Thursday, June 18, 2020

नई पहल की गूँज

कम उम्र के बच्चों के अपराधी बनने की खबरें इतनी आम हैं कि अब लोग देखने-पढने और जानने के बाद भी ज्यादा चिंतित नहीं होते। उनकी तरफ से कोई गंभीर प्रतिक्रिया भी नहीं आती। सडक पर भीख मांगते, चोरी-चक्कारी करते तथा कोई अन्य गंभीर अपराध करते बच्चे कौन हैं, किनके हैं, इससे भी वास्ता रखने की नहीं सोची जाती। उनके अपराध कर्म में लिप्त होने के कारणों को जानने की तो जैसे किसी के पास फुर्सत ही नहीं! बस कठोर से कठोर सज़ा देने की जल्दी है। देश की आर्थिक हालात बुरी तरह से लडखडा गये हैं। धनपशु सुधरने को तैयार नहीं। आज सुबह ही अखबार में यह खबर पढने में आयी है कि संतरानगरी नागपुर में शराब के अवैध कारोबार में बारह से सोलह वर्ष के किशोरों को झोंका जा चुका है। उनके अवैध शराब बिकवायी जा रही है। यह वो बच्चे हैं, जिनके माता-पिता इस दुनिया से चल बसे हैं या फिर उनकी आर्थिक दशा अत्यंत दयनीय है। कई किशोर ऐसे भी हैं, जिन्होंने अपने परिवार की बदहाली में सुधार लाने के लिए मजबूरन इस गलत राह को चुना है तो कुछ ऐसे भी है, जिन्हें कम उम्र में परिवार की चिन्ता तथा आसानी से अच्छी कमाई होने का लालच इस ओर खींच लाया है।
नागपुर देश का एक ऐसा शहर हैं, जहां पर मुख्य सडकों, चौराहों के साथ-साथ गली-कूचों में भी देसी विदेशी शराब की दुकानें तथा बीयरबार हैं। यहां पर हमेशा भीड लगी रहती है। इस तेजी से बढते शहर में वर्षों से वैध से ज्यादा अवैध शराब बिक रही है। जानकारों का तो यहां तक कहना है कि इसकी पूरी खबर आबकारी विभाग को भी है तथा पुलिस वालों को भी। यहां तक कि नेता और समाज सेवक भी करोडों-अरबों के इस काले कारोबार से अनभिज्ञ नहीं हैं। दरअसल जिनके हाथों में अवैध शराब के कारोबार की कमान है वे कोई मामूली लोग नहीं हैं। अधिकांश वर्दी वालों को तो वे अपनी उंगलियों पर नचाते हैं। बडे-बडे नेता भी उनके अपने ही हैं। कोई सजग शरीफ शहरी यदि थाने में शिकायत करने के लिए जाता है तो उसे बहुत जल्दी अपनी गलती का अहसास करा दिया जाता है। लठैत, गुंडे-बदमाश लाठी-डंडे, तमंचे, चाकू, तलवारें लेकर उसके घर पहुंच जाते हैं। यह आतंकी महामारी पूरे देश में फैली है। चिन्ता तो इस बात की है कि बच्चों को अपराधी, नशेडी और नकारा बनाने के षडयंत्रों को नजरअंदाज किया जा रहा है। यह जो बच्चे भीख मांगते है, जेबें काटते हैं, ड्रग्स और शराब बेचते हैं उनका ताल्लुक कहीं न कहीं गरीबी और गरीब परिवारों से है। उनके मां बाप भी उन्हें अपराधकर्म करते देख जश्न नहीं मनाते। पीडा तो उन्हें भी होती ही है। पेट भरने की विवशता उन्हें खामोशी की जंजीरों से मुक्त नहीं होने देती। उनका जीवन भी यदि सीधी रेखा की तरह होता, विपत्तियों की भरमार नहीं होती तो वे कभी भी अपने छोटे-छोटे बच्चों को बडे-बडे अपराध करने के लिए खुला नहीं छोड देते। अपने ही देश में ऐसे गरीब माता-पिता हैं, जो अपने बच्चों को बेच देते हैं। चंद रुपयों के लालच में अपनी बच्चियां मानव तस्करों के हवाले कर देते हैं। कुछ दिन पहले मेरी मुलाकात १६ साल के एक ल‹डके से हुई। वह अपनी दस और आठ वर्ष की बहनों की पढाई का खर्चा निकालने के लिए महुआ की शराब बेचता है। उसे मालूम है कि इस काम की बदौलत उसका भविष्य नहीं संवारने वाला। उसकी बस यही चाहत है कि, बहनें पढ-लिख जाएं तो उसे लगेगा कि उसका जीवन सार्थक हो गया है। ऐसे न जाने कितने बच्चे हैं, जो छोटी उम्र में बडे दायित्व निभा रहे हैं। उन्हें अपनी नहीं, अपनों की चिन्ता है, लेकिन उनकी किन्हें चिन्ता है?
नालंदा जिले के इस्लामपुर थाना क्षेत्र के एक सोलह वर्षीय किशोर को बीते मार्च महीने में एक महिला का पर्स चुराने के आरोप में पक‹डा गया। पुलिस जांच में किशोर ने अपना गुनाह स्वीकार करने में देरी नहीं लगायी। जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड के प्रिंसिपल मजिस्ट्रेट मानवेंद्र मिश्र को जब पता चला कि किशोर के पिता की मृत्यु हो चुकी है। उसकी विधवा मां ने मानसिक अवसाद की शिकार होने की वजह से बिस्तर पकड लिया है। उसका एक चार-पांच वर्ष का छोटा भाई है। उसने कूडा बीनने का काम कर मां और भाई के खाने का जुगाड करने की भरसक कोशिश की, लेकिन निराशा और असफलता ही उसके हाथ लगी। बीमार, असहाय मां और मासूम छोटे भाई के खाने का इंतजाम न कर पाने के कारण उसने एक महिला का बैग चुराने की हिम्मत कर डाली। माननीय जज ने परिस्थितियों और अपराध के पीछे के असली कारण को देखते हुए जो फैसला सुनाया, पहले कभी जानने, पढने और सुनने में नहीं आया। उन्होंने न केवल किशोर को चोरी के आरोप से मुक्त किया, बल्कि सरकारी सहायता दिलाने का आदेश देते हुए राशन कार्ड बनाने, मां को विधवा पेंशन देने और किशोर को रोजगार मूलक प्रशिक्षण देने को कहा, जिससे आगे की जिन्दगी ठीक से गुजर सके। उसे किसी के आगे हाथ न फैलाना पडे। माननीय जज के इस अभूतपूर्व फैसले के बाद किशोर और उसके परिवार के लिए कपडे, राशन की व्यवस्था तो की ही गयी, नया घर बनाने के लिए २० हजार उपलब्ध भी करवाये गये। १० हजार रुपये ते स्वयं जज महोदय ने अपनी जेब से दिये। इतना ही नहीं उन्होंने थाने के प्रभारी को किशोर के परिवार की नियमित देखरेख और हालचाल जानने की जिम्मेदारी भी सौंपी। आज किशोर का परिवार खुश है। घर भी बन गया है। खाने-पीने के भी पुख्ता इंतजाम हो गये हैं।

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