Thursday, April 18, 2019

राजनीति में अहंकार और गुंडागर्दी

वोटों के लिए धमकी-चमकी, गुंडागर्दी। यह कोई नई बात नहीं है। इस हथियार का इस्तेमाल पहले पर्दे के पीछे किया जाता था। शरीफ प्रत्याशी बहुत नाप-तौल कर बोला करते थे। गुंडे-बदमाश किस्म के प्रत्याशी गुंडई की सभी सीमाएं लांघ दिया करते थे। लाठी, डंडों, तलवारों और किस्म-किस्म के हथियारों का भय दिखाकर वोटों की फसल काटा करते थे, लेकिन अब तस्वीर बदल गई है। नैतिकता और मर्यादा के पक्षधर माने जाने वाले राजनेता भी अपना आपा खोने लगे हैं। शालीनता की होली जलाने लगे हैं। जबकि वे इस सच से वाकिफ हैं कि, उग्र तेवर भारी पड सकते हैं। लेने के देने पड सकते हैं। यूपी के जगजाहिर घटिया नेता आजम खां, जो कि समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव हैं, ने जयाप्रदा को लेकर इतनी शर्मनाक बात कह दी जिसकी वजह से चारों तरफ उनकी थू-थू होने लगी। इस लंपट नेता को फिर भी कोई फर्क नहीं पडा। इस गंदे इंसान ने भीड के समक्ष यह कह कर सिद्ध कर दिया कि वह छंटा हुआ गुंडा और बदमाश है : "आप लोगों को अधिकारियों से डरने की जरूरत नहीं। हमारी सरकार आई तो कलेक्टर से जूते साफ करवायेंगे। यह तनखैया हैं इनकी कोई औकात नहीं है। आपने मायावती की वो तस्वीरें तो जरूर देखी होंगी, जिनमें बडे-बडे अफसर उनके जूते साफ करते दिखायी देते हैं। इस बार तो उन्हीं मायावती से हमारा गठबंधन हुआ है। तुम लोग बेफिक्र रहो। किसी से डरने की कोई जरूरत नहीं है।
मेनका गांधी की छवि एक शालीन राजनीतिज्ञ की रही है। उन्हें ऊंची आवाज में भी बोलते नहीं देखा गया, लेकिन २०१९ के लोकसभा चुनाव में वे मुस्लिम मतदाताओं को मेमना और खुद को अजगर मान दहाडती और ललकारती नज़र आईं। अपने लोकसभा क्षेत्र की एक चुनावी सभा को संबोधित करते हुए उन्होंने मुसलमान मतदाताओं को धमकाते हुए कहा कि अगर आप हमारा साथ नहीं दोगे तो हम भी आप लोगों के काम नहीं करेंगे। पोलिंग बुथ पर आपके १०० या ५० वोट निकले तो उसी हिसाब से आपका काम किया जाएगा। आप इस सच को जान लो कि हम महात्मा गांधी की छठी औलाद तो हैं नहीं कि देते ही चले जाएं और इलेक्शन में मार खाते चले जाएं। मैंने विभिन्न मुस्लिम संस्थाओं को एक हजार करोड की सहायता प्रदान की है। ऐसे में जब मुस्लिम मतदाता वोट नहीं देते हैं तो दिल को ठेस लगती है। भाजपा प्रत्याशी मेनका गांधी जो कि केंद्रीय मंत्री भी हैं, ने कार्यकर्ताओं और वोटरों को साफ-साफ कहा कि जहां से उन्हें ज्यादा वोट मिलेंगे वहां का पहले विकास किया जाएगा। यानी जिसका जितना वोट, उसका उतना विकास। मेनका गांधी राजनीति की कोई नई-नवेली खिलाडी नहीं हैं। उनका मुस्लिम मतदाताओं को चेताने का अंदाज हंगामा बरपा गया। उन्हें इस सवाल का तो जवाब देना ही होगा कि उन्होंने मुस्लिम संस्थाओं को जो करोडों की रकम देने का दावा किया है, वह उनकी जेब की तो नहीं थी। पूरी तरह से सरकारी थी। सरकार का फर्ज ही होता है कि वह बिना किसी भेदभाव के हर किसी की सहायता करे। मेनका ने हिन्दुओं एवं अन्यों की संस्थाओं को जो सहायता राशि उपलब्ध करायी उसका जिक्र क्यों नहीं किया? लगता है वे यह मानकर चल रही हैं कि हिन्दुओं तथा अन्य धर्म के मतदाताओं के सारे के सारे वोट उन्हें मिलते आये हैं। वे उनके साथ धोखा नहीं कर सकते। धोखेबाज तो बस मुसलमान ही हैं, जिन्हें उन्होंने बडी आसानी से धमकाते हुए कटघरे में खडा कर दिया! वे इस सच को कैसे भूल गईं  कि मुसलमान भी हिन्दुओं की तरह देश के सम्मानित नागरिक और वोटर हैं। उन्हें किसी भी पार्टी को वोट देने की पूरी आजादी है। मेनका की तरह एक और वजनदार केंद्रीय मंत्री हैं जो हमेशा अपने भाषणों में यह कहते रहते हैं कि मैंने हजारों करोड के काम करवाए हैं। मतदाता मुझे वोट देंगे ही। कोई इनसे कहे कि जनाब आपने कोई अहसान नहीं किया है। यह जो आप मैं...मैं लगाये रहते हैं उससे जबरदस्त अहंकार झलकता है। आपने जनसेवा में जो धन खर्च किया वह आपकी निजी तिजोरी का नहीं, सरकारी है जनाब। इसलिए मैं... नहीं हम और हमारी सरकार कहना सीखिए...। सरकार जनता से जो टैक्स वसूलती है उसी से उसकी तिजौरी भरती है। देशवासियो के खून पसीने की कमाई को उन्हीं के हितार्थ खर्च करने में ही उसकी सार्थकता और जरूरत है। ऐसे में कोई बडबोला नेता मैं...मैं करते हुए मंचों पर दहाडता है तो सचेत भारतीयों को बहुत गुस्सा आता है।
देश की राजनीति में एक से एक नमूने हैं। भगवाधारी साक्षी महाराज ने मतदाताओं को वोट नहीं देने पर श्राप देने की धमकी दे डाली। मतदाताओं को श्राप देने की जुर्रत करने वाले यह महाराज उन्नाव संसदीय सीट से भाजपा के प्रत्याशी हैं। एक जनसभा में ये ऐंठकर बोले कि मैं संन्यासी हूं। आपके दरवाजे पर भीख मांगने आया हूं। अगर मना किया तो आपकी गृहस्थी के पुण्य ले जाऊंगा और अपने पाप दे जाऊंगा।
इस बार के चुनावी युद्ध में अपने वादों और नारों के साथ उतरे प्रमुख सियासी दलों के नेता लोगों का मनोरंजन करने में भी काफी आगे हैं। राष्ट्रीय जनता दल के लालू प्रसाद यादव जेल में बिन पानी की मछली की तरह तडप रहे हैं। उनकी जमानत की सभी कोशिशें व्यर्थ साबित हो चुकी हैं। करोडों रुपये के चारा घोटाले के मामले में दोषी ठहराये जाने के बाद भी लालू खुद को एक ईमानदार और क्रांतिकारी नेता मानते हैं। कहने को तो उन्हें जेल हुई है, लेकिन वे अस्पताल में मजे लूट रहे हैं। हमारे यहां के भ्रष्टाचारी नेता, अस्पताल में इलाज की सुविधा बडी आसानी से पाने में सफल हो जाते हैं। लालू की पत्नी राबडी देवी, बेटी मीसा और बेटे तेज प्रताप यादव, तेजस्वी यादव भी अपने पिता की तरह भ्रष्टाचार के धन को ठिकाने लगाने की सभी कलाएं सीखने के बाद गजब की नौटंकी करने में लगे हैं। भ्रष्ट लालू ने लूटमारी कर जो धन बटोरा था उससे अपनी पत्नी, पुत्रों, बेटियों और दामादों के नाम करोडों की जमीन-जायदाद खरीदी। फिर भी लालू का यह 'गिरोह' खुद को देश सेवा के प्रति समर्पित बताता है। किसी ने सच ही कहा है कि राजनीति निर्लज्जों और अपराधियों के लिए सुरक्षित स्थल है। मुंह पर कालिख पुते होने के बावजूद भी विरोधियों के मुंह पर थूकते रहो और जाति-धर्म की राजनीति करते हुए सीधी-सादी जनता की आंखों में धूल झोंकते रहो। यह भारत में ही संभव है जहां जन्मजात भ्रष्टाचारी भी चुनावों में ऐसे नारे लगाने का दमखम दिखाते नहीं सकुचाते जिन्हें सुनकर ऐसा प्रतीत होता है कि इनसे बडा तो और कोई देशभक्त है ही नहीं। राजद के नये खिलाडी तेजस्वी यादव का नारा है :
"दुश्मन होशियार, जागा है बिहार
किया है ये यलगार, बदलेंगे सरकार
उन्नति के उजियार के खातिर,
लालटेन के जले के बा
करे के बा... लडे के बा... जीते के बा।"
दरअसल, चुनावी वादों की तरह नारे भी वोटरों को आकर्षित करने और छलने के ऐसे औजार बन गये हैं जिनका इस्तेमाल सभी दल बखूबी कर रहे हैं। यह भी माना जाता है कि नारे ही चुनाव की जान होते हैं। भारत वर्ष में तो नारों के बिना अभी तक कोई चुनाव हुआ ही नहीं। ये नारे हीं हैं जो मंचासीन नेताओं और मैदान में जुटी भीड में जोश का संचार करते हैं। कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी ने राजस्थान की एक सभा में नारा उगला था : "गली-गली में शोर है, देश का चौकीदार चोर है।"
महाराष्ट्र के बुलढाणा में चुनावी मंच से शिवसेना के प्रमुख उद्धव ठाकरे ने जवाबी तीर छोडा, "बेटा राहुल! हिन्दुस्तान में नामर्दों के लिए कोई जगह नहीं है।" अशालीनता, अमानवीयता, कुतर्क और असहिष्णुता के ऐसे नजारे पहले कभी नहीं देखे गये थे। देश की गरीब जनता को भिखारी और निकम्मा बनाने के इस षडयंत्री चुनाव दौर में हर पार्टी दमखम के साथ वास्तविक जनसमस्याओं के समाधान के आश्वासन देने से कतरा रही है। बढती जनसंख्या, गरीबी, सरकारी सेवाओं का गिरता स्तर, ठग और लुटेरों की तरह कुर्सियों से चिपके कर्मचारी, अधिकारी, बढती सडक दुर्घटनाएं, जानलेवा प्रदूषण, नक्सली समस्या, अपराध और आतंकवाद जैसे और भी कई मुद्दे हैं जिनकी अब बात ही नहीं हो रही। अपने देश में ऐसे लोगों की अच्छी-खासी तादाद है जो वोट डालने के लिए घर से ही नहीं निकलते। उनपर किसी भी जनजागरण अभियान और समझाइश का असर नहीं होता। उनका मानना है कि-"कोउ नृप होउ हमहि का हानी, चेरि छाडि अब होब कि रानी।" यानी देश की सत्ता कोई भी संभाले यह अपने में मस्त रहने वाले लोग हैं। ऐसी सोच की एक वजह यह भी है कि इंदिरा गांधी से लेकर नरेंद्र मोदी तक उन्होंने वादों और नारों की गूंज तो सुनी, लेकिन उन्हें साकार होते नहीं देखा है...।

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