Thursday, April 25, 2019

राजनीति की डरावनी तस्वीर

"किसी मुल्क को बर्बाद करना हो तो लोगों को धर्म के नाम पर लडा दीजिए, मुल्क अपने आप बर्बाद हो जाएगा।" लगभग सवा सौ साल पूर्व विश्व विख्यात लेखक, चिन्तक लियो टालस्टाय ने उपरोक्त शब्द कहे थे। प्रगा‹ढ विद्वान कभी काल्पनिक बातें नहीं किया करते। वे जो देखते-समझते और अनुभव करते हैं उसी का सार देश और दुनिया के समक्ष पेश कर रुखसत हो जाते हैं। लोग उनकी सीख का कितना पालन करते हैं यह उन्हें तय करना होता है। मुझे यह लिखते हुए अत्यंत गर्व और पीडा हो रही है कि कई धर्म के ठेकेदारों ने भारत के जनमानस में लाख जहर घोलने की कोशिशें कीं, लेकिन उन्हें मुंह की खानी पडी। फिर भी उनकी साजिशें और हरकतें थमी नहीं हैं।
भारतीय जनता पार्टी ने भोपाल संसदीय सीट से जिस साध्वी प्रज्ञा भारती को मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के खिलाफ उतारा है, उनकी ज्वलंत योग्यता और खासियत तो यही है कि वे २९ दिसंबर २००८ में नासिक के मालेगांव शहर में एक बाइक में बम लगाकर किये गये विस्फोट के आरोप में ९ साल तक जेल में रह चुकी हैं। फिलहाल सेहत ठीक न होने के कारण जमानत पर हैं। इस बम कांड में ७ लोगों की मौत हुई थी और करीब १०० लोग जख्मी हुए थे। प्रज्ञा सिंह को भोपाल सीट का उम्मीदवार बनाये जाने के बाद से ही देशभर में तरह-तरह की बातें हो रही हैं। भारतीय जनता पार्टी पर भी सवाल दागे जा रहे हैं कि इस विवादास्पद साध्वी को ही क्यों उसने लोकसभा के चुनावी मैदान में उतारा? कहीं ऐसा तो नहीं कि भाजपा को भोपाल जैसी सीट खोने का भय बुरी तरह से सता रहा था, इसीलिए मोदी-शाह की चालाक जोडी ने सोचा कि साध्वी प्रज्ञा को दिग्विजय सिंह की टक्कर में उतारकर क्यों न चुनाव को हिन्दू बनाम मुसलमान का धर्मयुद्ध बना दिया जाए। भाजपा कार्यकर्ताओं के साथ हुई बैठकों में प्रज्ञा ने बार-बार हेमंत करकरे को कोसा, जिन्हें बमकांड की जांच की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। उनकी दास्तान ने अच्छे-अच्छों को भावुक बना दिया। उनके द्वारा पेश की गई पुलिसिया अत्याचार की कहानी वाकई अत्यंत लोमहर्षक है : "मालेगांव ब्लास्ट के आरोप में १५ दिनों तक मुझे गैरकानूनी रूप से हिरासत में रखा गया। बिना पूछताछ किए ही मोटी बेल्ट से लगातार मारा जाता था। शरीर पर नमक मिला पानी डाला जाता था। भद्दी-भद्दी गालियां दी जाती थीं और दिन-रात उल्टा लटका कर यातनाएं दी जाती थीं। निर्वस्त्र करने की भी कोशिशें की जाती थीं। पीटने वाले बदल जाते थे, बस पिटने वाली वही अकेली होती थीं।" प्रज्ञा ने इस जुल्म के लिए एटीएस प्रमुख हेमंत करकरे को असली खलनायक बताते हुए उन पर कई-कई आरोप लगाये। वे यहां तक कह गयीं कि करकरे की मौत उनके श्राप के कारण हुई थी।
यह भी सच है कि प्रज्ञा बचपन से लडाकू प्रवृत्ति की रही हैं। पढाई के दौरान ही प्रज्ञा विद्यार्थी परिषद से जुड चुकी थीं। एक बार उन्हें किसी ने बताया कि भिंड जिले के कस्बे लहर में सरकारी अस्पताल की बहुत बुरी हालत है। वहां पर मरीजों के इलाज के लिए न पर्याप्त  डॉक्टर हैं और न ही साफ-सफाई की व्यवस्था है। मरीज वहां जाते हैं, लेकिन निराश वापस लौट जाते हैं। कोई उनकी सुनने वाला ही नहीं है। प्रज्ञा ने फौरन अपनी दसेक सहेलियों को इकट्ठा किया और अस्पताल के सामने धरना देकर बैठ गईं और तब तक डटीं रहीं जब तक डॉक्टर नहीं आए और व्यवस्था दुरुस्त नहीं की गई। भिंड के लोग आज भी प्रज्ञा के नेतृत्व में हुए उस आंदोलन को याद कर गर्वित होते हैं, जिसमें केवल लडकियां शामिल थीं। प्रज्ञा को जब कहीं से खबर मिलती कि किसी गुंडे-बदमाश ने उनकी सहेली या किसी भी लडकी को छेडा अथवा तंग किया है तो वह शेरनी की तरह उस पर झपट पडतीं। स्कूल और कॉलेज वाला जोश आज भी प्रज्ञा में बरकरार है। हां वे जोश के अतिरेक में होश भी खो बैठती हैं। कहां क्या कहना है इसका ध्यान नहीं रख पातीं। लगता है यह बीमारी तो हर उस साधु और साध्वी को है जो राजनीति में हैं, या आने को इच्छुक हैं। माना कि लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की आजादी है, लेकिन इन बाबा और बाबियों (साध्वियों) को सीमाएं लांघने में ज़रा भी संकोच क्यों नहीं होता? साक्षी महाराज ने मतदाताओं को धमकी दी थी कि संन्यासी को वोट नहीं दोगे तो पाप लगेगा। प्रज्ञा तो उनसे भी सौ कदम आगे निकल गईं। उनका यह दावा है कि मैंने ही मुंबई एटीएस के प्रमुख रहे हेमंत करकरे को श्राप दिया था कि तेरा सर्वनाश होगा। यह तो देश के सच्चे सपूत की शहादत का अक्षम्य अपराध है जो उस नारी ने किया है जो लोकतंत्र के सबसे बडे मंदिर संसद भवन में सांसद के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाने को लालायित है। ध्यान रहे कि २६ नवंबर २००८ को मुंबई पर हुए आतंकी हमले के दौरान तत्कालीन मुंबई एटीएस प्रमुख हेमंत करकरे के अलावा एसीपी अशोक कामटे, एनकाउंटर विशेषज्ञ विजय सालस्कर सहित १७ पुलिस कर्मी शहीद हुए थे। उस दिन पाकिस्तानी आतंकियों की गोलीबारी से कुल १६६ लोग मारे गये थे। कालांतर में उनकी पत्नी कविता करकरे की ब्रेन हेमरेज के कारण मौत हो गई। बच्चे भी अपना घर छोडकर अपने चाचा के यहां रहने चले गए। साध्वी की करकरे को लेकर की गई विषैली और शर्मनाक शब्दावली से भोपाल निवासी करकरे की बहन एवं अन्य परिजन काफी आहत और गमगीन हैं। चुनावी लडाई को 'धर्मयुद्ध' मान चुकीं साध्वी दिग्विजय सिंह  की भी कट्टर विरोधी हैं। वे उनकी शक्ल तक देखना पसंद नहीं करतीं। हिन्दू आतंकवाद का मुद्दा जोर-शोर से उठाने वाले इस कांग्रेस के पुराने नेता के प्रति एक साध्वी में ऐसी कटुता और द्वेष का होना यकीनन चिंतित करता है। अपने देश की राजनीति में विरोधियों का भी आदर-सम्मान करने की अनुकरणीय परंपरा रही है। अभी हाल ही में जब पूर्व विदेश राज्यमंत्री व कांग्रेस के नेता शशि थरूर अस्पताल में भर्ती थे तब रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने वहां जाकर उनका हाल जाना और शीघ्र स्वस्थ होने की मनोकामना की। ध्यान रहे कि शशि थरूर को भाजपा का घोर विरोधी नेता माना जाता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना करने का भी वे कोई मौका नहीं छोडते।

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