Thursday, June 6, 2019

रोष में रघु, होश में रघु

चित्र - १ : नेताजी दूसरी बार लोकसभा चुनाव में विजयी हुए। इस बार जीत का हार पहनने के लिए उन्हें ऐसे-ऐसे पापड बेलने पडे, जिसकी उन्होंने कल्पना ही नहीं की थी। उन्हें धूल चटाने के लिए सभी विरोधी दल एकजुट हो गये थे। उनका एक ही मकसद था कि नेताजी किसी भी हालत में सांसद न बन पाएं, लेकिन पिछले चुनाव की तरह इस बार भी धनबल ने अंतत: अपना चमत्कार दिखा ही दिया। उनकी हजारों कार्यकर्ताओं की भीड ने भी कम दम नहीं लगाया। नेताजी ने अपने सभी कार्यकर्ताओं को उनकी हैसियत के अनुसार थैलियां थमाने में भरपूर दरियादिली दिखायी। इन कार्यकर्ताओं में विधायक और पार्षद भी शामिल थे, जिन्हें आगामी महानगर पालिका और विधानसभा के चुनाव में टिकट देने का आश्वासन देकर अपने खूंटे से ऐसे बांधा गया था, जैसे बैल और बकरी के सामने चारा डालकर उन्हें इधर-उधर न ताकने के लिए मजबूर कर दिया जाता है। नेताजी की चुनावी जीत का जश्न चार दिन पहले मनाया जा चुका था। आज उनके केंद्रीय मंत्री बनने पर गुलदस्तों और मिठाई के डिब्बों के साथ कार्यकर्ताओं और तरह-तरह के लोगों का हुजूम कोठी को खचाखच कर चुका था। कुछ अति उत्साही कार्यकर्ता कई एकडों में फैली कोठी की बाउंड्रीवॉल पर चढकर नेताजी के नाम का जयकारा लगा रहे थे। नेताजी के सुरक्षाकर्मी भीड को संयमित होने का पाठ पढा रहे थे, लेकिन जीत का जोश उन्हें बेकाबू और बेचैन किये था। भीड को बार-बार यह भी बताया जा रहा था कि नेता जी आज सुबह ही मंत्री पद की शपथ लेकर दिल्ली से लौटे हैं। उन्हें तैयार होकर आने में कम अज़ कम दो घण्टे लग सकते हैं। मस्तायी भीड के लिए दो घण्टे दो मिनट समान थे। उसे इन्तजार करने और नारे लगाने की जन्मजात आदत थी। जैसे-जैसे समय बीत रहा था, भीड को संभालना मुश्किल होता चला जा रहा था। शहर के जाने-माने-उद्योगपति, व्यापारी, ठेकेदार और अखबारों और न्यूज चैनलों के वो संपादक और मालिक, जिन्होंने नेता जी के आरती गान की सभी पराकाष्ठाओं को लांघ कर पत्रकारिता और चापलूसी के अंतर की निर्ममता से हत्या कर दी थी, गुलदस्तों और हारों के साथ पहुंच चुके थे। कुछ तो पांच सौ और दो हजार के नोटों के हार भी लाये थे। उन्हें नेताजी के निजी कमरे में शोभायमान कर दिया गया था। उनके लिए किशमिश, काजू-बादाम के साथ-साथ तरह-तरह के पेय पदार्थों की भी व्यवस्था थी।
नेताजी की एक झलक पाने को लालायित भीड का साम्राज्य कोठी के सामने की मुख्य सडक पर भी अपना कब्जा जमाने लगा था। इस भीड में पसीने से तरबतर रघु भी खडा था। उसके हाथ में एक बडा गुलदस्ता था। नेताजी के जीतने की खुशी में मनाये गये जश्न की भीड में भी रघु शामिल हुआ था, लेकिन लाख कोशिशों के बाद भी उसका नेताजी के निकट जाना संभव नहीं हो पाया था। रघु रिक्शा वाला उस दिन तो खुशी से फूला नहीं समाया था, जब उसकी जर्जर झोपडी में नेताजी के चरण पडे थे। उनके साथ क्षेत्र के पार्षद तथा कई और पार्टी कार्यकर्ता थे, जिन्हें रघु अच्छी तरह से पहचानता था। पार्षद ने रघु की तारीफ करते हुए नेताजी को बताया था कि यह बंदा बडे काम का है। झोपडपट्टी के सभी लोग इसी के इशारे पर चलते हैं। यह जिसे वोट देने को कहेगा उसी को उनके वोट मिलेंगे। नेताजी के चेहरे पर चमक आ गई थी। उन्होंने झट से रघु से हाथ मिलाया था। पीठ भी थपथपायी थी। उनके साथ आये एक कार्यकर्ता ने चुपके से पांच-पांच सौ के दस नोट उसकी तरफ बढाये थे, जिन्हें रघु ने यह कहते हुए लेने से इन्कार कर दिया था कि मैंने कभी भी अपना वोट नहीं बेचा। वोट बेचने वालों से मैं नफरत करता हूं। नेताजी उसका चेहरा देखते रह गये थे। उन्होंने जाते-जाते कहा था कि तुम्हारे जैसे ईमानदार वोटरों की बदौलत ही मैंने पिछला चुनाव जीता था। इस बार भी कोई माई का लाल मुझे हरा नहीं सकता। पिछली बार की तरह इस बार भी मेरा मंत्री बनना तय है। चुनाव का परिणाम आने के पश्चात तुम मुझसे जरूर मिलना। तुम सभी झोपडपट्टी के निवासियों के लिए शीघ्र ही पक्के घरों की व्यवस्था करवा दूंगा।
गर्मी की तपन बढती जा रही थी। रघु का दम घुटने लगा था। उसके कपडे पसीने से गीले होकर उसके बदन से चिपक गये थे। एकाएक रघु पर उसी की झोपडपट्टी में रहने वाले विद्रोही नामक पत्रकार की नजर पडी तो उसने रघु पर सवाल दागा कि क्या तुम भी नेताजी को उनका वादा याद दिलाने आये हो? रघु हैरान होकर पत्रकार को देखता रह गया। फिर पत्रकार ने बताया कि वोट हथियाने के लिए मतदाताओं से तरह-तरह के वादे करना और मनमोहक प्रलोभनों के जाल फेंकना तो नेताजी का पुराना पेशा है। वोटरों को बेवकूफ बनाने की इसी कला की बदौलत ही तो आज वे सत्ता की बुलंदियों पर हैं। इस भीड में तुम जैसे हजारों लोग शामिल हैं जो नेताजी से मिलने की आस में पहुंचे हैं। चुनाव जीतने के बाद नेताजी को अपने खास लोगों के काम करवाने और उन्हें मालामाल करने से कभी फुर्सत नहीं मिलती। ऐसे में वे तुम जैसे आम लोगों से क्या खाक मिलेंगे! रघु पत्रकार का चेहरा देख रहा था और पत्रकार खिलखिला रहा था। रघु ने विद्रोही की निष्पक्ष और निर्भीक पत्रकारिता के कई किस्से सुने थे। यह भी सुना था कि शहर का यह पत्रकार दूसरे पत्रकारों की तरह नेताओं और मंत्रियों के दरबार में माथा टेकने की बजाय उनकी पोल खोलने के अभियान में लगा रहता है। उनकी बातचीत चल ही रही थी कि वहां पर पुलिस वाले भीड को खदेडने लगे। नेताजी अपने खास लोगों से मेल-मुलाकात करने के बाद सुरक्षाकर्मियों के घेरे में कोठी से निकले और अपनी चमचमाती कार में बैठकर फुर्र हो गये। रघु को बडा गुस्सा आया। उसने गुलदस्ते को तोडा-मरोडा और वहीं सडक पर फेंक दिया।  यह देश के नब्बे प्रतिशत से अधिक नगरों, महानगरों और वहां के सांसदों की कडवी हकीकत है इसलिए किसी एक शहर और नेता का नाम लिखना बेमानी है।
चित्र - २ :  कहते हैं हिन्दुस्तान चमत्कारों का देश है। यकीनन यह चमत्कार ही है कि ओडिसा के बालासोर लोकसभा क्षेत्र से एक एकदम आम शख्स ने लगभग एक भी पैसा खर्च किए बिना चुनाव लडा और करोडपति को मात दे दी। इस आम... महान शख्स का नाम है प्रतापचंद्र सारंगी। पैदल या साइकिल पर चलने वाले ६४ वर्षीय सारंगी संन्यासियों की तरह जीवन जीते हैं। ओडिशा के मोदी कहलाते हैं। पिछले पच्चीस वर्षों से भुवनेश्वर से एक छोटा-सा साप्ताहिक समाचार पत्र प्रकाशित करते चले आ रहे रघु राय तो सारंगी के दिवाने हैं। उनकी निगाहें हमेशा सारंगी का पीछा करती रहती हैं। अच्छा करने पर तारीफ तो गलत करने पर उनकी खिंचाई करने से कभी नहीं चूकते। सारंगी की बेमिसाल सादगी को प्रणाम करते हुए वे सवाल करते हैं कि आप ही बतायें कि अपने देश में कितने ऐसे नेता, विधायक, सांसद, मंत्री हैं, जो आपको शहर और गांवों की सडकों पर पैदल चलते नजर आते हों। बस स्टैंड और रेलवे स्टेशन पर आम आदमी की तरह बस और रेल का इंतजार करते हों और किसी झोपडीनुमा होटल में बडे मजे से खाना खाने में कतई न सकुचाते हों। रघु का मानना है कि यदि देश के सभी नेता सारंगी जैसे हों तो इस देश की तस्वीर को बदलने में ज़रा भी समय नहीं लगेगा। सारंगी दो बार विधायक भी रह चुके हैं, लेकिन आज भी मिट्टी और बांस के घर में रहते हैं, जिसके दरवाजे चौबीस घण्टे जनता जनार्दन के लिए खुले रहते हैं। आदिवासी क्षेत्रों में कई स्कूल और अस्पताल बनवा चुके सारंगी के लिए राजनीति सिर्फ और सिर्फ जनसेवा का माध्यम है। लोकसभा चुनाव जीतकर जब वे संसद भवन पहुंचे तो हर कोई उनसे मिलने को उत्सुक था। यह उनके सच्चे जननेता होने का पुरस्कार ही है कि पहली बार सांसद बनने के बावजूद उन्हें मोदी मंत्रिमंडल में जगह दी गयी। सबसे ज्यादा तालियां भी उनके द्वारा मंत्रीपद की शपथ लेने पर बजीं।

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