Friday, November 5, 2021

कैसी-कैसी कालिख

भारत और पाकिस्तान के बीच क्रिकेट मैच होने का मतलब है रोमांच, सनसनी, उत्तेजना और भी ऐसा बहुत कुछ जो हर बार देखने में आता है। 24 अक्टूबर, रविवार की शाम भारत और पाक के बीच हुई मानसिक और शारीरिक भिड़ंत में आखिरकार पाकिस्तान की क्रिकेट टीम विजयी रही। भारत के क्रिकेट प्रेमी और क्रिकेटर लगभग पूरी तरह से आश्वस्त थे कि पाकिस्तान की टीम को मुंह की खानी पड़ेगी। वह मैदान में टिक नहीं पायेगी, लेकिन क्रिकेट तो क्रिकेट है। पूर्व अनुमान धरे के धरे भी रह जाते हैं। बुरी तरह से भारत की टीम का हारना बहुत ही अचंभित करने वाला था। खासतौर पर क्रिकेट के दिवाने भारतीयों के लिए। उन्हें लगा कि पाकिस्तान की टीम ने भारत की टीम की नाक ही काट कर अपनी जेब में रख ली है। मायूस कर देने वाली इस शर्मनाक हार के बाद भी भारतीय कप्तान विराट कोहली का पाकिस्तानी क्रिकेटर मोहम्मद रिज़वान को खिलखिलाते हुए अपने गले से लगाना मुझे अत्यंत आनंदित कर गया। उनके चेहरे पर कहीं भी हार की शिकन नहीं थी। भारत-पाक के क्रिकेट मैच को हमेशा हिंसक लड़ाई मानकर चलने वालों को इस तस्वीर ने खेल के असली मायने बताने की भरपूर कोशिश की, लेकिन खेल के मैदान को युद्ध का मैदान मानने वालों ने इस मनमोहक तस्वीर की अनदेखी कर अपनी भीतरी नीचता उजागर कर ही दी। भारत में कुछ लोगों ने भारतीय टीम के विरुद्ध अपमानजनक बोल बरसाये और पाकिस्तान का झंडा लहराया। पटाखे फोड़े गये। मिठाइयां भी बांटी गयीं। उनकी बेइंतहा खुशी की वजह पाक की जीत से ज्यादा भारत की करारी हार थी, जिसकी वे राह देख रहे थे। फेसबुक पर पाकिस्तान के पक्ष में ऐसे-ऐसे नारे लिखे गये, जो हिंदुस्तान के प्रति उनकी घटिया और अहसानफरामोश सोच को दर्शाते रहे। नीचता की पराकाष्ठा के साथ पाकिस्तान की जीत का जश्न मनाने वालों को खूब कोसा और लताड़ा भी गया।
उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने तो इन थाली छेदक असामाजिक तत्वों को हिरासत में लेने के आदेश दे दिए। देशद्रोह के कानून के अंतर्गत जेल भेजे जाने से उनकी तो सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई। देश विरोधी नारे लगाकर शांति को अशांति में बदलने वाले नर्मी के कतई हकदार नहीं हैं। कानूनी डंडे की जबरदस्त मार के हकदार वे भी हैं, जिन्होंने भारतीय तेज गेंदबाज मोहम्मद शफी को अभद्र शब्दावली से आहत किया। किसी ने टीम इंडिया में पाकिस्तानी तो किसी ने पाकिस्तान के पक्ष में एक मुस्लिम तुम्हें कितने पैसे मिले? जैसे अशोभनीय शब्द बाण चलाये। विश्वस्तरीय गेंदबाज शमी प्रारंभ से ही खेल और देश के प्रति पूरी तरह से समर्पित रहे हैं। शमी की गिनती उन भारतीय खिलाड़ियों में होती है, जिनमें धैर्य और संयम कूट-कूट कर भरा है। कुछ वर्ष पूर्व उन्हें उनकी पत्नी ने घरेलू हिंसा का आरोप लगाकर बदनाम करने का अभियान चलाया था, आज की तरह तब उनकी खामोशी ही उनका जवाब थी। वे क्रिकेट खेलते हुए कई बार चोटिल हुए। घुटनों का आप्रेशन भी करवाना पड़ा, लेकिन देश के लिए खेलने के जुनून को कहीं भी कमतर और ठंडा नहीं होने दिया।  यकीनन यह सवाल जवाब चाहता है कि यदि शमी के नाम के साथ मोहम्मद की बजाय खन्ना या कपूर लगा होता तो क्या तब भी उनकी देशभक्ति पर ऐसे ही कीचड़ उछाला जाता? कप्तान विराट कोहली ने शमी को अपमानित करने का अभियान चलाने वालों को खरी-खरी सुनायी, तो उन्हें धमकी देते हुए कहा गया कि तुम अपना काम करो। ज्यादा मुंह खोलोगे तो तुम्हारी बेटी का बलात्कार कर दिया जाएगा। कोहली की मासूम बेटी मात्र दस महीने की है।
मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में फिल्म निर्माता प्रकाश झा का मुंह काला कर दिया गया। हालांकि उनके मुंह पर जो स्याही फेंकी गयी वह लाल और नीले रंग की थी। इस कांड को अंजाम दिया बजरंग दल के योद्धाओं ने, जिन्हें हिन्दू धर्म को बदनाम करने की हिमाकत करने वाले शूल की तरह चुभते हैं। प्रकाश झा बड़े उत्साह के साथ भोपाल में अपनी वेबसीरीज आश्रम की शूटिंग में लगे थे। इससे पहले भी प्रकाश ने अपनी फिल्मो की शूटिंग यहां पर की है। अपार भीड़ उनकी परेशानियां तो बढ़ाती रही, लेकिन अपमानित किये जाने की नौबत पहली बार आयी। प्रकाश को भोपाल से ऐसी उम्मीद नहीं थी। प्रकाश झा को डराने और अपमानित करने की यह घटना बड़ी खबर नहीं बन पायी। सरकार ने भी काली चादर ओढ़े रखी। प्रकाश झा की आश्रम नाम की इस विवादास्पद वेबसीरीज का केंद्र बिंदू है धूर्त, पाखंडी, अय्याश बाबा राम रहीम, जो पिछले कई महीनों से जेल की सलाखों के पीछे अपने कुकर्मों की सजा भुगत रहा है। आश्रम के दो संस्करण पहले दिखाये जा चुके हैं। तब भी विरोध के स्वर उभरे थे। तीव्र सवाल भी उछाले गये थे कि हिंदू धर्म के ही नकली साधु-संतों पर ही फिल्में तथा वेबसीरीज क्यों बनायी जा रही हैं? दूसरे धर्मों में भी तो एक से एक लुच्चे, शैतान, कपटी, अय्याश धर्म के शिकारी और लुटेरे व्यापारी तथा भद्दे चेहरे भरे पड़े हैं। उन पर किसी की नजर क्यों नहीं जाती? हिंदुओं की भावनाओं के साथ खिलवाड़ करने की यह नीति अक्षम्य है। देश की जनता को घटिया और बदजात पेंटर मकबूल फिदा हुसैन की भी याद दिलायी गई, जिसने हिंदू-देवी देवताओं की अश्लील तस्वीरें बनाकर असंख्य भारतीयों की धार्मिक भावनाओं को लहूलुहान किया था। धन और नाम के भूखे अय्याश चित्रकार हुसैन ने जब देखा कि उसकी कमीनगी से आहत सजग देशवासी उसको सबक सिखाने की ठाने हैं, तो वह रातों-रात देश छोड़कर भाग खड़ा हुआ। प्रकाश झा की पहचान एक प्रगतिशील फिल्म निर्माता की रही है। कुछ अच्छी फिल्में भी उन्होंने बनायी हैं, लेकिन आश्रम वेबसीरीज में बेहूदगी और गंदगी की भरमार ने उन्हें कटघरे में खड़ा कर दिया है। धन कमाने की भूख ने उन्हें अनियंत्रित कर दिया है। राम रहीम कोई देवता नहीं। प्रकाश झा की नीयत में भी खोट है। एक ही धूर्त की काली दास्तान को और कितना खींचा जा सकता है, लेकिन लालच है कि खत्म ही नहीं होता!
जेल में उम्र कैद की सज़ा भुगत रहा राम रहीम कई वर्षों तक अपने हजारों अंध भक्तों की आंख में धूल झोंकते हुए हत्याएं और अय्याशियां करता रहा और जिन्होंने उसे बेनकाब किया उनकी भी हत्या करवा दी। ढोंगी प्रवचनकार आसाराम और अन्य कपटी नकली साधु भी आखिरकार बेनकाब कर दिये गए और वहां पहुंचा दिये गए, जहां उन्हें बहुत पहले होना चाहिए था। आश्चर्य यह भी कि अपने चेले-चपाटों की निगाह में वे आज भी बेकसूर हैं। पाक साफ हैं, लेकिन सच तो सच है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड़ में अपना खेल खेलने वाले हुसैन और प्रकाश झा जैसे धन और नाम के भूखों के विरोध में उठनी वाली तीखी आवाजों और कारणों को भी अनदेखा और अनसुना नहीं किया जा सकता, लेकिन उनके होश ठिकाने लगाने के लिए किसी भी तरह की हिंसा का समर्थन भी यह कलम नहीं करती...।

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