Thursday, September 24, 2020

अधूरी किताब

अभी बीस दिन भी नहीं बीते जब राजेश रंजन से कितनी देर तक बातचीत हुई थी। उसने बताया था कि वह इन दिनों बेहद तनाव से गुजर रहा है। पिछले कुछ दिनों से खुद की तबीयत ढीली-ढीली थी। तीन दिन पहले उम्रदराज माता-पिता और बडे भाई कोरोना पॉजिटिव पाये गये हैं। सबकुछ बिखरा-बिखरा-सा लग रहा है। मैं यहां देहरादून में हूं और वे हजारों मील दूर अकेले सीतापुर में कोरोना से लड रहे हैं। सीतापुर कहने को तो शहर है, लेकिन वहां पर अच्छे अस्पतालों का अभाव शुरू से रहा है। सरकारी अस्पतालों पर लोग वैसे भी ज्यादा भरोसा नहीं करते। निजी चिकित्सालय और डॉक्टर मरीजों की जेबे खाली करने के लिए कुख्यात रहे हैं। उस पर इस आंधी की तरह आयी कोरोना की बीमारी ने तो अधिकांश डॉक्टरों को मरीजों के साथ लूटपाट करने का बहाना उपलब्ध करवा दिया है। धन के लालची ऐसे मुंह फाड रहे हैं, जैसे इससे पहले नोटों के दर्शन करने से वंचित रहे हों। अस्पताल में भर्ती करने से पहले डेढ-दो लाख रुपये जमा करने का फरमान सुनाते हैं, जैसे मरीजों के घर में ही नोटों की छपायी हो रही हो। मुझे जैसे ही खबर लगी, मैंने अपनी जीवनभर की जमा पूंजी के चार लाख रुपये मां-बाबू जी के पास भिजवा दिये थे। कल सुबह-सुबह फिर अस्पताल में भर्ती भैय्या का मैसेज आया कि और तीन लाख रुपये की तुरंत जरूरत है। बडे भाई की मांग ने मुझे असमंजस में डाल दिया। मुझे परेशान देख तुम्हारी भाभी ने अलमारी से अपने सारे सोने के गहने निकालकर मुझे सौंपते हुए कहा कि, 'ज्यादा मत सोचो...। फौरन अपनी पहचान वाले रोहित ज्वेलर्स के यहां जाकर इन्हें बेचो और जो भी रकम मिले भाई जी को भेज दो।' ज्वेलर्स ने गहनों का वजन कर बताया कि इस दस तोले सोने के मैं आपको तीन लाख दे सकता हूं। मैंने ज्वेलर्स को याद दिलाया कि इन दिनों प्रतिदिन अखबारों में सोने के भाव बढने की खबरें हैं। कल ही मैंने पढा था कि सोने का भाव पचपन हजार तक जा पहुंचा है। ऐसे में दस ग्राम के पचास हजार नहीं तो चालीस हजार तो दे दीजिए ताकि मेरी समस्या का समाधान हो जाए। ज्वेलर्स मेरी बात सुनकर मुस्कुराया, सर आप भी कौन-सी दुनिया में रहते हैं, जो अखबारों में छपी खबरों पर यकीन करते हैं। आपको पता होना चाहिए कि बाजार से रकम गायब हो गयी है। हम कैश के अभाव से जूझ रहे हैं। आप जैसे पांच-सात मुसीबत के मारे तो रोज अपने गहने बेचने चले आते हैं। हम तो उन्हें दस ग्राम के बीस-पच्चीस हजार थमाकर चलता कर देते हैं, लेकिन आपसे पुरानी पहचान है। उस पर आप लेखक और पत्रकार हैं, इसलिए आपका मान रख रहे हैं। आप चाहें तो कहीं दूसरे आभूषण विक्रेता के यहां जाकर पता लगा लें।
मेरे पास कोई और चारा नहीं था। तीन लाख लेकर भैय्या तक पहुंचा दिये। अब मेरी तो ईश्वर से यही प्रार्थना है कि माता-पिता तथा भैय्या पूरी तरह से स्वस्थ हो जाएं। मुझे और कुछ नहीं चाहिए। उनसे मिलने की बडी तमन्ना है। देखते हैं कैसे कोई रास्ता निकलता हैं। राजेश से बात होने के ठीक तीसरे दिन सुबह सात बजे के आसपास मेरा सेलफोन बजा। देहरादून से रजनी भाभी थीं। राजेश रंजन की पत्नी...। "भाई साहब, मेरी समझ में नहीं आ रहा कि मैं क्या करूं। आपके पुराने मित्र हैं इसलिए सुबह-सुबह आपको अपनी चिन्ता और पीडा से अवगत करा रही हूं। इन दिनों यह बहुत परेशान रहते हैं। ऐसी चिन्ता और घबराहट मैंने इनमें पहले कभी नहीं देखी। न ठीक से खाते-पीते हैं और न नींद लेते हैं। आधी रात को उठकर लिखने बैठ जाते हैं। कहते हैं कि मुझे हर हाल में अपना उपन्यास पूरा करना है। मेरे यह कहने पर कि ऐसी भी जल्दी क्या है, तो कहते हैं कि रजनी मेरे इस अधूरे उपन्यास के पात्र मुझे सोने नहीं देते। नींद लेने की कोशिश में होता हूं तो यह मुझे उठ खडा होने को मजबूर कर देते हैं। मैंने पहले भी कई कहानियां और उपन्यास लिखे हैं, लेकिन ऐसा कभी नहीं हुआ। फिर जिन्दगी का भी क्या भरोसा। कब ऊपर वाले का बुलावा आ जाए और मेरी किताब अधूरी रह जाए। दिन में जब-तब दोस्तों को फोन लगाते रहते हैं। कोई दोस्त जब फोन नहीं उठाता तो उदास और बेचैन हो जाते हैं। आप ही इन्हें समझा सकते हो। मैं तो हार गई हूं...।" बोलते-बोलते रजनी भाभी चुप हो गर्इं। मैं समझ गया कि रो रही हैं।
दस कहानी संग्रह, पंद्रह उपन्यास और पांच व्यंग्य संग्रहों के प्रकाशन के साथ-साथ निष्पक्ष और निर्भीक पत्रकारिता करने में यकीन रखने वाले राजेश रंजन की तडप को मेरे साथ-साथ रजनी भाभी भी अच्छी तरह से समझती रही हैं। लगभग सात वर्ष पूर्व जब अन्ना हजारे ने भ्रष्टाचार के खात्मे तथा लोकपाल बिल पास करवाने के लिए देश की राजधानी दिल्ली के रामलीला मैदान में आंदोलन-अनशन की मशाल जलायी थी तब यह बेचैन लेखक, पत्रकार रातों-रात सबकुछ छोडकर राजधानी भाग खडा हुआ था। तब इसने बार-बार लिखा और कहा था कि हिन्दुस्तान में काफी वर्षों के बाद किसी निहायत ही ईमानदार, भरोसे के काबिल समाज सेवक ने नयी क्रांति का बिगुल फूंका है। उसकी तपस्या तभी पूरी तरह से रंग लाएगी, जब हर सजग भारतीय उसके साथ ख‹डा होगा। 'मैं अन्ना' की टोपी पहनकर राजेश तब तक रामलीला मैदान में अन्ना हजारे के साथ कंधे से कंधा मिलाकर डटा रहा था, जब तक लोकपाल बिल पर सरकारी सहमति नहीं मिली। राजेश अपने शहर देहरादून लौट आया था...। सरकार भी बदल गयी थी, लेकिन वो दिन नहीं आये, जिनके लिए अन्ना हजारे ने आंदोलन... सत्याग्रह किया था। लोग उसका मजाक उडाते। व्यंग्य बाण चलाने वाली मित्रमंडली के सवालों के जवाब में आशावादी राजेश यही कहता कि दोस्तो, अभी सबकुछ खत्म नहीं हुआ है...।
जब मुझे उसके गुजर जाने की खबर मिली तो ऐसा लगा कि किसी ने मेरे दिल और दिमाग को निचोडकर समंदर में फेंक दिया है। मैं लाख हाथ-पैर मारने के बावजूद भी बाहर नहीं निकल पा रहा हूं। यह कोविड-१९ और कितनों की जान लेगा? जब से कोरोना ने विकराल रूप अख्तियार किया है, अपनों को खोने की qचता दबोचे रहती है। सुबह का अखबार हाथ में लेते ही सबसे पहले नज़रें उस पन्ने पर टिक जाती हैं, जिस पर तस्वीर के साथ मृतकों की जानकारी दी गयी होती है। कोरोना की चपेट में आकर मौत के मुंह में समाने वालों की तादाद बढती ही चली जा रही है। पहले अखबार में 'निधन वार्ता' की जगह निर्धारित थी, जिसमें प्रतिदिन अधिक से अधिक बारह-पंद्रह की मौत तथा अंत्येष्टि की जानकारी छपी होती थी, लेकिन अब तो पूरा पेज भी कम प‹डता नज़र आता है।
चार सितंबर २०२० को रजनी भाभी ने कोरोना की चपेट में आकर राजेश रंजन के निधन की खबर दी। राजेश सोशल मीडिया से दूर रहता था। लिखने-पढने, दोस्ती करने तथा उसे दिल से निभाने के जुनून में मस्त रहने वाले इस लेखक-पत्रकार की असामयिक मौत की दोस्तों को भी खबर नहीं लगी। अकेली पड चुकी रजनी भाभी ने हर दोस्त को उसकी मौत की जानकारी दी। ५ सितंबर की दोपहर कवि, गज़लकार, मित्र सुशील साहिल की फेसबुक पर दिखी इस पोस्ट ने फिर रूला दिया : "आज मैंने अपना जीवन साथी खो दिया।" इन चंद शब्दों ने भावुक शायर पर बिजली की तरह गिरे गम के पहाड की वजह से नितांत अकेले प‹ड जाने की अथाह पीडा से रूबरू कराने के साथ गमगीन कर दिया। कोविड-१९ ने बडी बेदर्दी से जिनके अपनों को छीना, इसके कहर के दौरान नितांत अकेले पड गये, जिनके अपनों की असामयिक मौत हो गई, उन्हें हौसला और सांत्वना देने वालों की कमी को काफी हद तक सोशल मीडिया के विशेष प्लेटफार्म फेसबुक ने पूरा करने में जो भूमिका निभायी, वह अकल्पनीय थी। कुछ लेखक, संपादक पत्रकार, व्यापारी एवं विभिन्न पेशे से जुडे जागरूक लोग ऐसे हैं, जो सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव रहकर अपने आभासी मित्रों के मार्गदर्शन और उत्साहवर्धन में लगे रहते हैं। कोविड-१९ की जब ऐसे कुछ प्रतिष्ठित चेहरों पर एकाएक बिजली गिरी और उन्हें अपने स्वजनों को खोना प‹डा तो वे बेहद हताश, निराश और विचलित हो गये। उनके लिए गम के अथाह सागर से बाहर निकलना मुश्किल हो गया। ऐसे में सच्ची मित्रता निभायी सोशल मीडिया के जाने-अनजाने मित्रों ने। जो कल तक उन्हें दु:ख और संकट की घडी का डटकर मुकाबला करने की सीख देते थे, उन्हें टूटता बिखरता देख जाने-अनजाने मित्रों की नींद उड गयी। उन्होंने बार-बार उन्हें याद दिलाया कि देश और समाज के लिए वे कितने उपयोगी तथा मूल्यवान हैं। जो दूसरों के लिए प्रेरणास्त्रोत हैं उनका घबराना और डगमगाना उन्हें आहत कर रहा है। हर कोई चाहता है कि वे अपने उसी साहस के साथ खडे रहें, जिसके लिए वे जाने जाते हैं। कोई भी नहीं चाहता कि उनकी किताब अधूरी रहे। सभी की उसको पढने की दिली तमन्ना है...।

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