Thursday, July 8, 2021

वार्तालाप

‘‘यार ये भी कोई बात हुई? किन्नर से शादी! ये आजकल के लौंडे आफत मचाये हैं। अरे, ऐसी भी क्या गर्मी कि मान-मर्यादा की ऐसी-तैसी करके रख दी!’’
‘‘गुरूजी, क्या फिर कोई नया खेल-तमाशा हो गया है?’’
‘‘पत्रकार जी, जो खबरें आपको पहले पता लगनी चाहिए उनसे तो अनभिज्ञ रहते हो। जब देखो तब बेकार की खबरों में ही उलझे रहते हो! कम अज़ कम अपने शहर में होने वाले धमाकों से तो बेखबर मत रहा करो।’’
‘‘गुरुजी, अब पहेलियां बुझाना छोड़ असली मुद्दे पर तो आएं। ऐसी कौन सी बिजली गिर पड़ी कि आपका तन-मन झुलसा हुआ है?’’
‘यार पत्रकार, मैंने जबसे सुना है कि शहर के एक छोकरे ने हिजड़े से ब्याह रचाया है तो मेरा ब्लड प्रेशर ही बढ़ गया है। शर्म की बात तो यह भी है कि मां-बाप ने भी मंजूरी दे दी है।’’
‘‘गुरुजी, यह तो बड़ी अच्छी खबर है। मैं कल ही उनसे जाकर मिलता हूं। दोनों का साक्षात्कार लूंगा और अपने अखबार के पहले पेज पर छापूंगा। आज के दौर में ऐसे हिम्मती युवक बचे ही कहां हैं। हमारे समाज का फर्ज बनता है कि वे दोनों को सराहें, दिल खोलकर आदर-सत्कार करें।’’
‘‘तुम्हारी ऊलजलूल सोच को लेकर ही तो मुझे हमेशा बड़ा गुस्सा आता है। समाज को साफ-सुथरा रखना छोड़ गंदगी फैलाने की पैरवी में लगे रहते हो। मुझे तो लगता है कि किन्नर ने इस अच्छे-खासे छोकरे पर कोई जादू टोना कर दिया होगा। बड़ी चालू किस्म की है ये जमात। बिन बुलाये किसी के भी यहां पहुंच जाते हैं ये लोग। इनके नेटवर्क के सामने तो बड़े-बड़े जासूस फेल हैं। किसके यहां शादी होने वाली है, बच्चा होने वाला हैं, इन्हें सबसे पहले पता चल जाता है ये लोग भरोसे के तो कतई काबिल नहीं। अब तुम्हीं बताओ कि दुनिया में क्या खूबसूरत लड़कियों का अकाल पड़ गया है जो मर्दों को हिजड़ों के साथ सात फेरे लेने पड़ें! कल जब साक्षात्कार लेने जा ही रहे हो तो उससे यह पूछना नहीं भूलना कि क्या तुमने एमए बीएड की डिग्री मर्दों को फांसने के लिए ही ली है? अपने शिक्षा के ज्ञान को अपनी बिरादरी के लोगों के विकास में लगाती तो इतनी बड़ी डिग्गी सार्थक हो जाती, लेकिन इसकी असली मंशा तो किसी भी पुरुष को फांसने की ही रही होगी।
‘गुरुजी, आपने तो दो-दो शादियां की हैं। आपके समलैगिंक संबंधों पर तो फिल्म भी बन चुकी है। फिर भी लगता है कि इस सच को भूला बैठे हैं कि प्यार तो किसी से भी हो सकता है। आप ही तो लिखते और बताते आये हैं कि प्यार वो मधुर एहसास है जिसे शब्दों में नहीं बांधा जा सकता। प्यार के सागर में गोते लगाने वाले प्रेमी किसी की परवाह नहीं करते। जीवन में अगर मनपसंद साथी मिल जाए तो जिंदगी सार्थक हो जाती हैं। युवक ने किन्नर में वही अपनापन ही तो देखा होगा जिसकी हर इंसान को तलाश रहती है। आपके विरोध और उलझन को देखकर मुझे कभी अखबार में पढ़ी यह खबर याद हो आयी है जिसमें बताया गया कि दक्षिण अफ्रीका में अब पुरुषों की तरह महिलाओं को भी एक से ज्यादा पति रखने की अनुमति देने पर विचार किया जा रहा है, लेकिन यह बात उन लोगों को चुभ रही है जो रूढ़ीवादी सोच रखते हैं। मानवाधिकार समूहों का मानना है कि एक से अधिक शादी का अधिकार सभी के लिए समान होना चाहिए। विख्यात व्यापारी और टीवी की एक जानी-मानी हस्ती की चार बीवियां हैं, लेकिन उन्हें भी महिलाओं को पुरुषों के बराबर दर्जा दिये जाने पर घोर आपत्ति है उनका कहना है कि महिलाएं कभी भी पुरुषों की बराबरी नहीं कर सकतीं। उनकी सोच बिलकुल आपकी जैसी ही है। आपको तो किन्नर इंसान ही नहीं लगते। इसलिए उनके हक पाने के कदम को ही गलत मानते हैं।’’
‘‘पत्रकार, मुझे लगता है तुम्हारी अक्ल का भी दिवाला पिट चुका है। ज़रा आंखे बंद करके खूबसूरत से खूबसूरत हिजड़े के शरीर के नाप-जोख की कल्पना तो करो...। मेरा तो तन-बदन कांपने लगता है। हिजड़े के साथ जिस्मानी रिश्ता...। पत्नी का दर्जा!
‘‘गुरु जी, जिन लोगों को अपनी किन्नरों के रहन-सहन और तहजीब का ज़रा भी भान नहीं है, वे ही उन्हें हिकारत की नज़र से देखते हैं। आपने कभी गंभीरता से सोचने की तकलीफ  नहीं की...कि किन्नर भी औरत और मर्द की पैदाइश हैं, इनकी बदकिस्मत यही है कि इनके मां-बाप भी इनके जन्मने पर माथा पीटते रह जाते हैं। उन्हें अपनी ही संतान का परिचय देने में इसलिए शर्म आती है क्योंकि समाज इन्हें आपकी तरह बदनुमा दाग मानता है। किन्नरों को अपनों से जहां नफरत और दुत्कार मिलती है, वहीं किन्नर समाज अपने में समाहित कर लेता है। किन्नरों के समाज के भी अपने नियम-कायदे हैं जिन्हें तोड़ने पर दण्ड का प्रावधान है।’’
‘आप कितनी भी कोशिश कर लें, लेकिन विधाता के विधान को नहीं बदल सकते। किन्नरों को शादी-ब्याह एवं अन्य खुशी के अवसरों पर नाचने-गाने और दुआएं देने के लिए ऊपर वाले ने धरती पर भेजा है। देखते नहीं, आजकल ये लोग अपराध भी करने लगे हैं। सड़कों, पार्कों, रेलगाड़ियों, बसों चौक-चौराहे, पर जबरन शरीफों को रोक कर पैसों की मांग करते हैं। नहीं देने पर गालियां और बददुआएं देने लगते हैं। कई भरे-पूरे गुदाज बदन वाली किन्नर तो वेश्यावृत्ति में भी लिप्त हैं।’
‘‘दरअसल आप को किसी का अच्छा पक्ष दिखता ही नहीं। आपने जो ठान लिया, बस उसी पर अटल रहते हैं। आपको तो पता भी नहीं होगा कि सुप्रीम कोर्ट ने किन्नर समुदाय को हम सब की तरह माना है। स्त्री-पुरुष की तरह इन्हें भी थर्ड जेंडर की मान्यता मिल चुकी है। वे भी पैतृक संपत्ति के अधिकारी हैं।’’
‘‘पत्रकार जी, बड़ी-बड़ी बातें करना बड़ा आसान है, लेकिन सच ये है कि इनकी सहायता, सुरक्षा और अधिकरों के लिए कितने भी कानून बन जाएं, लेकिन हमारा समाज  इन्हें कभी भी अपने साथ नहीं बिठायेगा। आप लोग थर्ड जेंडर के तप और त्याग की लाख दलीलें देते रहो, लेकिन इन्हें करना वही है जिसके लिए ये पैदा हुए हैं। कभी एक शबनम मौसी विधायक बनी थी तो आप की जमात ने कितनी तालियां पीटी थीं। दो-चार किन्नरों के पढ़-लिख जाने और किसी ओहदे पर पहुंच जाने का यह मतलब तो नहीं कि इन्हें अपने सिर पर बिठा लिया जाए...?’’
‘गुरु जी आप से तो भगवान भी नहीं जीत सकता, लेकिन जिस नये रिश्ते को लेकर आपने वार्तालाप प्रारंभ की थी, उस पर अपनी बात खत्म करते हुए मेरा तो बस यही मानना है कि देश तभी तरक्की करेगा जब ऐसे युवक सामने आएंगे। खुले दिल-दिमाग से थर्ड जेंडर को अपनाएंगे। इससे थर्ड जेंडर को अच्छी जिन्दगी के साथ-साथ अच्छी मौत भी नसीब होगी। आपको भले ही कोई फर्क नहीं पड़ता हो, लेकिन मेरा तो दिल दहल जाता है... बेचारे जीते जी तो अपमानित होते ही हैं, मृत होने पर भी अपने समाज के लोगों के द्वारा जूते-चप्पलों से पीटे जाते हैं...।

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