Thursday, January 14, 2021

खबर

   "यह रोज-रोज की बहस मुझे पसंद नहीं। तुमसे शादी कर मैंने तो जैसे कोई मुसीबत मोल ले ली है। तुम्हारे भाई भी तो पीते हैं, फिर मुझ पर पाबंदी और लांछन की तलवार क्यों?"
    "एक तो मेरे भाई तुम्हारी तरह जब देखो तब बोतल खोलकर नहीं बैठ जाते। महीने-दो महीने में जब उन्हें फुर्सत मिलती है तब वे रात को एक-दो पैग लगाकर चुपचाप सो जाते हैं। तुम तो कई बार दिन-दहाडे आधी बोतल खाली कर तांडव मचाने लगते हो। घर को युद्ध का मैदान बनाकर रख देते हो। हमारी शादी हुए नौ साल हो गये हैं। तुम्ही बताओ ऐसी कोई रात बीती है, जब तुमने शराब न पी हो। दु:ख तो मुझे इस बात का भी है कई बार पापा जी भी तुम्हारे साथ शुरू हो जाते हैं। आप दोनों को ज़रा भी चिन्ता-फिक्र नहीं कि बच्चे पर कितना गलत असर पड रहा होगा।"
    "अरे आठ साल का मासूम क्या जाने कि हम शर्बत पीते हैं, या शराब! यह तो तुम्हारी खुराफाती खोपडी है जो न हमें चैन से जीने देती है और न ही तुम्हें चुपचाप रहने देती है। तुम्हें क्या पता हम पुरुषों को किन-किन परेशानियों से गुजरना पडता है। आज के भीषण प्रतिस्पर्धा और टांग खिंचाई के दौर में दिल और दिमाग के परखच्चे उड जाते हैं। हाथ-पैर टूट जाते हैं। यह शराब ही तो है जो राहत और सुकून देती है। दुनियाभर के गमों के पहाड से छुटकारा दिलाती है।"
   "यह जब मन चाहे तब डूबकर पीने का अच्छा बहाना है। तुम कहते हो तो चलो मान लेती हूं कि परेशानियों से मुक्ति पाने और गम मिटाने के लिए शराब का सहारा लेते हो, लेकिन यह तो बताओं कि जब हमारी शादी हुई थी तब तुम प्रसन्न थे या गमगीन थे? विवाह के पवित्र बंधन में तो इंसान एक बार ही बंधता है। तब का हर पल अनमोल होता है। अथाह उमंगों, खुशियों और आशाओं से सराबोर होता है, लेकिन तुम तो सुहागरात की रात भी लडखडाते हुए आए थे और बिना कोई बातचीत किए बेसुध होकर सो गये थे। तब मुझे तुम पर तथा अपने माता-पिता पर बडा गुस्सा आया था। जिन्होंने बिना देखे-समझे एक भयानक शराबी से मेरा नाता जोड दिया था। सुबह होते ही तुम्हारी शक्ल देखे बिना अपने मायके चले जाने का भी मेरा मन हुआ था, लेकिन बदनामी और जगहंसाई के भय ने पैरों में बेड़ियां डाल दी थीं। सोचती हूं तब दिल को पक्का कर, निर्णय ले लेती तो रोज-रोज का यह नर्क तो न भोगना पडता।"
      "तुम्हारी यह गडे मुर्दे उखाडने की बीमारी ही हमारा खून खौला देती है। जब देखो तब शिकवे शिकायतें। क्या तुम पढी-लिखी औरतों को हालातों से समझौता करने में तकलीफ होती है। तुमसे तो वो अनपढ औरतें ही लाख गुना अच्छी हैं, जो अखंड शराबी पतियों से रोज पिटती हैं, फिर भी खुश रहती हैं। उन बेचारियों को तो न ठीक से खाना मिलता है और न ही कपडे। क्या नहीं है तुम्हारे पास? पहनने को एक से बढकर एक परिधान, रहने को आलीशान बंगला, कहीं आने-जाने के लिए कार तथा ड्राईवर। तब भी हमेशा नाखुश रहती हो। ऐसे मुंह लटकाये नज़र आती हो, जैसे किसी कंगाल पति से पाला पड गया हो...।"
   "अपनी राक्षसी प्रवृति को सही ठहराने के लिए तुम्हारे पास उदाहरणों की तो कभी कोई कमी नहीं रहती। नशे में धुत होने के बाद तुम बाप-बेटे का मुझ पर हाथ उठाना अब मुझे बर्दाश्त नहीं होता। तुम तो शराबी-कबाबी होने के साथ हद दर्जे के शक्की भी हो। मुझे बताओ कि तुम्हें क्या जरूरत थी मेरे फेसबुक फ्रेंड अशोक को हॉकी-डंडों से पीटने-पिटवाने की? उसका कुसूर इतना ही था न कि मैंने अपनी जो फोटो फेसबुक पर डाली थी, उसे उसने लाइक कर कमेंट में 'नाइस' लिख दिया था। शंका और जलन की भी कोई हद होती है। तुमने तो मुझे अपनी निजी जायदाद समझ लिया है।"
   "इसमें गलत भी क्या है पत्नी जी। मेरे अलावा और कोई तुम्हें लाइक करे, मैं कैसे बर्दाश्त कर सकता हूं?"
"तुम्हें अच्छी तरह से पता है कि यह तो महज औपचारिकता होती है। फेसबुक पर सभी ऐसे कमेंट्स लिखते रहते हैं। इसका मतलब यह तो नहीं कि उनका वैसा चक्कर चल रहा होता है, जैसा तुम सोचते हो।"
    "यार मुझे तुम्हारा फेसबुक पर एक्टिव ही रहना बिलकुल पसंद नहीं। मेरी तो जान जल जाती है, तब तुम्हारी डाली फोटो पर कोई खूबसूरत, हुस्नपरी, कातिल अदा लिखता है। आखिर तुम मेरी बीवी हो। कोई नुमाइश का सामान नहीं, जिसे गैर देखते और पसंद करते रहें और मेरा दिल जलाते रहें।"
    "वाह... जगजीत वाह! मेरे फेसबुक के दोस्तों की वजह से तुम्हारे तन-बदन में आग लग जाती है। सोचो... मुझ पर क्या बीतती है, जब तुम नशे में धुत होने के बाद घर नहीं आते और अपनी शादी से पहले की प्रेमिका के पल्लू में दुबककर सो जाते हो। तुम इस भूल में मत रहो कि मैं तुम्हारी अय्याशियों से बेखबर हूं।"
   "मुझे पता है कि तुम जासूसी करने में माहिर हो, लेकिन मुझे इससे कोई फर्क नहीं पडता। मुझे तो दु:ख इस बात का है कि तुम शादी के इतने सालों बाद भी खुद को सुधार नहीं पायी। उसी पिछडेपन के पल्लू से बंधी हो...। तुम यदि मेरे रंग में रंग जाती तो कितना अच्छा होता। तुम्हें बताये देता हूं कि शीला यानी मेरी प्रेमिका का पति भी हम दोनों के मिलने-मिलाने से वाकिफ है। उसने कभी ऐतराज नहीं जताया। दोनों पति-पत्नी एक साथ रंगीन पार्टियों में जाते हैं। पीते-पिलाते और मौज-मनाते हैं। तुम कब बदलोगी?"
    "मुझे पता है कि तुम लोगों की उन रंगारंग पार्टियों में कैसे-कैसे गुल खिलाये जाते हैं। कल ही अखबार में मैंने खबर पढी है कि किस तरह से ड्रिंक में नशीली दवा मिलाकर एक भोली-भाली युवती पर सामूहिक बलात्कार किया गया। तुम्हारी नशीली पार्टियों में पत्नियों की अदला-बदली की भी खासी जानकारी है मुझे। अखबार छाप-छाप कर थक गये हैं कि आधे से ज्यादा यौन हिंसा मामलों में शराब और ड्रग्स की अहम भूमिका रहती है, लेकिन अब तुम जैसे बहके लोगों को कौन समझाये जो जानबूझ कर अंधे बने हुए हैं।"
   "तुमसे तो भगवान भी नहीं जीत सकता तो फिर मेरी क्या औकात! चलो अब चुपचाप सो जाओ। कल मैं एक हफ्ते के लिए बाहर जाने वाला हूं। वापस आने के बाद कोई स्थायी हल खोजना ही पडेगा। यह हमेशा की चिक-चिक तो मुझे ही पागल बना कर रहेगी।"
       जगजीत के शहर से बाहर जाने के तीसरे दिन की शाम पापा जी खुद तो शराब पी ही रहे थे, अपने पोते को भी पिला रहे थे। रानी ने मासूम बेटे को पीते देखा तो आग-बबूला हो गई।
    "पापा जी मैं पहले भी कितनी बार आपसे कह चुकी हूं कि पोते के प्रति इस तरह से आपका प्यार जताना मुझे पसंद नहीं। आप दोनों तो इसे शराबी बनाने पर तुले हैं। मासूम की जिन्दगी बर्बाद करते हुए आपको ज़रा भी दु:ख नहीं होता। बडी शर्म की बात है यह पापा जी!"
    "अपनी हद में रहो रानी। पिछले कई दिनों से तुम्हारी बकबक सुन रहा हूं। तुमने मेरे इकलौते बेटे की जिन्दगी नर्क बनाकर रख दी है। उसे आने दो। इस बार फिर से हड्डी-पसली तुडवा कर तुम्हारे होश ठिकाने नहीं लगवाए तो कहना। आकाश तुम्हारा बेटा होने से पहले मेरा पोता है। उसके लिए अच्छा-बुरा क्या है इसकी समझ मुझे  तुम से ज्यादा है।"
    रानी ने पापाजी से और न उलझते हुए आकाश को गोद में लिया और अपने कमरे में चल दी। आकाश उसके साथ आने में आनाकानी कर रहा था। सोते समय जब उसने आकाश को दूध का गिलास पीने को दिया तो उसने यह कहकर मना कर दिया, "मम्मा दूध नहीं दारू दो। दूध अच्छा नहीं लगता।" रातभर रानी का माथा चकराता रहा। उसकी स्वर्गवासी सासु मां अक्सर बताया करती थी कि जगजीत को शराबी बनाने में उसके दादाजी और पिता का बहुत बडा हाथ है। वह रातभर करवटें बदलती रही। बडी मुश्किल से आंख लगी। सुबह घर में काम करने वाली बाई उसकी उदास शक्ल और लाल आंखों को देखकर समझ गई कि हमेशा की तरह घर में होने वाली महाभारत की वजह से मालकिन कि यह दुर्दशा बनी हुई है। कामवाली बाई का पति भी शराबी है, जिसने बीते माह अपनी दोनों बेटियों पर चाकू से हमला कर जख्मी कर दिया था। बात-बात पर उससे झगडा करने वाले शराबी पति ने जब बेटी के साथ अश्लील हरकत की तो उसका पारा सातवें आसमान पर जा पहुंचा था। वह तुरंत थाने में जा पहुंची थी। वह अभी भी जेल में है।
    रातभर बेचैन रही रानी अंतिम निर्णय ले चुकी थी। चाहे कुछ भी हो जाए इस घर में नहीं रहना। चाय पीते-पीते एकाएक उसकी निगाहें अखबार के प्रथम पेज पर मोटे शीर्षक के साथ छपी खबर पर अटक गई। पंजाब के फिरोजपुर की इस घोर आतंकी, अमानवीय करतूत के शब्द-शब्द ने उसे हिला और कंपा कर रख दिया,
नशे से रोका, तो पति-ससुर ने कृपाण से काटा
    "घर में पति और ससुर एक साथ शराब पी रहे थे। पत्नी ने कहा कि नशा करना बंद कीजिए। इससे आठ साल के बेटे पर बुरा प्रभाव पडेगा। इतना सुनते ही पति ने गाल पर जोरदार तमाचा जड दिया। वह जमीन पर गिर गई। इसके बाद डंडे से पीटने लगे और खींचकर आंगन में ले आए। मारपीट के बाद वहीं छो‹ड दिया और फिर बैठकर शराब पीने लगे। चोट लगने से वह खडी भी नहीं हो पा रही थी। वहीं पडी रही। कुछ देर के बाद पति व ससुर आए और उठाकर कमरे में ले जाकर चारपाई पर फेंक दिया। बीस-पच्चीस मिनट बाद नशे में टुन्न ससुर ने दरवाजा खोला व पति से बोला कि 'अज्ज इहनूं नहीं छड्डणा, सानूं रोज रोकदी है, कृपाण नाल वड्ड के स्थापा नबेड इहदा' इतना सुनते ही पति ने कृपाण से उस पर वार पर वार करने शुरू कर दिये। पत्नी दर्द से चीखती रही। पति ने उसकी टांगों, जांघ, बाजुओं पर वार जारी रखे। बेहोश होने पर मरी समझ कर दोनों दूसरे कमरे में चले गये।"
    खबर पढने के बाद रानी ने तुरंत एक छोटी सी चिट्ठी लिखकर पापाजी के तकिये के नीचे रखी और बेटे का हाथ पक‹डकर हमेशा-हमेशा के लिए वो विशाल बंगला छोड दिया, जो उसके लिए किसी यातनागृह से कम नहीं था। उसने चिट्ठी में लिखा,
    "मैं कोई डरावनी खबर नहीं बनना चाहती। जो काम मुझे बहुत पहले, पक्के इरादे के साथ करना चाहिए था, उसे आज कर रही हूं। जगजीत, तुम इस बार कतई इस भूल में मत रहना कि तुम्हारे गिडगिडाने, हाथ जोडकर माफी मांगने के झांसे में आकर वापस लौट आऊंगी। मेरी हिम्मत जवाब दे चुकी है। मैं अपने बेटे के भविष्य के बर्बाद होने की कल्पना नहीं कर सकती। अच्छी खासी पढी-लिखी हूं। एक बडी फायनांस कंपनी के संचालक ने नौकरी देने का आश्वासन भी दे दिया है। जैसे-तैसे हम मां, बेटा छोटे से किराये के कमरे में रह लेंगे, लेकिन तुम्हारे बंगले की तरफ ताकेंगे भी नहीं।"

No comments:

Post a Comment