Thursday, November 11, 2021

आप ही तय करें

    वो वक्त अब कहां जब अखबारों में अवैध शराब चढ़ाकर मरने वालों की खबर विचलित कर देती थी। मृतकों के बढ़ते आंकड़ों और उनके परिजनों के रोने-मातम मनाने की तस्वीरों को देखकर दिल दहल जाता था। अब तो ऐसी कोई भी खबर बड़ी आम लगती है। रोजमर्रा का खेल-तमाशा। दूर बैठे किसी भी चेहरे पर किंचित भी भय, चिंता, परेशानी और पीड़ा की लकीरें उभर नहीं पातीं। न्यूज चैनलों पर इन खबरों को बस यूं ही देखा-सुना जाता है। मृतकों की संख्या दर्शाती पट्टी भी कोई हलचल नहीं मचाती। विरोधी नेता और समाजसेवक भी पहले की तरह सरकार को नहीं ललकारते। थोड़ा-मोड़ा हल्ला-गुल्ला मचता भी है, तो कोई नहीं सुनता। यह मशीनी समय है। एक जगह ठहरकर विचारने का हर किसी के पास वक्त नहीं है। कुछ लोग जानबूझकर अंधे-बहरे बने हुए हैं। जानते हैं सामने अंधा कुआं है, फिर भी उसमें जा गिरते हैं। कितनी बार इन्होंने भी शराब की खराबियों के बारे में पढ़ा होगा। नकली शराब पीकर मरने की खबरें भी इन तक पहुंची होंगी। घर परिवार तथा सच्चे यार दोस्तों ने भी टोका-समझाया होगा कि पीनी भी है तो सोच-समझकर पिया करो। इस नशे के लिए अपनी जान को जोखिम में डालना सरासर बेवकूफी है। खुद के साथ-साथ उन अपनों के साथ धोखा है, जो आपको दिलो-जान से चाहते हैं।
    जब देशवासी जगमग दिवाली की खुशियां मना रहे थे, तभी शराब बंदी वाले प्रदेश बिहार में नकली शराब पीकर लगभग चालीस लोग परलोक सिधार गये। कइयों की आंखों की हमेशा-हमेशा के लिए रोशनी चली गयी। उन्हें अब अंधे बनकर रहना होगा। दरअसल अंधे तो वे पहले से ही थे। तभी तो उनकी अवैध और नकली शराब पीकर ऐसी दुर्गति हुई है। सरकार ने तो पांच अप्रैल 2016 में ही शराब के उत्पादन, व्यापार, भंडारण, परिवहन, विपणन और सेवन पर इस इरादे से रोक लगा दी थी कि जो लोग शराब पीकर अपना बसा-बसाया घर उजाड़ देते हैं, उनके घर परिवार की औरतें और बच्चे अभावों और तकलीफों की मार झेलने को विवश हो जाते हैं, उन्हें जब शराब ही नहीं मिलेगी तो उनकी कंगाली दूर हो जाएगी। परिवार खुशहाल हो जाएंगे। शराब बंदी के बाद असंख्य लोगों की जिन्दगी सुधर गई। उन्होंने सरकार का शुक्रिया और आभार माना, लेकिन जो अखंड पियक्कड़ थे वे खुद पर अंकुश नहीं लगा पाये। उनकी पीने की लत जस की तस बनी रही। होना तो यह चाहिए था कि शराब बंदी लागू होने के बाद पूरे बिहार प्रदेश में शराब का नामो-निशान ही नहीं रहता, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। वैध शराब की दुकानों पर ताले लगते ही तस्करों ने शराब के कारोबार की कमान संभाल ली। पुलिस की नाक के नीचे शराब बिकने लगी। कहीं असली तो कहीं नकली। जहरीली शराब पीकर मौत के मुंह में समाने वालों की खबरें भी आने लगीं। इन मौतों के लिए सरकार को जिम्मेदार ठहराया जाने लगा। साथ ही पढ़े-लिखों के बयान भी आने लगे कि सरकार कौन होती है शराब पर पाबंदी लगाने वाली। यह तो सीधे-सीधे मौलिक अधिकारों पर चोट है। नाइंसाफी है। वोटों के लिए महिलाओं की मांग को पूरा करने वालों को यह भी सोचना चाहिए था कि शराब के शौकीनों के मुंह से एकाएक ‘प्याला’ छीनना अक्लमंदी का निर्णय नहीं है। जो लोग वर्षों से शराब पीते चले आ रहे हैं उनसे आप यह कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि वे एकाएक पीना छोड़ देंगे। शराब के पक्ष में अपने-अपने तर्क रखने वाले ढेरों हैं, लेकिन यह भी तो सच है कि नागरिकों के भले के लिए ही शराब बंदी की गई। ज्यादातर लोगों ने सरकार के फैसले का स्वागत भी किया, लेकिन यह भी सच है कि सरकार ने शराब बंदी तो कर दी, लेकिन जगह-जगह अवैध शराब के बिकने-बिकवाने पर पूरी तरह बंदिश लगाने में असफल रही।
    हर बार की तरह इस बार भी मुख्यमंत्री महोदय का बयान आया कि आखिर लोगों को शराब कैसे मिल जाती है! शराब बंदी कानून की समीक्षा की जाएगी। जहां पर प्रशासन और माफिया मिले हुए हों वहां मुख्यमंत्री का ऐसा खोखला और बनावटी बयान गुस्सा दिलाता है। आप किसे मूर्ख बना रहे हैं सीएम साहब! आपको सब पता है। आप जानते हैं आपकी पुलिस तथा आबकारी विभाग बिका हुआ है। कुछ मंत्री भी उनसे रिश्वत की थैलियां पाते चले आ रहे हैं। बताने वाले तो यहां तक बताते हैं कि शराब माफियाओं, तस्करों और असली-नकली शराब के धंधेबाजों को तमाम ऊंचे लोगों का पूरा संरक्षण मिला हुआ है। तभी तो जब से प्रदेश में शराब बंदी हुई है, पियक्कड़ों को शराब मिलती चली आ रही है। जहरीली शराब पीकर हर बार गरीब ही मरते हैं। अमीरों को तो उनकी मनपसंद महंगी शराब उनके घर तक पहुंचा दी जाती है। आपका शराब बंदी का कानून भी उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाता। अवैध, नकली और सस्ती शराब पहले भी आदतन नशेड़ियों को परलोक पहुंचाती थी और आज भी सिलसिला बरकरार है। आप ही तय करें कि आपको क्या करना है। शराब बंदी कानून को सफलतापूर्वक अगर आप लागू नहीं करवा सकते तो यह आपकी घोर असफलता का ऐसा जीवंत दस्तावेज है, जिसके पन्ने तब-तब खोले जाते रहेंगे, जब-जब विषैली शराब पियक्कड़ों की जान और उनकी आंखों की रोशनी छीनती रहेगी और उनके परिवार वाले रोते-कलपते रहेंगे। तब-तब आपको भी कसूरवार मानकर कोसा जाता रहेगा कि कैसे अंधे मुख्यमंत्री हैं आप?

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