Thursday, September 26, 2019

ऐसे भी जन्मदाता!

मायानगरी मुम्बई में रहती है अनमोल। मानव सेवा संघ अनाथालय में पल-बढकर शिक्षित हुई अनमोल को इस बात का बेहद दु:ख है कि पच्चीस साल की होने के बावजूद अभी तक उसे कोई अच्छी स्थायी नौकरी नहीं मिल पाई। जहां कहीं भी उसे नौकरी मिलती है तो वहां पर काम करने वाले कर्मचारी उसे ऐसे अजीब निगाहों से देखते रहते हैं, जैसे वह किसी अजायबघर की प्राणी हो। अनमोल को बहुत बुरा तो लगता है, लेकिन फिर भी वह सकारात्मक सोच का दामन नहीं छोडती। उसने लगातार संघर्ष करते-करते यह भी जान-समझ लिया है कि बेवजह घूरना, ताकना और फिकरे कसना कई पुरुषों की फितरत होती है। उन्हें कितना भी दुत्कारो, फटकारो पर वे अपनी हरकतों से बाज नहीं आते। अनमोल को तीव्र झटका तो तब लगता है, जब उसे यह कहकर नौकरी छोडने का आदेश दे दिया जाता है कि ऑफिस के सभी कर्मचारियों की आंखें उसके चेहरे पर टिकी रहती हैं, जिससे वे अपना काम बराबर नहीं कर पाते। इससे कंपनी को भारी नुकसान होता है। एक-एक कर कई कंपनियों से निकाली जा चुकी अनमोल की हिम्मत अभी भी नहीं टूटी है। वह रोज टूटती और जुडती है। इसी सिलसिले को उसने अपनी नियति और मुकद्दर मान लिया है।
आखिर कौन है अनमोल, जो सतत अपमान का विष पीते हुए भी अपने मनोबल और हौसले को जिन्दा रखे हुए है? जब भी कोई लडकी तेजाब हमले का शिकार होती है तो हर किसी के मन में यही विचार आता है कि यह किसी बददिमाग आशिक की हरकत होगी, जो लडकी की असहमति को बर्दाश्त नहीं कर पाया होगा। अगर मेरी नहीं तो किसी और की भी नहीं की  फिल्मी सोच ने उसे शैतान और दरिंदा बना दिया होगा। लेकिन अनमोल पर जो तेजाब हमला हुआ उसकी तो कल्पना करने से ही भय लगने लगता है। उसकी तो उसके जन्मदाता ने ही खुशियां छीन लीं। तब वह बहुत छोटी थी। मां ने उसे अपनी गोद में ले रखा था। गुस्साये पिता ने दोनों पर तेजाब उंडेल दिया। वे इस बात को लेकर हमेशा गुस्से में तमतमाये रहते थे कि मां ने एक बेटी को जन्म देकर बहुत ब‹डा अपराध किया था। वे तो सिर्फ बेटा चाहते थे। तेजाब से पूरी तरह झुलसने से मां चल बसी और पिता को जेल हो गई। अनमोल को अगर मां ने अपने आंचल से ढंका न होता तो वह भी मौत के मुंह में समा गई होती। उसका चेहरा बुरी तरह से झुलसा था। कई महीने अस्पताल में बिताने के बाद अनाथालय में उसे आश्रय मिला था। उसके चेहरे की रंगत पूरी तरह से बिगड गई थी। एक आंख की रोशनी भी छिन चुकी थी। मानव सेवा संघ अनाथालय के अधिकारियों ने बिना किसी भेदभाव के उसका पालन पोषण किया और बेहतरीन स्कूल और कॉलेज में प्रवेश दिलवाया। पढने-लिखने में होशियार अनमोल को स्कूल और कॉलेज में ही भेदभाव के शूल घायल करने लगे थे। कोई भी उसका दोस्त नहीं बनना चाहता था। उसकी योग्यता की कोई कीमत नहीं थी। सभी का उसके चेहरे की तरफ ही ध्यान जाता था। पढाई पूरी करने के बाद उसे एक निजी कंपनी में नौकरी तो मिली, लेकिन तेजाबी वार की मार खाये चेहरे के आडे आने के कारण संघर्ष अंतहीन होता चला गया। फिर भी अनमोल न तो थकी और ना ही हारी। हां मायूस जरूर हुई। इसी मायूसी और भेदभाव ने ही उसे और...और ताकतवर बन कुछ अलग हटकर कर दिखाने को बार-बार उकसाया।
फिर ऐसा भी नहीं है कि इस दुनिया में अच्छी सोच और मददगार हाथों की कमी हो। यहां-वहां धक्के खाने के दौरान उसने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से जुडकर अपनी तस्वीरें पोस्ट करनी शुरू कीं। अपनी व्यथा भी उजागर कर दी। अब तो कई लोग सहायता का हाथ बढाने लगे हैं। अनजान लोग दोस्त भी बनने लगे हैं। कुछ कंपनियों ने अपने ब्रांड के प्रचार के लिए उसे साइन कर लिया है। अनमोल की हिम्मत का कमाल ही है कि उसने कुछ लोगों की मदद से एसिड अटैक सर्वाइवर्स की सहायता करने के लिए एनजीओ की भी स्थापना करने की हिम्मत कर दिखायी है। एनजीओ बनाने के पीछे अनमोल की बस यही मंशा है कि तेजाब हमले के शिकार हुए लोगों को रोजगार के भरपूर अवसर मिलें। कोई उनका मज़ाक न उडाये। ऐसी अजीब निगाहों से न देखा जाए, जैसे उन्हीं ने कोई ऐसा अपराध किया है, जिसकी वजह से वे कहीं भी उठने-बैठने-रहने के हकदार नहीं हैं। वे भी सामान्य तरीके से हंसी-खुशी अपना जीवन जी सकें। अनमोल कहती है कि अधिकांश लोग तेजाब पीडितों के दर्द को समझना ही नहीं चाहते। सोशल मीडिया में भी अनमोल के प्रशंसकों की संख्या में निरंतर इजाफा हो रहा है, जो उसका हौसला बढाते रहते हैं।
अक्सर ट्रकों, बसों, टैंपो आदि के पीछे यह नारा लिखा देखा जाता है- बेटी पढाओ, बेटी बचाओ। इसे पढने के बाद ऐसा लगता है कि भारतवासियों को बेटियों की बहुत चिंता है, लेकिन जब बेटियों को गर्भ में मारने, बच्चियों, लडकियों और महिलाओं पर बलात्कार करने, तेजाब से नहला देने और उन्हें खरीदी-बिक्री की वस्तु बना देने की खबरें सामने आती हैं तो तब दिल-दिमाग पर जो गुजरती है उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता।
देश की राजधानी दिल्ली में कर्ज उतारने के लिए एक मां ने अपनी १५ वर्षीय बेटी को एक लाख रुपये में मानव तस्करों को बेच दिया। तस्कर हरियाणा के किसी उम्रदराज रईस से किशोरी की शादी करवाकर काफी मोटी रकम वसूलने की तैयारी में थे। इसी बीच १२ सितम्बर २०१९ की दोपहर किशोरी किसी तरह से तस्करों के चंगुल से निकली और पुलिस तक जा पहुंची। पुलिस को जब उसने अपनी आपबीती बताई तो वे भी दंग रह गये। किशोरी के पिता का देहांत हो चुका है। परिवार में मां, चार भाई और बहन है। कमायी का कोई पुख्ता जरिया न होने के कारण मां पर ढाई लाख का कर्ज हो गया था। कर्जवसूली के लिए जब कर्जदाताओं का दबाव बढने लगा तो मां ने बेटी को ही बेचने का इरादा कर लिया। वह बेटी को हजरत निजामुद्दीन के होटल में लेकर गई। वहां पर वह मानव तस्करों से मिली। कुछ देर बाद उसने बेटी से कहा कि मुझे कुछ काम है। अभी थोडी देर बाद आकर उसे अपने साथ ले जाऊंगी। बेटी मां का इंतजार करती रही, लेकिन वह नहीं लौटी। तस्करों से उसे पता चला कि वह तो बेची जा चुकी है...!

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