Thursday, June 20, 2019

कौन किसके साथ?

मालगाडी के डिब्बे पटरी से उतर गये थे। एक न्यूज चैनल के पत्रकार अमित शर्मा इस घटना को कवरेज कर रहे थे। तभी जीआरपी यानी रेलवे पुलिस के कुछ कर्मी वहां पहुंचे और उन्हें लात-घूसों से पीटने लगे। जब उनके साथी पत्रकार ने खाकी वर्दी वाले गुंडों को रोका तो उन पर भी डंडों की बरसात कर दी गयी। यह डंडेबाज नशे में धुत थे। उन्होंने पत्रकार का मोबाइल छीनकर तोड दिया। जेब में रखे लगभग तीन हजार रुपये और घडी भी छीन ली। यही नहीं उसके मुंह में पेशाब कर हवालात में डाल दिया। बर्बरता से की गई इस पिटायी का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होते ही पूरे देश में खाकी की गुंडागर्दी की चर्चाएं होने लगीं। अपने यहां की पुलिस में कुछ अपराधी भी घुसपैठ कर चुके हैं, जिनकी वजह से बार-बार खाकी को कटघरे में खडा होना पडता है। कई पुलिस वालों के संगीन अपराधों में लिप्त होने के अनेकों उदाहरण हैं। इसी वजह से अपराध बढ रहे हैं और वर्दी लाचार नजर आती है। यह हकीकत भी हर सजग भारतीय को परेशान किये है कि पुलिस के अधिकांश उच्च अधिकारी सत्ताधीशों के हाथों की कठपुतली बन कर रह गये हैं। राजनेता और शासक उन्हें जैसे नचाते हैं, वे वैसे ही नाचते और तांडव मचाते हैं। उत्तरप्रदेश के शामली में हुए इस कांड से ऐन पहले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बारे में एक ट्वीट पर पत्रकार प्रशांत को प्रदेश की पुलिस ने जेल भेजने में जैसी फुर्ती दिखायी वैसी आम जनता की सुरक्षा के मामले में बहुत कम दिखती है। पत्रकार कनौजिया ने कोई डाका, बलात्कार या लूटमारी नहीं की थी, उन्होंने तो बस किसी महिला के उस वीडियो को ट्वीट कर दिया था, जिसमें महिला ने दावा किया था कि उसने योगी को शादी का प्रस्ताव भेजा है। इस तरह के ट्वीट सोशल मीडिया पर धडल्ले से वायरल होते रहते हैं।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर शरीफों की पगडी उछालने की मनमानी भी चलती रहती है। सोशल मीडिया पर फर्जी खबरों की बरसात कर कई संदिग्ध प्राणी अब पत्रकार भी कहलाने लगे हैं। पत्रकार प्रशांत के द्वारा किये गए ट्वीट का जुडाव यदि प्रदेश के मुख्यमंत्री से नहीं होता तो इसकी कहीं चर्चा भी नहीं होती। कहा गया कि इससे उत्तरप्रदेश के भगवाधारी मुख्यमंत्री की छवि को नुकसान पहुंचाने की साजिश की गई है। सारी दुनिया जानती है कि मुख्यमंत्री योगी  आदित्यनाथ ब्रम्हचारी हैं। संन्यासी हैं। ऐसे महापुरुष का किसी नारी से क्या लेना-देना। किसी प्रचार की भूखी अज्ञानी महिला ने अनाप-शनाप बकवास की, जिसे उन लोगों ने खबर बना दिया, जिन्हें लोकतंत्र के चौथे खंभे का सजग प्रहरी माना जाता है। सच्चे पत्रकार तो पहले पता लगाते हैं कि सच क्या है। ऐसे विवेकहीन, जल्दबाजी करने वाले पत्रकारों के कारण पत्रकारिता भी बदनाम हो रही है। कनौजिया की गिरफ्तारी के बाद न्यूज चैनलों पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और असली और नकली पत्रकारों को लेकर युद्ध छिड गया। विभिन्न अखबारों और न्यूज चैनलों के संपादक, बुद्धिजीवी आदि-आदि  आपस में ही उलझने लगे। सभी विद्वानों ने काफी माथापच्ची की। ऐसी माथापच्ची तब भी हुई थी जब चुनाव के दौरान प्रियंका नाम की युवती ने पं. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का एक मीम सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया था, जिसे उनकी फोटो के साथ छेडछाड कर बनाया गया था। प्रियंका को प.बंगाल की पुलिस ने गिरफ्तार कर जेल में डालने की अभूतपूर्व फुर्ती दिखायी थी। मामले ने राजनीतिक रंग ले लिया था। इस मामले में भी सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद प्रियंका को जेल से रिहा कर दिया गया था। इस गिरफ्तारी ने सत्ता और राजनीति का असली चेहरा भी दिखाया था। वोटों की खातिर अपने विरोधियों का अपमान करने का कोई भी मौका नहीं छोडने वाली ममता, जो शेरनी कहलाती हैं वह एक मीम यानी कार्टून से बौखला उठीं और अपनी पुलिस को एक महिला को ही गिरफ्तार करने का आदेश दे डाला। जैसे वह महिला कोई खतरनाक आतंकवादी हो। प्रदेश को उससे बहुत बडा खतरा हो।
उत्तरप्रदेश के शामली में पत्रकार की निर्वस्त्र कर की पिटायी और मुंह में पेशाब करने की शर्मनाक घटना के बाद भी पत्रकारों की बिरादरी में कहीं कोई हंगामा नहीं हुआ। जनता में भी चुप्पी बनी रही। सभी ने यह माना कि ऐसा तो होता ही रहता है। इस बार भी हुआ तो हुआ। देश का हर सजग नागरिक यह भी जान चुका है कि निर्भीक और ईमानदार पत्रकार ऐसी तमाम गुंडागर्दियों के शिकार होने को अभिशप्त हैं। यह भी सच्चाई है कि जो पत्रकार सत्ता और व्यवस्था को साध कर चलते हैं उन पर कभी भी इस तरह कोई खतरा नहीं मंडराता। बडे अखबारों और नामी न्यूज चैनलों के पत्रकार ऐसी पुलिसिया बदमाशी के कभी शिकार होते नहीं देखे जाते। बिजली तो छोटे पत्रकारों पर गिरायी जाती है और उनका साथ देने के लिए उनकी बिरादरी के लोग भी सामने आने में झिझकते हैं। दरअसल पत्रकारों में विभाजन हो चुका है। एक तरफ तथाकथित बडे पत्रकार, संपादक हैं, जिनके अपने गिरोह बने हुए हैं। इनका खबरों से नाता कम रहता है। यह तो हर वक्त सत्ता से करीबियां बनाने में लगे रहते हैं। राजनेताओं की चाटूकारिता और दलाली करते-करते इन्होंने वो सभी सुख-सुविधाएं हासिल कर ली हैं, जो मेहनतकश करोडपतियों को भी मुश्किल से हासिल होती हैं। देश के हर नगर, महानगर में ऐसे पत्रकारों, संपादकों की दुकानदारी चल रही है। यह लोग अभ्यस्त घोटालेबाजों, भ्रष्टाचारी मंत्रियों, सांसदों के स्वागत के लिए हवाई अड्डों पर सबसे पहले पहुंचते हैं। बडी आन-बान और शान के साथ उनके बंगलों पर गुलदस्ते लेकर जाते हैं, जिनमें खास तौर पर एक पर्ची लगी होती है, जिस पर लिखा होता है, "आप घबरायें नहीं, हम आपके साथ हैं।" खाकी भी इन बिकाऊ पत्रकारों को सलाम करती है। अधिकांश राजनेता और शासक कतई नहीं चाहते कि पत्रकार सच के साथी बन उनकी आलोचना करें। जो पत्रकार उनके अनुकूल नहीं चलते, समझौते नहीं करते उन्हें शासन और विकास विरोधी बताकर तरह-तरह से अपमानित और प्रताडित करने का चलन अब किसी से छिपा नहीं...।

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