Thursday, June 17, 2021

नाटक-नौटंकी

    एक तरफ सच्चे समाज सेवक हैं, जो कोरोना से बचाव के लिए जागरुकता अभियान चला रहे हैं। वे बार-बार लोगों से कह रहे हैं कि स्वस्थ रहना है तो फौरन वैक्सीनेशन कराओ। सरकारें भी कह रही हैं, टीका लगवाएं, कोरोना हटाएं, लेकिन कुछ अड़ंगेबाज हैं जिन्हें टीके में खोट नज़र आता है। वे नहीं चाहते कि लोग सचेत हों। खुशी-खुशी टीका लगवाएं और स्वस्थ जीवन जीएं। आश्चर्य तो यह भी है कि कई लोग इनके बहकावे में आ रहे हैं। उन्हें झूठे और मक्कार, अफवाहबाजों पर तो भरोसा है, लेकिन सच्चे समाज सेवकों और सरकार पर नहीं। इन्हें झोलाछाप डॉक्टरों और तंत्र-मंत्र के खिलाड़ियों की शरण में जाकर जेबें कटवाना मंजूर है, लेकिन सही जगह पर जाकर सही इलाज करवाना मंजूर नहीं। कोरोना महामारी का प्रकोप अभी भी उन्हें बच्चों को खेल लगता है। भले ही लाखों लोगों की कोरोना की चपेट में आकर मौत हो चुकी है, लेकिन उनका तो अपनी देवी मां पर अटूट विश्वास है। ‘कोरोना माता’ उनका बाल भी बांका नहीं होने देगी। देश के विभिन्न दुर्गम इलाकों में अपना पसीना बहाते हुए जब स्वास्थ्य कर्मचारियों का टीका लगाने के लिए जाना हुआ तो उन्हें ग्रामीणों के अजब-गजब विरोध का सामना करना पड़ा। कुछ स्त्री-पुरुष तो उन्हें मारने-पीटने के लिए डंडे-लाठियां तक उठा लाये। लाख मिन्नतें करने के बावजूद वे टीका लगवाने को तैयार नहीं हुए। चंद्रपुर जिले के कुछ ग्रामों के जिद्दी लोगों की बहसबाजी वाकई हैरान करने वाली थी, ‘आप लोग चाहे कितना जोर लगा लो, लेकिन हम टीका तो नहीं लगवायेंगे। हम अपनी देवी मां के आदेश के खिलाफ नहीं जा सकते। हमारी देवी मां ने हम सबके सपने में आकर कहा है कि भूलकर भी यह खतरनाक टीका मत लगवाना। अगर गलती की तो बच नहीं पाओगे। मैडम, हमारी तो आपको भी यही सलाह है कि चुपचाप अपने-अपने घर जाकर देवी मां की आराधना में लीन हो जाओ। टीके के लिए किसी के साथ भी ज्यादा जोर-जबरदस्ती बड़ी महंगी पड़ सकती है आपको। दूसरों की जान बचाने के चक्कर में आपको अपनी जान तक गंवानी पड़ सकती है।’
    शहरों की पिछड़ी बस्तियों और ग्रामों में ठगी और लूटपाट करने के लिए अंधश्रद्धा के खिलाड़ी-व्यापारी तो कोरोना की पहली लहर के दौरान ही सीना तानकर मैदान में कूद पड़े थे। उनकी तंत्र-मंत्र की दुकानों पर देखते ही देखते भीड़ लगने लगी थी। कोरोना का सत्यानाश करने का झांसा देकर उन्होंने लोगों को डॉक्टरों और अस्पतालों तक जाने से रोकने में बड़ी आसानी से सफलता पा ली थी। झोलाछाप डॉक्टरों तथा तांत्रिकों ने कितने लोगों को मौत के घाट उतारा और कितनों को कंगाल कर दिया इसका अंदाज उनके अंधभक्तों की अपार संख्या से लगाया जा सकता है, जिन्होंने कभी भी न जागने की कसम खा रखी है। भ्रम और दुष्प्रचार के शिकार हुए लोगों को वैक्सीन के लिए मनाने के लिए शासन-प्रशासन और जनप्रतिनिधियों को क्या-क्या पापड़ नहीं बेलने पड़े। प्रलोभन का जाल तक बिछाना पड़ा। देश के एक प्रदेश के विधायक को तो अधिक से अधिक नागरिकों को टीके के प्रति आकर्षित करने के लिए मोबाइल तथा अन्य आकर्षक उपहार देने की घोषणा करनी पड़ी। जो लोग आनाकानी कर रहे थे वे मुफ्त का सामान पाने के लिए दौड़े-दौड़े चले आए। लालच के वायरस तो हर जगह विद्यमान हैं। अमेरिका के वॉशिंगटन में वैक्सीनेशन को बढ़ावा देने के लिए गांजा भेंट में देने का वादा कर ललचाया गया। मुफ्त में गांजा पाने और मदमस्त होकर धुआं उड़ाने की उमंग में टीका लगवाने वालों की कतारें लग गईं। इतना ही नहीं, अमेरिका के कुछ राज्यों में वैक्सीन लगवााने पर हवाई जहाज के टिकट, स्पोटर्स टिकट, स्कॉच और बीयर भी उपहार में दी गयी। अपने देश हिंदुस्तान में अंदर ही अंदर भले ही ऐसे करिश्मों और प्रलोभनों को आजमाया गया हो, लेकिन खबरें तो नहीं सुनने में आयीं। अपने कर्तव्य तथा जिम्मेदारियों से बचने वाले एक से एक बहानेबाज जरूर देखने में आए। कोरोना ने उन्हें बेशर्म बनने का भी हथियार थमा दिया।
    अपने ही देश भारत के प्रदेश बिहार के एक गांव में एक लड़की को अकेले ही मां के शव को दफनाने को विवश होना पड़ा। कोरोना के खौफ के चलते कोई भी रिश्तेदार आसपास नहीं फटका, लेकिन दस दिन बाद आयोजित किये गए श्राद्धकर्म में डेढ़ सौ से ज्यादा लोग भोज का मज़ा लेने के लिए पहुंच गए। सभी का यही कहना था कि हम तो सांत्वना देने आये हैं। इसी बहाने भोज का भी आनंद ले लिया। सच कहें तो मुफ्तखोरों ने देश की तस्वीर ही बिगाड़ कर रख दी है। इन्हीं के कारण लुच्चे-लफंगे चुनाव जीत जाते हैं। ईमानदारों की जमानतें जब्त हो जाती हैं और भ्रष्टाचारी टीवी, फ्रिज, शराब, कंबल, साड़ियां और नोटों से भरे लिफाफे बांटकर विधायक, सांसद और मंत्री तक बन जाते हैं। अपने यहां पिछले कई वर्षों से यही तो होता चला आ रहा है। ईमानदारी, बेईमानी से मात खा जाती है। अफवाहें हकीकत का गला घोंट देती हैं। अधिकांश मीडिया भी नकारात्मक खबरों को उछाल कर आनंदित होता है। टीका लगवाने के बाद शरीर पर लोहा चिपकने की खबर में उसे काफी दम नज़र आता है। पाठक मित्रों की जानकारी के लिए बता दूं कि नासिक शहर के सिडको इलाके के एक बुजुर्ग ने ‘रहस्योद्घाटन’  किया है कि वैक्सीन के दोनों डोज लगवाने के बाद उनके शरीर से लोहे और स्टील की वस्तुएं चिपकने लगी हैं। उनका शरीर चुम्बक बन गया है। कुछ धुरंधरों ने अफवाह फैलायी कि कोरोना का टीका नपुसंक बना देता है। विरोधी पार्टी के कुछ नेताओं ने टीके को ‘मोदी ब्रांड’ घोषित कर दिया। उन्होंने संदेह जताया कि विरोधियों को ऊपर भिजवाने के लिए भाजपा मंडली ने इसका निर्माण किया है। वैज्ञानिकों का इससे कोई लेना-देना नहीं है। वैक्सीन से जितना दूर रहो, उतना अच्छा है। कुछ योगी-भोगी भी पहले तो दहाड़ते हुए कहते रहे कि योग करते रहो, टीके की कोई जरूरत नहीं। बाद में एक-एक कर सभी ने टीका भी लगवाया और शर्मिंदगी से गर्दनें भी झुकानी पड़ीं। इनकी नाटक-नौटंकी से यह तो पता चल गया है कि ये कितने बीमार और दिलजले हैं। शहरों में तो लोगों के घरों तक पहुंचकर टीका लगाया जा रहा है, लेकिन ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य कर्मियों को अथाह परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। कई गांव तो ऐसे हैं जहां इंटरनेट की कोई व्यवस्था नहीं इसलिए वहां के निवासी शहरों में रहने वाले लोगों की तरह टीकाकरण के लिए पंजीयन नहीं करवा सकते। इन्हें टीका लगााने के लिए स्वास्थ्य कर्मियों को कई-कई टीका लगाने के लिए पैदल भी जाना पड़ रहा है। लेकिन फिर भी उनके चेहरे पर कोई शिकन नहीं। अपना कर्तव्य निभाते हुए वे संतुष्ट और खुश हैं।

No comments:

Post a Comment