Thursday, March 28, 2019

सच का आईना

सत्ता और राजनीति में अमूमन वही मान-सम्मान पाता है जिसमें जी हजूरी करने के अपार गुण हों। सच कहने वालों को यहां बर्दाश्त नहीं किया जाता। झूठी प्रशंसा करने की कला में माहिर लोगों को हाथों-हाथ लिया जाता है। स्वाभिमानी इंसानों की भी यहां दाल नहीं गल पाती। चौकन्ने होकर देखने पर आप यही पायेंगे कि कुर्सी पाने के लालच में अधिकांश विधायक और सांसद अपनी गरिमा को ताक पर रख देते हैं। कुछ ही होते हैं जो अपने सिद्धांतों के साथ समझौता नहीं करते। चुनाव जीतने से पहले मतदाताओं से किये गए वायदे उनके लिए सर्वोपरि होते हैं। सत्ता की राजधानी की चकाचौंध में भी उनका मन नहीं भटकता। अपने उसूलों के लिए वे किसी से भी भिड जाते हैं। कौनसा नेता असली है और कौन नकली इसका पता उसके बोलने और काम करने के अंदाज से चल जाता है। यह पंक्तियां लिखते समय मुझे दो नाम याद रहे हैं। एक हैं नाना पटोले तो दूसरे हैं शत्रुघ्न सिन्हा। दोनों ही भाजपा के टिकट पर चुनाव लडकर २०१४ में लोकसभा पहुंचे थे। नाना पटोले ने २०१७ में सांसदी को इसलिए  लात मार दी क्योंकि शीर्ष नेतृत्व के द्वारा उनकी अवहेलना की जा रही थी। उनकी गरिमा को ठेस पहुंचायी जा रही थी। भाजपा सांसदों की बैठक में जब इस स्वाभिमानी सांसद नाना पटोले ने ओबीसी समाज और किसानों की आत्महत्या का मुद्दा उठाना चाहा तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को गुस्सा आ गया और उन्होंने उन्हें चुपचाप बैठने का फरमान सुना दिया। किसानों तथा ओबीसी समाज के लिए हमेशा संघर्ष करते रहने वाले पटोले को प्रधानमंत्री के इस अहंकारी तेवर ने निराश और आहत कर दिया। उन्होंने इस सच को भी जान लिया कि वे जिस उद्देश्य के लिए सांसद बने हैं वो पूरा नहीं हो सकता। इसलिए उन्होंने लोकसभा की सदस्यता से ही त्यागपत्र दे दिया। दूसरी तरफ शत्रुघ्न सिन्हा हैं, जो सांसद बनने के बाद बार-बार यही कहते रहे कि वे खुद को अपमानित महसूस कर रहे हैं। उनकी ज़रा भी नहीं सुनी जाती। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तानाशाह की तरह पेश आते हैं। बार-बार शर्मिंदगी के कडवे घूंट पीने और अपनी गरिमा की ऐसी-तैसी करवाने के बावजूद शत्रुघ्न सिन्हा लोकसभा से इस्तीफा देने की हिम्मत नहीं कर पाये। आखिरतक पार्टी से चिपके रहे। ऐसे में असली नायक तो नाना पटोले ही हुए न! जिन्होंने  आत्मस्वाभिमान को सर्वोपरि माना और वह कर दिखाया जिसकी उम्मीद कम अज़ कम शत्रुघ्न जैसे मौकापरस्त नेताओं से तो नहीं की जा सकती। यह लोग तो जिस थाली में खाते हैं उसी को तबला बनाकर बजाते रहते हैं। इनकी जुबान भी तब तक विरोध के स्वर उगलती रहती है जब तक इनके मुंह में मंत्रीपद का लड्डू नहीं ठूंस दिया जाता। सिर्फ और सिर्फ मंत्रीपद के भूखे खिसियानी बिल्ली की तरह खम्बा नोचने वाले ऐसे अभिनेता-नेताओं का आम जनता की समस्याओं से कोई लेना-देना नहीं होता। नौटंकीबाज शत्रु अब भाजपा के केसरिया किले को ध्वस्त करने के सपने के साथ कांग्रेस की टिकट पर पटना से ही लोकसभा चुनाव लडने जा रहे हैं। भाजपा ने उनके गाल पर अपमान का जो तमाचा जडा है उसके निशान उन्हें ताउम्र उनकी शातिरी और अहसानफरामोशी की याद दिलाते रहेंगे। शत्रुघ्न को कायस्थ वोटों का जबरदस्त भरोसा है। उनके इस भरोसे की बडी वजह उनका फिल्म अभिनेता होना भी है। हिन्दुस्तान की भावुक जनता फिल्मी चेहरों पर कुछ ज्यादा ही मोहित हो जाती है। फिल्मी सितारे वोटरों की इसी कमजोरी का फायदा उठाते हैं। यह ऐसे शिकारी हैं जो शब्दजाल फेंककर वर्षों से लोगों को बेवकूफ बनाते चले आ रहे हैं। शत्रुघ्न की तरह कुटिल और फरेबी लकीर पर चलने वालों में और भी कुछ हवा बाज फिल्मी चेहरे हैं, जिनको लगता है कि जिस तरह से उनकी फिल्में हिट होती रही हैं वैसे ही राजनीति में भी कोई उनका रास्ता नहीं रोक पायेगा। राजनीतिक पार्टियां भी इन चमक-दमक वाले  नकली किरदारों से इस कदर प्रभावित हैं कि यह सोचकर इन्हें कहीं से भी खडा कर देती हैं कि इन्हें देखने और सुनने के लिए जुटने वाली भीड वोटरों में तब्दील होगी ही। हाल ही में हरियाणा की डांसर सपना चौधरी के कांग्रेस में शामिल होने की खबर को न्यूज चैनल वालों ने ऐसे दिखाया जैसे सपना कोई बहुत बडी हस्ती हो। वो जिस पार्टी में भी जाएगी उसकी झोली में वोट बरसने लगेंगे। यह खबर भी आंधी की तरह फैली कि मथुरा से कांग्रेस सपना को हेमा मालिनी के खिलाफ उतार सकती है। हालांकि बाद में सपना ने कांग्रेस में शामिल होने की खबर को निराधार बता दिया। मशहूर कलाकारों की लोकप्रियता को भुनाने के लिए देश का लगभग हर राजनीतिक दल मौका तलाशता रहता है। यह देखने और समझने की कोशिश ही नहीं की जाती कि वह कलाकार सही मायने में जननेता बनने के लायक है या नहीं। विधायक या सांसद बनने के बाद वह जनसेवा के लिए समय निकाल पायेगा या अपनी भौतिक सुख-सुविधाओं में ही डूबा रहेगा। राज्यसभा की सम्मानित सदस्य बनने के बाद विश्व विख्यात गायिका लता मंगेशकर, अभिनेत्री रेखा, क्रिकेट के भगवान कहे जाने वाले सचिन तेंदुलकर और प्रख्यात चित्रकार एम.एस.हुसैन जैसे अन्य चेहरों ने कितनी बार जनसमस्याएं उठायीं और अपने विचार व्यक्त किए यह यकीनन शोध का विषय है। थैलियां लेकर धनपतियों को राज्यसभा का सांसद बनाने का चलन तो हमारे यहां बडा पुराना है। बैंकों को हजारों करोड की चपत लगाकर विदेश भाग खडे होने वाले अय्याश विजय माल्या और कई काले कारोबारी राज्यसभा का सांसद बनने का सौभाग्य हासिल कर भारतीय लोकतंत्र का मज़ाक उडाने में सफल रहे हैं। अभी भी देश में जो लोकसभा चुनाव होने जा रहे हैं उनमें अपना भाग्य आजमाने वाले लगभग सभी नेता ऐसे मालदार हैं, जिनकी करोडों रुपए फूंकने की पूरी तैयारी है।

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