खबर तो बहुत अच्छी है। अपने देश की शीर्ष अदालत ने बेटियों के पक्ष में सुनाये गये अपने निर्णय में साफतौर पर कहा है कि पैतृक सम्पति में बेटों की तरह बेटियां भी बराबर की हकदार हैं। कुछ लोगों को अदालत का यह कहना तो कतई अच्छा नहीं लगा कि बेटियों का अपने मां-बाप से जीवन के अंत तक लगाव और जुडाव बना रहता है, जबकि बेटे शादी के बाद काफी बदल जाते हैं। पत्नी के होकर रह जाते हैं। कुछ विद्वानों ने अदालत की इस सोच को एकपक्षीय बताते हुए कई लम्बे-लम्बे लेख तक लिख डाले। यह कलमकार भी उनके विचार से सहमत है। भारत वर्ष में ऐसे बेटों की कभी कमी नहीं रही जो अपने जन्मदाताओं को ही सर्वस्व मानते हैं। शादी होने के बाद भी उनके आदर-सम्मान में कोई कमी नहीं होने देते। संस्कारवान, आज्ञाकारी बेटे हर रिश्ते को निभाने में निपुण होते हैं, लेकिन 'अपवादों' के कारण ही अविश्वास तथा निराशा के बादल छाये रहते हैं। नालायक बेटों के मां-बाप के साथ घोर दुव्र्यवहार के कितने-कितने समाचार खून के रिश्ते की निर्मम हत्या का सच बयां कर देते हैं। लडकों के नालायक हो जाने के कई कारण हैं। एक ब‹डा कारण है, इक्कीसवीं सदी में भी हमारी आपकी वो पुरातन सोच और धारणा कि लडके तो कुलदीपक होते हैं, वारिस होते हैं। वे ही तो पिता का नाम जीवित रखते हैं। लडकियां तो पराया धन होती हैं। माता-पिता की कमर झुकाकर रख देने वाला भारी बोझ होती हैं। यही विचार और व्यवहार कितना घातक है, खुद के साथ किया गया छल है, इसका पता जब-तब चलता रहता है। जब तथाकथित कुलदीपक जमीन-जायदाद के लिए माता-पिता की हत्या कर देते हैं। बुढापे में उनकी जमापूंजी पर कब्जा कर उन्हें अकेला छोड देते हैं। खानदानी कुलदीपक और भी कैसे रंग दिखाते हैं, गुल खिलाते हैं उसकी भी खबरें समय-समय पर सुर्खियों में सामने आती रहती हैं। फिर भी भ्रम है कि टूटता नहीं। इस रोग के शिकार अमीर भी हैं और गरीब भी। सुप्रीम कोर्ट ने लडकियों को अपने पिता, दादा, परदादा की सम्पत्ति में बराबरी का हकदार होने का फैसला तो सुना दिया है, लेकिन... जब अब भी भारतवर्ष में बेटियों के बेशुमार कातिल हैं, तब यह सवाल भी जवाब मांग रहा है कि जब लडकियां ही नहीं रहेंगी तब यह फैसला किसके लिए...। किस काम का?
१५ अगस्त २०२० के स्वतंत्रता दिवस के दिन देश की राजधानी में एक ढाई माह की मासूम बच्ची को उसके पिता ने साठ हजार में बेच दिया। उनके परिवार में पहले से ही दो बेटियां थीं। तीसरी बेटी के जन्म लेने के बाद से ही पिता की रातों की नींद उड गई थी। बेटे की चाहत में पिता का धर्म भूलने वाले इस शख्स ने यह घोर अपराध कर तो डाला, लेकिन कुछ दिनों के बाद उसे अपने क्रूर कृत्य पर शर्म आई तो उसने पुलिस स्टेशन पहुंचकर बच्ची को वापस पाने की फरियाद की। पुलिस पता लगाते-लगाते बच्ची के खरीददार तक पहुंची तो उसने बताया कि उसने बच्ची किसी दूसरे को अस्सी हजार में बेच दिया है। पुलिस ने बिना समय गंवाये उसके बताये खरीददार के यहां दस्तक दी तो उसने यह कहकर खाकी वर्दी को चौंकाया कि बच्ची तो एक लाख रुपये में संजय नाम के कारोबारी को बेची जा चुकी है। संजय चावडी बाजार में रहता है। बच्ची को संजय के यहां से बरामद कर लिया गया। संजय का कहना था कि उसकी शादी हुए कई वर्ष हो गये हैं, लेकिन अभी तक वह निसंतान है। वह पिछले कुछ वर्षों से निरंतर बच्चा पाने की कोशिशों में लगा था। संयोग से यह मौका मिला, जो कतई घाटे का सौदा नहीं था। सौदागर यदि और भी ज्यादा धन मांगते तो मैं राजी हो जाता। उधर जब तीन बार बेची गई बच्ची के पिता से गहन पूछताछ की गई तो उसने अपनी विवशता का राग गाया..., कि मैं अदना-सा वाहन चालक हूं। मेरी पहले से ही दो बेटियां थीं। कोरोना के डर और लॉकडाउन ने कमायी-धमायी तो छीन ही ली और उस पर तीसरी बेटी हुई तो मुझे तनाव और चिन्ता ने घेर लिया। इस बीच मनीषा नामक महिला मिली। बच्ची की कीमत देते वक्त उसने वायदा किया था वह मासूम को अच्छी तरह से पाले-पोसेगी। उसे कभी भी कोई कष्ट नहीं होने देगी। ६० हजार रुपयों का मिलना मेरे लिए लाटरी लगने जैसा था, लेकिन जब मैंने अपनी नन्ही, मासूम बच्ची के लिए आंसू बहाती मां की तडपन और बेचैनी देखी तो मेरे लिए भी चैन से सो पाना मुश्किल हो गया। मुझे अपनी पत्नी को खोने का डर सताने लगा था।
राजधानी में ही जश्न-ए-आजादी से बेखबर एक जननी ने तीसरी बार बेटी होने पर उसे सराय रोहिल्ला रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म पर लावारिस छोडा और चुपचाप खिसक गई। महिला का पति चप्पल की फैक्टरी में काम करता है। आर्थिक स्थिति ठीक-ठाक है। उसे तीसरी बार बेटे के आने की उम्मीद थी। पत्नी भी लडके के होने की राह देख रही थी, लेकिन जब उसने स्वस्थ बेटी को जन्म दिया तो इतनी ज्यादा अवसादग्रस्त हो गई कि उसने अपनी ही जान देने की ठान ली। वह अपनी कलाई की नस काटने जा रही थी, लेकिन परिजनों के ऐन वक्त पर देखने की वजह से वह ऐसा नहीं कर सकी। उसने जब अपनी खुद की नवजात को प्लेटफार्म पर छोडा तब एक साधु की उस पर नज़र प‹ड गई। उसने पुलिस को खबर कर दी, लेकिन तब तक वहां से गायब हो चुकी थी, लेकिन पुलिस ने तीन घण्टे के भीतर नवजात के परिवार को ढूढ निकाला। जिस दिन यह बच्ची मिली उसी दिन हिमाचल प्रदेश के शहर मंडी में एक पिता ने बेटी को जन्म लेते ही जमीन में जिन्दा दफन कर दिया।
चाय की छोटी से दुकान चलानेवाले जितेंद्र भाटी को अब ताउम्र बेटी को खोने के गम के साथ जीना होगा। उनकी होनहार बेटी सुदीक्षा चार करोड की स्कॉलरशिप पर अमेरिका में बिजनेस मैनेजमेंट की पढाई कर रही थी। महत्वाकांक्षी, हंसती मुस्कुराती रहनेवाली सुदीक्षा अपने चचेरे भाई के साथ बाइक पर कहीं जाने के लिए निकली थी। इस दौरान किसी परिवार के 'कुलदीपक', 'कुलभूषण' दो बुलेट सवारों ने उनका पीछा करते हुए छेडछाड करनी शुरू कर दी। सुदीक्षा और उसके भाई को युवकों की गलत नीयत का अंदाजा लग गया। बदमाशों ने जहां से उनका पीछा शुरू किया था वहां आसपास घना जंगल है। यहां पर पहले भी दुष्कर्म की घटनाएं हो चुकी हैं। अपने मां-बाप के दुलारे हवसखोर शैतानों ने अचानक अपनी बाइक का ब्रेक लगाया तो पीछे आ रही सुदीक्षा की बाइक उनकी बाइक से टकरा गई, जिससे वह सडक पर गिर गई और मौत हो गई। सुदीक्षा, अमेरिका में रहने के बाद भी परिवार का पूरा ख्याल रखती थी। अपने परिवार की आर्थिक स्थिति में आमूल-चूल बदलाव लाने के सपने देखने वाली यह अकेली बेटी दस बेटों पर भारी थी। दरअसल अपने मां-बाप की वह ऐसी संस्कारी बेटी थी, जिस पर हर किसी को गर्व था। वह पार्ट टाइम जॉब करके बहनों की पढाई के लिए नियमित फीस भेजती थी। चार बहनों में सबसे बडी सुदीक्षा की मौत से परिवार पूरी तरह से टूट गया है। बहनों का तो भविष्य ही अंधकारमय हो गया है।
Thursday, August 27, 2020
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment