Thursday, October 28, 2021

ऐसे भी मिलती है सज़ा!

    चीन में कानून बनाया जा रहा है। बच्चों की करनी की सज़ा मां-बाप को भी मिलेगी। संतानों के अपराधी होने पर उन्हें भी कसूरवार ठहराया जायेगा। जब कोई किशोर मारपीट, नशा-पानी या और कोई छोटा-बड़ा अपराध करता पाया जायेगा तो अंतत: यह माना जाएगा कि माता-पिता की अनदेखी, लापरवाही, अच्छे संस्कार और शिक्षा देने की कमी के चलते बच्चे ने गलत राह पकड़ी है। इसलिए बच्चे के साथ-साथ वे भी दंड से नहीं बच सकते। अपने देश भारत में ऐसा कोई कानून नहीं। निकट भविष्य में इसके बनाये जाने की दूर-दूर तक कोई संभावना नहीं, लेकिन फिर भी अपनी नालायक संतानों के कारण मां-बाप को किसी न किसी रूप में अपमान के कड़वे घूंट पीने के साथ-साथ मानसिक कष्ट तो भोगने ही पड़ते हैं। वे मां-बाप जो खुद अपराधी प्रवृत्ति के हैं, उन्हें तो कोई फर्क नहीं पड़ता। उनका बच्चा बड़ा होकर चोर, डाकू, हत्यारा, नशेड़ी बने इसकी चिंता और परवाह करने की उनके पास फुर्सत ही कहां होती है। असली मरण तो शरीफों का होता है, जिनकी औलादें गलत संगत या किसी और कारण से भटक जाती हैं और उनके माथे पर कलंक का टीका लगाती हैं। समाज उन्हीं की परवरिश पर उंगली उठाता है। वह तो उनपर भी शंका करने लगता है। अपराध अमीरों की औलादें भी करती हैं, गरीबों की भी। मध्यम वर्ग के बच्चे भी इससे अछूते नहीं। नशा करने के रोग से न तो गरीबों की औलादें बची हैं और न ही अमीरों की। गरीब सस्ता नशा करते हैं और अमीर महंगा। यह जान और सुनकर हैरानी होती है कि रईसों की पैदाइशें नशे में लाखों रुपये फूंक रही हैं। यह लाखों रुपये आखिर तो उन्हें अपने मां-बाप से ही मिलते होंगे। चोरी, हेराफेरी हर रोज तो नहीं की जा सकती। नशा करने के लिए रोज पैसे चाहिए। जिनके यहां बेहिसाब काला धन बरसता है उन्हीं के यहां के लड़कों की तो मौज ही मौज होती है, लेकिन यह मौज पहले तो ऊपरी खुशी देती है, फिर संकट के पहाड़ खड़ा करते हुए होश ठिकाने भी लगाती है। नाम पर बट्टा अलग से लगता है।
    वर्षों पहले अभिनेता संजय दत्त ने जब ड्रग का कसकर दामन थामा था और दाऊद इब्राहिम, अबू सालेम जैसे देश के दुश्मनों के करीबी पाये गये थे, तब उसके पिता सुनील दत्त का तो जीना ही मुहाल हो गया था। सर्वधर्म समभाव के जबरदस्त हिमायती सुनील दत्त एक बेइंतहा सज्जन इंसान थे। एक तरफ वे अपने महाबिगड़ैल बेटे को सुधारने की जद्दोजहद कर रहे थे तो दूसरी तरफ कानून का शिकंजा था, जिससे उन्हें किसी भी तरह से अपने पुत्र को बचाना था। कानून तो अपना काम करता है। देश-विदेश में इलाज करवाने के पश्चात बेटे को नशे की जंजीरों से मुक्त करवाने में तो शरीफ पिता ने काफी हद तक सफलता पा ली, लेकिन जेल जाने से नहीं बचा पाये। जिस परिवार की संतान जेल की काली कोठरी में बंद हो उसे भला नींद कैसे आ सकती है। अपराधी बेटा जेल में बंद था और बाहर पिता को वकीलों, राजनेताओं, सत्ताधीशों और पता नहीं किन-किन ताकतवर लोगों के घरों के चक्कर काटने पड़ रहे थे। कल तक नतमस्तक होकर आदर-सम्मान देने वाले नजदीकी लोग भी कन्नी काटने और ताने देने लगे थे। कैसे लापरवाह पिता हो, जो अपने इकलौते बेटे को भी नहीं संभाल पाये। खुद तो समाजसेवी बने फिरते हो, लेकिन बेटा आतंकवादियों के साथ उठता-बैठता है। वर्षों तक जेल की सलाखों के पीछे रहे संजय दत्त की बहनों का भी घर से बाहर निकलना दूभर हो गया था।
    जैसा हश्र कभी अभिनेता सुनील दत्त का किया गया था, वैसी ही दुर्गति का सामना फिल्म अभिनेता शाहरुख खान को करना पड़ा। उनके दुलारे बेटे को भी ड्रग्स लेने की आदत के कारण जेल जाना पड़ा। यहां भी कानून ने अपना काम किया, लेकिन शाहरुख खान को अपनी रातों की नींद की कुर्बानी देने के साथ जिस-तिस की गालियां और तोहमतें झेलनी पड़ीं। उनकी पत्नी गौरी खान पर भी तंज कसे गये। उनकी बाथरूम में नशा करने की दास्तानें सोशल मीडिया में छायी रहीं। राजनीति करने वालों ने भी जी भरकर नाटक-नौटंकी की। इसके पीछे अभिनेता की दौलत की बहुत बड़ी भूमिका होने की कई-कई बातें हवाओं में तैरती रहीं। अभिनेता सुनील दत्त की सादगी और बेहतरीन साख ने उन्हें देश ही नहीं विदेशों में भी ख्याति दिलायी थी। वे थे तो कट्टर कांग्रेसी, लेकिन कभी भी उन्होंने यह नहीं कहा कि मेरी नापसंद पार्टी और उसका नेता देश का प्रधानमंत्री बना तो मैं देश छोड़ दूंगा। सुनील दत्त ने हमेशा लोकतंत्र की कद्र की और जनमत को सर्वोपरि माना। उन्होंने देश में कमाया धन देश में ही लगाया। दुबई, अमेरिका, कनाडा आदि में अरबों-खरबों की सम्पत्तियां नहीं खरीदीं। दुश्मन देश की तरफ उनका कभी भी झुकाव नजर नहीं आया। यही वजह रही कि वे निरंतर लोकसभा का चुनाव जीतते रहे। उन्हें मंत्री भी बनाया गया। उन पर बस बेटे के कुकर्मी होने का एक ही दाग लगा। इसी वजह से उन्हें यहां-वहां नाक रगड़नी पड़ी, जिसकी उन्होंने कभी कल्पना नहीं की थी। कल्पना तो शाहरुख ने भी नहीं की होगी कि उसे अपने नशेड़ी बेटे की वजह से इतने बुरे दिन देखने पड़ेंगे। वैसे भी भारत के फिल्मी सितारों की कलई खुल चुकी है। चेहरे की सारी की सारी फेयर एंड लवली धुल गई है। कोविड-19 ने भारतीयों के दिमाग पर लगे ताले खोल दिये हैं। उनके लिए अब फिल्मी सितारे नायक नहीं रहे। देश के लिए मेडल लाने और कोरोना में देशवासियों के काम आने वाले ही उनके असली महानायक हैं। नकली नायकों को तो अब दर्शकों का भी टोटा पड़ने वाला है। सड़कों पर निकलेंगे तो कोई ताकेगा भी नहीं। दर्शकों को बेवकूफ बनाकर जितना लूटना था। लूट चुके। अब और नहीं। बहुत झेला जा चुका है इन्हें। अपनी करनी का फल तो हर किसी को भोगना ही पड़ता है। यहां यह कहना कि ‘करे कोई और भरे कोई’ जंचता नहीं। अपनी संतान के पापों का दंड तो मां-बाप को किसी न किसी तरह से भोगना ही पड़ता है, लेकिन इतना भी नहीं। इसकी भी सीमा होनी चाहिए। लोगों को इस कदर भी निर्दयी नहीं होना चाहिए कि सामने वाले को पूरी तरह से नंगा करने पर उतर आएं, जिससे उसके लिए सिर उठाकर चलना भी मुश्किल हो जाए...। दुनिया के किसी मां-बाप को अपनी औलाद का पथभ्रष्ट होना अच्छा नहीं लगता। माता-पिता गरीब हों या अमीर अपने दुलारे की जेल की यात्रा तो उन्हें जीते जी मार देती है। इससे बुरा मंज़र तो और कोई हो ही नहीं सकता...।

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