Thursday, November 26, 2020

राष्ट्र, राष्ट्रभक्त और नमकहराम



चित्र : १ - अपने तो अपने होते हैं। घर, परिवार, बच्चों का मोह और कर्तव्यबोध हर सजग इंसान को एक मधुर सूत्र में बांधे रखता है। अपने देश और अपनी जडों के प्रति लगाव के धागे भी कभी कमजोर नहीं पडते। कानपुर में रहने वाले सत्तर वर्षीय शमसुद्दीन पाकिस्तान की जेल में आठ वर्ष तक यातनाएं भोगने के बाद जब इस दीपावली पर अपने घर लौटे तो खुशी के मारे उनके आंसू रूकने का नाम नहीं ले रहे थे। यह खुशी थी अपने वतन लौटने की तथा अपनों से मिलने-मिलाने की, जिसे पाने की उन्होंने उम्मीद ही छोड दी थी। शमसुद्दीन १९९२ में अपने किसी जान-पहचान के व्यक्ति के साथ नब्बे दिन के विजिट वीजा पर प‹डोसी देश पाकिस्तान गये थे। १९९४ में उन्हें पाकिस्तान की नागरिकता भी मिल गई। शमसुद्दीन को इस बात की ब‹डी पी‹डा होती थी कि उन्हें पाकिस्तान में अविश्वास और संदेह भरी ऐसी निगाहों से ऐसे देखा जाता था। जैसे वे जेब में कोई बम लेकर चल रहे हों। इसी बीच २०१२ में पाकिस्तानी पुलिस ने जासूसी के आरोप में गिरफ्तार कर जेल में बंद कर दिया। उनके लिए यह बहुत ब‹डा आघात था। अपना मुल्क छोडकर आने की गलती की ऐसी सज़ा की तो उन्होंने कभी कल्पना ही नहीं की थी। जेल में दिन-रात उन्हें यातनाएं दी जातीं। कभी नींद लगती तो जूते और डंडों की बरसात शुरू हो जाती। हर पल मौत की आहट दिल की धडकनें बढाती रहती। अपनों से दूर होने का अहसास और किसी से न मिल पाने की विवशता उन्हें पल-पल रूलाती। उन पर चौबीस घण्टे बस यही आतंकी दबाव रहता कि वे स्वीकार कर लें कि उन्हें भारत सरकार ने जासूसी करने के लिए पाकिस्तान भेजा है। उन्हें खूंखार कैदियों से भी पिटवाया जाता। अंदर तक बुरी तरह से तोड देने वाले हालातों के शिकंजे में त‹डपते इस उम्रदराज शख्स ने तो यही मान लिया था कि उनका बचना मुश्किल है। उन्होंने तो मौत के आगोश में समाने के लिए खाना-पीना भी बंद कर दिया था, लेकिन जब पाकी जेल के कारिंदे उनसे अपना मनचाहा उगलवाने में नाकामयाब रहे तो उन्हें रिहा कर दिया गया।
१४ नवंबर २०२० के दिन जब शमसुद्दीन की घर वापसी हुई तो उनके परिजन घण्टों खुशी से उनके गले लगकर रोते रहे। सभी ने उनके जिन्दा वापस लौटने की आशा ही छो‹ड दी थी। अपने बडे-बुजुर्ग को अपने बीच पाकर उनके मुंह से बस यही शब्द निकल रहे थे कि इस बार की दीवाली तो उन्हें सारी उम्र याद रहेगी। शमसुद्दीन भी यही कहते रहे कि मेरे अपने देश भारत में जो सुकून और अपनापन है वो और कहीं नहीं। मैं तो हर किसी को यही कहूंगा कि अपना देश, अपनी माटी को छो‹डकर और कहीं दूसरे देश जाने की भूल कभी न करना। खासतौर पर पाकिस्तान तो बिलकुल भी नहीं, जहां की सत्ता और व्यवस्था हैवानों के क्रूर हाथों में है।
चित्र : २ - माता-पिता, भाई-बहन दिवाली की तैयारी में जुटे थे। सभी को अपने सैनिक बेटे, भूषण सतई का इंतजार था, जो दिवाली पर घर आने वाला था, लेकिन अचानक खबर आयी, भारत-पाक-नियंत्रण रेखा पर पाकिस्तानी सेना की ओर से की गई भीषण गोलाबारी के दौरान उनका दुलारा शहीद हो गया है। नागपुर के निकट स्थित काटोल के रहने वाले शहीद नायक भूषण सतई २०११ में भारतीय सेना में भर्ती हुए थे। अपने नौ वर्ष के कार्यकाल में उन्होंने सेना की विभिन्न मुहिम में हिस्सा लेकर अपनी दिलेरी का परिचय दिया था। पाकिस्तान की सेना को मुंहतोड जवाब देकर शहीद होने वाले भूषण सतई की अंतिम यात्रा में पूरा गांव उम‹ड प‹डा। अथाह शोक में भी गर्व समाहित था। पूरा इलाका 'अमर रहे-अमरे रहे शहीद भूषण अमर रहे' के नारों से गूंज रहा था। अपने जवान बेटे की शहादत पर पिता का सीना चौडा हो गया था। उनके दिल से निकले इन शब्दों ने स्पष्ट कर दिया कि उनके लिए अपने राष्ट्र के क्या मायने हैं, "मेरा २८ साल का बेटा शहीद हो गया है। हमारे लिए यह कठिन समय है, लेकिन मुझे अत्यंत गर्व हो रहा है कि मेरे बेटे ने पाक के नापाक इरादों पर पानी फेर दिया। पाकिस्तान सेना को मुंहतोड जवाब देकर मेरे भूषण और उसके साथियों ने मेरा सिर गर्व से ऊंचा कर दिया है। देश की रक्षा करते-करते मेरे दुलारे को शहादत मिली है। मुझे नाज़ है उस पर।"
अपने दिल-दिमाग और आंखों में अपने भाई की तस्वीर को संजोये बहन सरिता खुद को बडी भाग्यशाली मान रही थी। उसका प्यारा भैय्या भाई दूज के दिन तिरंगे में लिपट कर उससे अंतिम बार मिलने आया था। देशभक्ति का इससे ब‹डा उपहार और कोई नहीं हो सकता। छोटे भाई ने अपने बडे भाई की शहादत को सलाम करते हुए उनके सपने को पूरा करने की प्रतिज्ञा की तो गांव के कई युवक-युवतियों ने सेना में भर्ती होकर पाकिस्तान को सबक सिखाने की कसम खायी।
चित्र : ३ - एक मशहूर गायक इन दिनों दुबई में तरह-तरह के अपने राग अलाप रहा है। हिन्दुस्तान में उसने अपार धन भी पाया और सम्मान भी। भारतवासी हर कलाकार को आदर-सम्मान देना जानते हैं। सोनू निगम की भी झोली भर दी गई। फिर पता नहीं उसमें क्यों और कैसा अहंकार आया कि उसे विदेशी जमीन भाने लगी। उससे एक साक्षात्कार में पूछा गया कि क्या आपका बेटा भी गायक बनना चाहता है? उसका प्रत्युत्तर था कि, "अगर उसकी इच्छा होगी तो मैं उसे रोकूंगा नहीं, लेकिन मैं नहीं चाहता कि वह भारत में सिंगर बने। वह अब भारत में नहीं, दुबई में रहता है। मैंने उसे पहले ही भारत से निकाल दिया है।" ऐसे अहसानफरामोश, नमकहरामों पर किसे गुस्सा नहीं आयेगा! जिस देश ने इन्हें फर्श से अर्श पर पहुंचाया उसके प्रति यह अपमानजनक बोल, यह बताने के लिए काफी हैं कि यह गायक कितना गिरा हुआ घटिया इंसान है।  
ऐसे कुछ शैतान और भी हैं, जो भारत माता और उसकी सरहदों के रखवाले शूरवीर सैनिकों के अपमान से बाज नहीं आ रहे हैं। समस्त राष्ट्रभक्तों का खून-खौलाते और उन्हें आहत करते इन बददिमागों को देश के लिए अपना जीवन बलिदान करने वाले सैनिकों का सम्मान करने में कमतरी का अहसास होता है। यह वही चेहरे हैं जो अपने न्यूज चैनलों पर लगातार भौंकते हुए दावा करते रहते हैं कि हम-सा कोई नहीं। हमारी मनपसंद राजनीतिक पार्टी तथा हम ही हैं जो देश की नैय्या पार लगा सकते हैं। जवानों के हत्यारे नक्सलियों को अपनी गोद में बिठाने तथा उनका गुणगान करने वाले कुछ अखबार तथा एनडीटीवी जैसे न्यूज चैनल वाले आतंकवादियों को तो शहीद करार देते हैं और देश पर कुर्बान होने वाले शहीदों के लिए तू-तडाक की भाषा का इस्तेमाल करते हैं। आतंकवादियों के द्वारा जवान फूंक दिये गये, मार गिराये गये, मर गये, मारे गये यह देश के उन चैनलों की भाषा है, जिनके कर्ताधर्ता और संपादक विदेशी पुरस्कार झटकने के फेर में भारत माता तथा उसके सपूतों का घोर अपमान कर अपनी असली औकात दिखा रहे हैं।

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