Thursday, September 5, 2019

परवरिश

कैंसर आज भी दहशत का पर्याय है। जिस पर भी इस बीमारी की छाया पडती है उसके होश उड जाते हैं। मजबूत से मजबूत इंसान की आंखों के सामने अंधेरा छाने लगता है। इस दुनिया से विदाई के ख्याल मात्र से हौसले डगमगाने लगते हैं। जो बीमारी अच्छा-खासा जीवन जी चुके इंसानों को भयभीत कर देती है और उनके परिजन निरंतर चिंतित और घबराये रहते हैं तो ऐसे में सोचिए उस परिवार पर क्या गुजर रही होगी, जिनकी मात्र तीन साल की बच्ची इस जानलेवा बीमारी का शिकार हो गई है। हालांकि इसमें उनकी ही घोर लापरवाही और बहुत बडी गलती है। इतनी कम उम्र की बच्ची को कैंसर की बीमारी होने से डॉक्टर भी स्तब्ध रह गये हैं। पहले तो उन्हें यकीन ही नहीं हो रहा था। मासूम को कैंसर होने की वजह ने भी डॉक्टरों को हक्का-बक्का कर दिया। परिजनों की काउंसलिंग पर यह सच सामने आया है कि बच्ची को मात्र डेढ साल की उम्र में पान मसाला खाने की आदत लग गई थी। इसी वजह से उसे कैंसर हो गया है। रीना नाम की इस बच्ची के माता-पिता और परिवार के अन्य सदस्य विभिन्न पान मसाले खाने के आदी हैं। बच्ची अक्सर उन्हें जब यह शौक फरमाते देखती तो उसका मन भी ललचाने लगता। तरह-तरह के पान मसाले और सुपारी घर के हॉल में ही रखी रहती थी। मासूम रीना ने किस दिन से पान मसाला और सुपारी खानी शुरू की इसका सटीक पता तो घर वालों को नहीं लग पाया, लेकिन कुछ ही दिनों में वह इसकी इतनी आदी हो गई कि सुबह, दोपहर, शाम बस पान मसाला ही उसके मुंह में रहता। मां-बाप ने प्रारंभ में इसे गंभीरता से नहीं लिया, लेकिन जब उसने दूध पीना और खाना-खाना बंद कर दिया तो वे चौकन्ने हो गये, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। चिडिया खेत चुग चुकी थी। तीन साल की रीना का मुंह खुलना ही बंद हो गया था। माता-पिता ने कुछ दिन तक इधर-उधर के डॉक्टरों को दिखाया। झाड-फूंक भी करवाई पर बच्ची की हालत में ज़रा भी सुधार नहीं आया। आखिरकार उसे दिल्ली के मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया, जहां उसकी हालत धीरे-धीरे सुधर रही है। अस्पताल के डॉक्टर लापरवाह नशेडी मां-बाप पर बेहद आक्रोषित हैं। बच्ची की दयनीय हालत देखते ही उन्होंने जमकर लताड लगायी। उन्हीं की अनदेखी और बेवकूफी की वजह से महज तीन वर्ष की मासूम को कैंसर जैसी भयानक बीमारी का शिकार होना पडा। ये अक्ल के अंधे एक तो वे बच्ची के सामने ही नशा करते थे, तो दूसरे नशे के सामान को घर की खिडकी और हॉल में ही रख देते थे। उनकी गंदी आदत ने बच्ची के दिमाग में ऐसी पैठ जमायी कि वह खाना-पीना भूल पान मसाला की गुलाम होती चली गई!
पंजाब में हजारों लोग नशे के गर्त में समा चुके हैं। शराब और ड्रग्स ने कितने किशोरों और युवकों को उपहार में मौत दी है, इसका सही आकडा उपलब्ध नहीं है। फिर भी इनकी संख्या भी हजारों में है। नशे के असंख्य अतिबाजों के कारण ही पंजाब देश और दुनिया में बदनाम है। इसी पंजाब में अब तो महिलाएं भी नशे की गिरफ्त में फंसती चली जा रही हैं। अमृतसर के एक परिवार को तो अपनी २४ वर्षीय बेटी को नशे से दूर रखने के लिए जंजीरों में बांधकर रखने को मजबूर होना पडा है। यह नशेडी युवती शराब और ड्रग्स खरीदने के लिए अपने घर का कीमती सामान कौडियों में बेच देती है। घरवाले यदि कभी उसे जंजीरों से मुक्त करते हैं तो वह घर का सामान बेच कर नशा करने में देरी नहीं लगाती। परिवार ने सरकार के समक्ष गुहार लगाई है कि उनकी इकलौती बेटी को नशे की आदतों से छुटकारा दिलवाने में सहायता दी जाए। यह भी जान लें कि युवती वर्षों से नशा करती चली आ रही है। यदि मां-बाप उसे अच्छी परवरिश देते, प्रारंभ में ही सतर्क रहते तो उन्हें यह दिन नहीं देखने पडते।
इंसान की पहली पाठशाला घर होता है, जिसमें शिक्षक होते हैं माता-पिता और करीबी रिश्तेदार। यहीं से उसे जो संस्कार मिलते हैं, उन्हीं का असर जीवनपर्यंत बना रहता है। 'कौन बनेगा करोडपति' के ११वें सीजन में साढे बारह लाख रुपये जीतने वाली २९ वर्षीय दिव्यांग नुपुर लडखडाते कदमों से जब हॉट सीट की ओर बढ रही थी तब सभी के मन में उसके प्रति सहानुभूति और दया का भाव था, लेकिन उसके चेहरे पर विराजमान आत्मबल, धैर्य और स्वाभिमान की चमक यह कह रही थी कि मुझे किसी की दया की जरूरत नहीं है। मैं अपनी लडाई खुद लडने में सक्षम हूं। सदी के महानायक अमिताभ बच्चन के सामने हॉट सीट पर बैठकर नुपुर ने जिस आत्मविश्वास के साथ अपने अतीत का सच साझा किया वह कम डरावना नहीं था। जब उसका जन्म हुआ तब उसकी सांसें नहीं चल रही थीं। डॉक्टरों ने उसे मृत मान कचरे के डिब्बे में डाल दिया था। वहां पर मौजूद उसकी नानी ने डॉक्टर से नवजात को कचरे से उठाकर साफ-सफाई कर परिवार को सौंपने का निवेदन किया। डॉक्टर ने नवजात बच्ची को उठाकर बडे बेमन से उसके जिस्म की सफाई की तो नानी ने बच्ची के मृत होने के डॉक्टरों के यकीन को जांचने के लिए बच्ची के गाल पर थप्पडें मारीं तो वह जोर-जोर से रोने लगी। उसका यह रोना लगातार बारह घण्टे तक जारी रहा। डॉक्टर शर्मसार होकर रह गये। बच्ची के मां-बाप उसे घर ले आये। उन्होंने काफी सावधानी से उसकी देखभाल की। जन्म के छह माह बाद माता-पिता को बेटी के दिव्यांग होने का पता चला। उसका आधा शरीर लकवाग्रस्त था। यह सब डॉक्टरों की घोर लापरवाही की वजह से हुआ था। कई अनुभवी डॉक्टरों से इलाज के बावजूद बच्ची ठीक नहीं हो पायी। नुपुर को उसके माता-पिता ने बचपन से ही लाचारी को खुद पर कभी भी हावी नहीं होने की सीख दी। किसान की इस बेटी को भी अपने असहाय होने का जैसे-जैसे अहसास होता चला गया, उसकी इच्छाशक्ति बढती चली गई। उसकी पढने की ललक को देखकर उसे कान्वेंट स्कूल में प्रवेश दिलाया गया। स्कूल और कॉलेज में वह सभी की चहेती थी। स्नातक होने के बाद नुपुर बच्चों को घर में पढाने लगी। खुद शिक्षित होने के बाद अपने जैसे बच्चों को शिक्षित और समर्थ बनाने के लिए शिक्षादान में जुटी नुपुर कहती हैं कि खुद को कभी कमजोर मत होने दो, सूरज को डूबते देखकर लोग दरवाजा बंद करने लगते हैं। लडखडाते कदमों से कामयाबी का सफर तय करने वाली इस आत्मस्वाभिमानी बेटी ने न कभी बैसाखी का सहारा लिया और न ही ट्राई साइकिल का। उसे दया और सहानुभूति दिखाने वाले लोग नापसंद हैं। उसकी अपार प्रतिभा, सकारात्मक सोच और फौलादी संकल्प का ही कमाल है कि वह उस 'कौन बनेगा करोडपति' कार्यक्रम के लिए चुनी गई, जिसमें भाग लेना कोई बच्चों का खेल नहीं है। वहां तक पहुंचने में ही बडे-बडे विद्वानों तक के पसीने छूट जाते हैं। दुबली-पतली उन्नतीस वर्ष की होने के बावजूद बारह-तेरह साल की बच्ची-सी दिखने वाली दिव्यांग नुपुर ने न सिर्फ इस कार्यक्रम में भाग लिया बल्कि अच्छी-खासी रकम भी जीतकर दिखा दिया है कि अच्छी परवरिश और बुलंद इरादे बडी से बडी शारीरिक कमजोरी को शिकस्त दे सकते हैं।

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