Thursday, June 10, 2021

चुनौतियों को चुनौती

    हिवरे बाजार...हां यही नाम है महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में स्थित एक शानदार अनुशासित गांव का जिसकी आबादी मात्र दो हजार के आसपास है। इस गांव के सरपंच हैं पोपटराव। पोपट नाम का उच्चारण करने पर कुछ लोगों को अटपटा लगता है। ठहाकों के साथ-साथ मजाक भी सूझता है, लेकिन इस नाम के शख्स को भारत सरकार के अत्यंत प्रतिष्ठित पुरस्कार पद्मश्री के साथ-साथ अनेकों पुरस्कारों, सम्मानों से नवाज़ा जा चुका है। पोपटराव 1990 में हिवरे बाजार के सरपंच बने। पहली बार सरपंच बनने के बाद उन्होंने गांव में विकास की गंगा बहा दी। उसके बाद तो लगातार चुनाव में विजयी होकर वे सरपंच बनते चले आ रहे हैं। उनका दिखावटी विरोध होता है। विरोधी भी उनके मुरीद हैं। हों भी क्यों न, पर्यावरण प्रेमी सरपंच के कारण गांव में सर्वत्र पेड़-पौधे और हरियाली और खुशहाली नज़र आती है। पहले जो गांव रात के अंधेरे में दुबका रहता था अब वह बिजली की रोशनी में चमकने लगा है। गांव वालों ने वो भी दिन देखे हैं जब उनकी बहन-बेटियों तथा उन्हें खुले में शौच के लिए जाना पड़ता था, लेकिन अब घर-घर में शौचालय है। ग्रामीणों के सहयोग से पुल और पुलिया बिछ गयी हैं। अंडरग्राउंड ड्रेनेज पाइपलाइन बिछायी जा चुकी हैं। परिवार नियोजन को अपनाकर जनसंख्या को नियंत्रित कर लिया गया है। स्कूल, विद्यालय, अस्पताल, बाग-बगीचे और सर्वत्र साफ-सफाई हिवरे बाजार की पहचान और शान है। जो गांव कभी सूखे के कारण मुरझाया रहता था। वह हरा-भरा बना दिया गया है। प्याज, आलू और मौसमी सब्जियों की अपार पैदवर से ग्रामीणों के यहां धन बरसता है। जो लोग कभी रोजगार की तलाश में मुंबई, पुणे, दिल्ली चले गये थे, वे भी अपने हिवरे बाजार में लौट आये हैं।
    कोरोना की दूसरी लहर के दौरान जब देश के सभी शहर और ग्रामवासी घबराये हुए थे, उन्हें मौत का भय सता रहा था तब हिवरे बाजार के सरपंच पोपटराव के सशक्त प्रयासों और सावधानियों से तुरंत कोरोना को मात देने में सफलता पा ली गयी थी। मार्च और अप्रैल महीने में ऐसे चिंताजनक हालात थे जब हिवरे बाजार में 52 मरीज हो गये थे। सजग सरपंच ने उनका टेस्ट कराने के बाद कुशल डॉक्टरों की मदद से उन्हें तुरंत इलाज मुहैया करवाया। जिन्हें वेंटिलेटर की जरूरत थी उन्हें अस्पताल में भर्ती करवाया गया। इसी दौरान एक मरीज की मौत भी हो गई, लेकिन पोपटराव की प्रेरणा, देखरेख और समझाइश के परिणाम स्वरूप शीघ्र ही पूरे गांव से कोरोना का नामोनिशान ही मिट गया। हिवरे बाजार में हर ग्रामवासी ने कभी भी मास्क लगाना नहीं छोड़ा। हर पल सामाजिक दूरी का पालन किया। जब थोड़ा सा भी कोरोना का खतरा दिखा तो अस्पताल जाकर जांच करवायी और जरूरी सावधानियां बरतीं। जो लोग दूसरे गांव जाते वे लौटने पर सैनेटाइज करने और परिवार से अलग रहने की सरपंच की सलाह का पूरी तरह से पालन करते। पोपटराव की बिना किसी से भेदभाव के काम करते चले जाने की ललक और ईमानदारी का दूर-दूर तक डंका बजता है। ग्रामवासी तो उन पर गर्व कर खुद को खुशनसीब मानते हैं। उनके निर्देशों और सुझावों का पालन करने में कोई भी आनाकानी नहीं की जाती। लोगों का विश्वास जीतने की कला से प्रभावित होकर अहमदनगर जिले के कलेक्टर ने इस जनप्रिय सरपंच को 1300 गांवों के प्रधानों को संबोधित करने तथा मदद देने के लिए आमंत्रित किया। कलेक्टर चाहते थे कि सभी जनप्रतिनिधि पोपटराव पवार के सेवाकार्य के तरीकों को अपनाकर अपने-अपने गांव को कोरोना से मुक्त करें।
    आपने और हमने ज्यादतर यही देखा और जाना है कि सरकारी अधिकारी नौकरी से रिटायर होते ही सैर-सपाटा करने, आराम करने, तरह-तरह की मौज-मस्ती की योजनाओं को क्रियान्वित करने में लग जाते हैं। उनके लिए रिटायरमेंट का अर्थ होता है जेल से आजादी। खुले आकाश में परिंदों की तरह उड़ने का सुअवसर, लेकिन राकेश पालीवाल उर्फ आर.के.पालीवाल किसी और ही मिट्टी के बने हैं। उनकी सोच औरों से अलग है।  मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ तथा अन्य प्रदेशों में 35 वर्षों तक आयकर अधिकारी के रूप में पूरी ईमानदारी से अपनी सेवाएं देने वाले आर. के. पालीवाल जब 31 मार्च, 2021 को सेवानिवृत्त हुए तो उन्होंने उसी दिन घोषणा कर दी कि वे घर में तान कर सोने की बजाय समाजसेवा के धर्म को निभाने का निश्चय कर चुके हैं। गांधीवादी विचारक, कथाकार, गजलकार आर. के. पालीवाल सेवानिवृत्ति के दूसरे दिन से ही कोरोना मुक्त गांव अभियान की कंटीली और पथरीला राह पर खुशी-खुशी चल पड़े। उनकी निष्कलंक जनसेवी की छवि का ही असर था कि देखते ही देखते उनकी सोच वाले अन्य कई समाजसेवी उनसे जुड़ते चले गये। फिर तो जैसे बदलाव की लहर सी चल पड़ी।  देश के कई राज्यों में फैले लगभग 40 एनजीओ के जमीनी साथ और सहयोग से देश के 900 गांवों को कोरोना के घातक चंगुल से बचाने का इतिहास रच दिया गया। यह अभूतपूर्व चमत्कार हुआ ग्रामीण क्षेत्रों में जागरुकता लाने और सघन निगरानी की बदौलत। हालांकि यह काम आसान नहीं था, लेकिन आईआरएस अधिकारी पालीवाल और उनकी जागरूक टीम के लोग ग्रामीणों को बार-बार जान का मोल बताकर मास्क लगाने, सुरक्षित दूरी अपनाने और कोरोना का खतरा दिखने पर इलाज से न कतराने का प्रभावी संदेश देते रहे। इसी दौरान उनका कई ऐसे लापरवाह लोगों से भी सामना हुआ जिन पर समझाने-बुझाने का असर ही नहीं होता था। यह लोग डांटने-फटकारने पर जेब में रखा मास्क चढ़ा तो लेते, लेकिन थोड़ी दूर जाने पर फिर जेब में रख लेते। देश में ऐसे ‘बहादुरों’ की तादाद उन लोगों से कहीं ज्यादा है जो नियम-कायदों का पालन करते हैं। चिंतक, विचारक पालीवाल के अनुभवों का निचोड़ यह भी है कुछ लोग हमेशा असंतुष्ट रहते हैं। वे लोग समाज और देश के लिए कुछ नहीं करते। बस हमेशा हालातों का रोना रोते रहते हैं। यह लोग यह मान चुके हैं कि हालात इतने बदतर हैं कि उन्हें सुधारना किसी के बस की बात नहीं। यह तमाम बकबकवादी, हताशावादी और निराशावादी लोग पहले दुनिया भर की लापरवाही बरत कर अपने घर को कोरोनामय करते हैं। आस-पड़ोस और कॉलोनी में संक्रमण फैलाते हैं। कोई सजग नागरिक जब मास्क तथा अन्य सावधानियां अपनाने का सुझाव देता है तो आनाकानी करते हुए उसी की खिंचाई करने में लग जाते हैं। ऐसे अजूबे चेहरे जब कोरोना की चपेट में आकर अस्पताल में भर्ती होते हैं तो वहां की कमियां गिनाते हुए डॉक्टरों, नर्सों, कंपाउडरों को कोसने लगते हैं। महात्मा गांधी कहते थे जब तक हम नहीं सुधरेंगे तब तक दुनिया भी नहीं सुधरेगी। इसलिए पहले खुद को तो बदलो। आर.के.पालीवाल, राकेश कमर के नाम से सार्थक गजलें और कविताएं लिखते हैं। उनकी लिखी एक कविता का शीर्षक है, गिरगिट और आदमी।
‘गिरगिट तो
केवल बदलता है रंग
सुरक्षा या शिकार के लिए
 बदलता है आदमी
और कई चीजें, रंग के अलावा
मसलन गुट, दल, कैंप, हावभाव,
प्रेमनिष्ठा, दोस्ती, दुश्मनी
और यहां तक माई बाप भी
अपने स्वार्थ के लिए’

    कोरोना की दूसरी लहर ने देशवासियों को झकझोर दिया था। लाखों लोग मौत के हवाले हो गये। कइयों ने अपनों को खोया। बच्चे अनाथ हो गये। बहुतों का सर्वस्व लुट गया। खतरा अभी भी टला नहीं है। भले ही लॉकडाउन हटा दिया गया है। महामारी की तीसरी लहर की आशंका बनी हुई है। कहा जा रहा है कि अगस्त महीने में तीसरी लहर धमाका कर सकती है। इस बार बच्चों पर खतरा मंडरा रहा है। यदि ऐसा होता है तो इसके लिए भी हमारी लापरवाहियां, साजिशें, चालाकियां, होशियारियां और गुस्ताखियां ही कसूरवार होंगी। इसलिए सावधान...।

1 comment:

  1. देश को पोपटराव जैसे ही लोगो की जरूरत है। बहुत सुंदर रचना।

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