Wednesday, September 16, 2020

बागी लडकी के कच्चे-पक्के बोल

तेरी भी चुप मेरी भी चुप की राह पर छलांगे मारती भीड में से एकाएक एक दुबली-पतली लडकी बाहर निकली और हंगामा बरपा दिया। वह शुरू से ही ऐसी रही है। सोलह साल की उम्र में घर से भाग खडी हुई। यह भागने-भगाने का काम तो अक्सर लडके करते आये हैं। इस लडकी ने लडकों वाली राह पकडने में कतई कोई संकोच नहीं किया। उसकी जिद थी मायानगरी मुंबई पहुंच कर नायिका बनना है। लाख विरोध, अवरोध पार करते हुए उसने अपने सपने को साकार कर दिखाया। सन २००६ में उसने अपनी पहली फिल्म 'गैंगस्टर' से ऐसा डंका पीटा, जिसकी आवाज अभी तक गूंज रही है। उसके पिता का सपना था कि बेटी डॉक्टर बने। उन्होंने जब बेटी की फिल्म देखी तो उनका माथा चकरा गया। वे भारी तनाव में आ गये। बेटी ने यह कौन सी माफियाओं की भयावह दुनिया की राह पकड ली! फिल्म में बिटिया का बोल्ड किरदार देखकर उन्हें वो दिन याद हो आये जब वे बेटे के खेलने के लिए प्लास्टिक की बंदूक लाते और उसके लिए गु‹िडया तो वह भडक उठती थी। लडने लगती थी कि यह कैसी बेइंसाफी है। मुझे भी बंदूक लाकर दो। बंद करो बेटे-बेटी के बीच भेदभाव।
पैंतीस फिल्मों में प्रभावी अभिनय कर तीन नेशनल अ‍ॅवार्ड जीत चुकी इस लडकी यानी अभिनेत्री कंगना रनौत के बगावती तेवर आज भी जस के तस हैं। बिना किसी गॉडफादर के दूर पहाडों से आकर फिल्मी नगरी मुंबई में धमाका मचाने वाली कंगना का विवादों से ब‹डा पुराना नाता रहा है। जहां पर हर कोई तौल-मोल कर बोलता है वहां पर वह बेखौफ अपना मुंह खोलने में देरी नहीं लगाती। कच्चे-पक्के बोल बोलती ही चली जाती हैं। अभिनेता सुशांत qसह राजपूत की मौत मिस्ट्री के बाद तरह-तरह की शंकाओं और आरोपों के साथ पूरे देश में शोर मचा। अभिनेत्री ने कुछ ज्यादा ही ताकत लगाते हुए राग छेड दिया कि मायानगरी के जर्रे-जर्रे में घर कर चुके नेपोटिज्म यानी भाई-भतीजावाद और घोर पक्षपात ने युवा अभिनेता की जान ले ली। ऊपर से चमकने वाली इस फिल्म नगरी के भीतर अंधेरा और निराशा ही निराशा है। उसने तो बॉलीवुड के दिग्गजों के ड्रग्स के लती होने का धमाका कर यह कह डाला कि वह फिल्म संसार के कई चमकते चेहरों को बेनकाब करने को तैयार है, जिनके ड्रग्स माफियाओं से करीबी संबंध हैं, लेकिन यह विस्फोटक रहस्योद्घाटन वह तभी करेगी जब उसे केंद्र सरकार पुख्ता सुरक्षा मुहैया करवाए। मुंबई पुलिस पर उसका कतई भरोसा नहीं। उससे तो उसे डर लगता है। कौन जाने वह कब क्या कर दे। तेज तर्रार अभिनेत्री की मुंबई पुलिस पर अविश्वास तथा संदेह जताने की हिमाकत पर कई लोगों ने आश्चर्य प्रकट किया। उसका विरोध होने लगा। शिवसेना और शिवसैनिक पलटवार की मुद्रा में आ गये। कहा गया कि अगर मुंबई में इतनी दहशत है तो यहां आने की जरूरत ही क्या है। चुप वह भी नहीं रही। ललकारने के अंदाज में सोशल मीडिया के माध्यम से जवाब फेंका कि मैं क्यों न आऊं मुंबई? क्या यह महानगर किसी के बाप की जागीर है या फिर पीओके है। मुंबई की पाक अधिकृत कश्मीर से की गई तुलना ने उसके कम अक्ल और संयमहीन होने की पराकाष्ठा का इज़हार कर दिया। इसके साथ ही यह संदेश भी दूर-दूर तक गया कि यह लडकी तो अहसानफरामोश है। जिस माया नगरी ने उसे बुलंदियों के आसमान तक पहुंचाया, धन-दौलत से मालामाल किया, उसी के प्रति इसके मन में qकचित भी आदर सम्मान नहीं। जो मुंह में आता है, बक देती है।
इसमें कोई शक नहीं कि अभिनेत्री के कडवे बोल कई लोगों को चुभे। खून भी खौला, लेकिन उनका क्या जिन्होंने उसे हरामखोर कहकर बाद में हरामखोर की परिभाषा ही बदल दी! अपनी छाती पर बुद्धिजीवी का तमगा लटकाये घूमते कुछ विद्वानों ने 'पद्मश्री' कंगना को चरित्रहीन घोषित करने के लिए खुद को गिराने में भी देरी नहीं लगायी। पता नहीं इस गिरावट के पीछे उनका कौन सा स्वार्थ और मजबूरी थी। किसी ने सोशल मीडिया पर अभिनेत्री की वो नग्न तस्वीरें फैला दीं जो उसके फिल्मी किरदार की मांग थीं। फिल्मों में निभाये गये रोल को ही उसके चरित्र का पैमाना बनाने वालों को अनेकों आम सजग जनों ने खूब लताडा, लेकिन उनकी सोच में कोई तब्दीली नहीं आयी। वे तो ढूंढ-ढूंढ कर उन तस्वीरों की नुमाइश करते रहे, जिनमें पर्दे की नायिका नाम मात्र के वस्त्रों में शराब, सिगरेट और ड्रग्स लेने में तल्लीन दिखीं। सच तो यह है कि कंगना ने तो बेवकूफी की ही, शासन और प्रशासन ने भी वो अक्लमंदी नहीं दिखायी, जिसकी अपेक्षा थी। आखिर उसे इतनी अधिक अहमियत देने की जरूरत ही क्या थी? ब‹डबोली अभिनेत्री पर वार करने के बहाने अन्य लोगों को भी चमकाया गया। उसके कार्यालय पर बुलडोजर चलाकर यह खुली चेतावनी दे दी गयी कि हमारे खिलाफ मुंह खोलोगे तो बच नहीं पाओगे! कंगना रनौत को केंद्र सरकार के द्वारा सुरक्षा मुहैया कराया जाना चर्चाओं और अनुमानों की झडी लगा गया। निकट भविष्य में उसके राजनीति में प्रवेश करने की बातें होने लगीं। कंगना का मुंबई पहुंचकर मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे का नाम लेकर खरी-खोटी सुनाना और भाषा की मर्यादा तोडना अधिकांश भारतीयों को बिलकुल अच्छा नहीं लगा। वहीं गृहमंत्री महोदय का कंगना पर ड्रग लेने और काला जादू करने का बचकाना आरोप भी कतई नहीं जचा। अभिनेत्री स्वयं स्वीकार कर चुकी है कि एक दौर था जब वह ड्रग्स की आदी हो गई थी, लेकिन कालांतर में उसने खुद को योग और प्राणायाम की मदद से इस दलदल से बाहर निकाला। ऐसा लगता है 'काला जादू' का qढढोरा पीटने और सुनी-सुनायी बातों पर यकीन करने वाले मंत्री महोदय ऐसे प्राणी हैं जो घोर अंधश्रद्धा के भी शिकार हैं। तभी तो उन्होंने कंगना के 'काला जादू' का जोरदार डंका पीटने की बुद्धिमानी दिखाते हुए मित्रमंडली से अपनी पीठ थपथपवाली। मुंबई पुलिस की चुस्ती-फुर्ती, कर्तव्यपरायणता का अपना उज्जवल और प्रेरक इतिहास रहा है। तभी तो उसकी तुलना स्कॉटलैंड की पुलिस से की जाती है, जो अपराधियों को पाताल से भी खोज निकालने के लिए विख्यात है। लेकिन एक चिन्ताजनक सच जिसे मुंबई पुलिस के पूर्व आईपीएस अधिकारी योगेंद्र प्रताप qसह ने उजागर किया है उसे भी नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता।
योगेंद्र प्रताप qसह ने वर्ष २००५ के आसपास भारतीय पुलिस सेवा की नौकरी से इसलिए इस्तीफा दे दिया था क्योंकि उन्हें वहां पर बेहद घुटन होने लगी थी। वजह थी मंत्रियों का जबर्दस्त दबाव और दखलअंदाजी। उन्होंने अपनी किताब में लिखा है कि हर खाकी वर्दीधारी ईमानदारी से अपना दायित्व निभाना चाहता है। मुझे नही पता था कि पुलिस अफसरों को सरकारें अपने इशारे पर नचाती हैं। मैंने खाकी वर्दी पहनने के साथ ही कसम खाई थी कि अन्याय, भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारी का कभी भी साथ नहीं दूंगा। किसी भी हालत में कभी भी रिश्वत नहीं लूंगा। किसी के दबाव में भी नहीं आऊंगा। उन्हें उनकी इस सोच के कारण अजीब निगाहों से देखा जाने लगा। जब वे रिश्वत लेते नहीं थे तो देते कहां से? धनप्रेमी गृहमंत्री मंत्री जी की कृपा से उनके साथ के आईपीएस अधिकारी आईजी बना दिये गये, लेकिन उन्हें प्रमोशन से कोसों दूर रखा गया। जिस पथभ्रष्ट अफसर की उन्होंने जांच की और दोषी पाया उसी को मंत्री की मेहरबानी से उनका बॉस बना दिया गया! जिन अराजकतत्वों, कू्रर अपराधियों, माफियाओं को उन्होंने कभी सरे बाजार पीटा और हथक‹िडयां पहनायीं, कालांतर में वही नेता का चोला पहनकर सांसद, विधायक, मंत्री बन गये। उनकी जी-हुजूरी करना उनके बस की बात नहीं थी। उन्होंने जैसे-तैसे बीस साल तक खाकी वर्दी पहने रखी और उस पर एक भी दाग नहीं लगने दिया। नौकरी छोडने के बाद इस निहायत ही ईमानदार अधिकारी ने मुंबई हाईकोर्ट में प्रेक्टिस करते हुए गरीब असहाय लोगों को न्याय दिलवाया। उन्होंने अपने देखे और भोगे हुए कटु यथार्थ पर एक फिल्म भी बनायी। फिल्म के एक दृश्य में एक नये आईपीएस अफसर को एक हवलदार की ईमानदारी से प्रभावित होकर कभी भी रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार न करने की प्रतिज्ञा लेते हुए दिखाया गया है। वहीं दूसरी ओर एक महाभ्रष्ट और चाटूकार कमिश्नर को अपना कार्यकाल बढवाने के लिए गृहमंत्री के चरणों में गिडगिडाते हुए दिखाया गया है। मंत्रियों के माफियाओं से करीबी रिश्तों के सच को भी इस फिल्म में उजागर किया गया।
इस नुकीले सच को भी जान लें कि योगेंद्र प्रताप qसह की अफसरी के कार्यकाल में जो महान नेता, गृहमंत्री थे, वे वर्तमान शिवसेना, राकां, कांग्रेस की मिली-जुली सरकार में मंत्री हैं। माननीय मंत्री जी जेल की कोठरी में भी कई महीने गुजार चुके हैं। किस जुर्म में? यह भी क्या बताने की जरूरत है...!

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