Saturday, November 7, 2020

वो भी और यह भी

चित्र १ - हर समझदार इंसान अपनी पसंद के लोगों से जुडना पसंद करता है। उसे उनसे जुडकर और मिलकर हार्दिक प्रसन्नता होती है, सुकून भी मिलता है, जिनकी अभिरूचि उसके जैसी होती है। धार्मिक प्रवृत्ति के लोगों को अगर अपने जैसे सत्संगी मिल जाएं तो उनके लिए इससे बडी उपलब्धि कोई और हो ही नहीं सकती। ललितपुर की २५ वर्षीय कमलेश, कृपालु महाराज की परम भक्त है। कृपालु महाराज के सतसंग और प्रवचनों में लीन रहने में उसे अपार सुख मिलता था। फेसबुक पर भी उसके जितने मित्र थे, सभी धार्मिक और सात्विक प्रवृत्ति के थे। इसी तारतम्य में विदिशा निवासी चंद्रजीत ने फेसबुक पर माधव ठाकुर के नाम से फर्जी आईडी बनाकर खुद को कृपालु महाराज का अनन्य भक्त बताते हुए कमलेश से मित्रता कर ली। कुछ दिनों के बाद उन दोनों में फोन पर भी बातचीत होने लगी। चंद्रजीत ने कमलेश पर अपनी लच्छेदार बातों का ऐसा जादू चलाया कि दोनों का मिलना-मिलाना भी शुरू हो गया। फिर दोनों ने शादी भी कर ली। शादी के कुछ दिनों के बाद ही वह कमलेश को अपना असली रंग दिखाने लगा। उसने अपनी पत्नी कमलेश के अश्लील वीडियो बनाकर वायरल कर दिए। इतना ही नहीं यह शैतान धार्मिक सोच-विचार वाली पत्नी से जबरन मोबाइल एप पर अश्लील वीडियो कॉलिंग करवाकर धन कमाने लगा। कहा नहीं मानने पर वह हैवानों की तरह उसे मारता-पीटता और लहुलूहान कर देता। इतना भयावह धोखा खाने वाली कमलेश ने हिंसक, वहशी, धोखेबाज के खिलाफ थाने पहुंचकर रिपोर्ट दर्ज करवायी तो भेद खुला कि दोस्ती, शादी और धोखा देना तो उसका धंधा है। महज दसवीं तक पढा यह धूर्त पहले से शादीशुदा है। कमलेश ने बताया कि वह इस शातिर के सम्मोहन के जाल में इस कदर फंस गई थी कि उसके दिमाग ने काम करना बंद कर दिया था। तभी तो वह पचास हजार रुपये नगद तथा १५ लाख के जेवर समेट कर उसके साथ भाग खडी हुई और भोपाल के आर्य समाज मंदिर में फौरन शादी तक कर ली।
चित्र २ - बरेली का बिलाल मंदिर जाता था। माथे पर चंदन का टीका लगाता था। उसके हाथ में कलावा भी बंधा रहता था। आठवीं में फेल होने के बाद उसने पढाई-लिखायी से नाता तोड लिया था, लेकिन फिर भी वह खुद को दिल्ली विश्वविद्यालय का छात्र बताता था। वह जिस अंदाज के साथ चलता-फिरता, उठता, बैठता, बतियाता था उससे लोग उसे काफी पढा-लिखा और हाईक्लास सोसाइटी से जुडा मान लेते थे। लडकियां भी उसके आकर्षक तडक-भडक वाले दिखावे के जाल से बच नहीं पाती थीं। दो साल पहले जिस ल‹डकी ने उसके खिलाफ छेडछाड की शिकायत की थी। मामला पुलिस थाने तक भी गया था। वही लडकी जब घर छोडकर बिलाल के साथ भाग खडी हुई तो हंगामा मच गया। बीएससी कर रही लडकी का आठवीं फेल संदिग्ध चरित्रवाले लडके के साथ फुर्र हो जाना हर किसी को चौंका गया। विभिन्न हिन्दू संगठन आग-बबूला होकर सडक पर उतर आये। थाने में तोडफोड कर दी। पुलिस को भीड पर लाठियां बरसानी पडीं। राजस्थान में अजमेर दरगाह इलाके के एक होटल से पुलिस ने दोनों को जब दबोचा तो छात्रा के नाम से दो फर्जी आधार कार्ड बरामद हुए। एक पर माहिरा तो दूसरे पर राखी नाम दर्ज था। लाखों रुपये भी मिले, जिन्हें छात्रा घर से चुराकर भागी थी। खुद को खाकी वर्दीवालों से घिरा देख छात्रा भडकते हुए बोली, "हमने कोई गुनाह नहीं किया है। उसके साथ कोई जोर-जबर्दस्ती भी नहीं हुई। वह अपने प्रेमी के साथ निकाह करना चाहती है। वह १९ साल की बालिग है।" उसने घर जाने से भी इंकार कर दिया। बिलाल को चोरी-धोखाधडी के आरोप में जेल तो लडकी को नारी निकेतन भेज दिया गया।
चित्र ३ - फरीदाबाद में कॉलेज से लौटती निकिता की गोली मारकर हत्या कर दी गई। निकिता का कसूर इतना ही था कि उसे अपने धर्म से अटूट प्यार था। वह तौसीफ के साथ जीवनभर के बंधन में बंधने को तैयार नहीं थी। उनकी जब पहली मुलाकात हुई थी, तब हत्यारे ने अपना नाम राहुल बताया था। उसके इस छल-कपट भरे झूठ ने निकिता को सचेत कर दिया था, लेकिन तौसीफ धर्म बदलकर शादी के लिए उसके पीछे पडा रहा। निकिता का इंकार उसे शूल की तरह चुभा और उसने उसकी हत्या कर दी। यह कैसा प्यार था? सच्चे प्रेमी कभी ऐसे नहीं होते। वक्त आने पर जान दे देते हैं, भूलकर भी कभी मौत नहीं देते! २०२० के अक्टुबर महीने में निकिता की नृशंस हत्या करने वाले तौसीफ ने २०१८ में भी निकिता के साथ हैवानी हरकत की थी, लेकिन कुत्ती राजनीति यहां भी अपने हरामीपने से बाज नहीं आयी। हरियाणा की राजनीति में तौसीफ के परिवार का दखल और दबदबा रहा है। पुलिस भी राजनेताओं के इशारे पर नाचती आयी है। दोषी तो निकिता के परिजन भी हैं। तब यदि उन्होंने बदनामी के भय तथा नेतागिरी करने वाले दबंगों के खौफ में आकर समझौता नहीं किया होता तो तौसीफ की उद्दंडता, बदनीयती और कातिल हौसलों की उडान एक स्वाभिमानी लडकी पर धर्म बदलकर शादी करने का आतंकी दबाव बनाने का साहस ही नहीं कर पाती।
चित्र ४ - उम्रदराज़ पत्नी हिन्दू है, पति मुसलमान। ४५ साल पहले दोनों विवाह सूत्र में बंधे थे। किसी ने अपना धर्म नहीं बदला। दोनों में आज भी उतना प्यार है, जितना तब था। दोनों का एक दूसरे के धर्म के प्रति आदर सम्मान भी है और अटूट विश्वास भी। हिन्दू पत्नी रोजा रखती है, तो मुस्लिम पति गणपति की आरती करते हैं। दोनों की बडी मज़े से कट रही है। अखबारनवीसी करने वाली आनम खान २००८ में कॉलेज की पढाई के दौरान सुकांत शुक्ला के आकर्षण में बंधीं। कालांतर में दोनों लिव इन में रहने लगे। दोनों के परिवार वाले खुले दिल-दिमाग के थे। २०१४ में बिना धर्म बदले दोनों ने शादी कर ली। शादी के छह साल बाद भी दोनों खुश हैं। उनका धर्म भले ही अलग है, लेकिन दोनों के परिवार एक हैं। हर खुशी और गम के मौके पर एक साथ नज़र आते हैं। लगता ही नहीं कि वे अलग-अलग धर्म से ताल्लुक रखते हैं।
सामाजिक कार्यकर्ता दीपक कबीर और वीना की शादी १९ साल पहले हुई थी। दीपक रूढ़िवादी ब्राह्मण परिवार से हैं, वीना प्रगतिशील मुस्लिम परिवार से। दोनों की कॉलेज में पढाई के दौरान दोस्ती हुई। दोनों के विचार आपस में मिलते-जुलते थे। सामाजिक कार्यों में अभिरूचि थी। प्रगाढ दोस्ती के प्यार में तब्दील होने के बाद जब शादी करने की ठानी तो उन्होंने भी स्पेशल मैरिज एक्ट का रास्ता चुना। आज उनका एक बेटा है, जिसका नाम है सूफी सिद्धार्थ कबीर। उसकी कोई जाति या धर्म नहीं है। उसकी सोच भी अपने माता-पिता जैसी ही है। प्यार धर्म को देखकर नहीं होता। यह तो बस हो जाता है। इस पर किसी का बस नहीं। फिर यह कोई जुर्म भी तो नहीं, जो हंगामा बरपा हो। प्यार मोहबत में जात-पात, अमीरी, गरीबी का भी क्या काम। यह तो दिल के दिल से जुडने की वो पवित्र अवस्था है, जो कुर्बानी देना सिखाती है। एक-दूसरे का ताउम्र साथ देने के वचन की मधुर जंजीरों में बंधे रहने के संकल्प को कभी कमजोर नहीं होने देती। महज शादी के लिए धर्म परिवर्तन, धोखा और लव जेहाद, हैवान और शैतान दिमागों की उपज है। कट्टर हिन्दू परिवार के शैलेंद्र और मुस्लिम नीलिमा जाफरी ने ११ साल की दोस्ती के बाद २०१० में कोर्ट में जाकर शादी तो कर ली, लेकिन दिक्कत उस समय आयी जब उसके यहां बेटी आलिया का जन्म हुआ। उन्हें अस्पताल में बेटी का बर्थ सर्टिफिकेट पाने के लिए एक फार्म भरना था। जिसमें धर्म वाले कॉलम में अपने धर्म का नाम लिखना आवश्यक था। शैलेंद्र ने यह काम पत्नी नीलिमा के जिम्मे छोड दिया। नीलिमा ने फार्म लेकर उसमें लिखा- हिन्दू। दोनों की आज दो बेटियां हैं आलिया और आभार्या। दोनों स्कूल में प्रार्थना के सेशन में गायत्री मंत्र का पाठ करती है। यहीं नहीं लखनऊ में मोहर्रम पर पूरी शिद्दत से शिरकत करती हैं। दोनों बेटियां किसी भी धर्म को मानने के लिए स्वतंत्र हैं।
अलग धर्म के युवक-युवती में प्यार होना कोई नयी बात नहीं। इतिहास में एक से एक उदाहरण भरे पडे हैं। हमारे संविधान ने भी तो प्रेमियों के लिए दरवाजें खोल रखे हैं। स्पेशल मैरिज एक्ट जिसे १९५४ में लाया गया, वह अलग-अलग धर्मों को मानने वालों को विवाह सूत्र में बंधने का अधिकार देता है, लेकिन अधिकांश लोगों को इस संविधान के बारे में पता ही नहीं है। इसलिए तरह-तरह के तकलीफदायक मंजर सामने आ रहे हैं और डरा रहे हैं।

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