Thursday, September 19, 2019

छोटी-सी भूल

नया मोटर वाहन अधिनियम लागू होने के बाद अधिकांश भारतवासी सजग हो गये हैं। सडक हादसों में भी निश्चित तौर पर कमी आई है। यातायात नियमों का उल्लंघन करने वालों से भारी जुर्माना वसूले जाने से अब वे लोग भी लाइसेंस और पॉल्यूशन पेपर आदि बनवाने के लिए कतारों में लगे नजर आने लगे हैं, जो वर्षों में ट्रैफिक पुलिस की आंखों में धूल झोंककर या उनकी मुट्ठी गर्म कर यातायात नियमों की धज्जियां उडा रहे थे। आरटीओ कार्यालयों में लगी भीड से सहज ही इस हकीकत को जाना और समझा जा सकता है कि कडे कानून का नागरिकों पर कैसा असर प‹डता है। भारी-भरकम चालान की राशि ने कईयों की आंखें खोल दी हैं। उनकी समझ में यह भी आ गया है कि यातायात के सभी नियम उन्हीं की सुरक्षा और फायदे के लिए हैं। केंद्रीय सडक परिवहन मंत्री की इस बात से हर जागरूक भारतीय सहमत है कि मोटर वाहन अधिनियम-२०१९ में बढा जुर्माना सरकार का खजाना भरने के लिए नहीं, बल्कि भारत की सडकों को अधिक से अधिक सुरक्षित बनाने के लिए है। इस पर किसी को कोई आपत्ति नहीं कि सडकों पर ट्रैफिक नियम तोडने वालों को इतनी कडी सजा तो मिलनी ही चाहिए कि वे दोबारा ऐसा करने की हिम्मत ही न कर पाएं। ट्रैफिक पुलिस वालों को भी सुधारना और उन पर भी अंकुश लगाना जरूरी है। कई वर्दीधारी खुद ट्रैफिक नियमों का पालन करते नजर नहीं आते। उनकी रिश्वत लेने की आदत  भी जस-की-तस बनी हुई हैं। उनके अमानवीय व्यवहार के कारण वाहन चालकों में बेहद असंतोष है। मारपीट की खबरें सुर्खियां पा रही हैं। कहीं आक्रोशित नागरिक वर्दी वालों की पिटायी कर रहे हैं तो कहीं नागरिक पिट रहे हैं। कहीं-कहीं तो पुलिसिया गुंडागर्दी अपनी सभी सीमाएं पार कर हत्यारी बनती दिखायी दे रही है।
दिल्ली के निकट स्थित नोएडा में वाहन चेकिंग के दौरान पुलिस वालों की दादागिरी ने एक युवक की जान ही ले ली। एक सॉफ्टवेयर कंपनी में काम करने वाले शताब्दी विहार निवासी गौरव अपने माता-पिता के साथ कार से जा रहे थे। उनके साथ आगे की सीट पर उनके पिता बैठे थे। दोनों ने सीट बेल्ट लगा रखी थी। सेक्टर-६२ के अंडरपास से निकलते ही तीन-चार ट्रैफिक पुलिस वालों ने रुकने को कहा। गौरव कार रोक ही रहे थे कि उन्होंने एकाएक कार पर ऐसे डंडे मारने शुरू कर दिये जैसे गौरव कोई ऐसे अपराधी हों, जिसकी पुलिस को वर्षों से तलाश रही हो। गौरव ने गाडी से उतर कर इस अभद्र व्यवहार का कारण पूछा तो पुलिस वाले और उग्र हो गये और जोर-जोर से अभद्र भाषा का इस्तेमाल करने लगे। वर्दी वालों की गुंडई का तमाशा देखने के लिए भीड भी इकठ्ठी हो गई। अनुशासित और शालीन गौरव ने ऐसा घटिया मंजर कभी नहीं देखा था। कभी भी ऊंची आवाज में नहीं बोलने वाले गौरव को इसी दौरान दिल का दौरा पडा और उनकी मौत हो गई। गौरव की मौत के बाद पुलिस अधिकारी तरह-तरह के भ्रामक बयान देते रहे। गौरव के पिता का कहना है कि गौरव को किसी तरह की कोई बीमारी नहीं थी। वह पूरी तरह से भला-चंगा था। पुलिसवालों की गंदी जुबान और हिटलरशाही की वजह से मेरी आंखों के सामने सबकुछ लुट गया और मैं कुछ न कर सका।
इस जरूरी सच को कभी भी विस्मृत न करें कि यातायात नियमों का गंभीरता से पालन करना हमारी अपनी जिन्दगी के लिए निहायत जरूरी है। पुलिस के डर और जुर्माने से बचने के कारण जो लोग सुरक्षा के प्रति सचेत रहने का नाटक करते हैं उन्हें भी अपनी सोच और तौर तरीके बदलने होंगे। अक्सर देखा गया है कि छोटी-सी भूल और लापरवाही की कीमत उम्रभर चुकानी पडती है। पछतावा कभी भी पीछा नहीं छोडता। अपनी संतानों को सडक नियमों के पालन के लिए प्रेरित करना माता-पिता की जिम्मेदारी भी है, कर्तव्य भी। जो मां-बाप अपने कम उम्र के बच्चों को कार और बाइक थमा देते हैं उन्हें भी सचेत हो जाना चाहिए। छोटी सी भूल की बहुत बडी कीमत चुकानी पड सकती है।
उत्तर प्रदेश के शहर रामपुर के निवासी मकसूद ने अपने १४ साल के बेटे को बडी उमंग के साथ एक महंगी बाइक खरीद कर दी थी। २७ नवंबर २०१४ के दिन उनका बेटा मारूफ सडक पर बडी तेजी से बाइक दौडा रहा था। इसी दौरान बाइक फिसल गई। मारूफ का सिर डिवाइडर से जोर से टकराया। सिरपर काफी गंभीर चोटें आई और बेहोश हो गया। तब उसने न तो सिर पर हेलमेट लगा रखा था और न ही उसे यातायात नियमों की जानकारी थी। पुत्र मोह में अंधे हुए पिता ने भी अपने लाडले बेटे को हेलमेट लगाने की हिदायत देना जरूरी नहीं समझा था। कुछ जागरूक शहरियों ने लहुलूहान मारूफ को अस्पताल पहुंचाया। डॉक्टरों की सलाह पर उसे दिल्ली के फोर्टिस अस्पताल में ले जाया गया। जहां पर ७० दिन तक आइसीयू में रहने के बाद भी उसे होश नहीं आया। मारूफ पांच साल से बिस्तर पर है। न कुछ बोल सकता है और न ही हिल-डुल सकता है। मां रुखसाना और पिता मकसूद अपने बच्चे की दयनीय हालत को देखकर दिन-रात आंसू बहाते रहते हैं। विभिन्न अस्पतालों में इलाज करवाया जा चुका है। दो करोड रुपये खर्च हो चुके हैं फिर भी उनका बेटा कोमा में है। उन्हें उम्मीद है कि एक-न-एक दिन कोई चमत्कार होगा, जिससे उनके बेटे को होश आएगा। मारूफ का जब एक्सीडेंट हुआ था तब उसका चेहरा साफ था, लेकिन अब दाडी-मूंछ भी निकल आई है। उसके पिता को इस बात का बहुत अफसोस है कि उनकी भूल की वजह से उनका बेटा इतनी बडी सजा भुगत रहा है। उन्होंने महज १४ वर्ष के पुत्र को बाइक खरीद कर नहीं दी होती, इतनी कम उम्र में उसे चलाने की अनुमति नहीं दी होती तो यह नौबत ही नहीं आती। उन्हें इस बात का भी बेहद मलाल है कि बेटा अगर हेलमेट लगाए होता तो उसके सिर में इतनी गहरी चोट नहीं लगती। पिता मकसूद अब दूसरों को बार-बार नसीहत देते हैं कि बच्चों की जिद के आगे कभी न झुकें। उन्हें किसी भी हालत में बाइक खरीदकर न दें। कम उम्र के बच्चों को वाहन न चलाने दें। हेलमेट, सीट बेल्ट का इस्तेमाल अवश्य करें और हर यातायात नियमों का पूरी तरह से पालन करें।

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