Thursday, October 14, 2021

कसूर बेकसूर

    मोबाइल पर यह मैसेज पढ़ते ही मैं अनुराग के घर जाने के लिए निकल पड़ा, ‘‘मेरी अब जीने की इच्छा नहीं रही। मेरी खुदकुशी की खबर कभी भी आपको मिल सकती है।’’ उसका घर मेरे घर से ज्यादा दूर नहीं था। मात्र आठ किमी का फासला था। ड्राइवर ने घर के सामने कार रोकी। मैं भागा-भागा घर के अंदर गया। वहां तो मजमा लगा था। पता चला कि अनुराग तो फांसी के फंदे पर झूल ही गया था, लेकिन यह तो अच्छा हुआ कि ठीक उसी समय ड्यूटी से लौटी उसकी पत्नी की फुर्ती और सतर्कता ने उसकी जान बचा ली। डॉक्टर उसको देखकर जा चुका था। अब कोई चिन्ता की बात नहीं थी। हां, यदि अनुराग की पत्नी के पहुंचने में किंचित भी देरी हो जाती तो वह सदा-सदा के लिए शांत हो चुका होता। अड़ोसियों, पड़ोसियों के चले जाने के बाद मैंने पहले तो अनुराग को फटकार लगायी फिर उसकी इस कायराना हरकत की वजह जानी। अनुराग जिस कॉलेज में बीते पंद्रह साल से लेक्चरर है, वहीं की साथी लेक्चरर ने उस पर बलात्कार का आरोप लगाते हुए बाकायदा थाने में रिपोर्ट दर्ज करवायी थी। उसका आरोप था कि पहले तो उस पर डोरे डाले गये फिर शादी करने का आश्वासन देकर यौन संबंध बनाये गये। वह इस सच से बेखबर थी कि अनुराग शादीशुदा है। वह पूरा भरोसा कर बार-बार उसके साथ हमबिस्तर होती रही, लेकिन कुछ महीनों के बाद वह कन्नी काटने लगा। इस बीच पता चल गया कि वह तो हद दर्जे का धोखेबाज है, जिसने बाल बच्चेदार होने के बावजूद मुझे अपने जाल में फंसाया।
    दूसरी तरफ अनुराग बार-बार कहता रहा कि उसे किसी गहरी साजिश का शिकार बनाया गया है। उसने कभी भी उस पर गलत निगाह नहीं डाली। यौन शोषण तो बहुत दूर का अपराध है, जिसे करने की वह कभी कल्पना ही नहीं कर सकता। इस महिला के चरित्रहीन होने का उसे पहले से पता था। इसलिए अकेले में बात करने से कतराता था, लेकिन यही गलत इरादे से मेरे निकट आने की अश्लील कोशिशें करती रहती थी। दोन-तीन बार मैंने इसे फटकारा भी था। अनुराग की सभी दलीलें अनसुनी रह गयीं। इसी दौरान अनुराग की पत्नी को पता चला कि वह पहले भी दो पुरुषों को अपने जाल में फंसा कर उनसे काफी रुपये ऐंठ चुकी है। अनुराग की पत्नी उनसे मिली। वे भी उसके खिलाफ आगे आने को तैयार हो गये। अनुराग की पत्नी ने आरोप लगाने वाली महिला को पूरी तरह से बेनकाब करने का भय दिखाया, तो वह हाथ-पांव जोड़ने लगी और उसने अदालत में अपने आरोपों को वापस लेते हुए माफी मांगी। अनुराग बलात्कार के घिनौने आरोप से बरी तो हो गया, लेकिन उसकी जिन्दगी दागदार हो गयी। जिस दिन उसने थाने का मुंह देखा, जेल की हवा खायी उसी दिन उसकी सामाजिक मौत हो गयी। किसी को मुंह दिखाना मुश्किल हो गया। उसे बस यही लगता कि भरे बाजार उसे नंगा किया जा चुका है। लोग उस पर थू-थू कर रहे हैं। दोस्तों और रिश्तेदारों को सफाई देते-देते वह थक चुका था। उसी का नतीजा था यह फांसी का फंदा, जिस पर झूल कर वह अपना खात्मा करने जा रहा था।
    अनुराग की पत्नी तो अभी भी भयग्रस्त थी। वह मुझसे बस यही कहती रही कि भाईसाहब आप ही इन्हें समझायें। मैं तो थक चुकी हूं। जो होना था हो चुका। फिर कभी ये ऐसी गलती न करें। मैं हमेशा तो इनके करीब नहीं रह सकती। बात करते-करते मुझसे भी यह नजरें चुराने लगते हैं। मुझे तो कभी भी इन पर अविश्वास नहीं हुआ। जब उस कुलटा ने इन पर लांछन लगाये थे तब भी इनके साथ खड़ी थी। मैंने कभी भी दूसरों की नहीं सुनी। क्या इनका भी फर्ज नहीं बनता कि हमारे लिए अतीत को भुलाकर नये सिरे से जीना प्रारंभ कर दें। इन्हें निराश और उदास देखकर बच्चे भी चौबीस घण्टे बुझे-बुझे रहते हैं। अनुराग के घर से मैं लौट तो आया, लेकिन उसका पत्थर सा चेहरा मेरी आखों से ओझल नहीं हो पाया। रात भर मैं उसी के बारे में सोचते-सोचते आसिफ और अरविंद तक जा पहुंचा। आसिफ मेरे बचपन के दोस्त इकबाल का बेटा है, जिसे पुलिस ने दिल्ली में हुए बम धमाके के आरोप में बंदी बनाया था। आसिफ का घर पानीपत में था। जिस दिन धमाका हुआ उस दिन वह दिल्ली में ही था। विस्फोट स्थल के निकट होने की वजह ने उसे हथकड़ियां पहना दीं, जिनसे बाइज्ज़त आजाद होने में उसे दस वर्ष लग गये। गिरफ्तारी के बाद उसको आतंकवादी और देशद्रोही करार दे दिया गया। पुलिस ने तो उसकी अंधाधुंध पिटायी कर जान ही निकाल लेनी चाही, लेकिन उसने अपराध कबूल नहीं किया। पुलिस चाहती थी कि वह किसी तरह से धमाके में शामिल होने की जिम्मेवारी स्वीकार कर ले। वकीलों की मोटी-मोटी फीस चुकाने में उसका घर बिक गया। पिता चल बसे। जिस पढ़े-लिखे परिवार की बेटी से उसकी शादी होने वाली थी, उन्होंने भी मीडिया की तरह उसे आतंकवादी मानते हुए अपनी बेटी को किसी अन्य युवक से ब्याह दिया। देश की अदालत ने तो उसे अंतत: बरी कर दिया, लेकिन समाज तो अभी तक उसे अपराधी माने हुए है, जिससे उसकी जिन्दगी का पूरा ताना-बाना तहस-नहस हो चुका है। वह जहां कही नौकरी मांगने गया वहां से दुत्कार कर भगा दिया गया। जो युवक कभी कलेक्टर बनने के सपने देखा करता था आज मोहल्ले में पान दुकान लगाये बैठा है। वर्षों तक बरपी मानसिक और शारीरिक यातनाओं के कारण उसके शरीर में ज्यादा भाग-दौड़ करने की ताकत भी नहीं बची।
    अरविंद ने प्रापर्टी और दवाइयों के कारोबार में करोड़ों कमाये। वर्षों तक व्यापार करने के पश्चात अपने बचपन के शौक को पूरा करने का मन में विचार आया तो हिन्दी की एक साप्ताहिक पत्रिका का संपादन प्रकाशन प्रारंभ कर दिया। इसी दौरान अरविंद का एक ऐसी नारी से पाला पड़ा, जो खुद को अनुभवी पत्रकार बताती थी और महीनों से बेरोजगार थी। अरविंद ने उसे काम पर रख लिया, लेकिन कुछ ही दिनों में अरविंद को समझ में आ गया कि उसका काम पर ध्यान कम रहता है। वह तो अपने सम्पादकीय सहयोगियों से इधर-उधर की बातें और गप्पे मारने में अपना अधिकांश वक्त बिता देती है। ऐसे में अरविंद ने वही किया, जो हर समझदार मालिक करता है। अरविंद के काम छोड़कर चले जाने के आदेश को सुनते ही वह तरह-तरह की बकवासबाजी करते हुए अपनी असली औकात पर उतर आयी, ‘‘आप मुझे जानते नहीं, मैं आपको रेप के आरोप में जेल भिजवा सकती हूं। मैंने आपकी नीयत को पहले ही भांप लिया था। इसलिए मैंने अपने यू-ट्यूब चैनल के दोस्तों को आपकी जासूसी पर लगा दिया था। अब तो आपको हमें दस लाख रुपये देने होंगे या फिर जेल जाना होगा। आपकी यह साहित्यिक पत्रिका हमेशा-हमेशा के लिए बंद हो जाएगी। इसके साथ ही इज्जत के भी परखच्चे उड़ जाएंगे। यह तो आपको पता ही है कि कानून महिलाओं की पहले सुनता है। बलात्कार कोई छोटा-मोटा अपराध नहीं है, जो आपने मेरे साथ किया है...।’’ अरविंद को अपनी भूल पर गुस्सा आया। उसने इस शातिर ब्लैकमेलर युवती को आंख बंद कर नौकरी पर रख लिया था। युवती की धमकी के दूसरे दिन से उसके गिरोह के ब्लैकमेलरों के भी दस लाख रुपयों के लिए फोन आने लगे। अरविंद बिना देरी किए पुलिस अधिकारी से मिला और पूरी हकीकत बयां कर दी...।

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