षों पुराना पत्रकार मित्र रवि जीटीबी अस्पताल में भर्ती है। कवि मित्र को साथ लेकर मैं अस्पताल जा पहुंचा। दोस्त का हालचाल जानने के बाद हम वापस लौट ही रहे थे कि अस्पताल में शोर-शराबा सुनायी दिया। अस्पताल के डॉक्टर गुस्सायी भीड को नियंत्रित करने में लगे थे। पांचवीं कक्षा की एक छात्रा की पानी की जगह तेजाब पीने से मौत हो गई थी। परिजन और स्थानीय लोग प्रदर्शन की मुद्रा में थे। पहले तो वे लोग अस्पताल के डॉक्टरों को ही छात्रा की मौत का दोषी मान रहे थे, लेकिन जब उन्हें सच से अवगत कराया गया तो उनके पैरों तले की जमीन खिसक गई। पूर्वी दिल्ली के हर्ष विहार इलाके में स्थित एक स्कूल में पढने वाली पांचवी कक्षा की छात्रा को स्कूल प्रशासन ने एकाएक तबीयत बिगडने के कारण अस्पताल में भर्ती कराया था। बाद में परिजनों को भी सूचना दे दी। अस्पताल में भर्ती कराते समय स्कूल प्रशासन ने डॉक्टरों को बताया कि बच्ची की पानी पीने से तबीयत बिगड गई है। डॉक्टरों को इलाज के दौरान कुछ शक हुआ कि बच्ची ने पानी नहीं तेजाब पिया है। उन्होंने मामले की सूचना पुलिस को दे दी और पूरी ताकत के साथ बच्ची को बचाने में लग गये, लेकिन उनकी सारी मेहनत धरी की धरी रह गई। कुछ ही घंटों के बाद बच्ची ने दम तोड दिया। पुलिस की जांच में बडा चौंकाने वाला सच सामने आया। रोज की तरह उस दिन भी सुबह संजना स्कूल पहुंची थी। लंच के दौरान वह अन्य बच्चों के साथ खाना खा रही थी। इस बीच उसने क्लास में ही खाना खाने आई चौथी कक्षा की छात्रा से पीने के लिए पानी की बोतल मांगी तो उसने संजना को सहर्ष बोतल थमा दी। जिसे पीते ही उसकी तबीयत बिगड गई और धडाधड उल्टियां होने लगीं। पेट जलने लगा। होंठ भी जल गए। दरअसल वह चौथी की बच्ची कोल्डड्रिंक की बोतल में पानी के बजाए गलती से तेजाब ले आई थी जिसे संजना ने पानी समझ कर पी लिया था। स्कूल में जहां बच्चे बैठकर खाना खा रहे थे, वहां उन्होंने फर्श पर तेजाब गिरने के बाद आने वाले सफेद निशान देखे। स्कूल प्रशासन को भी पता चल गया था कि बच्ची ने पानी की जगह तेजाब पी लिया है, लेकिन फिर भी उन्होंने परिजनों और डॉक्टरों से सच को छुपाये रखा। यदि समय पर तेजाब पीने के बारे में बताया जाता तो यकीनन डॉक्टर और गंभीरता से इलाज करते तो आज बच्ची जिन्दा होती। इस मौत के दोषी तो माता-पिता भी हैं जिन्होंने घर में तेजाब की बोतल लाकर रख दी थी और बच्ची पानी की बोतल समझकर स्कूल ले गई। इसे अगर संजना नहीं पीती तो यह बच्ची पीती और हश्र...!
दिल्ली में तेजाब बेचना गैर कानूनी है फिर भी गली की एक दुकान पर बडी आसानी से तेजाब उपलब्ध था! जिसे टॉयलेट साफ करने के लिए खरीदा गया था। संजना के पिता र्इंट के भट्टे पर मजदूरी कर अपनी बच्ची को पढा रहे थे। उनकी इच्छा थी कि लाडली बडी होकर ब‹डी अफसर बने। तेजाबी लापरवाही ने उनके सपने को चकनाचूर कर दिया। यह तेजाब अभी तक न जाने कितनी युवतियों को जिन्दा लाश बना चुका है। तेजाबी हमले के बाद चेहरे और दिलो-दिमाग पर जो निराशा और उदासी अंकित हो जाती है उससे आसानी से मुक्ति नहीं पायी जा सकती। उपदेश देना बहुत आसान है, सच का सामना करना बहुत मुश्किल। बीते हफ्ते एक गुस्साये प्रेमी ने अपनी प्रेमिका को यह कहकर तेजाब से नहला दिया कि तुम्हें अपनी खूबसूरती पर बहुत गुरूर है। इसके खात्मे के लिए तुम्हें सजा देना जरूरी है। इससे उन युवतियों को भी सबक मिलेगा जो बात-बात पर खूबसूरत होने के अहंकार में अकड दिखाती रहती हैं।
देश के एक जाने-माने प्लास्टिक सर्जन, जो वर्षों से तेजाब हमले की शिकार महिलाओं का इलाज करते चले आ रहे हैं, का कहना है कि अगर कोई महिला पुरुष की बात नहीं मानती तो वह उस पर तेजाब फेंक कर एक सेकंड में ही उसकी सारी जिन्दगी बरबाद कर देता हैं। इस राक्षसी प्रवृति का अंत होता दिखायी नहीं देता। तेजाब की बुरी तरह से शिकार होने वाली कई महिलाएं तो जिन्दा ही नहीं रहना चाहतीं। बहुत कम ऐसी होती हैं जो जीवन की मुख्य धारा में लौटने का साहस दिखाती हैं। ज्यादातर तो घर की चार दीवारी में कैद हो जाती हैं। उनकी घुट-घुट कर कब मौत हो जाती है, पता ही नहीं चलता। तेजाब के हमले की शिकार हुई लक्ष्मी जैसी हिम्मत दिखाने वाली कुछ महिलाएं ही हैं जिन्होंने अपने जीवन को क‹डे संघर्ष में तब्दील कर दिखाया। लक्ष्मी गायिका बनना चाहती थी। तब उसकी उम्र थी पंद्रह वर्ष जब एक बत्तीस वर्षीय अमानुष ने तेजाब फेंककर उनका पूरा चेहरा बुरी तरह से जला दिया था। हमले के कुछ दिन बाद जब लक्ष्मी ने आइना देखा तो वह खुद को ही नहीं पहचान पाई। सबकुछ उलट-पुलट हो चुका था। लक्ष्मी और पूरे परिवार पर गमों का पहा‹ड टूट पडा था। बाद में लक्ष्मी ने खुद को ऐसा संभाला और ऐसे-ऐसे कीर्तिमान स्थापित किये कि दुनिया हतप्रभ रह गई। दसवीं तक पढी लक्ष्मी को पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की पत्नी मिशेल ओबामा ने इंटरनेशनल वूमेन ऑफ कर्रेज़ अवार्ड देकर सम्मानित किया था। देश और विदेश में कई टीवी शोज में भाग लेकर अपनी प्रेरक और निर्भीक छवि बनाने वाली लक्ष्मी आज तरह-तरह की परेशानियों से घिरी हैं। शुरू-शुरू में तो उसके लिए कालीन बिछाये गये, तारीफों और स्वागतों की झ‹डी लगा दी गई, लेकिन फिर धीरे-धीरे उसे बेहद कटु सच से रूबरू करवा दिया गया। जिस प्रेमी ने उम्रभर साथ देने का वादा किया था वह भी भाग खडा हुआ। बेटी का खर्च उठाने में भी असमर्थता व्यक्त कर दी है। आज लक्ष्मी को काम की जरूरत है, लेकिन वह बेरोजगारी के दंश झेलने को विवश है। कुछ साल पहले तक उसका भविष्य पूरी तरह से उज्जवल लग रहा था। आज चारों तरफ अंधेरा ही अंधेरा है। लक्ष्मी के जीवन संघर्ष पर करोडों रुपये खर्च कर फिल्म बनायी जा रही है, लेकिन उसके पास घर का किराया देने के लिए पैसे नहीं हैं। धन के अभाव के कारण वह अपनी इकलौती बेटी को पढा नहीं पा रही है। यह किसी एक लक्ष्मी की दास्तान नहीं है। इनकी संख्या हजारों में है जो नारकीय जीवन जीने को विवश हैं। उन्हें सहानुभूति दिखाने वाले तो बहुत मिलते हैं, लेकिन नौकरी देने में आना-कानी की जाती है।
राजधानी दिल्ली में महिला सुरक्षा पदयात्रा का आयोजन किया गया जिसमें तेजाब पीडितों ने लोगों के साथ अपना दर्द साझा किया। इस पदयात्रा में कई ट्रांसजेंडर भी शामिल हुए। उन्होंने नारे लगाए कि किन्नरों को सम्मान दो, वो भी इंसान हैं। उन्हें बेवजह अपमानित किया जाता है। किसी भी दफ्तर व पुलिस थाने में उनकी शिकायत नहीं सुनी जाती। कई किन्नरों को पढे-लिखे होने के बावजूद काम नहीं मिलता। हरियाणा के कुरुक्षेत्र जिले के एक गांव में किन्नरों ने जो कर दिखाया उसकी मिसाल मिलना आसान नहीं है। उस गांव में एक गरीब परिवार अपनी बेटी की शादी को लेकर बहुत चिन्तित था। बिटिया की शादी तय हो गई थी और माता-पिता की जेब लगभग खाली थी। लडकी की मौसी का किन्नरों के बीच उठना-बैठना था। एक दिन उसने कुछ किन्नरों को इस गंभीर समस्या से अवगत कराया तो वे द्रवित हो उठे। उन्होंने मौसी को आश्वस्त किया कि वे लडकी की शादी में जो सहयोग बन पडेगा जरूर करेंगे। बातों ही बातों में उन्होंने मौसी से लडकी की शादी की तारीख भी जान ली। मौसी ने उनके आश्वासन को बहुत हलके में लिया। उसने सोचा कि झूठी तसल्ली देने के लिए ऐसी बातें तो सभी करते हैं। जहां अपने मुश्किल की घडी में किनारा कर लेते हैं वहां गैरों से क्यों कोई उम्मीद रखना...। जो किन्नर दूसरों के सहारे पलते हैं वो क्या किसी की सहायता करेंगे? लडकी की शादी के दो-तीन दिन पहले एक साथ नौ किन्नर ल‹डकी के घर जा पहुंचे। लडकी के माता-पिता उन्हें देखकर घबरा गये। उन्हें इस बात का डर सताने लगा कि अब इन्हें कुछ-न-कुछ देकर विदा करना पडेगा। बिना लिये तो यह लोग टस से मस नहीं होंगे। लडकी के माता-पिता और रिश्तेदारों के उतरे हुए चेहरे को देखकर किन्नरों ने खिलखिलाते हुए कहा, अरे हम तो लडकी के मामा हैं जो अपना फर्ज निभाने आए हैं। अपनी भांजी की शादी में भात देने आए हैं। किसी को कुछ समझ में आ पाता इससे पहले उन्होंने पांच तोला सोना, पंद्रह तोला चांदी, और साढे तीन लाख रुपये लडकी की झोली में डाल दिए...।

No comments:

Post a Comment