Thursday, August 20, 2020

हमाम में सब नंगे हैं


देखते और सुनते रहते थे कि विदेशी टीवी चैनलों पर समाचार पढते-पढते महिला एंकर यकायक वस्त्रहीन हो जाती हैं। उनका बेलिबास होना दर्शकों को मनोरंजित करता है। भारतवर्ष में नग्नता, फूहडता व बेहयायी को पेश करने का एक अलग अंदाज पिछले कुछ वर्षों से हलचल मचाये हुए है। अपने जिस्म के कपडे को उतारना ही नग्न होना नहीं है। बोलने, बतियाने, चीखने, चिल्लाने, देखने, दिखाने और विषैली प्रतिक्रियाएं जताने के अंदाज से नंगाई के कीर्तिमान रचे जा सकते हैं और यह काम हिन्दुस्तान के अधिकांश न्यूज चैनल वाले बखूबी कर रहे हैं। तिरस्कार तथा थू...थू का उपहार पाते हुए अपनी तथा तमाम मीडिया की हंसी उडवा रहे हैं, जब भी देश में कोई बडी घटना घटती है, हादसा होता है, दुर्घटना होती है। किसी बडी हस्ती के अपराधकर्म का पर्दाफाश होता है, या खुदकुशी की खबर आती है तो न्यूज चैनल वालों की बांछें खिल उठती हैं। भूखे कुत्ते को जैसे काफी भागदौड करने के बाद कहीं हड्डी पडी दिख जाती है और उसमें स्फूर्ति आ जाती है। वैसी ही कुछ हालत अधिकांश टीवी चैनल वालों की हो जाती है। पक्ष और विपक्ष के बहसबाजों, प्रवक्ताओं का मंच सजा दिया जाता है, जैसे कोई अदालत अपना फैसला सुनाने जा रही हो। इस काम के लिए हर न्यूज चैनल वाले के पास अपने-अपने वकील और जज हैं, जिनकी शिक्षा-दिक्षा का कोई पता नहीं। हर विषय पर इनकी बहसबाजी को देखकर असली विद्वानों को अपनी शिक्षा, दिमाग, धैर्य और ज्ञान पर शंका होने लगती है। उनका माथा चकराने लगता है। बेहोश होने तक की नौबत भी आ जाती है। वर्तमान में अनेकों लोगों के द्वारा न्यूज चैनलों से दूरी बनाने की वजह है उनकी शर्मनाक तमाशेबाजी। चैनलों के डिबेट में बार-बार शामिल होने वाले जाने-पहचाने चेहरे क्यों और कैसे बेवकूफियों का इतिहास दोहराने में लगे हैं, इसके सटीक उत्तर के लिए पहले इस शर्मनाक सच को याद कर लें...।
पांच साल पहले देश में पुरुष संतों, प्रवचकारों की भीड में एक नारी साध्वी, राधे मां का नाम बडी तेजी से उभरा था। उसे अपना अराध्य मानने वालों की जहां लंबी कतारें थीं, वहीं उसके विरोधी भी थे। हर तरफ स्वयंभू देवी राधा मां छायी थीं। अधिकांश न्यूज चैनलों पर तो उसका कब्जा सा हो गया था। उसकी नयी-पुरानी दास्तानें सुनाते चैनल वालों के लिए जैसे अच्छी खबरों का अकाल पड गया था। उसके भक्त उसके चमत्कारों का बखान करते दिखाये जाते तो विरोधी उसके काले अतीत के पन्ने खोल-खोलकर टीवी स्क्रीन पर उछलते नज़र आते। उसी दौरान रविवार के एक दिन समाचार चैनल पर राधे मां को लेकर डिबेट यानी बहस चल रही थी। उसके पक्ष में झंडा थामे था पाखंडी बाबा ओमजी तो विपक्ष यानी विरोध की कमान तथाकथित साध्वी दीपा शर्मा और उसकी सहयोगी किसी ज्योतिषाचार्य के लडाकू हाथों में थी। ओमजी राधे मां के गुणगान में लगा था तो दोनों नारियां राधे मां के अश्लील नृत्यों, अनैतिक रिश्तों और धन एेंठने के मायावी तौर तरीकों के साथ-साथ उसका तमाम घृणित काला इतिहास खोलने पर उतारू थीं। पूरे दमखम के साथ अपनी राधे मां के चमत्कारों के पिटारे खोलता ओमजी खुद को असहाय पाने लगा था। राधे मां के व्याभिचार और छलकपट के किस्सों को उजागर करने के साथ उस पर धडाधड जो व्यंग्य बाण छोडे जा रहे थे, उससे वह बुरी तरह से घायल हो चुका था। ऐसे में उसे वही रास्ता सूझा जिस पर दंभी और शातिर पुरुष हमेशा चलता आया है। उसने दोनों नारियों को चरित्रहीन कहते हुए कहा मेरी नजरों में तो तुम वेश्याओं से भी बदतर हो। मेरी राधे मां तो देवी हैं, जिनके लाखों अनुयायी हैं। यह अनुयायी उनके लिए अपनी जान तक दे सकते हैं। ओम आगे भी कुछ बकता, लेकिन उससे पहले दीपा शर्मा फटाक से उस तक पहुंची और उसके गाल पर जबरदस्त तमाचों की बौछार करते हुए मर्दानी गालियां देने लगी। ओम के लिए यह qहसक बर्ताव अकल्पनीय था। उसने जैसे-तैसे खुद को संभाला और घायल सांड की तरह दीपा से भिड गया। राधे मां को लेकर शुरू हुई बहस घूसों, जूतों और महाअश्लील गाली-गलौच की तूफानी बरसात पर जाकर खत्म हुई। इस पूरे तमाशे में एंकर मज़ा लेता रहा। करो‹डों मनोरंजन प्रेमियों की रविवार की छुट्टी साकार हो गई। न्यूज चैनल में लगातार एक हफ्ते तक यह अभूतपूर्व मनोरंजक 'लाइव शो' दिखाया जाता रहा। इस हैरतअंगेज घटना के बाद ओमजी की तो निकल पडी। उसे कई कार्यक्रमों में अपने विचार रखने के लिए बुलाया जाने लगा। दूसरे न्यूज चैनलों में भी उसकी खूब मेहमाननवाजी होने लगी। यहां तक कि देश और दुनिया में अत्यंत लोकप्रिय फूहड शो 'बिग बॉस' में भी लाखों रुपये देकर इस (भगवाधारी) शैतान को प्रतिभागी बना दर्शकों का दिल बहलाया गया, लेकिन यहां पर भी कुत्ते की पूंछ कभी सीधी नहीं होती, की कहावत उसने चरितार्थ कर ही दी। शो में महिला प्रतिभागियों के साथ बदसलूकी करने के कारण जब उसे बाहर किया गया तो उसके प्रशंसकों ने उसे नोटों के हारों से लाद दिया।
अपने देश में हर राजनीतिक पार्टी के अपने-अपने प्रवक्ता हैं। कुछ धर्मगुरुओं ने भी ऐसे तेजतर्रार वक्ताओं की नियुक्ति कर रखी है, जो उनकी प्रखर आवाज तथा मजबूत ढाल बने नज़र आते हैं। इन प्रवक्ताओं का मूल धर्म ही अपनी पार्टी और अपने आकाओं के पक्ष में ऐसी दलीलें देना है, जिनका सामने वाला जवाब न दे पाए या फिर मर्यादा के बंधन में बंधा हिचकिचाता रह जाए। सन २०२० के अगस्त महीने में कांग्रेस के एक विधायक के करीबी रिश्तेदार की धार्मिक भावनाओं को भडकाने वाली एक पोस्ट के कारण पूरे बेंगुलुरु में दंगाई सक्रिय हो गये। विधायक के घर को खाक कर दिया गया। सरकारी संपत्ति को जी भर कर नुकसान पहुंचाया गया। इसके साथ ही वैसी बहसों का सिलसिला चल पडा, जिनके लिए न्यूज चैनल वाले तथा किस्म-किस्म के प्रवक्ता बदनाम हैं। देश के पुराने चैनल 'आज तक' पर शाम छह बजे डिबेट के तुरंत बाद कांग्रेस के जाने-माने प्रवक्ता राजीव त्यागी को इतना जबर्दस्त अटैक आया कि अस्पताल ले जाने से पहले उनकी मौत हो गई। उनकी आकस्मिक मौत ने पूरे देश को स्तब्ध कर दिया। राजीव की पत्नी का बयान आया कि अंतिम समय में वे कह रहे थे कि इन लोगों ने मुझे मार डाला। टीवी डिबेट में उन्हें तीन-चार बार जयचंद कहा गया। उनके माथे पर लगे टीके पर कटाक्ष किया गया। यह भी कहा गया कि यह आग लगाने वाले लोग हैं। भाजपा के धुरंधर प्रवक्ता संबित पात्रा पर हत्या का मुकदमा चलाने की भी मांग की गई।
अगर ऐसे जान जाती है, हत्या होती है, तो यह काम तो पिछले कुछ वर्षों से चैनलों पर हर रोज हो रहा है। दोनों पक्ष के प्रवक्ता अपना-अपना लोहा मनवाने के लिए ऐसी-ऐसी गंदगी उगलते हैं, जिससे समझदार दर्शकों को घिन्न आने लगती है। सभी बहसबाज यही समझते हैं कि उन्होंने फतह हासिल कर ली। बहुत बडा किला जीत लिया। सवाल यह भी है कि समझदार प्रवक्ता ऐसे टीवी डिबेट में शामिल ही क्यों होते हैं, जहां पर बदजुबानों तथा अपमानित करने वालों का वर्चस्व होता है। यहां तक कि एंकर भी स्पष्ट पक्षपाती नज़र आते हैं। सत्ताधारी पार्टी के प्रवक्ताओं के द्वारा विपक्ष के प्रवक्ताओं पर बेइंतहा दबाव बनाया जाता है, उनके धर्म, जात-पात और पहनावे पर तंज कसा जाता है। अपनी बात रखने के लिए उन्हें पर्याप्त समय तक नहीं दिया जाता। उनके बोलने पर आवाज धीमी कर दी जाती है। वे अकेले होते हैं और उनके सामने दो-तीन लडाकुओं की तैनाती कर दी जाती है। वे उनकी तर्कहीन बहस के सामने खुद को एकदम असहाय और अपमानित पाते हैं। न्यूज चैनल वाले अक्सर डिबेट का टायटल भी ऐसा चुनते हैं, जो समाज में घृणा और भेदभाव को बढावा देते हैं। जिसका नकारात्मक प्रभाव दर्शकों पर भी पडता है। दर्शकों में बच्चों का भी समावेश होता है, लेकिन इसकी कभी भी चिन्ता नहीं की जाती। सच तो यह है कि अधिकांश प्रवक्ता अपने-अपने दलों के 'आकाओं' के और एंकर अपने चैनल मालिकों के गुलाम हैं। अंधभक्त सेवक और प्रबल आज्ञाकारी हैं। गुड्डे-गु‹िडया हैं। उनके मालिक और संपादक सरकार की आरती और चम्मचागिरी पर ही जिन्दा हैं। निरंतर उनका विकास हो रहा है। सरकारी ठेके मिल रहे हैं। बिल्डिंगें तन रही हैं। तमाम ऐशोआराम झोली में टपक रहे हैं। प्रवक्ताओं के भी कई-कई स्वार्थ हैं। जितनी अपनी पार्टी की घंटी बजायेंगे, गालियां खायेंगे, अपमानित होंगे उतनी ही सहानुभूति के पात्र बनने के साथ-साथ 'आकाओं' की निगाह में भी सितारे की तरह चमकेंगे। विधानसभा, लोकसभा की टिकट नहीं तो राज्यसभा और विधान परिषद तो पहुंचा ही दिये जाएंगे और भी कई सपने पूरे हो जाएंगे। इसलिए अधिकांश प्रवक्ता सर्कस के जानवर की तरह नाचते हैं। एंकरों की जी-हजूरी करते हैं। उन्हें तरह-तरह के उपहार तथा अपने बागों के आम खिलाकर खुश रखते हैं ताकि उनकी उपस्थिति बनी रहे। इसलिए किसी को दोष देना बेनामी है। सबके अपने स्वार्थ हैं। जब केंद्र में भाजपा की सरकार नहीं थी तब कांग्रेस और उनके साथी दल के प्रवक्ता भी वही करते थे, जो आज भाजपा के प्रवक्ता कर रहे हैं। याद कर लें संजय निरूपम को जो कभी शिवसेना में थे तो सोनिया गांधी का जी भरकर मजाक उडाते थे। जब कांग्रेस में आये तो इस शख्स ने प्रवक्ता के तौर पर स्मृति ईरानी का न्यूज चैनलों पर जो चरित्र हनन किया था उसको भी भुलाया नहीं जा सकता। इसलिए भले ही कोई माने या न माने हम तो यही कहेंगे कि इस हमाम में तो सभी नंगे हैं।

No comments:

Post a Comment