Thursday, November 7, 2019

कब और कैसे खुलेंगी आंखें?

नया युग है। नयी सोच वालों के बीच पुरानी परंपराओं, अंधविश्वासों, आदतों में जकडे कई लोगों के कारण पूरी तरह से बदलाव नहीं आ पा रहा है। सुप्रीम कोर्ट की हिदायत के बावजूद इस बार भी राजधानी दिल्ली में पटाखों की जबरदस्त आवाजें गूंजती रहीं। लगभग यही हाल पूरे देश का रहा। जहां देखो वहां दमघोटू धुआं। लोग वायु और ध्वनि प्रदूषण से जूझते रहे। २०१९ की दिवाली में भी जहरीली हवा को निगलने को विवश हजारों लोगों को अस्पतालों की शरण लेनी पडी। विषैले, धमाकेदार पटाखों ने सैकडों मूक परिंदों की भी जान ले ली। पटाखों से हुए प्रदूषण से हजारों पक्षी जमीन पर आ गिरे। उनके लिए फिर से आकाश को छूना मुश्किल हो गया। देश की राजधानी में तो बच्चों के स्कूलों की छुट्टी कर दी गई। अमीरों ने अपने घरों से निकलने में कई सावधानियां बरतीं। मरना तो उन गरीबों का हुआ, जिनका घर से निकले बिना गुजारा नहीं होता। जिन बदनसीबों के पास अपना घर नहीं उन्हें तो अपनी सांसों की कभी फिक्र ही नहीं रही। उनके लिए सब दिन एक समान हैं। बेचैनी और खांसी तो गरीबों की हमेशा साथी बनी रहती है। यह समस्या तब तक बनी रहेगी जब तक प्रकृति की ओर नहीं लौटा जाएगा, आत्मसंयम को अपने जीवन में उतारा जाएगा, लेकिन हम तो मेलों में मग्न हैं। नौटंकियों और कुरीतियों के मकडजाल में उलझे हैं। तमाशेबाजी में ही खुशियां तलाशते हैं। इंसानी खून हमें मनोरंजित करता है।
देश के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल शिमला से करीब ३० किमी की दूरी पर स्थित है धामी, जहां पर प्रतिवर्ष दिवाली के अगले दिन एक अनोखा मेला लगता है। इस मेले में सैकडों समझदार लोगों की उपस्थिति में दो समुदायों के बीच पत्थरों की जबरदस्त बरसात होती है। इस बार भी वर्षों से चली आ रही परंपरा को निभाया गया। धामी रियासत के राजा जगदीप qसह पूरे शाही अंदाज में मेला स्थल पर पहुंचे। दोपहर बाद मेला शुरू हुआ और दोनों ओर से पत्थरों की बारिश का सिलसिला तब तक चलता रहा जब तक किसी का सिर नहीं फटा। जिस व्यक्ति के सिर से खून का फव्वारा छूटा उसके खून का तिलक माता के मंदिर में बने चबूतरे में लगाया गया और माता का आशीर्वाद लिया गया। बताते हैं, पहले यहां हर वर्ष नरबलि दी जाती थी। एक बार रानी यहां सती हो गई। इसके बाद नरबलि पर तो विराम लग गया, लेकिन पशुबलि शुरू हो गई। कई दशक पहले इसे भी बंद कर दिया गया। इसके बाद पत्थर यानी खून बहाने का मेला शुरू किया गया।
छियासठ वर्षीय चिंताहरण पिछले तीस वर्षों से प्रतिदिन दुल्हन की तरह श्रृंगार कर घर से निकलते हैं। पहले लोग उन पर हंसा करते थे, व्यंग्यबाण भी छोडा करते थे, लेकिन अब जौनपुर और आसपास के स्त्री, पुरुष, बच्चों और वृद्धों को उम्रदराज चिंताहरण को लाल साडी, बडी-सी नथ और झुमके पहने देख कतई भी अटपटा नहीं लगता। दुल्हन की तरह सजने-संवरने वाले चिंताहरण को अंधविश्वास की जंजीरों ने बुरी तरह से जकड रखा है। वे मानते हैं कि यह अनोखा वेश उनका सुरक्षा कवच है, जिससे उन्हें तथा उनके परिवार को सुरक्षा मिली हुई है। उनके किसी भी करीबी का बाल भी बांका नहीं हो सकता। उनका कहना है कि बीते सालों में मेरे परिवार के १४ सदस्य एक-एक कर इस दुनिया से विदा हो गये। ऐसे में मुझे बाकी बचे अपने बच्चों, अपने परिजनों और खुद के खत्म होने का भय सताने लगा था। मेरी रातों की नींद ही उड गई थी। जब कभी नाममात्र की नींद आती भी थी तो सपने में दूसरी पत्नी रोती-बिलखती दिखायी देती, जिससे मैंने बेवफाई की थी। इस गम ने ही उसे आत्महत्या करने को विवश कर दिया था। एक दिन सपने में मैंने पत्नी से माफी मांगी और मेरे परिवार को बख्श देने का निवेदन किया। तब उसने मुझसे यह वेश धारण कर बाकी की जिन्दगी गुजारने को कहा तो मैंने प्रतिदिन दुल्हन की तरह सजना-संवरना प्रारंभ कर दिया। पहले लोग मुझ पर हंसा करते थे, लेकिन जब उन्हें मेरी विवशता का भान हुआ तो हमदर्दी जताने लगे। अब मेरी तथा बच्चों की जिन्दगी बडे मजे से कट रही है।
ओडिशा में गंजाब के जिलाधिकारी विजय अमृत कुलंगे ने जादू-टोना और अंधविश्वास से जुडी प्रथाओं से उबारने और लोगों को जागरूक करने के लिए यह ऐलान किया है कि जो व्यक्ति भूतों के अस्तित्व को साबित कर देगा उसे बडे आदर-सम्मान के साथ ५० हजार रुपये का इनाम दिया जायेगा। जिलाधिकारी को गंजाब जिले में जादू-टोने के नाम पर हुई हिंसा के बाद यह कदम उठाना पडा। कुछ सप्ताह पूर्व ग्रामीणों ने जादू-टोने के शक में छह लोगों के दांत तोड दिए थे। उन्हें जबरदस्ती अपशिष्ट पदार्थ खिलाया गया था। डंडे, लाठियों और हाकियों से तब तक पीटा गया था, जब तक वे बेहोश नहीं हो गये थे। पीटने वाले ग्रामीण बस एक ही रट लगाये थे कि उनके द्वारा किये जाने वाले जादू-टोना के कारण ही उनके रिश्तेदार बीमार होते रहते हैं। यह भी काबिलेगौर है कि यह पिटायीबाज जादू-टोने से बीमार होने वाले अपने प्रियजनों को इलाज के लिए तंत्र-मंत्र और झाडफूंक करने वाले बाबाओं के पास ले जाते हैं। उन्हें डॉक्टरों पर भरोसा नहीं है। जिलाधिकारी कुलंगे को हर सप्ताह आयोजित होने वाली जनसुनवाई में अंधविश्वास के जाल में फंसे लोगों की दलीलें और जादू-टोना संबंधी शिकायतों ने स्तब्ध कर दिया था। उन्होंने अंधविश्वासियों को बहुतेरा समझाया कि यह उनका भ्रम है कि जादू-टोना करने से कोई बीमार होता है। दरअसल, जादू-टोना और भूतों का कोई अस्तित्व ही नहीं होता। फिर भी जब अंधविश्वासी नहीं माने तो उन्होंने यह घोषणा कर दी, "भूत को ढूंढकर लाओ, ५० हजार इनाम पाओ।

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