Thursday, February 13, 2020

फूट डालो, राज करो

यह कैसा दौर है! गोली वाली बोली बोली जा रही है। नफरत के बीज बोये जा रहे हैं। बच्चों के मुंह में कत्ल की धमकियां हैं। अधिकांश पत्रकार पक्षकार बन गये हैं। सच छुपाते हैं, झूठ का परचम लहराते हैं। अपना नफा-नुकसान देखकर पत्रकारिता की जा रही है। देश की लगभग सभी पार्टियों में कुछ ऐसे नेता हैं, जिनकी भाषा पर लगाम नहीं। हिन्दू-मुसलमान पर नफरत की राजनीति करने में कोई संकोच नहीं। खुद को सुर्खियों में बनाये रखने के लिए मर्यादा की सभी सीमाएं लांघ रहे हैं। प्रधानमंत्री तथा गृहमंत्री जैसे सम्मानित पदों पर विराजमान नेताओं को गंदी, घिनौनी और विषैली शब्दावली से अपमानित किया जाने लगा है। घृणा की इबारतें लिखने वाले किसी को भी नहीं बख्श रहे हैं। यहां तक कि महात्मा गांधी के पूरे स्वतंत्रता आंदोलन को नाटक कहा जा रहा है। कुछ लोग पता नहीं कौन-सी आजादी चाहते हैं। उनकी देश को टुकडे करने वाली सोच चंद लोगों को भले ही भाती हो, लेकिन अधिकांश देशवासी खफा हैं। गुस्से में हैं।
इसमें दो मत नहीं कि महात्मा गांधी के प्रति अधिकांश भारतीयों में अपार श्रद्धा है। उनके लिए अहिंसा का यह पुजारी पूज्यनीय है। वंदनीय है, लेकिन कुछ लोग हैं, जिनके मन में बापू के प्रति श्रद्धा और सम्मान नहीं है। यह बात दीगर है कि उनके नेता महात्मा की प्रतिमा के समक्ष नतमस्तक हो उनके गुणगान में कोई कसर नहीं छोडते। भारतीय जनता पार्टी के सांसद अनंत हेगडे का यह कहना करोडों भारतीयों को चौंका गया कि पूरा स्वतंत्रता आंदोलन अंग्रेजों की सहमति से चला था। महात्मा गांधी का स्वतंत्रता आंदोलन महज ड्रामा था। जिन स्वतंत्रता सैनानियों ने देश के लिए कोई बलिदान नहीं दिया, उन्होंने यह विश्वास दिलाया कि भारत को आजादी उपवास-सत्याग्रह से मिली है। दरअसल, ब्रिटिश डर गये थे और देश को आजादी उपहार में दे दी थी, लेकिन ऐसे लोग (महात्मा गांधी) महापुरुष बन गये।
इस तरह की बयानबाजी करने वाले नेताओं को अपना आदर्श मानने वाले लोग दलितों, शोषितों के मसीहा के बारे में तरह-तरह की बातें करते रहते हैं, लेकिन देश का आम आदमी तो उन्हें महामानव ही मानता है, जिन्होंने सत्य और शांति के मार्ग पर चलकर देश को आजादी दिलवायी। पूरी दुनिया को अहिंसा, शांति और भाईचारे का संदेश देने वाले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की ३० जनवरी १९४८ की शाम ५ बजकर १७ मिनट पर नाथूराम गोडसे ने गोली मारकर हत्या कर दी थी। इस निर्मम हत्याकांड ने पूरे विश्व को हिला कर रख दिया था। हर किसी की आंखों में आंसू थे। तब लार्ड माउन्टवेटन ने भीगे स्वर में कहा था कि ब्रिटानी हुकूमत इस कलंक से बच गई। भारत को आजादी दिलाने में अभूतपूर्व योगदान देने वाले महात्मा की हत्या उनके देश, उनके राज्य और उनके लोगों ने ही की है। अगर इतिहास बापू का निष्पक्ष मूल्यांकन करेगा तो उन्हें ईसा और बुद्ध के समकक्ष रखेगा। गांधी की अहिंसक शक्ति का लोहा पूरे विश्व ने माना था। आज भी देश और दुनिया की निगाह में बापू बेमिसाल हैं। अद्वितीय हैं, लेकिन गोडसे के 'प्रेमी' इस सच को स्वीकारने को तैयार नहीं। आजादी के सत्तर साल बाद भी 'हत्यारे' के अनुगामी मीडिया की सुर्खियां बटोरने के लिए ज़हर उगलते रहते हैं। अपना देश हिन्दुस्तान मौजूदा दौर में बडे गंभीर हालात से गुजर रहा है। सरकार और सत्ता भी अजीब-सी नींद की गिरफ्त में है। देश में बेरोजगारी चरम सीमा पर पहुंच चुकी है। उद्योग-धंधों की बेहद खस्ता हालत है। सार्वजनिक उपक्रम की नीलामी हो रही है। युवाओं को कुछ सूझ नहीं रहा है। वे भटकाव और आत्महत्या करने को विवश हैं। किसान आत्महत्याओं का सिलसिला बरकरार है। देश का सारा धन चंद उद्योगपतियों की तिजोरियों में जा रहा है। आम आदमी मातम मना रहा है। हालात यह हैं कि आम भारतीयों का नेताओं के प्रति मोह भंग हो गया है। उन्होंने उनसे सच्चाई और ईमानदारी की उम्मीद ही छोड दी है। देश को नफरत के खेल में उलझा दिया गया है। इस खतरनाक खेल में बडे-बडे नेता भी शामिल हैं। कुछ प्रत्यक्ष रूप में तो कुछ परोक्ष रूप में। देश में आदर्श चेहरों का घोर अकाल-सा पड गया है।
देश के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर कर देने वालों को कटघरे में खडा करने वाले कितना भी ज़हर उगलते रहें, लेकिन हकीकत तो कुछ और है...। ओडिशा में संबलपुर से लगा एक गांव है, जिसका नाम है, भत्रा। लोग इसे भटारा भी कहते हैं। इस गांव में महात्मा गांधी का मंदिर बना है, जहां पर सुबह-शाम पूजा और रामधुन बजती है। मंदिर के प्रवेश द्वार पर हाथ में तिरंगा लिए भारत माता की प्रतिमा है। भीतर हाथ में गीता लिए गांधीजी की बैठी हुई प्रतिमा है। गांव के सभी लोग बापू को भगवान मानते हैं। लगभग सभी घरों में उनकी तस्वीर लगी है। गांधी जी के इस मंदिर को १९७४ में बनवाया गया था। तभी से गांधीजी को भगवान के रूप में पूजा जा रहा है। महात्मा के इस गांव में कोई भी नशा नहीं करता। सभी मिलजुलकर रहते हैं। कभी कोई विवाद हो भी जाए तो गांधी जी की कसम खाकर दोनों पक्ष निपटारा कर लेते हैं। पुलिस तक मामले जाते ही नहीं हैं। आपसी सौहार्द से छुआछूत जैसी समस्याओं को जड से खत्म कर दिया गया है। कोई भी नई-नवेली बहू ससुराल में कदम रखने से पहले आशीर्वाद लेने के लिए गांधी मंदिर जाती है। बरेली के उम्रदराज शायर मोहम्मद इलियास सच्चे राम भक्त हैं। बापू को अपना आदर्श मानते हैं। उनकी तमन्ना है कि गांधी बाबा और श्रीराम के इंसानियत भरे पैगाम को देश के हर शख्स तक पहुंचाया जाए। वे कहते हैं,
"यह मंदिर और मस्जिद न
तुम्हारे काम आएंगे,
करोगे कत्ल सिर पर
खून के इल्जाम आएंगे
तुम्हारा जुल्म ही दुनिया में
जब बन जाएगा रावण,
मिटाने वो उसे फिर से
श्रीराम आएंगे।"

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