Thursday, June 11, 2020

इतनी मनमानी और जल्दी क्यों?

अंततोगत्वा इसका हश्र अच्छा हो ही नहीं सकता। गलती, गलती है। गुंडागर्दी, गुंदागर्दी ही है। चाहे नेता करे या वर्दीवाला। औरत करे या मर्द। आज अपने देश में बेहिसाब मनमानी चल रही है। कई लोगों पर इन दिनों खबरों में बने रहने का जबरदस्त भूत तथा जूनून सवार है। उनकी बुद्धि ने सोचना, जानना, समझना ही बंद कर दिया है। उन्होंने कहीं न कहीं यह भी मान लिया है कि उनकी ऊल-जलूल हरकतें उन्हें नामवर बनाने के साथ-साथ नायक, नायिका का शानदार तमगा भी दिलवा रही हैं। सोशल मीडिया के तो वे ही ऐसे इकलौते बादशाह हैं, जिनके 'ताज' को कोई भी नहीं छीन सकता। स्वयं को भारतीय जनता पार्टी की महान नेता तथा टिकटॉक स्टार समझने वाली एक नारी, जिसका नाम सोनाली फोगाट है, ने हिसार की बाजार समिति के एक कर्मचारी की थप्पडों और चप्पल से ऐसी जोरदार पिटायी की, कि कई दिन तक अखबारों, न्यूज चैनलों तथा सोशल मीडिया में धूम मचाती रहीं। चप्पल और थप्पडबाज सोनाली से जब पूछा गया कि आपने कानून अपने हाथ में क्यों लिया? उसने यदि कोई अभद्र टिप्पणी की भी है तो भी उसे इस तरह से सरेआम पीटना क्या जायज है? यह तो सरासर गुंडागर्दी है? खुद को दबंग कहने वाली नारी का जवाब था कि अगर मैं आज उसे सबक नहीं सिखाती तो कल वह किसी और महिला के साथ भी ऐसी बेहूदी हरकत करने से बाज नहीं आता। यह न्याय करने का तरीका है उस नारी का जो विधायक, सांसद बनना चाहती है। इस अजब नारी ने अपनी थप्पड और चप्पलबाजी की तस्वीरें और वीडियो बनाने के लिए पहले से ही अपने सेवकों की तैनाती कर रखी थी। आज्ञाकारी सेवकों ने धडाधड हर कोने से तस्वीरें लीं, वीडियो बनाये, जो देखते ही देखते न्यूज चैनलों और सोशल मीडिया पर छा गये। घोर जिद्दी और अहंकारी नारी को शेरनी की पदवी मिल गई। पिटनेवाला गीदड कहलाया, लेकिन यही गीदड यदि अपनी पर आ जाता, ईंट का जवाब पत्थर से देता तो नारी सम्मान और उसकी सुरक्षा का ढोल पीटने वाले संगठन तन कर खडे हो, हो-हल्ला मचाते।
राजस्थान के जोधपुर में पुलिस वाले बिना मास्क पहने लोगों का चालान काट रहे थे, तभी एक युवक ने जेब से मोबाइल निकालकर वीडियो बनाने की कोशिश की। वर्दीवालों को युवक का यह दुस्साहस बर्दाश्त नहीं हुआ।  उन्होंने युवक को जमीन पर पटका और फिर काफी देर तक अपने घुटने से उसकी गर्दन को दबाये रखा। यह तो अच्छा हुआ कि युवक की जान बच गई। कू्रर पुलिस वालों ने अपनी इस हरकत को जायज ठहराने के लिए सफाई दी कि एक तो उसने मास्क नहीं पहना था, दूसरे टोकने पर हम से ही उलझने लगा! एक की तो उसने वर्दी ही फाड दी! आसपास खडे जिन लोगों ने पूरी घटना को मोबाइल कैमरों में कैद किया, उनका कहना है कि अडियल अविवेकी वर्दी वालों के घुटनों से आज़ाद होने के बाद ही उस युवक ने हमला किया। कौन सच्चा है, कौन झूठा, इसका पता चलने से रहा, लेकिन अंदाज देहलवी की यह पंक्तियां जरूर काबिलेगौर हैं :
"वो जख्मी परिंदा है, वार मत करना
पनाह मांग रहा है, शिकार मत करना
इरादा सामने वाला बदल भी सकता है
मुकाबला ही सही, पहले वार मत करना।"
नेतागिरी और वर्दी की धौंस दिखाने वालों ने सीधे-सादे लोगों को कई बार दबाने, मारने, कुचलने तथा आहत करने का इतिहास रचा है। आम लोगों की चुप्पी, सहनशीलता और बर्दाश्त करने की ताकत का मज़ाक उडाने वालों को अपनी नासमझी का खामियाजा भी भुगतना पडा है। एकदम ताजा उदाहरण है, ताकतवर देश अमेरिका का, जहां जार्ज फ्लॉयड नामक अश्वेत की पुलिस के हाथों हुई निर्मम हत्या के विरोध में असंख्य लोग सडकों पर उतर आये। पुलिस, सेना व सुरक्षा एजेंसियों के लिए हिंसक भीड पर काबू पाना बेहद मुश्किल हो गया। उपद्रवियों व अराजक तत्वों को भी आगजनी व लूटमार करने का अच्छा-खासा अवसर मिल गया। उसके बाद हमारे अपने अमन-पसंद देश में ऐसे बारूदी सोच वालों के उभरने का दौर-सा चल पडा जो देशवासियों को एक-दूसरे से लडते-मरते देखना चाहते हैं। देश में बदहाली के जो नजारे हैं उनके लिए केंद्र सरकार काफी हद तक जिम्मेदार है। सबकुछ कोरोना महामारी के माथे मढकर बचने की उसकी कोशिशें भी दिख रही हैं, लेकिन यह भी सच है कि नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद कुछ चेहरे हद से ज्यादा बौखलाये हैं। मछली की तरह फडफडाते कुछ बेचैन आत्माधारी स्वप्नजीवी, असली-नकली बुद्धिजीवी, पत्रकार, समाजसेवक, इसके, उसके मसीहा यही चाहते हैं कि अमेरिका की तरह भारत में भी विद्रोह की आग सुलगे। लोग सडकों पर उतर आएं और लूटमार करते नजर आएं। यह महान लोग कोरोना की चिन्ता छोड प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सत्ता से बाहर करने के सपने देखने के चक्कर में ऐसे एकजुट हो गये हैं, जैसे उन्हें इससे अच्छा अवसर फिर कभी नहीं मिल पायेगा। उनकी सबसे बडी समस्या और बीमारी मोदी हैं। नरेंद्र मोदी को सत्ता से बाहर होते देखना उनका सपना भी है, प्राथमिकता भी और एकमात्र लक्ष्य भी...।

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