Thursday, November 21, 2019

धरती के फरिश्ते

हमारी इस दुनिया में भले ही कितना अंधेरा हो, अनाचार हो, हैवानियत हो, लालची और स्वार्थी लोगों की भीड हो और रिश्तों के कातिलों की कतारें लगी हों, लेकिन इस सच को कभी भी ना भूलें कि हर दौर में कुछ लोग ऐसे होते हैं जो मानव होने के नाते धर्म को निभाने में कोई कसर नहीं छोडते। वे अपने शरीर को ईश्वर का दिया उपहार मानते हैं। उन्हें खुद से ज्यादा दूसरों की चिंता रहती है...। दरअसल यह इंसान नहीं फरिश्ते हैं, जो अपनों को ही नहीं, गैरों को भी नई जिन्दगी का उपहार देकर बडी खामोशी के साथ इस दुनिया से विदा हो जाते हैं। वे माता-पिता, पति, भाई, बहन एवं अन्य रिश्तेदार भी महान हैं, जो हर गम को भूलकर अपनी संतानों के अंगदान की पहल करते हैं। इन्हें किसी पुरस्कार और प्रचार की कतई भूख नहीं। २४ वर्षीय हरीश नाजप्पा अपने गांव में छुट्टियां मनाने के बाद मोटर साइकल से बेंगलुरु लौट रहा था। इसी दौरान अंधी रफ्तार से दौडते एक ट्रक ने उनकी मोटर साइकल को इतनी जोर की टक्कर मारी कि हरीश का शरीर दो हिस्सों में बंट गया। मौत से चंद मिनट पहले हरीश ने न सिर्फ मदद की गुहार लगाई बल्कि लोगों से बार-बार यही कहा कि अब उसका बचना असंभव है इसलिए उसके शरीर के अंगों को दान कर दिया जाए। भीड तो अपने में मस्त थी। उसे तो लहुलूहान तडपते हरीश की तस्वीरें लेने और वीडियो बनाने के अलावा और कुछ सूझ ही नहीं रहा था। आखिरकार एक एम्बूलेंस में हरीश को अस्पताल में ले जाया गया। वह रास्ते में ही दम तोड चुका था। उसने हेल्मेट पहना हुआ था, जिसके कारण उसकी आखें सुरक्षित थीं। जिन्हें जरूरतमंद को दान कर दिया गया।
नागपुर के २१ वर्षीय युवा अमित को एक सडक दुर्घटना में सिर में गहरी चोट लगने के कारण अस्पताल में भर्ती कराया गया। दो दिन इलाज के बाद डॉक्टरों ने उसे ब्रेन डेड घोषित कर दिया। डॉक्टरों और समाज सेवकों ने अमित के भाइयों को अंगदान करने की सलाह दी और उसका महत्व समझाया तो वे सहर्ष मान गये। १२ नवंबर २०१९ को गुरुनानक जयंती पर अमित की दोनों किडनियां और लीवर डोनेट कर तीन लोगों को नया जीवन प्रदान किया गया। इसके साथ ही अमित के हार्ट और लंग्स डोनेशन के लिए राष्ट्रीय स्तर पर सूचना जारी की गई, ताकि जरूरतमंद को लाभ मिल सके तथा किसी और का जीवन बच सके।
उत्तरप्रदेश के झांसी का रहने वाला २१ वर्षीय जसवंत आज भले ही इस दुनिया में नहीं है, लेकिन उसने तीन लोगों को नई जिन्दगी देकर अंतिम सांस ली। जसवंत दिल्ली स्थित झंडेवालान में फूलों की दुकान में काम करता था। छत से गिरने से उसके सिर में गंभीर चोट पहुंची थी। हादसे के समय मौके पर मौजूद लोगों ने उसे अस्पताल पहुंचाया। जसवंत के परिजनों की आंखों से आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे। इधर अस्पताल के प्रत्यारोपण काउंसलरों को जब जसवंत के ब्रेन डेड होने का पता चला तो वे उसके परिजनों के पास पहुंचे और उन्हें ढांढस बंधाते हुए कहा कि उनका बेटा भले ही इस दुनिया से चला गया हो, लेकिन वह तीन लोगों को नई जिन्दगी दे सकता है। एक बार तो परिजन अंगदान करने में हिचके, लेकिन कुछ देर बाद उन्होंने सहमति जता दी। जसवंत की दोनों किडनी और लीवर से जहां तीन लोगों को नई जिन्दगी मिली, वहीं उसके परिवार के सदस्यों के चेहरे भी गौरव भरी तसल्ली से चमक रहे थे।
मुंबई का पवई निवासी लोमेश पटेल कच्छ जिले के गांधीग्राम नगर में एक पारिवारिक समारोह में शामिल होने गया था, जहां वह दुर्घटना का शिकार हो गया। तीन दिन के इलाज के बाद लोमेश को ब्रेन डेड यानी दिमागी रूप से मृत घोषित कर दिया गया। लोमेश के पिता की सहमति से उसके दो गुर्दे, दो आंखें (कार्निया) और लीवर पांच जरूरतमंदों को दान कर नई जिन्दगी दी गई।
देश की राजधानी दिल्ली की पूजा के साहस ने तो उन लोगों के मुंह पर तमाचा जड दिया जो आज भी घर में लडकियों के जन्मने पर मातम मनाते हैं। इस बहादुर बेटी ने अपना लीवर दान कर अपने पिता की जान बचायी। डॉक्टरों ने भी पूजा की तारीफ करते हुए कहा कि इस लडकी ने तो लडकों को भी मात दे दी। वह इतनी बडी सर्जरी करवाने में किंचित भी नहीं घबराई। भोपाल की ६२ वर्षीय विमला एक सडक दुर्घटना में चल बसीं। उन्होंने तीन लोगों को नवजीवन प्रदान किया, जिसमें एक बारह वर्षीय बच्चा भी शामिल है। उनके बेटे के भावुकता भरे इन शब्दों ने जहां लाखों लोगों की आंखें नम कीं, वहीं अंगदान के लिए भी प्रेरित किया : मेरी मां ने एक बारह साल के बच्चे को नया जीवन दिया है। उनका दिल इस बच्चे के सीने में धडकता रहेगा। मेरी मां इस दुनिया में नहीं रहकर भी अमर है। इस बच्चे की जिन्दगी को हम अपनी मां की ही जिन्दगी समझेंगे। हम इस बच्चे की बहुत लम्बी उम्र की कामना करते हैं। जब तक वह दुनिया में रहेगा हम यही मानेंगे कि मां जीवित है। हमारा पूरा परिवार सतत इस बच्चे से मिल मां के दिल की धडकन को महसूस करता रहेगा।
जेपी अस्पताल के डॉक्टर अमित देवडा ने बताया कि पिछले पांच साल में हुए ५०० से अधिक ट्रांसप्लांट में ६५ फीसद महिलाएं ही डोनर रहीं। वह कई सालों से किडनी ट्रांसप्लांट कर रहे हैं। कई मामले ऐसे आते हैं, जब नारी के त्याग की प्रतिमूर्ति होने की बात सच साबित होती है। सुरेश कुमार डायबिटीज के मरीज हैं। उन्हें कुछ समय पहले गंभीर हालत में अस्पताल में भर्ती कराया गया। उनका पहले भी किडनी ट्रांसप्लांट हो चुका था। पहली बार उन्हें उनकी मां ने किडनी दी, लेकिन कुछ समय बाद पता चला कि ट्रांसप्लांट प्रक्रिया विफल रही। दूसरी बार उनकी पत्नी ने किडनी देने का फैसला किया, लेकिन इस बार भी उनकी किस्मत ने साथ नहीं दिया और प्रत्यारोपण सफल नहीं हो पाया। सभी परीक्षण के बाद डॉक्टरों ने एक बार फिर ट्रांसप्लांट का सुझाव दिया। अब समस्या थी कि किडनी कौन देगा। सुरेश की दो बेटियां और एक बेटा है। इस बार बेटी ने बिना कुछ विचार किए पिता को किडनी दी। पिता अब पूरी तरह से स्वस्थ हैं।

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