Wednesday, September 9, 2020

तेरा, मेरा, किस-किस का चेहरा

कुछ बातें अब खुलकर होनी जरूरी हैं। कई शंकाएं हैं, जिन्होंने अमनपरस्त भारतीयों की नींद उडा रखी है। बिना जाने और सोचे समझे किसी को अपराधी करार देने का चलन निर्दोषों की जानें लें रहा है। उन्हें सज़ा पर सज़ा दिलवा रहा है। एक ही झटके में पहले तो किसी शख्स को आतंकी, हत्यारा, बलात्कारी, भ्रष्टाचारी, व्याभिचारी बता कर उसकी तथा उसके समस्त परिवार की इज्जत की धज्जियां उडा और उडवा दी जाती हैं। अखबार और न्यूज चैनल उसे अंतिम सच मानकर फोटो छाप और दिखा-दिखाकर मुनादी-सी पीटने लगते हैं कि इस शैतान से बचकर रहना। मीडिया की इस शैतानियत के बाद उस शख्स को तथाकथित अपने तथा तमाम बेगाने शंका की निगाह से देखने लगते हैं। यहां तक कि उसके माता-पिता, भाई-बहन को भी अपराधी मान लिया जाता है। आस-पडोस के वर्षों से जानकर लोग भी उनसे मिलने में कतराने लगते हैं। यह तो अच्छा है कि देश की अदालतें, दूध का दूध और पानी का पानी कर देती हैं। नहीं तो यह अंधेर और अंधेरगर्दी पता नहीं कितनों को खाक कर देती। पूरी तरह से निगल जाती और वास्तविकता कभी सामने आ ही नहीं पाती।  
जरूरी नहीं कि हर किसी ने डॉक्टर कफील खान का नाम सुना हो। यह वो इंसान हैं, जिन्हें उत्तर प्रदेश की धार्मिक नगरी मथुरा की जेल में घुट-घुटकर सात माह की कैद भोगनी प‹डी। शुरू-शुरू में उन्हें चार-पांच दिन तक भूखा रखा गया। फिर खाने के नाम पर एक-दो चपाती दी जाने लगीं ताकि वे जिन्दा तो रहें। मर गये तो बहुत शोर मचेगा। लोग प्रशासन तथा सरकार को कोसेंगे। बुद्धिजीवी महिला-पुरुष झंडे, डंडे और मोमबत्तियां लेकर सडकों पर उतर आयेंगे। जमकर तमाशा होगा। कोई भी सत्ता ऐसे तमाशों से बहुत घबराती है। भले खुद तमाशे पर तमाशे करती रहे। बेकसूरों पर डंडे बरसाते हुए उन्हें जेल में सडाती रहे। गोरखपुर में बीआरडी मेडिकल कालेज में २०१७ में आक्सीजन की कमी के कारण ७० मासूम बच्चों की मौत हो गई थी। इन मौतों को लेकर देश और दुनिया में काफी हो-हल्ला मचा था। तब अस्पताल में डॉ. कफील बालरोग विशेषज्ञ के तौर पर कार्यरत थे। उन्हें लापरवाही बरतने तथा भ्रष्टाचार करने के आरोप में निलंबित कर गिरफ्तार किया गया था। डॉ. कफील ने अपने पर लगे तमाम आरोपों को गलत साबित कर दिखाया, लेकिन जेल भेजे जाने के कारण उनकी तथा पूरे परिवार की काफी बदनामी हुई। इतना ही नहीं उनके भाई को एक पुराने कथित धोखाधडी के मामले में गिरफ्तार कर लिया गया। अपमान और मानसिक टूटने की पीडा से टकराते कफील एक बार फिर १९ जनवरी को मुंबई में गिरफ्तार कर लिये गए। गिरफ्तार करने की वजह बना था नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी विरोधी वो भाषण जो उन्होंने १२ दिसंबर २०१९ को अलीगढ मुस्लिम विश्व विद्यालय के गेट पर दिया था। नफरत और qहसा फैलाने के संगीन आरोप में जेल में डाले गये कफील को वर्षों तक बंदी बनाये रखने की शासन और प्रशासन की साजिशी तैयारी में पानी फिर गया, जब उन्हे यूपी हाईकोर्ट ने निर्दोष मानते हुए रिहा करने का आदेश दे दिया। डॉ. कफील तो जेल से बाहर आ गये, लेकिन उनपर राष्ट्रद्रोही होने का जो ठप्पा लगा उसका क्या? सात महीने जेल की सलाखों में कैद रहकर भोगी शारीरिक और मानसिक यातनाएं, पीडा और बदनामी ताउम्र उनका पीछा नहीं छोडने वाली। यह दर्द भी शूल-सा सीने में चुभा रहने वाला है कि उनके परिवार को नज़रे नीची कर मौत से बदतर जिन्दगी जीनी पडी। आर्थिक हालत इस कदर बिगड गई कि सौ-पचास रुपये के लिए भी मोहताज रहना पडा। बडे से बडा हर्जाना और सहानुभूति उनके जख्म नहीं भर सकती। बडी बेदर्दी से छीने गये उनके दिनों और तार-तार की गई इज्जत को कोई भी वापस नहीं लौटा सकता।
अफवाहों की आंधी में सांस लेते महानगर के चौराहे पर एक युवक की किसी युवती से कहा-सुनी हो गई। तेजतर्रार युवती ने पहले तो थाने में रिपोर्ट दर्ज करवायी फिर उस युवक की फोटो फेसबुक आदि पर डालते हुए लोगों को आगाह करने के अंदाज में लिखा कि छुट्टे सांड की तरह सडकों पर घूम-घूम कर लडकियों की इज्जत के साथ खिलवाड करने वाले इस बदमाश से सावधान। इस कमीने ने मेरी अस्मत पर डाका डालने की कोशिश कर बता दिया है कि इस महानगर में लडकियों का जीवन बेहद खतरे में है। न्यूज चैनलों पर भी बुद्धिजीवी शरीफों ने युवती के साथ हुई ‘हैवानियत' को गर्मागर्म बहस का मुद्दा बना लिया। युवक ने खुद पर केंद्रित खबर को देखते ही थाने पहुंचने में देरी नहीं लगायी। उसने अपना पक्ष रखते हुए बताया कि कोई छेडछाड हुई ही नहीं। ट्रेफिक जाम होने की वजह से उसकी स्कूटर युवती की कार से जा टकरायी थी। गुस्सायी युवती ने कार से उतरकर पहले तो गालियों की बौछार की फिर धडाधड तस्वीरे लेने लगी। कुछ लोगों ने वीडियो भी बनाया। वह युवती को समझाते रहा, गलती के लिए माफी भी मांगी, लेकिन उस पर तो मीडिया में छाने का भूत सवार था। युवक के समर्थन में भी कई लोगों के सामने आने से पुलिस भी ठंडी पड गई। बेवजह अपराधी घोषित कर दिये युवक ने युवती को माफी मांगने को कहा तो वह अपनी अकड में तनी रही।
शहर की एक नामी कॉलोनी के रामदयाल नामक दुकानदार को एक बच्ची को दुलारने-पुचकारने की जो सजा मिली वह भी दिल-दिमाग को हिला देने के लिए काफी हैं। रामदयाल की रोजमर्रा के सामानों की दुकान काफी चलती थी। बडों के साथ बच्चों का भी आना लगा रहता था। रामदयाल बच्चे, बच्चियों को चाकलेट देकर खुश हो लेते थे। एक दिन एक छह साल की बच्ची गायब हो गई। उसके मां-बाप ने खूब दौडधूप की, लेकिन बच्ची नहीं मिली। किसी ने शंका जाहिर कर दी कि रामदयाल की यह करतूत हो सकती है। बच्ची उसके यहां अक्सर चाकलेट के लिए खींची चली जाती थी। कॉलोनी के कई लोगों ने देखा था। पुलिस थाने में भी रामदयाल पर शक की शिकायत पहुंची तो उसे उठा लिया गया। तरह-तरह की बातें होने लगी...। इस शौकीन किस्म के अधेड इंसान ने कहीं उसे मानव तस्करों के हाथों तक नहीं पहुंचा दिया। इसकी दुकान तो ज्यादा नहीं चलती, लेकिन फिर भी हमेशा खुश रहता है, जैसे घर में पैसों की बरसात हो रही हो। पिछले साल इसने नयी एक्टिवा भी खरीदी थी, जिससे उसकी बेटी कॉलेज जाती-आती है। जहां देखो वहां, जितने मुंह उतनी बातें। किसी ने तो यहां तक कहने में संकोच नहीं किया कि बच्ची का रेप कर इस शैतान ने कहीं मार कर फेंक दिया होगा। परिवार भी लोगों के निशाने पर आ गया। उसकी दुकान पर कदम न रखने का फरमान जारी कर दिया गया। पूरे परिवार की भूखे मरने की नौबत आ गई। एक दिन किसी शैतान ने रामदयाल की लडकी पर बलात्कार कर दिया। कहीं कोई शोर शराबा नहीं हुआ। कहा गया कि बलात्कारी-हत्यारे की बेटी के साथ ऐसा तो होना ही थी। पिता जेल में था। कुछ दिनों के बाद बेटी ने आत्महत्या कर ली। सालभर बाद गायब बच्ची दूसरे शहर में ही भीख मांगती मिली। बच्चों से भीख मंगवाने वाले गिरोह के बदमाशों ने बच्ची का अपहरण कर भीड-भाड वाले इलाकों में भीख मांगने के लिए हाथ में कटोरा थमा दिया था। कई महीने जेल में रहने के बाद रामदयाल जब बाहर आया तो उसकी सारी दुनिया ही लुट चुकी थी।
आज हमारे सामने व्यक्ति और समाज का जो निष्ठुर और कुरुप चेहरा है उसके लिए सोशल मीडिया भी बहुत बडा कुसूरवार है। जब देखो तब झूठ, कट्टरता, सनसनी, उत्तेजना, गुस्सा और घृणा फैलाने वालों की कर्कश चीखें काफी ज्यादा सुनायी देती हैं। इनका चीखना-चिल्लाना, लिखना-बताना उन चैनलों जैसा ही है, जो सुशांत की साथीदार रही रिया को किसी भी तरह फांसी पर लटकते देखना चाहते हैं। बेचैन लोगों की बेसब्री देखकर मुझे भीड की दादागिरी की याद हो आयी है। बीते वर्ष भी नागालैंड के दीमापुर की सेंट्रल जेल पर करीब दो हजार लोगों की उग्र भीड ने तालीबानी तरीके से न्याय करने के लिए हमला कर दिया था और जेल में बंद बलात्कार के आरोपी को सडक पर खींचकर निर्दयता से मार डाला था। इतनी qहसक शैतानियत से भी उन्हें पूरी तरह से संतुष्टि नहीं मिली थी इसलिए उन्होंने उसके शव को चौराहे पर फांसी पर लटका दिया था। उसकी नृशंस हत्या के बाद वो लडकी सामने आई थी, जिसने बताया था कि उसके साथ बलात्कार तो हुआ ही नहीं था। दोनों ने सहमति से संबंध बनाये थे। इसके लिए उसे पांच हजार रुपये दिये गये थे, लेकिन उसकी ज्यादा रकम की मांग थी, जिसकी वजह से झगडा हुआ था, लेकिन कुछ लोगों को गलतफहमी हो गई थी कि उसकी इज्जत लूटी गई है।

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