Thursday, June 25, 2020

खुद के कातिल

कुछ वर्ष पूर्व जब आध्यात्मिक गुरु, राष्ट्र संत भैय्यू महाराज ने इंदौर स्थित अपने घर में खुद को गोली मारकर हमेशा-हमेशा के लिए मौत के मुंह में सुला दिया था, तब किसी ने ब‹डी सरल भाषा में यह पंक्तियां लिखी थीं,
"दिखायी नहीं देता, शामिल जरूर होता है
हर खुदकुशी करने वाले का, कोई न कोई कातिल जरूर होता है...।"

देश के हजारों लोगों की तरह मुझे भी भैय्यू महाराज की उस आत्महत्या की खबर ने स्तब्ध और विचलित किया था, जो देश का खासा जाना-पहचाना चेहरा थे। अपनी विभिन्न समस्याओं का समाधान जानने के इच्छुक आमजन उनके दरबार में पूरे यकीन के साथ पहुंचा करते थे। वे किसी का चेहरा देखकर उसका हाल जानने का दावा करते थे। उनके भक्तों, प्रशंसकों को भरपूर यकीन रहता था कि उनके 'गुरु' अपार शक्तियों के स्वामी हैं, दूरदर्शी हैं। वे उनकी पारिवारिक, आर्थिक, सामाजिक तथा राजनीतिक समस्याओं का हल निकालने में पूरी तरह से सक्षम हैं। बस उनके चरणों में जाने भर की देरी है कि हर कष्ट का नाश होना तय है...। हमेशा मुस्कराते रहने वाले भैय्यू महाराज का असली नाम उदय qसह देखमुख था। पांच फीट ११ इंच के ऊंचे पूरे इस आध्यात्मिक गुरु के पास करोडों की दौलत थी। देश के नामी उद्योगपतियों, मंत्रियों, नौकरशाहों, समाजसेवकों के बीच उठना-बैठना था। सभी अपनी समस्याओं के समाधान के लिए जब-तब उनके पास दौडे चले आते थे। उपेक्षितों, कमजोरों, गरीबों के जीवन में बदलाव लाने के लिए मॉडलिंग जैसी चकाचौंध की दुनिया को त्यागने वाले भैय्यू महाराज के प्रति लाखों लोगों का सम्मान तब और बढ गया था, जब उन्होंने जाना कि इस आधुनिक संत ने महाराष्ट्र के सोलापुर जिले के पंढरपुर में रहने वाली सेक्स वर्करों के ५१ बच्चों को पिता के रूप में अपना नाम दिया है। हर किसी के दुख-दर्द को समझने और उनका निवारण करने के लिए जाने जानेवाले भैय्यू महाराज की आत्महत्या की जो वजहें गिनायी गयीं, वे बडी आम थीं। उन्हें भी वही बीमारी लग गई थी, जिसने कई साधु-संतों को कहीं का नहीं रखा। कुछ को तो जेल की हवा भी खानी पडी। वर्षों की कमायी इज्जत मिट्टी में मिलकर रह गई। जो महापुरुष लोगों को खुशहाल रहने के प्रवचन देता था। घर-परिवारों को एक सूत्र में बंधे रहने के उपाय सुझाना था। दुराचार और वासना के अंधड को मनुष्य का सबसे बडा शत्रु बतलाना था वही इसके समक्ष नतमस्तक था। एकदम लाचार था! उसकी आत्महत्या ने बंद किताब के सभी पन्ने खोल दिये।
'एम एस धोनी - द अनटोल्ड स्टोरी' फिल्म से अपनी पहचान बनाने वाले फिल्म अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या ने तो जैसे पूरे देश को हिलाकर रख दिया। उनकी मौत के गम में उनके दो प्रशंसकों ने तो अपनी जान भी दे दी। अपने फिल्मी किरदारों की बदौलत दर्शकों के दिलों में बसे सुशांत की आत्महत्या के लिए कुछ फिल्मी चेहरों को दोषी ठहराया जा रहा है। बिहार के लोग तो खासे गुस्से में हैं। इसमें दो मत नहीं कि सुशांत का भविष्य उज्जवल था। उन्हें बहुत दूर तक जाना था। उनके इरादे भी बुलंद थे। फिल्मों में अभिनय करने के साथ और भी बहुत कुछ करने की उनकी तमन्ना थी। पहले भी कई चमकते सितारों ने अचानक मौत को गले लगाकर इस दुनिया से विदायी ली, लेकिन सुशांत का जाना बडा सवाल बन गया। भैय्यू महाराज जहां संत और समाज सुधारक थे तो वहीं सुशांत एक जीवंत कलाकार थे। दोनों का भावुकता और संवेदनशीलता से भी गहरा नाता था। भैय्यू महाराज उस मौलिक सोच के धनी थे, जिसने कई लोगों पर गहरी छाप डाली थी। अभिनेता सुशांत ने अपनी फिल्मों में वही किया जो कहानी और किरदार के लिए जरूरी था। उन्हें दूसरों के लिखे डायलॉग बोलने पर तारीफें और तालियां मिलती रहीं। पर्दे के नायक को अपना असली हीरो मानने वाले लाखों प्रशंसकों को उनकी आत्महत्या ने रूला दिया। गौर से अगर देखा और समझा जाए तो भैय्यू महाराज और सुशांत की आत्महत्या में गजब की समानता दिखायी देती है। दोनों ने 'मंच' पर विचार और शाब्दिक कलाकारी के दम पर उन ऊंचाइयों को छुआ, जिसकी शायद उन्हें भी उम्मीद नहीं थी। दोनों का ही अभिनय तथा प्रेरित करने का अंदाज जबरदस्त था। इस खेल में अभिनेता सुशांत आध्यात्मिक गुरु भैय्यू महाराज पर भारी पडे। संत की मौत पर मातम मनाने वालो की संख्या जहां हजारों में थी, वहीं अभिनेता के चाहने और सहानुभूति रखने वालों की गिनती करना भी मुश्किल हो गया। इतिहास गवाह है कि आमजन कभी भी अपने नायक, प्रेरणास्त्रोत के टूटने-बिखरने-डगमगाने तथा हारने की कल्पना नहीं करते। उन्हें हमेशा यही लगता है कि उनके आदर्श आत्मबल के धनी हैं। वे ऐसे शक्तिमान हैं, जिन्हें हराना असंभव है।
जिन पर इतनी अटूट आस्था हो, दृढ विश्वास हो, उनकी खुदकुशी की खबर सुनकर उनके प्रशंसकों को ही नहीं, हर किसी को आघात तो लगता ही है। सच तो यह है कि दोनों कलाकारों ने अपने प्रशंसकों, भक्तों के उस भरोसे का कत्ल किया है, जिसे उन्होंने अपने-अपने तरीके से हासिल किया था। फिल्मी और धर्म-कर्म की दुनिया के धुरंधर अपनी असल जिन्दगी के सच का सामना ही नहीं कर पाये। इनसे तो वो कई आम लोग अच्छे हैं, जो तरह-तरह के संकटों, तनावों, साजिशों, अवसादों, बीमारियों, अवरोधों का सामना करते हुए भी जूझते और लडते रहते हैं। कभी हार नहीं मानते। यह नामी-गिरामी खुद के हत्यारे तो यह संदेश भी छोड जाते हैं कि जब तक परिस्थितियां आपके अनुकूल रहें तब तक छाती ताने रहो और हालात बिगडने पर खुद को गोली मारो या फांसी के फंदे पर झूल जाओ। इस अंदाज से खुद ही अपने कातिल बन जाओ कि जमाना मातम मनाता रहे। जिस-तिस पर उंगलियां उठती रहें। उनके जाने के बाद लोग उन्हें बुजदिल और कायर कहें, या कुछ और...! उनकी तो जिन्दगी अभिनय थी और मौत भी...।

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