Thursday, November 19, 2020

ऐसा भी, खोना-पाना!

अपने अखबार के कार्यालय से घर लौटते समय छापरू चौक पर स्थित एक दवाई की दुकान पर लगी ग्राहकों की भीड अक्सर मेरा ध्यान खींच लेती है। इस दवाई की दुकान की तरह नागपुर शहर में चार दवाई दुकानें और भी हैं, जिनका मालिक एक ही शख्स था, जिसने बीते वर्ष आत्महत्या कर ली। जरीपटका के निवासी इस व्यापारी की खुदकुशी की खबर मैंने अखबारों में ही पढी थी। लगभग तीस लाख की आबादी वाले शहर नागपुर में अक्सर आत्महत्याएं होती ही रहती हैं, लेकिन इस आत्महत्या ने मुझे काफी विचलित कर सोचने को मजबूर कर दिया था। अखबार में छपी फिल्मी हीरो-सी तस्वीर मेरे मन-मस्तिष्क में बैठ-सी गई थी। उसकी उम्र पचास के आसपास थी। बहुत महत्वाकांक्षी था। चालीस की उम्र तक पहुंचते-पहुंचते करोडों में खेलने लगा था। अपने व्यापार को अपार ऊंचाइयां प्रदान करने की अभिलाषा रखने वाले इस शख्स को किसी ने फिल्म निर्माण के क्षेत्र में हाथ आजमाने के लिए उकसाया तो वह फिल्में बनाने लगा। उसने खुद को पर्दे पर देखने की तमन्ना भी पूरी कर ली, लेकिन कोई भी फिल्म नहीं चली।
फिल्मों और फिल्मी सितारो की चकाचौंध में उसका ध्यान कुछ ऐसा भटका कि अपने चलते कारोबार को देखने की उसके पास फुर्सत नहीं रही। फिल्म निर्माण के लिए साहूकारों से करोडों की रकम भारी ब्याज पर लेने की नौबत ने उसकी सुख-शांति छीन ली। दवाओं की बिक्री का पैसा भी फिल्मों की भेंट चढने से दुकानें खाली होती चली गर्इं। ज्यों-ज्यों कर्जा बढता गया, तनाव उसका दिन-रात का साथी बनता चला गया। इस चक्कर में नशा करना रोजमर्रा की बात हो गई। शराब तो वह पहले से पीता था। अब नींद को आमंत्रित करने के लिए किस्म-किस्म की महंगी ड्रग भी लेने लगा। घर का माहौल भी अशांत हो गया। दिन-रात नशे में धुत रहने वाले कायर नशेडी का पत्नी पर हाथ उठने लगा। पत्नी की जब बर्दाश्त करने की सीमा खत्म हो गई तो वह बच्चों के साथ अलग रहने चली गई।
किसी जमाने में छाती तानकर चलने वाला लालची रईस लेनदारों से मुंह छिपाते-छिपाते इस कदर शर्मसार, भयभीत और परेशान हो गया कि एक रात वह फांसी के फंदे पर झूल गया और अखबारों और न्यूज चैनलों की सनसनीखेज खबर बन गया। उसे जानने वालों को जब उसकी खुदकुशी की खबर मिली तो उनका कहना था कि यह तो होना ही था। सभी का अनुमान था कि अब उसकी सभी दुकानों पर ताले लग जायेंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। वो डरपोक, सुविधाभोगी तो हमेशा-हमेशा के लिए इस दुनिया से चला गया, लेकिन उसकी दुकानों के शटर एक दिन भी नहीं गिरे।
लगभग सात-आठ महीने के बाद छापरू चौक की चिरपरिचित दुकान में मैंने जबरदस्त तब्दीली देखी तो देखता ही रह गया। बाजू की दुकान को भी उससे मिला दिया गया था। अब वह एक नहीं दो शटर वाली दुकान है, जहां पर हर समय खरीददारों की भीड लगी रहती है। इसके साथ ही उसकी अन्य दुकानों का भी जो विस्तार तथा कायाकल्प हुआ है वह किसी चमत्कार से कम नहीं। ऐसा भी नहीं, कि जब वह जीवित था तब इन दवाई की दुकानों पर ग्राहकों का अभाव रहता था। उसकी अच्छी-खासी कमायी हो रही थी, लेकिन उसके ध्यान के भटकने के कारण धीरे-धीरे कंगाली छाने लगी थी। ग्राहक आते थे, लेकिन दवाएं नहीं मिलने के कारण दूसरी दुकान का रूख करने लगे थे।
सच तो यह है कि समय किसी की परवाह नहीं करता। नागपुर शहर में एक इंसान सडक पर स्थित एक होटल में कप-प्लेट धोने को मजबूर है। लगभग पांच वर्ष पूर्व वह खुद का आइसक्रीम पार्लर चलाता था और पांच-सात नौकर उसके निर्देशों और आदेशों का पालन करते थे। कल तक वह आज़ाद था और आज वह गुलामों जैसी ज़िन्दगी जी रहा है। अपनी बर्बादी की वजह वह खुद है। उसका आइसक्रीम पार्लर जोर-शोर से चलता देख वर्ष २०१४ में किसी ने उसके कान में मंत्र फूंका कि यह किस छोटे से धंधे में अपनी उम्र गला रहे हो। चलो मैं तुम्हें नंबर दो का ऐसा सस्ता सोना दिलाता हूं, जिससे तुम रातों-रात करोडपति बन जाओगे। चमकते सोने के झांसे में उसने रातों-रात अपने पार्लर को मिट्टी के मोल बेचने के साथ-साथ अपने करीबी रिश्तेदारों, यार-दोस्तों से चालीस-पचास लाख जुटाये और सोने के सौदागरों के साथ मुंबई जा पहुंचा। सोना बेचने वाले गिरोह के लोगों ने सोने का वजन कराकर उसे सौंप दिया। मुंबई से लौटते समय खाकी वर्दीधारियों ने उसे तस्करी के आरोप में दबोच लिया। उसके तो हाथ-पांव फूल गये। उनको भी रिश्वत देनी पडी। बाद में पता चला कि यह तो उनकी 'गेम प्लान' का हिस्सा था। पूरी तरह से बरबाद होने के गम में उसकी पागलों जैसी हालत हो गयी। किसी नये-धंधे के लिए उसके पास एक कौडी भी नहीं बची। उसने अपनी पहचान वालों के समक्ष फिर से हाथ फैलाये, लेकिन कोई भी उसे कर्ज या उधार देने को तैयार नहीं हुआ। ऐसे में बस एक ही रास्ता जो उसे नज़र आया, वह आज सबके सामने है...।
भावनगर के महुआ तहसील के रहने वाले भानू भाई को किसी मामले को लेकर दस साल की जेल हो गई। तब उनकी उम्र पचास वर्ष थी। सज़ा होने पर मातम मनाने और रोने-गाने की बजाय एमबीबीएस कर चुके भानू भाई ने जेल में ही पढाई-लिखायी की और ३१ डिग्रियां हासिल कर देश और दुनिया में अपना सिक्का जमाया। जब वे जेल से बाहर आए तो उन्हें बडे आदर-सम्मान के साथ न सिर्फ सरकारी नौकरी मिली बल्कि उनका नाम लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्डस, एशिया बुक ऑफ रिकॉर्ड, यूनिक वल्र्ड रिकॉर्ड, इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड, वल्र्ड रिकॉर्ड इंडिया और यूनिवर्सल रिकॉर्ड फोरम तक में दर्ज हो गया। सरकारी नौकरी करते हुए कर्मवीर भानू भाई ने पिछले पांच वर्षों में अब २३ और डिग्रियां हासिल कर ली हैं। यानी अब तक वे ५४ डिग्रियां ले चुके हैं...!

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