Thursday, November 14, 2019

अपनी समस्या, अपना समाधान

प्रदूषण की मार से बचने के लिए कई लोग दिल्ली-एनसीआर छोडना चाहते हैं। किसी जमाने में जिन्हें राजधानी बहुत भाती थी, अब उनका यहां दम घुटने लगा है। वे अब विषैली हवा में सांस लेने की बजाय इसे अलविदा कहना चाहते हैं। मटियाला क्षेत्र में रहने वाले रामचेत यादव ने २०१९ की दीपावली से पहले ही अपनी चार वर्षीय बेटी को टाटानगर स्थित उसकी नानी के घर भेज दिया। पेशे से मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव यादव की पुत्री की वायु प्रदूषण के कारण हमेशा तबीयत खराब रहने लगी थी। वर्षों तक नोएडा में स्थित एक जिम में दूसरों को बलिष्ठ बनाने वाले राज नामक नौजवान को ऐन दीपावली के समय शहर छोडने को मजबूर होना पडा। उसके लिए भी यहां सांस लेना दूभर हो गया था। दिल्ली कभी सीमा शर्मा का पसंदीदा शहर था। कई वर्षों तक यहां रहने के बाद २००६ में सीमा अपने पति के साथ मुंबई चली गई। कुछ वर्ष तो अच्छे गुजरे, फिर वे अक्सर बीमार रहने लगीं। ऐसे में वे अपने पति के साथ दिल्ली लौट आई। सीमा ने सोशल मीडिया पर लिखा कि मेरे खयालों में तो २००६ वाली दिल्ली बसी थी, लेकिन २०१७ में जब हम यहां वापस रहने आए तब तक यहां की हवा बहुत बिगड चुकी थी। मेरी यादों की जिस दिल्ली में सर्दियों में फॉग होती थी, उसकी जगह अब धुंध ने ले ली थी। बार-बार की बीमारी से तंग आकर उन्हें फिर से दिल्ली छोडने का फैसला करना पडा। कई जानी-मानी हस्तियों और आम लोगों ने प्रदूषित जहरीली हवा के लिए सत्ताधीशों को दोषी ठहराते हुए प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक को कोसने में कोई कसर नहीं छोडी। फिल्म अभिनेत्री स्वरा भास्कर ने इंस्टाग्राम पर लिखा, 'रात के ढाई बजे... सूनसान सडक... धुंध और प्रदूषण से फेफडे जम गए हैं... सांस ले पाने में बेहद मुश्किल हो रही है।' विख्यात क्रिकेटर हरभजन सिंह ने भी चुटीले अंदाज में ट्वीट किया, 'आज बहुत दिनों बाद उससे बात हुई। उसने पूछा कैसे हो। हमने कहा, आंखो में चुभन, दिल में जलन, सांसें भी हैं कुछ थमी-थमी-सी।' दिल्ली की धुंध की फोटो साझा करते हुए एक महिला ने लिखा, 'सुबह से ही गंभीर सिर दर्द। हम सब जल्द ही मरेंगे। प्रधानमंत्री जी, कुछ तो कीजिए।'
प‹डौसी राज्यों में पराली जलाए जाने के कारण उसके धुएं से भी दिल्ली की हवा बदतर हो जाती है। वैसे किसानों के द्वारा खेतों की सफाई के लिए पराली के जलाए जाने का चलन कोई नया नहीं है। वैसे भी पराली हमेशा तो नहीं जलायी जाती। इसका एक खास समय होता है। फैक्टरियों, निर्माण कार्यों और विभिन्न वाहनों का धुआं चौबीस घंटे की समस्या है। यह भी सच है कि दिल्ली के प्रदूषण की जितनी चर्चा होती है, उतनी दूसरे नगरों महानगरों की नहीं। वास्तविकता तो यह है कि देश के तकरीबन हर शहर के यही हाल हैं। लोग अब गांवों में नहीं रहना चाहते। इसके पीछे उनकी मजबूरी भी है और शौक भी। नेताओं ने वादे तो बहुत किये, लेकिन ग्रामों का विकास नहीं कर पाये। ऐसे में रोजगार, शिक्षा, बिजली और स्वास्थ्य सेवाओं के लिए गरीब ग्रामीण नगरों, महानगरों में आकर रहने को विवश हैं। प्रदूषण की काफी बडी वजह घनी आबादी तथा कांक्रीट के बेतहाशा बढते जंगल हैं। शहरों को प्रदूषित करने में हर किसी का बहुत बडा योगदान है, लेकिन इस सच को स्वीकारने को कोई भी तैयार नहीं। हम तो बस दूसरों को ही दोष देने के आदी हो चुके हैं। स्वयं कोई पहल करना ही नहीं चाहता।
महानगर बेंगलुरु में एक इलाका है काडुगोडी। यहां के लोगों ने एक अनुकरणीय पहल कर कमाल ही कर दिया। यहां पर एक टूटी हुई सडक पिछले चार साल से आने-जाने वालों की परेशानी का सबब बनी हुई थी। इस इलाके में करीब आठ सौ लोग रहते हैं, जिन्हें रोजाना यहां से गुजरना होता था। बारिश के मौसम में तो यहां से निकलने के बारे में सोचना भी मुश्किल था। सर्दियों-गर्मियों में यहां उडने वाली धूल ने जीना दूभर कर रखा था। कई लोग घायल भी हो चुके थे। स्कूल जाने वाले बच्चे और उनकी वैन काफी मुश्किल से निकल पाती थी। इस गंभीर समस्या के समाधान के लिए स्थानीय प्रशासन से अनेकों बार शिकायतें की जा चुकी थीं, लेकिन हर जगह से निराशा हाथ लगने पर अंतत: यहां के निवासियों ने खुद ही इस खस्ता हाल जानलेवा सडक को दुरुस्त करने की ठान ली। उन्होंने मिलजुलकर २ लाख रुपये इकट्ठे कर सडक निर्माण की सामग्री के लिए एक ठेकेदार से संपर्क किया। एक रोड रोलर और मात्र तीन मजदूरों के साथ लोग खुद ही सडक निर्माण में जुट गये और मात्र दो ही दिन में सिर्फ २ लाख रुपये में एक किलोमीटर सडक तैयार हो गई! इस सडक को यदि निगम बनाती तो कम-अज़-कम १५ लाख का बजट पास करवाती। सभी लोग अपनी मदद कर काफी खुश हैं। इस खबर को पढने के बाद बालकवि बैरागी की कविता 'सूर्य उवाच' की यह पंक्तियां लगातार दिमाग की बंद खिडकियों और दरवाजे पर हथोडे बरसाते हुए पूछती रहीं कि आखिर कब तक संदिग्ध, सौदागर प्रवृति वाले नेताओं को सत्ता सौंपते रहोगे और फिर उन्हीं पर आश्रित रहोगे?
आज मैंने सूर्य से बस जरा सा यूं कहा,
'आपके साम्राज्य में इतना अंधेरा क्यूं रहा?'
तमतमाकर वह दहाडा- 'मैं अकेला क्या करूं?
तुम निकम्मों के लिए मैं ही भला कब तक मरूँ?
आकाश की आराधना के चक्करों में मत पडो
संग्राम यह घनघोर है, कुछ मैं लडूँ कुछ तुम लडो।

1 comment:

  1. katu satya hai.dakar rahe hain neta badnam ho rahe hai thekedar

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