Thursday, February 27, 2020

क्या सच सामने आयेगा?

कुछ बातें, साजिशें और विषैली शब्दावली भुलाये नहीं भूलती। दंश की तरह चुभती है। दिल और दिमाग के इतिहास के पन्नों में दर्ज होकर रह जाती है। ऐसा भी होता है कि बिना सोचे-समझे बार-बार भडकाऊ और अनर्गल बोल बोलने वाले अंतत: मज़ाक के पात्र बन कर रह जाते हैं। वे जिन लोगों तक अपनी बात पहुंचाना चाहते हैं वे भी उनकी नहीं सुनते। एआईएमआईएम के नेता वारिस पठान ने कलबुर्गी की एक जनसभा में चुनौती देते हुए कहा कि १५ करोड मुसलमान १०० करोड हिन्दुओं पर भारी पडेंगे। अभी तो सिर्फ मुस्लिम महिलाएं ही बाहर निकली हैं, तो पूरा देश परेशान हो गया। जब पूरा मुस्लिम समुदाय एकजुट होकर बाहर निकलेगा तब देखना देश की क्या हालत होगी। हमने ईंट का जवाब पत्थर से देना सीख लिया है।
यह नेता, यह उग्रवादी जिसका अपनी जुबान पर अंकुश नहीं, जिसे यह भी खबर नहीं कि नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में जो भीड एकत्रित हुई उसमें मुस्लिमों के साथ-साथ हिन्दू और सिखों का भी समावेश है। तुम सच को दरकिनार कर मरने-मारने की बातें कर रहे हो! धिक्कार हैं तुम्हारी नेतागिरी पर। तुम्हारी भडकाऊ घटिया सोच पर। यह देश जिसका नाम हिन्दुस्तान है, वह तुम जैसे जडहीन बद्दिमाग नेताओं को हमेशा नकारता आया है। सजग जनता की निगाह में तुम और कपिल शर्मा जैसे तमाम बद्जुबान नेता 'जोकर' हैं, जिन्हें गंभीरता से नहीं लिया जाता। भाजपा के नेताओं ने 'गोली मारो सालों को' तथा 'ट्रंप के जाने के बाद सबक सिखायेंगे' जैसी धमकियां देकर खुद को तुम्हारे समकक्ष खडा कर लिया है। इसके साथ ही भाजपा की छवि भी धूमिल की है। हिन्दुस्तान की तमाम अमनपरस्त जनता मिलजुल कर रहने में यकीन रखती है। सर्वधर्म समभाव के शत्रुओं की फितरत से वह खूब वाकिफ हैं। तुम जैसे कई शैतान आए और गए। उनका नामों-निशान भी मिट गया। तभी तो हिन्दुस्तान छाती ताने खडा था, खडा है और खडा रहेगा। कोई भी ताकत इसे डिगा नहीं सकती। झुका नहीं सकती। नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ देशवासियों को भडकाने वाले और विषैली भाषणबाजी करने वाले इन्सानियत के शत्रु कितनी भी कोशिशें कर लें, लेकिन उनके सपने कभी पूरे नहीं होंगे।
बेंगलुरु में नागरिकता कानून संशोधन कानून के खिलाफ ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल पार्टी के मंच पर अमूल्या नाम की एक युवती ने पाकिस्तान जिन्दाबाद के नारे लगाये। पाकिस्तान के प्रति सम्मान और भारत माता का अपमान करने वाली यह युवती पत्रकारिता की छात्रा है। टुकडे-टुकडे गैंग के पदचिन्हों पर चल रही यह युवती भडकाऊ भाषण देने में पारंगत कर दी गई है। अपने देश में पिछले कुछ वर्षों में एक महारोग बडी तेजी से फैला है, जिसका नाम है, 'कन्हैया रोग'। इस रोग के शिकार खुद को किसी 'क्रांति दूत' से कम नहीं समझते। इनमें मीडिया की सुर्खियां पाने की जबरदस्त भूख है। यह स्वयंभू क्रांतिकारी चौबीस घण्टे इसी उधेडबुन में लगे रहते हैं कि टुकडे-टुकडे गैंग के सरगना कन्हैया कुमार की तरह किस तरह से रातों-रात चर्चित हुआ जाए। यह 'कन्हैया रोगी' भीड देखते ही अपना संयम खो देते हैं। हिन्दुस्तान मुर्दाबाद और पाकिस्तान जिन्दाबाद के नारे लगाने लगते हैं। मीडिया का एक वर्ग इन्हें नायक दिखाने-बताने में बहुत बडी भूमिका निभाता चला आ रहा है। वैसे भी अधिकांश अखबारों, न्यूज चैनलों, संपादकों और पत्रकारों ने भी अपने-अपने गुट और गिरोह बना लिये हैं। सभी की अपनी-अपनी भूख और कामनाएं हैं। २०१४ से पहले जिनकी भरपूर पूछ-परख होती थी, सभी स्वार्थ सधते थे, तब की सरकार के मंत्री उनके इशारे पर चलते थे, लेकिन भाजपा की सरकार में अब कोई उन्हें घास नहीं डालता तो उनके तेवर बदल गये हैं। उनकी पत्रकारिता का धर्म बदल गया है। यह 'रोगी मीडिया' दिन-रात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की सिर्फ कमियां ही गिनाते रहता है। दूसरी तरफ 'भोगी मीडिया' है, जिसका सरकारीकरण हो चुका है। उसका बस एक ही काम है मोदी की चरणवंदना करते रहना।
सच तो यह है कि नागरिकता संशोधन कानून का समर्थन तथा विरोध करने वालों की भीड में कुछ ऐसे लोग शामिल हो गये हैं, जिनका राष्ट्रप्रेम और अहिंसा से कोई वास्ता नहीं है। इनका उद्देश्य ही साम्प्रदायिक सद्भाव के परखच्चे उडाकर देशभर में अशांति और दहशत फैलाना है। इस विकटकाल में पत्रकारिता कटघरे में है। दंगों के समाचार देने में निष्पक्षता नहीं बरती जा रही है। देश जल रहा है। साजिशों की बारूद बिछाई जा चुकी है। उपद्रवियों के पत्थर और गोलियां निर्दोषों की जान ले रही हैं। पुलिस वाले भी मौत के घाट उतारे जा रहे हैं। अस्पतालों के बिस्तर घायलों से भरे पडे हैं। राजधानी दिल्ली का ऐसा डरावना चेहरा पहले कभी नहीं देखा गया। हिंसा की जो तस्वीरें आ रही हैं उनसे पूरे देश में दहशत है। आम जन में अथाह गुस्सा है। नफरत फैलाने वालों को समय रहते यदि काबू कर लिया जाता तो हालात इतने बदतर नहीं होते। हाथों में डंडे, लाठियां, रॉड और तमाम हिंसा का सामान लिए जानी-अनजानी भीड का दिल्ली को युद्ध का मैदान बना देना यही दर्शाता है कि शासन और प्रशासन ने पूरी तरह से सतर्कता नहीं बरती। अधिकांश खाकी वर्दी वालों ने अपनी ड्यूटी ढंग से नहीं निभायी। वे अपना हाथ बांधे खडे रहे। विभिन्न तस्वीरें उनके बेबस और तमाशबीन बने रहने की चीख-चीख कर गवाही देती हैं, और यह भी बताती हैं कि दंगाई, जिनका कोई धर्म नहीं होता उन्होंने जी भरकर आतंक मचाया। पत्थरबाजी की, वाहन, घर और दुकानें जलायीं।

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